Shahar Aur Shikayaten
Author:
Prakriti KargetiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
प्रकृति की कविताएँ अपने समकालीनों से कई मायनों में अलग प्रतीत होती हैं। सबसे ज़्यादा ध्यान खींचती है उनकी भाषा की सहजता। वह एक ऐसी भाषा की रचना करती हैं जो अपने कथ्य के साथ-साथ अपनी सम्भावना को खोलती है। यह किसी और के द्वारा पहले सिद्ध कर ली गई भाषा नहीं है जिसे उन्होंने अपनी बात कहने के लिए प्रयोग करना शुरू कर दिया। यह भाषा कविता के साथ-साथ बनती है।</p>
<p>कथ्य इन कविताओं को कहीं भी मिल जाता है, अनुभव के संसार का कोई भी ऐसा तिनका जो अपनी लय से उखड़ा नज़र आए, उनकी कविता का विषय हो जाता है। जो चीज़ अलग से दिखाई देती है, वह यह कि इन कविताओं में पढ़ी हुई कविताओं की छवियाँ दिखाई नहीं देतीं। अपनी भाषा की तरह ये कविताएँ ज़मीन भी अपनी ही चुनती हैं। वह स्वाभाविक गति से अपना रास्ता तय करती हैं, प्राकृतिक ढंग से अपने आसपास के प्रति अपनी प्रतिक्रियाओं को आने देती हैं। एकदम अनलोडेड।</p>
<p>इन कविताओं के पास अपनी बहुत स्वाभाविक शिकायतें हैं जिनके जवाब उन्हें अपने समय और अपने समाज से चाहिए। वह न ख़ुद कोई विमर्श गढ़ती हैं न चाहती लगती हैं कि उन्हें जो जवाब दिए जाएँ वे 'फासिलाइज्ड' विमर्शों के निष्कर्ष हों।</p>
<p>ये बेचैनियाँ, असहमतियाँ, और उनसे उपजी ये कविताएँ हमें शुरू से शुरू करने के लिए आमंत्रित करती हैं। जैसे कह रही हों कि चीज़ों के हल देखने में अगर बहुत सुगठित, सुन्दर और ललित नहीं हैं तो भी चलेगा, पर उनका जीवन की लय को बदलने में सक्षम होना ज़रूरी है।
ISBN: 9788183618298
Pages: 112
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: The poems of Ramesh Pokhriyal "Nishank" represent innate, passionate ramifications and poetic mystification for readers. While they may include hymns and religious instructions, what stands out is the sentimental piety in the poems offered within this collection. As a poet, Nishank surveys possibilities, comparing them to actualities, facts, theories, alternatives, and ideals, weighing them together. Thus, his work is both insightful and foresightful, providing a sense of life’s worth. Remarkably, these poems are not complex; they are simple and pliable. The doctrines and practices they endorse are not new or recent but align with established norms. The poems that emerge from darkness invigorate the spirit, making our hearts dance and enveloping us in a mystical softness, enchanting enough to soothe distressed feelings while instilling a sense of truth, clarity, and refinement. Nishank conjures images of everyday, affable life, depicting socially intellectual and passionate men who dance, croon, and fall yet rise again—shortly devastated but soon resilient. His poems are both popular and distinctly contemplative. Hidden behind his voice lies every man; if you wish to understand his character, let the doors of the heart open and allow them to speak. *** The ardor for humankind may pulse in every throb of my heart; let there be a beautiful person within me. My only desire in this life is to die for my country, with my life as an emblem for humanity. *** Like worms clothing the wheat, jealousy, like termites, hollow out the preposterous. *** To erase darkness, those who burn like torches do so even in adverse torrents; they never extinguish. *** Happiness resides in the present, not in the future; it rests in the depths of the mind. —From this collection.
Aakash Dharti Ko Khatkhataata Hai
- Author Name:
Vinod Kumar Shukla
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Description:
विनोद कुमार शुक्ल समकालीन कविता के संसार में उन थोड़े से ऐसे कवियों में शुमार हैं जिन्होंने समकालीन कविता की दिशा और दृष्टि को काफ़ी हद तक नियंत्रित किया है। उनकी इस हैसियत को हिन्दी में लगभग सभी कवियों ने स्वीकार किया है।
काव्याभिव्यक्ति में मित कथनों का जितना सार्थक प्रयोग वे करते हैं, उतना शमशेर ही कर पाते थे। शब्दों को कम से कम ख़र्च करके कैसे अर्थ के भंडार को समेटा जाए इसे सीखने के लिए विनोद कुमार शुक्ल की कविता काम की चीज़ है।
उनकी कविता नितांत समसामयिक होकर भी समयातीत लगती है। वह पीछे भी देखती है और आगे भी, पर उल्लेखनीय बात यह है कि वह अपने समय में धँसी होने के बावजूद अपने समय में फँसती नहीं है। उनके काव्यबोध में जो अचूक क़िस्म की पारदर्शी सूक्ष्मता है, वह कई लोगों को जटिलता, रूपवाद, कलावाद का अवतार लगती है लेकिन रूपवादी कविता है नहीं। काव्य-प्रयोगों के लिए उनसे बड़ा कवि आज कम से कम हिन्दी में दिखाई नहीं देता
वे विचारधारा के पुल से होकर रास्ता तय करने वाले कवि नहीं हैं, बल्कि वे कविता की नदी को ख़ुद तैर कर पार करने वाले कवि हैं। कम से कम उनके लम्बे कवि-कर्म का संघर्ष यही प्रतिमान हमारे सामने रखता है। वे हिन्दी कविता के संसार में उन थोड़े से कवियों में हैं जिन्होंने चालू मुहावरे को तोड़कर अपनी कविता में संवेदना और काव्य-शिल्प के लिए अनोखा आयाम चुना है। अपनी काव्यभाषा के चुनाव में वे जितने विरल, संयमी और जागरूक कवि हैं, उतने कम ही कवि रहे हैं। यह उनकी चुनिन्दा कविताओं का संकलन है।
Antas
- Author Name:
Dr. Yashika
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- Description: ‘अंतस’ डॉ. यशिका के अंतकरण की अनुभूतियों का सीधा-सरल काव्यानुवाद है। किसी काव्य-कौशल की स्पर्धा में प्रस्तुत संग्रह की कविताएँ खुद को शामिल नहीं करतीं, ये केवल मन की निष्पाप, पवित्र और प्रांजल अनुभूतियों की छलकन हैं और फिर भी पूर्ण हैं। भारतीय स्त्री के संस्कार, उसका सहज समर्पण और नेह जैसे इन कविताओं में साकार देह पाकर इठला रहा है। मन्नत पूरी हो जाने जैसी उपलब्धि और जिस्मोजान निछावर कर डालने के समर्पित अहसास, सामीप्य की सिहरन और दूरी होते ही हृदय का अरमान बना लेने की सोच...एक स्त्री के समर्पण और प्रेम का इससे आगे क्या उदाहरण हो सकता है?
Mornaach
- Author Name:
Nida Fazli
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- Description: मोरनाच देवनागरी में आनेवाला निदा फ़ाज़ली का ऐसा संकलन है जिसमें उनकी अब तक की अधिकांश कविताएँ निरखी और परखी जा सकती हैं। इसमें पिछले पच्चीस बरसों की उनकी सोच-समझ और सरोकार का फैलाव है और अब तक आए तीनों मजमूओं में से ख़ुद लेखकीय चुनाव—इसीलिए एक अर्थ में यह निदा की प्रतिनिधि कविताओं का संग्रह भी कहा जा सकता है। इसमें ग़ज़लें भी हैं, नज़्में भी और कुछ गीत भी। शुरू का दौर भी है, बीच का भी और इधर का भी, लेकिन जो बात अव्वल से अब तक मुसलसिल बनी हुई है, वह है कवि का हर एक के लिए एक बेलौस लगाव—कुछ लोगों को यह सिनिसिज़्म की हदों को छूने वाला भी लग सकता है लेकिन शायद यह हर आधुनिक रचनाकार की मजबूरी है कि वह माँ, बाप, भाई, बहन, परिवार, स्त्री, प्रेम, समाज और देश—किसी को भी जस का तस स्वीकार नहीं करता। वह उन्हें सन्देह के कठघरे में धकेलकर सवाल करता है—ऐसे कि पहले वह सवाल पलटकर एक-एक कर ख़ुद उसका गिरेबान पकड़ ले और फिर अन्तत: समाज का होकर रह जाए। यही वह सच है जिसे अपने समय का हर सही रचनाकार अपने अनुभव की रोशनी में ही देखना और परखना चाहता है जैसाकि ख़ुद निदा फ़ाज़ली का ही एक दोहा है: वो सूफ़ी का कौल हो, या पंडित का ज्ञान जितनी बीते आप पर, उतना ही सच मान। —शानी
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