Prem Gali Ati Sankri
Author:
Shazi ZamanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Available
नाम के बावजूद, परम्परागत मायने में ये कोई प्रेमकथा नहीं, क्योंकि ये किसी तर्कसंगत (दुनियावी मायने में तर्कसंगत) मुक़ाम तक नहीं पहुँचती, लेकिन ये ज़रूर ज़ाहिर करती है कि कोई भी दृष्टिकोण—आधुनिक या परम्परागत—इंसानी ताल्लुक़ात की बारीकी, पेचीदगी और उसके ‘डाइनेमिक्स’ को पूरे तौर पर समझा पाने में सक्षम नहीं है।</p>
<p>‘प्रेम गली अति साँकरी’ की शुरुआत लन्दन के इंडियन वाई.एम.सी.ए. से होती है एक रूहानी बहस के साथ—एक बहस जो कबीर और कल्पना को एक-दूसरे से क़रीब लेकिन इतिहास में बहुत दूर और समाज में बहुत गहरे तक ले जाती है। कहानी का हर पात्र—कबीर, कल्पना, मौलाना, शायर, प्रोफ़ेसर— अपने आप में एक प्रतीक है। इन पात्रों के लन्दन की एक छत के नीचे जमा हो जाने से सामाजिक और व्यक्तिगत परिवेश की परतें खुलती जाती हैं, और कबीर और कल्पना के बीच धूप-छाँव के ताल्लुक़ात से ‘जेंडर रिलेशंज़’ की हज़ारों बरस की आकृति—और विकृति—दिखती जाती है। वो ‘बातों के सवार’ होकर न जाने कहाँ-कहाँ तक चले जाते हैं।</p>
<p>इंडियन वाई.एम.सी.ए. की नाश्ते की मेज़ से शुरू होनेवाली कहानी का आख़िरी (फ़िलहाल आख़िरी) पड़ाव है लन्दन की हाइगेट सीमेट्री—कार्ल मार्क्स की आख़िरी आरामगाह—जहाँ बहस है मार्क्स, क्लास और जज़्बात की। कल्पना का यह आरोप कि मार्क्स ने जगह ही नहीं छोड़ी इंसानी रूह के लिए, ‘बातों के सवार’ को मजबूर करता है यह सोचने पर कि क्या हालात और जज़्बात होते हैं जो हमेशा लोगों को क़रीब और दूर करते रहे हैं।</p>
<p>“ऐसा सबद कबीर का, काल से लेत छुड़ाय,” तुमने कहा।</p>
<p>“कार्ल से लेत छुड़ाय,” मैंने एक ठहाका लगाकर कहा।</p>
<p>ख़ामोश क़ब्रिस्तान में ठहाका काफ़ी देर तक और दूर-दूर तक गूँजता रहा। ‘बातों के सवार’ आसमान के बदलते हुए रंग को देखते रहे।
ISBN: 9788126723027
Pages: 104
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
‘पतिया’ यशस्वी कवि केदारनाथ अग्रवाल का उपन्यास है। अब तक अनुपलब्ध होने के कारण केदार-साहित्य के सहृदय पाठक और आलोचक इस उल्लेखनीय कृति से वंचित रहे। उनके लिए वस्तुत: ‘पतिया’ एक अनमोल उपहार है।
हिन्दी साहित्य में स्त्री-विमर्श की औपचारिक रूप से चर्चा प्रारम्भ होने से बहुत पहले रची गई कृति ‘पतिया’ में स्त्री-जीवन की जाने कितनी विडम्बनाएँ चित्रित हो चुकी थीं। परिवार, दाम्पत्य, यौन स्वातंत्र्य, शोषण और अलगाव आदि से जुड़े प्रसंगों के छायाचित्र ‘पतिया’ को महत्त्वपूर्ण बनाते हैं। उपन्यास की नायिका का जीवन-संघर्ष स्वयं बहुत कुछ कहता है। स्त्री समलैंगिकता की स्थितियाँ भी प्रस्तुत उपन्यास में हैं। इससे सिद्ध होता है कि कोई भी प्रवृत्ति या घटना सामाजिक स्थिति और व्यक्तिगत मन:स्थिति का संयुक्त परिणाम होती है।
इस उपन्यास का गद्य विशिष्ट है...एक कवि का गद्य। छोटे-छोटे वाक्य। बिम्ब, प्रतीक समृद्ध भाषा। संवेदनशील और प्रवाहपूर्ण। यथार्थवादी गद्य का उदाहरण। पतिया की ननद मोहिनी का यह चित्र कितना व्यंजक है, “मैली-सी चौड़े किनारे की धोती पहिने है। हाथ और पैरों में चाँदी के गहने खनक रहे हैं। धोती का पल्ला सिर से उतरकर गरदन पर आ गया है। पीछे से एक बड़ा-सा जूड़ा उठा दिखता है। जूड़ा गोल घेरे में बँधा है। सामने से देखने पर सिर में सिन्दूर भरी चौड़ी-सी माँग दिखती है। कानों में तरकियाँ, नाक में पीतल की फुल्ली और गले में रंगीन काँच और मूँगे के दानों से बनी दुलरी पड़ी है। बड़ी-बड़ी आँखों में काजल खिंचा है। दाहिनी ओर गाल पर एक तिल है। चेहरे पर तेल की चिकनाहट जवानी को चमका रही है। कोई कुरती या सलूका नहीं पहने है। बर्तन माँजते वक़्त, उसके दोनों उरोज, छलक पड़ते हैं। रंग ज़्यादा गोरा नहीं, पर साँवले से कुछ निखरा हुआ है।
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