Dharam Ke Naam Par
Author:
Geetesh SharmaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Religion-spirituality0 Reviews
Price: ₹ 156
₹
195
Unavailable
धर्म के सही चरित्र एवं स्वरूप से परिचित हुए बिना विवेकहीनता, अन्धविश्वासों एवं भ्रान्तियों से मुक़ाबला नहीं किया जा सकता। इस दिशा में यह पुस्तक एक सार्थक प्रयास है। लेखक ने निष्पक्ष दृष्टि से बिना किसी पूर्वग्रह के तीन धर्मों—हिन्दू, ईसाई और इस्लाम की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए हिंसा, नारी और दासत्व के सन्दर्भ में संक्षिप्त पर तथ्यपरक व वस्तुगत विश्लेषण प्रस्तुत किया है।</p>
<p>धर्म का बीभत्स और बर्बर रूप आज हम देख रहे हैं। पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और अफ़ग़ानिस्तान में धर्म के रक्तरंजित इतिहास को दोहराया जा रहा है। धार्मिक-स्थल अपराधियों के शरण-स्थल बने हुए हैं। धर्म का अपराध के साथ गठजोड़ चिन्तित करता है। भजन-कीर्तन-प्रवचन के आयोजनों और धार्मिक-स्थलों के निर्माण में बेशुमार वृद्धि हुई है, वहीं हत्या, बलात्कार, उत्पीड़न और भ्रष्टाचार बढ़े हैं। स्वयं मनुष्य अपनी नियति तथा भाग्य का निर्माता है। समता, स्वतंत्रता और न्याय प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। कोई भी ऐसी व्यवस्था जो मनुष्य को इन अधिकारों से वंचित करती है, वह मानव-विरोधी है, चाहे वह धर्म हो या साम्राज्यवाद या फासीवाद या निजी स्वार्थों पर आधारित विकृत तथा जनविरोधी जनतंत्र। मनुष्य सर्वोपरि है, उसके ऊपर कोई नहीं, न धर्म न ईश्वर।
ISBN: 9788126725663
Pages: 236
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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क्रियाहीन बातों से ज्ञान का नाश
दान दिए बिना दानी कहलाना केश बिना शृंगार जैसा
दृढ़ताहीन भक्ति तलहीन कुंभ में पूजा जल भरने जैसी
मारय्यप्रिय अमरेश्वरलिंग को यह न छूनेवाली भक्ति है॥
कायक की कमाई समझ भक्त दान की कमाई से
दासोह कर सकते हैं कभी?
इक मन से लाकर इक मन से ही
मन बदलने से पहले ही
मारय्यप्रिय अमरेश्वरलिंग को
समर्पित करना चाहिए मारय्या॥
जो मन से शुद्ध नहीं, उसमें धन की ग़रीबी हो सकती है,
चित्त शुद्धि से कायक करनेवाले
सद्भक्तों को तो जहाँ देखो वहाँ लक्ष्मी अपने आप मिलेगी
मारय्यप्रिय अमरेश्वरलिंग की सेवा में लगे रहने तक॥
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कायक में मग्न हो तो
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Yogendra Pratap Singh
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- Description: ‘श्रीरामचरितमानस’ भारतीय संस्कारों का श्रेष्ठतम महाकाव्य है। भारतीय संस्कार का अर्थ है, समग्र मानव जाति के निखिल मंगल, कल्याण एवं हितैषिता के प्रति समर्पित होकर प्रेम, स्नेह, उदारता, ममता, सहिष्णुता, दया, अस्तित्व, अहिंसा, सत्य, परोपकार आदि मूल्यों की प्रतिष्ठा करना। इस प्रकार, मानस मानव अस्तित्व को सर्वोपरि मानकर उसके लिए सबसे सुलभ, सर्वाधिक सुगम तथा श्रेयस्कर मार्ग की तलाश की छटपटाहट से संयुक्त है। समाज के सर्वोच्च शुभ की प्रतिष्ठा ही मानसकार तुलसी का महत्तम शुभ है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानवीय अस्तित्व की सार्थकता के लिए जिस भव्यतम शुभ का दर्शन किया है, मानस की कविता के विविध पात्रों द्वारा उसे जिस प्रकार व्यंजित किया है तथा नैतिक मंगल के सर्वोच्च मूल्य श्रीराम और उनके ठीक विपरीत गर्हित अशुभ एवं अधर्म के प्रतीक रावण को आमने-सामने रखकर जिस मानवीय शुभ की स्थापना की है—उसकी चरम परिणति असत्य पर सत्य की विजय, अशुभ पर शुभ की स्थापना, क्रूरता पर प्रेम तथा दया का प्रसार, प्रपंच तथा छल पर मानवीय सहजता की छाया की स्थापना में होती है। इस सृष्टि पर जब तक मानव जाति रहेगी, अपनी सांस्कृतिक धरोहर सत्य, प्रेम, दया, उदारता आदि श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों से सम्पृक्त ‘श्रीरामचरितमानस’ जैसे काव्य की रक्षा करती रहेगी। इस प्रकार ‘श्रीरामचरितमानस’ निखिल मानव जाति की सनातन धरोहर है और इस टीका का मन्तव्य है—उसकी इस अमूल्य तथा परम शुभमयी धरोहर से उसे बराबर परिचित कराते रहना।
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