Shri Leela Ramayan
Author:
Bhanushankar MehtaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Religion-spirituality0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
प्रस्तुत पुस्तक ‘श्रीलीला रामायण’ में तुलसी की रामकथा है, उनका मानस है और गद्य-पद्य में उन्हीं की पंक्तियाँ हैं। प्रत्येक प्रसंग का मानस के अनुसार स्वरूप दिया गया है। यदि लीला करनेवाले चाहें तो उनका कवित्त-छन्द रीति से शृंगार कर सकते हैं, पर ध्यान रहे अतिरेक न हो, कथा का रस भंग न हो। क्षेपक जोड़ने से कथा का विस्तार होगा और यदि समय अनुमति दे तो वैसा कर सकते हैं।
इस लीला-संग्रह में कोई दुराग्रह नहीं है, कोई बाध्यता नहीं है पर जो केवल तुलसी के ‘रामचरितमानस’ को रूपायित करना चाहते हैं, उनके लिए यह उपयोगी होगा। इसका पाठ आपको ‘रामचरितमानस’ के संक्षिप्त पाठ का सुख देगा। रामजी की प्रेरणा से यह लिखा गया और उन्हीं के युगल चरणों में अर्पित है।
ISBN: 9788180318566
Pages: 260
Avg Reading Time: 9 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Prayagraj: Ardhkumbh, Kumbh, Mahakumbh
- Author Name:
Kumar Nirmalendu
- Book Type:

- Description: भक्ति, तीर्थ, धर्म, ब्रह्म और मोक्ष की अवधारणा को समझे बिना भारत और उसकी चेतना को समझ पाना सम्भव नहीं है। भारत में जहाँ कहीं भी देवनदी के एक से अधिक प्रवाह एक साथ मिलकर बहने लगते हैं, धाराओं का वह मिलन-स्थान ‘प्रयाग’ बन जाता है। हिमालय क्षेत्र में पंचप्रयाग तीर्थ ऐसे ही बने हैं। परन्तु जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती की तीन धाराओं का मिलन होता है, उस स्थान को प्रयागराज कहा गया है। यहाँ प्रतिवर्ष माघ स्नान के लिए, प्रति 6 वर्ष पर अर्धकुम्भ स्नान के लिए, प्रति 12 वर्ष पर कुम्भ स्नान के लिए और प्रति 144 वर्ष पर महाकुम्भ स्नान के लिए असंख्य लोग आते हैं। भाषा, जाति, प्रान्त आदि के भेदों को भुलाकर एक जन-समुद्र उमड़ आता है। भारतीय जीवन पद्धति में अमृतत्त्व का अनुसन्धान मानव जीवन का चरम लक्ष्य रहा है। अर्धकुम्भ, कुम्भ या महाकुम्भ के अवसर पर एकत्र होने वाला अपार जनसमुदाय सम्भवतः अमृत से भरे कुम्भ की अपनी अव्यक्त अभिलाषा को लेकर ही यहाँ पहुँचता है। प्रयागराज भारत का प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र होने के साथ ही भारतीय सात्विकता का सर्वोत्तम प्रतीक भी है। कुम्भ सम्बन्धी पौराणिक मान्यता का सर्वाधिक प्रचार शंकराचार्य ने किया था। लेकिन आदि शंकराचार्य के पूर्व भी प्रयाग में कुम्भ का आयोजन होता रहा है। इसका सबसे पुराना ऐतिहासिक वर्णन ह्वेनत्सांग (7वीं सदी ई.) ने किया था। उस समय प्रयाग के त्रिवेणी संगम पर दुनिया भर से ऋषि-मुनि, राजा-महाराजा, सामन्त, कलाविद् और धर्मप्राण लोग लाखों की संख्या में एकत्र हुए थे। कुम्भ के दौरान संगम तीर्थ पर एक स्नान दिवस पर भक्तिभाव से कई बार इतने लोग जमा हो जाते हैं कि उनकी संख्या दुनिया के कई देशों की कुल जनसंख्या से भी अधिक होती है। श्रद्धालु श्रद्धा और भक्ति की एक अदृश्य डोर में बँधकर खिंचे चले आते हैं। श्रद्धा और आस्था का यह आवेग सदियों से चली आ रही हमारी परम्परा का हिस्सा है। प्रयागराज और कुम्भ की गौरवशाली परम्परा के बारे में जानना एक सुखद अनुभूति है।
Svaraj
- Author Name:
Ramchandra Gandhi
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- Description: रामचन्द्र गाँधी एक ऐसे भारतीय दार्शनिक थे जिनकी साहित्य और कलाओं में गहरी दिलचस्पी थी : उनका चिन्तन अक्सर अध्यात्म, कला और साहित्य को अपनी समझ के भूगोल में समाविष्ट करता था। अपने जीवन में उनका अपने समय के कई बड़े लेखकों और कलाकारों से सम्पर्क और दोस्ताना था। चित्रकार तैयब मेहता के एक त्रिफलक से प्रेरित होकर रामचन्द्र गाँधी ने यह अद्भुत पुस्तक लिखी है। सम्भवत: किसी कलाकृति पर ऐसी विचार-सघन पुस्तक कम से कम भारत में दूसरी नहीं है। उसमें जितने दार्शनिक आशय कला के खुलते हैं, उतने ही अभिप्राय स्वयं रामचन्द्र गाँधी के चिन्तन के भी। यह सीमित अर्थों में कलालोचना नहीं है पर यह दिखाती है कि गहरा कलास्वादन उतने ही गहरे मुक्त चिन्तन को उद्वेलित कर सकता है। तैयब मेहता रज़ा साहब के घनिष्ठ मित्र थे। इस पुस्तक का आलोचक मदन सोनी द्वारा बड़े अध्यवसाय से किया गया हिन्दी अनुवाद उस कला-मैत्री को एक प्रणति भी है। —अशोक वाजपेयी
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