Prakriti Aur Kriti
Author:
GyanendrapatiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
नरक्षेत्र के भीतर बद्ध रहने वाली काव्य-दृष्टि की अपेक्षा सम्पूर्ण जीवन-क्षेत्र और समस्त चराचर के क्षेत्र में मार्मिक तथ्यों का चयन करने वाली दृष्टि उत्तरोत्तर अधिक व्यापक और गम्भीर कही जाएगी। रामचन्द्र शुक्ल (रसात्मक बोध के विविध रूप : चिन्तामणि भाग-1 यह है वह दृष्टि-पथ जिस पर संचरण करते हुए ‘प्रकृति और कृति’ कविता-संग्रह का अस्तित्व आकृत हुआ है। ज्ञानेन्द्रपति के कवि-कर्म में अयात्रित जीवन-क्षेत्रों में परिभ्रमण की उत्सुकता आरम्भ से ही मौजूद रही है; सुगम लीक पर चलते रहने की जगह ऊबड़-खाबड़ में भटकते हुए एक तरह के कठिन आनन्द से उत्फुल्ल बने रहना उनके कवि का प्रकृत स्वभाव रहा है। सर्जना की इस प्रचेष्टा की परिणति ‘प्रकृति और कृति’ आपके हाथों में है।
यहाँ एक तरफ मानवेतर प्राणियों की अन्यता नहीं, अनन्यता के एहसास के साथ प्रकृति के विविध प्रारूपों की जीवन्त उपस्थिति मिलेगी और मिलेंगे जीवन को पुनर्नव करते हुए ऋतु-चक्र के गति-लेख, तो दूसरी तरफ वे निर्मितियाँ जो मानवकृत होते हुए भी अपनी इयत्ता को जीती रहती हैं : अनेकरूपा सत्ता के संवेदना-पगे साक्षात्कार! यहाँ ईश्वर भी एक कृति है—सर्वोत्तम मानवीय रचना—जिसको अब अनकिया नहीं किया जा सकता। कविता की इस दुनिया में कुछ भी निर्जीव नहीं, जैव स्पंदन से रहित नहीं।
चराचर जगत् के ओर-छोर तक प्रसृत हो जाना चाहने वाली इस काव्य-सृष्टि की केन्द्रकील, लेकिन, मनुष्यता का आत्मबोध ही है। भाव-प्रसार के क्षेत्र की व्यापकता मानव-आत्म की संवृद्धि के समरूप है। कविता इसी तरह हमारे लिए अपने अध्यात्म को अर्जित करती है।
आशा है, इस पुस्तक से गुजरते हुए पाठक अपनी आँखों में नई आँखों का उन्मीलन महसूस करेंगे और कविता से उनकी प्रीति कुछ और गाढ़ी हो उठेगी।
ISBN: 9789348157072
Pages: 224
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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