Devtulya Nastik
Author:
Arun BholePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Religion-spirituality0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Unavailable
धर्म, दर्शन और विज्ञान अपने-अपने तरीक़े से सत्य और ज्ञान की खोज करते रहते हैं। स्थूल रूप से इनकी चेष्टाएँ विरोधी प्रतीत हो सकती हैं, लेकिन गहरे मन्तव्यों में लक्ष्य एक ही है। आस्तिक और नास्तिक केवल व्यावहारिक विभाजन हैं—प्रक्रिया की भिन्नता के कारण।</p>
<p>‘देवतुल्य नास्तिक’ पुस्तक में अरुण भोले कुछ विशिष्ट व्यक्तित्वों के माध्यम से जीवन के रहस्यों को जानने का प्रयास करते हैं। ‘ज्ञानपिपासु गौतम’, ‘अन्तर्मुखी विज्ञान’, ‘तटस्थ प्रकृति’, ‘वैज्ञानिक ज्ञान-मीमांसा’, ‘सन्देह और श्रद्धा के संगम’, ‘संवाद और सहयोग', 'जले दीप से दीप' तथा 'विज्ञान और नियति' शीर्षकों के अन्तर्गत लेखक ने सत्य और ज्ञान की खोज करनेवाले विश्वविख्यात व्यक्तित्वों का विश्लेषण किया है।</p>
<p>लेखक का उद्देश्य स्पष्ट है। वह चाहता है कि शक्तियों में समन्वय हो।</p>
<p>लेखक के शब्दों में : ‘अपने अन्वेषण और प्रयोगों से विज्ञान ने जो तथ्य बटोरे हैं, उन सबके आत्यन्तिक अर्थ क्या हैं तथा लोकमंगल की दृष्टि से उनका परम उपयोग क्या होगा, इसी का बोध ज्ञान माना जाएगा। वैसे ज्ञान के अभाव में अमर्यादित वैज्ञानिक जानकारियाँ हमें सर्वनाश की ओर ले जा सकती हैं। यही वह स्थल है जहाँ हमें धर्म और दर्शन की सहायता लेनी पड़ेगी; क्योंकि वैज्ञानिक भी मानते हैं कि जीवन को सँवारने और मानवीय भावनाओं को प्रभावित करने का अधिक अभ्यास और अनुभव दर्शन और धर्म को ही है।’</p>
<p>विश्व संस्कृति की अन्तर्धाराओं का प्रवाहपूर्ण, प्रामाणिक और सतर्क विश्लेषण।
ISBN: 9788126725991
Pages: 191
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
यह किताब ई.वी. रामासामी नायकर 'पेरियार' (17 सितम्बर, 1879—24 दिसम्बर, 1973) के दार्शनिक व्यक्तित्व से परिचित कराती है। धर्म, ईश्वर और मानव समाज का भविष्य उनके दार्शनिक चिन्तन का केन्द्रीय पहलू रहा है। उन्होंने मानव समाज के सन्दर्भ में धर्म और ईश्वर की भूमिका पर गहन चिन्तन-मनन किया है। इस चिन्तन-मनन के निष्कर्षों को इस किताब के विविध लेखों में प्रस्तुत किया गया है। ये लेख पेरियार के दार्शनिक व्यक्तित्व के विविध आयामों को पाठकों के सामने रखते हैं। इनको पढ़ते हुए कोई भी सहज ही समझ सकता है कि पेरियार जैसे दार्शनिक-चिन्तक को महज़ नास्तिक कहना उनके गहन और बहुआयामी चिन्तन को नकारना है।
यह किताब दो खंडों में विभाजित है। पहले हिस्से में समाहित वी. गीता और ब्रजरंजन मणि के लेख पेरियार के चिन्तन के विविध आयामों को पाठकों के सामने प्रस्तुत करते हैं। इसी खंड में पेरियार के ईश्वर और धर्म-सम्बन्धी मूल लेख भी समाहित हैं जो पेरियार की ईश्वर और धर्म-सम्बन्धी अवधारणा को स्पष्ट करते हैं।
दूसरे खंड में पेरियार की विश्वदृष्टि से सम्बन्धित लेखों को संगृहीत किया गया है जिसमें उन्होंने दर्शन, वर्चस्ववादी साहित्य और भविष्य की दुनिया कैसी होगी जैसे सवालों पर विचार किया है। इन लेखों में पेरियार विस्तार से बताते हैं कि दर्शन क्या है और समाज में उसकी भूमिका क्या है? इस खंड में वह ऐतिहासिक लेख भी शामिल है जिसमें पेरियार ने विस्तार से विचार भी किया है कि भविष्य की दुनिया कैसी होगी?
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