Fulkari
Author:
Gogi Saroj PalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Unavailable
कहने और सुनने की कला मुझे अपनी दादी और माँ से मिली। उनकी हर कहानी को मैंने कई-कई बार सुना और उन्होंने कई-कई बार उतने ही प्यार से सुनाया और हर बार सुनाने में वह वैसे ही अपने आप में खो गई जैसे कि मैं पहली बार सुन रही हूँ और वह पहली बार सुना रही हैं। मैंने उनसे कहानी देखना भी सीखा, सुनना और कहना भी और बाद में जीना भी।</p>
<p>यह पुस्तक मिस सरोज भसीन को भी अर्पित है जिन्होंने मुझे मेरी पहली कहानी लिखने के लिए उत्साहित किया और मेरे ताया जी यशपाल को, जिन्हें मेरे लिख पाने में पूरा विश्वास था। फुलकारी पर फूल-पत्तियाँ काढ़ने का तरीक़ा और रिवाज़ तो सैकड़ों सालों से है। इन्हें काढ़ते यह औरतें, न जाने आपस में कितनी बातें करतीं और अकेली हों तो अपने आप से भी। कभी गुनगुना भी लेती हैं और कभी आँखें पोंछ लेतीं।</p>
<p>इन कहानियों को मैंने बहुत-सी अपनी जैसी और बहुत-सी अपने से अलग औरतों के साथ काढ़ा है। ये वे मुलाक़ातें और बातें हैं जहाँ मैंने अपने जाने-पहचाने सच से अलग सच को जाना है। असल में न्याय, सच, उचित, अनुचित की परिभाषा हमें बहुत संकुचित सीमा में बाँधती रहती है। मैंने जाना कि ज़िन्दगी एक कॉमन सिविल लॉ से कहीं ज़्यादा अद्भुत है। बस मेरे लिए इतना ही काफ़ी है कहानी लिखने को।
ISBN: 9788126717392
Pages: 146
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
‘मसीहा की आँखें’ में दो किस्म की लघुकथाएँ हैं—पहली लघुकहानी जैसी तो दूसरी लघुव्यंग्य जैसी। दोनों ही किस्म की रचनाएँ अपने लघु कलेवर में गहरी चोट करने की क्षमता से लैस हैं। बलराम का यह संग्रह सही अर्थों में लघुकथा को बहुविध स्थापित तो करता ही है, उसके प्रतिमानों को सर्जनात्मक लेखन से पुष्ट भी कर देता है। अब इसमें कोई सन्देह नहीं रह गया है कि लघुकथा एक सशक्त विधा है। संवाद, संवेदना, भाषा, चरित्र, शिल्प और परिवेश के वे सारे तत्त्व इसके भी वैसे ही अंग हैं, जैसे उपन्यास और कहानी के होते हैं। बलराम ने इसके जरिये उन सारी दलीलों को खारिज कर दिया है कि लघुकथा का कोई भविष्य नहीं। वास्तविकता तो यह है कि आज जब व्यक्ति के पास अधिक समय नहीं है, इस भागमभाग भरी जिन्दगी में यही विधा सबसे कारगर और प्रभावी है। ‘डायरी’ लघुकथा विधा की विकास यात्रा तो कराती ही है, उसके सौन्दर्यशास्त्रीय पक्ष पर भी गहरा मंथन करती है। उल्लेखनीय लघुकथाओं के विवेचन के साथ बलराम ने उनके प्रतिमानों को स्थिर, विन्यास को सुदृढ़ और सर्जनात्मक विधा के रूप में उनकी अन्तर्क्रिया को समझने की एक नई व्यवस्था दी है, जो न सिर्फ लेखकों के लिए उपयोगी है, बल्कि उनके लिए भी विशेष रूप से लाभप्रद है, जो लघुकथा को सही अर्थों में समझना चाहते हैं।
—ज्योतिष जोशी
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