Machhali Mari Hui : Stri Samlaingita Ko Rekhankit Karta Upanyas
Author:
Rajkamal ChaudharyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
हिन्दी के प्रख्यात रचनाकार राजकमल चौधरी की बहुचर्चित-बहुप्रशंसित कृति है ‘मछली मरी हुई’। लेखक ने अपनी इस महत्त्वाकांक्षी कृति में जहाँ महानगर कलकत्ता के उद्योग जगत की प्रामाणिक और सजीव तस्वीर प्रस्तुत की है, वहीं आनुषंगिक विषय के रूप में समलैंगिक स्त्रियों के रति-आचरण का भी इस उपन्यास में सजीव चित्रण किया है। इसमें ठनकती हुई शब्दावली और मछली के प्रतीक का ऐसा सर्जनात्मक प्रयोग किया गया है कि समलैंगिक रति-व्यापार तनिक भी फूहड़ नहीं हुआ है। इन पात्रों को लेखक की करुणा सर्वत्र सींचती रहती है।</p>
<p>उपन्यास का प्रमुख पात्र निर्मल पद्मावत हिन्दी उपन्यास साहित्य का अविस्मरणीय चरित्र है। हिंस्र पशुता और संवेदनशीलता का, आक्रामकता और उदासी का, सजगता और अजनबीपन का, शक्ति और दुर्बलता का ऐसा दुर्लभ मिश्रण हिन्दी के शायद ही किसी उपन्यास में मिलेगा।</p>
<p>‘मछली मरी हुई’ के अधिकांश पात्र मानसिक विकृतियों के शिकार हैं, पर उपन्यासकार ने उनके कारणों की तरफ़ संकेत कर अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता का परिचय दिया है। यह प्रतिबद्धता उद्योगपतियों के व्यावसायिक षड्यंत्र, भ्रष्ट आचरण आदि की विवेकपूर्ण आलोचना के रूप में भी दिखाई देती है। इस उपन्यास के केन्द्रीय पात्र निर्मल पद्मावत की कर्मठता, मज़दूरों के प्रति उदार दृष्टिकोण, छद्म आचरण के प्रति घृणा, किसी भी हालत में रिश्वत न देने की दृढ़ता, ऊपर से हिंस्र जानवर जैसा दिखने पर भी अपनी माँ, पत्नी और अन्य स्त्रियों के प्रति गहरी संवेदनशीलता—ये सारी बातें उपन्यासकार के गहरे नैतिकता-बोध के प्रमाण हैं।</p>
<p>‘मछली मरी हुई’ राजकमल चौधरी का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है। इस उपन्यास को स्त्री-समलैंगिकता पर केन्द्रित भी माना जाता रहा है, जिसका कारण शायद यह है कि काफ़ी शोध के बाद ही लेखक ने इस विषय को यहाँ उठाया है।
ISBN: 9788171788231
Pages: 172
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: रणविजय ने अपने आपको प्रीलिम्स परीक्षा की तैयारी में पूरी तरह से झोंक दिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि प्रीलिम्स की परीक्षा में वह अव्वल रहा। इस नतीजे ने उसका मनोबल और बढ़ा दिया। वह और भी उत्साह के साथ मुख्य परीक्षा की तैयारी में जुट गया। अपनी पहली उपलब्धि जब उसने अपने पिता जागीर सिंह को बताई तो वे खुशी के मारे फूले नहीं समाए, और जब यही खबर जागीर सिंह ने रणविजय की माँ को बताई तो उनकी आँखें खुशी से छलछला आईं। तभी वह वार्ड बॉय हाथ में कुछ सामान लेकर हमारे पास आया। उसने रणविजय का नाम लिया तो मैंने हामी भर दी। जिसके बाद उसने वे चीजें हमारे बगल में रख दीं, जिसमें लकड़ी का एक डंडा था, जिसे रणविजय अपने आखिरी दिनों में सहारे के लिए इस्तेमाल करता था। एक पॉलिथिन में उसके कुछ कपड़े थे। एक डायरी थी, जिसमें शायद उसने कुछ नोट्स लिखे थे और एक पोटली जैसी कोई चीज थी, जिस पर रणविजय की माँ की निगाहें जाकर टिक गई थीं। उन्होंने उसी पल उस पोटली को उठा लिया और उसे सीने से लगाकर रोने लगीं। मैं समझ गया, शायद यह वही पोटली थी, जिसमें वे हर बार खाने के रूप में अपना प्यार बाँधकर अपने बेटे को देती थीं। बेटा खुद तो चला गया, मगर वह खाली पोटली माँ के लिए छोड़ गया, जिसे वे शायद दोबारा कभी नहीं भर पाएँगी। —इसी पुस्तक से अत्यंत भावपूर्ण उपन्यास, जिसके मुख्य पात्र के जीवन को लेखक ने खुद नए सिरे से जिया है। यह एक पुस्तक न होकर जीवन-दर्शन साबित होगी।
Kale-Ujale Din
- Author Name:
Amarkant
- Book Type:

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Description:
वस्तुतः हमारा आज का जीवन कई खंडों में बिखरा हुआ-सा नज़र आता है। सामाजिक ढाँचे में असंगतियाँ और विषमताएँ हैं, जिनकी काली छाया समाज के प्रत्येक सदस्य के व्यक्तिगत जीवन पर पड़े बिना नहीं रहती। इसीलिए एक बेपनाह उद्देश्यहीनता और निराशा आज हरेक पर छाई हुई है। स्वस्थ, स्वाभाविक और सच्चे जीवन की कल्पना भी मानो आज दुरूह हो उठी है।
इस कथानक के सभी पात्र ऐसे ही अभिशापों से ग्रस्त हैं। मूल नायक तो बचपन से ही अपने सही रास्ते से भटककर ग़लत रास्तों पर चला जाता है। उसके माता-पिता और परिजन भी तो भटके हुए थे। लेकिन वह अपने भटकाव में ही अपनी मंज़िल को पा लेता है। क्या इस तरह इस कथानक का सुखद अन्त होता है? नहीं। आँसू का अन्तिम क़तरा तो सूखता ही नहीं। संयोग और दुर्घटना का सुखान्त कैसा? मानव-जीवन कोई दुर्घटनाओं और संयोगों की समष्टि मात्र नहीं है! जब तक सारी सामाजिक व्यवस्था बदल नहीं जाती, जब तक हमारा जीवन-दर्शन आमूल बदल नहीं जाता, तब तक ऐसी दुर्घटनाएँ होती रहेंगी—चाहे उनका परिणाम दुःखद हो या सुखद।
आज की समाज-व्यवस्था के परिवर्तन के साथ नारी की स्वतंत्रता का प्रश्न भी जुड़ा हुआ है। क्रान्ति का त्यागमय जीवन उसके जीवन-काल में क्या मर्यादा पा सका? उसके आदर्श को क्या उचित मूल्य मिला? रजनी का त्याग भी क्या सम्मान पा सका? उसकी सहानुभूति, ममता और प्रेम-भावना क्या आँसू से भीगी नहीं हैं? क्या उसके जीवन का सुख किसी और के दुःख पर आश्रित नहीं है?
इन्हीं सब प्रश्नों की गुत्थियाँ अमरकान्त का यह उपन्यास खोलता है।
Tabadala
- Author Name:
Vibhuti Narayan Rai
- Book Type:

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Description:
बहुराष्ट्रीय निगमों की बढ़ती मौजूदगी और कॉरपोरेट दुनिया में कार्य-संस्कृति पर लगातार एक नैतिक मूल्य के रूप में ज़ोर दिए जाने के बावजूद भारतीय मध्यवर्ग की पहली पसन्द आज भी सरकारी नौकरी ही है, तो उसका सम्बन्ध, उस आनन्द से ही है जो ग़ैर-ज़िम्मेदारी, काहिली, अकुंठ स्वार्थ और भ्रष्टाचार से मिलता है; और हमारे स्वाधीन पचास सालों में सरकारी नौकरी इन सब ‘गुणों’ का पर्याय बनकर उभरी है। इन्हीं के चलते तबादला-उद्योग वजूद में आया तो आज दफ़्तरों से लेकर राजनेताओं के बँगलों तक, शायद बाक़ी कई उद्योगों से ज़्यादा, फल-फूल रहा है।
इस उद्योग की जिन बारीक डिटेल्स को हम बिना इसके भीतर उतरे, बिना इसका हिस्सेदार बने, नहीं जान सकते, उन्हीं को यह उपन्यास इतने तीखे और मारक व्यंग्य के साथ हमारे सामने रखता है कि हमें उस हताशा को लेकर नए सिरे से चिन्ता होने लगती है जो भारतीय नौकरशाही ने पिछले पचास सालों में आम जनता को दी है। इस उपन्यास का वाचक व्यंग्य के उस ठंडे कोने में जा पहुँचा है जहाँ ‘कोई उम्मीदबर नहीं आती’। उपन्यास पढ़कर हम सचमुच यह सोचने पर बाध्य हो जाते हैं कि अगर यह हताशा वास्तव में हमारे इतने भीतर तक उतर चुकी है तो फिर रास्ता है किधर!
Humanshastrra
- Author Name:
Jatin Bharmani
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- Description: Befriend Nature Are you missing something to act upon Make life easier Awareness made simple Be and Act better Act better Shape your Tomorrow Now Live your dreams Plan your Success
Suni Ghati Ka Suraj
- Author Name:
Shrilal Shukla
- Book Type:

- Description: ‘सूनी घाटी का सूरज’ एक ग्रामीण युवक के बारे में है जो शिक्षित और प्रतिभाशाली होने के बावजूद स्वयं को एक ऐसे समाज में पाता है, जहाँ उसकी सोच, आदर्शों और गुणों के व्यापारी प्रतिष्ठित हैं। लेकिन उस बाज़ार में अपनी गुणवत्ता और उपयोगिता को साबित करने के लिए उसके पास न तो सिफ़ारिश है, न उसके सम्बन्ध किसी ‘बड़े’ से हैं और न ही रिश्वत देने के लिए उसके पास धन हैं। उसने अपने पिता को क़र्ज़दार होकर एक ख़ानदानी ठाकुर के यहाँ बँधुआ जैसा जीवन जीते देखा है, और उनकी मृत्यु के बाद उसकी अपनी पढ़ाई एक हेडमास्साब के पास अनाथ की तरह रहकर, सेवा करके और फिर ट्यूशन आदि करके पूरी हुई, इसी तरह उसने एक मेधावी छात्र के रूप में प्रथम श्रेणी की डिग्रियाँ हासिल कीं। लेकिन अपनी उन सीमाओं के चलते जिनके लिए वह ख़ुद नहीं, बल्कि व्यवस्था ज़िम्मेदार है, वह अपने लिए कहीं जगह नहीं पाता। फलस्वरूप युग के आकर्षण, अतीत की प्रताड़ना और वर्तमान की निराशा को झाड़कर वह उसी अँधेरी और सुनसान घाटी में उतरने का फ़ैसला करता है, जहाँ उसकी सर्वाधिक आवश्यकता है।
Parajay (Raj)
- Author Name:
Alexander Fadeyev
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- Description: ‘पराजय’ अलेक्सान्द्र फ़देयेव का पहला उपन्यास है। क्रान्ति-विरोधियों के विरुद्ध क्रान्तिकारियों के छापामार युद्ध का इसमें व्यापक, गहन और प्रामाणिक चित्र प्रस्तुत किया गया है। वास्तविक जीवन का सहज वर्णन करते हुए लेखक ने चरित्रों के नैतिक विकास पर ज़ोर दिया है। फ़देयेव स्वयं छापामार रहे थे, जिस कारण इस उपन्यास का कथानक न केवल विश्वसनीय बन पड़ा है, बल्कि रूसी क्रान्ति में लेखक की आस्था को भी सच्चे, सटीक ढंग से सम्प्रेषित करता है।
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