Khidki
Author:
Sheela Roy SharmaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Unavailable
"विदेश में लंबे समय से रह रही युवती जब स्त्री के रूप में माता-पिता के घर लौटती है तो पुराने नक्श खोजती है, लेकिन अब तो उसके लिए वह खिड़की भी नहीं खुलती जिसके इंद्रधनुषी पारदर्शी शीशे कभी उसके अपने थे। हमारे सांप्रदायिक संस्कार शिक्षा और सभ्यता पर अकसर ही भारी पड़ते हैं। भाषा के महीन रेशों से बुनी जानेवाली कहानी के लिए लेखिका को मेरा साधुवाद।
—मैत्रेयी पुष्पा
शीला राय शर्मा की कहानियों का पर्यावरण सामाजिक होकर भी अधिकतर पारिवारिक है। कहानियाँ ‘सौतेली माँ’ और ‘चिल्लर बहू’ दो भिन्न वातावरण से जनमती हैं लेकिन दोनों के जीवन-मूल्य जैसे विवाह संस्था और धर्म के आधार पर संचालित हैं। इस जंजीर की कड़ी ही कहानी ‘खिड़की’ है। इसमें मनोविज्ञान की भीतरी तहों का कार्य-व्यापार है। सूक्ष्म मनोभावों का अंकन यहाँ गौरतलब है। कहन की ऐसी विशेषता भी द्रष्टव्य है जो अन्य कथा-कथन से अप्रभावित है। यही पाठ में विश्वसनीयता पैदा करता है। यह कहानीकार का अपना संवेदना, कथ्य और कहन का संसार है। यह निजता का ऐसा हस्ताक्षर है जो मौलिक है।
—लीलाधर मंडलोई
ISBN: 9789389471298
Pages: 216
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Description:
प्रसिद्ध फ़िल्मकार और उर्दू के मशहूर लेखक सागर सरहदी का इन कहानियों की दुनिया जिन किरदारों से बनी है, उनमें फ़िल्मी परिवेश के किरदार तो हैं, पर पूरे संकलन में वे मामूली जगह घेरते हैं। बाक़ी में हैं मुम्बई शहर के तलछट, निम्नवर्गीय, निम्न-मध्यवर्गीय, शिक्षक, वकील और पंजाब के ग्रामीण।
इन कहानियों में एकाकीपन, यथास्थिति के ख़िलाफ़ खीज और ग़ुस्सा है। जहाँ वे अपने किरदारों को सहानुभूति देते हैं, वहीं उनके दोमुँहेपन, निष्क्रियता और सहनशीलता को अपने तंज़ का निशाना बनाते हैं। कई कहानियों में ‘मैं’ अपनी कहानी कहता है। लेकिन यह ‘मैं’ अपने को छिपाता या ढकता नहीं, बल्कि अनावृत करता है। ख़ुद पर बेरहमी से तंज़ करता है। जहाँ यह ‘मैं’ परोक्ष है, वहाँ भी उसकी उपस्थिति प्रभावशाली है।
सागर सरहदी गद्य की भाषा में कविता करने से बाज आते हैं। वे कहानियों में बिम्ब कविता के अन्दाज़ में नहीं लाते, बल्कि वे ज़िन्दगी के क़तरों से बिम्ब का काम लेते हैं। उनके पास कहानियाँ कहने का फ़लसफ़ाई अन्दाज़ है जो आज की कहानियों में कम दीखता है। लेकिन यह अन्दाज़ आसमानी फ़लसफ़े की तरह हवा में नहीं इतराता, बल्कि वे फ़िजिक्स से शुरू होकर मेटाफ़िजिक्स की तरफ़ बढ़ते हैं। पहले वे अपने घने पर्यवेक्षण से हमें क़ायल करते हैं, फिर उस विवरण को फ़लसफ़े की ऊँचाई पर ले जाते हैं। ‘जीव जनावर’ में अमानवीयता के विरुद्ध सघन चीख़ है।
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