Fiza Ke Samandar Mein
Author:
Ramswaroop KisanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
ग्रामीण जीवन के अनूठे चित्र और मनुष्य के संसार के ऐसे बिम्ब जिन पर सामान्यतः हमारी निगाह कम ही ठहरती है, रामस्वरूप किसान की कविताओं में बहुतायत से मिलते हैं।</p>
<p>मिसाल के तौर पर इस संग्रह की पहली ही कविता-शृंखला ‘पीठ’ को लिया जा सकता है जिसमें कुल सोलह कविताएँ शामिल हैं। ‘पीठ एक कारुणिक क्षेत्र’ है जिसे देखकर कवि-मन बार-बार कभी अपने भीतर और कभी बाहर की ओर एक प्रश्नाकुल चिन्तन-यात्रा पर निकल जाता है।</p>
<p>‘फ़िज़ा के समन्दर में’ शीर्षक कविता-शृंखला की ग्यारह कविताएँ पुनः कवि की विशिष्ट दृष्टि का पता देती हैं जिसमें प्रेम के लिए घर से भागती हुई लड़की हमें और हमारे समाज को पुनः पुनः सवालों के घेरे में खड़ा कर देती है—</p>
<p><em>यह रहा/तुम्हारा दूल्हा/साथ-साथ रहोगे तो/प्यार हो जाएगा/पापा ने कहा।...नहीं</em><em>, ऐसा कहो पापा/यह रहा तुम्हारा प्यार/साथ-साथ रहोगे/तो दूल्हा हो जाएगा।</em></p>
<p>संग्रह में शामिल अधिकांश कविताएँ इसी तरह पाठक को सहसा चौंका देती हैं और हमारी देखी जानी चीज़ों को नये ढंग से हमारे सामने ला देती हैं।</p>
<p><em>आम जन-जीवन के दैनन्दिन दुखों</em><em>, व्यवस्था-जनित असहायताओं और मनुष्य की आन्तरिक और बाह्य पीड़ाओं के साथ इन कविताओं की राजनैतिक चेतना भी मुखर रूप में सामने आती है—</em></p>
<p><em>पब्लिक लड़ती है चुनाव—पैसों से/बातों से/लातों से/भालों-बन्दूक़ों-तलवारों से/ख़ून के फ़व्वारों से/और लड़ा-लड़ाया चुनाव/उनके गले में डाल देती है.../वे चुनाव नहीं लड़ते/वे तो पहनते हैं चुनाव। </em>
ISBN: 9789360860479
Pages: 136
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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ज़रूरी नहीं कि उनकी सूची में हमारा नाम हो ही, जिनका नाम किसी सूची में नहीं, उनकी भी एक दुनिया है, जिसका नेतृत्व पेड़ करते हैं, और आपस में टकराते सत्ता के काले-पीले-सफ़ेद नारों के बरक्स जिसके पास पृथ्वी के सबसे सटीक और सबसे सुन्दर नारे हैं। वे नारे जो नदियों को उनका पानी, चींटियों को उनके बिल और आँखों को उनकी झपकी लौटा देने की पैरवी कर रहे हैं। इस संग्रह को पढ़ते हुए हमें इन रवहीन नारों की ताक़त का अहसास होता है।
केदार जी अब हमारे बीच नहीं हैं, उनकी कविताओं का यह संकलन एक वसीयत की तरह हमारे पास रहेगा जिसमें संसार की सबसे मूल्यवान वस्तु, मनुष्यता की देखरेख की ज़िम्मेदारी वे हमें सौंप रहे हैं।
‘‘पृथ्वी के सारे ख़ून एक हैं/एक ही यात्रा में/एक ही पृथ्वी-भर लम्बी देह में/दौड़ रहे हैं वे/...अरबों धड़कनें एक ही लय में/घुमा रही हैं दुनिया को/ हर ख़ून हर ख़ून से बतियाता है।''
ये कविताएँ अपने सहज, निरायास आग्रह के साथ हमें ख़ून से बातें करते ख़ून की आवाज़ सुनने को कहती हैं। ''क्षमा करें भद्रजन/यदि फिर पूछ रहा हूँ/...मेरे देश के एक हाथ को/एक खुले हुए भूखे मुँह तक पहुँचने में/कितने बरस लगते हैं?’’ यह एक निर्दलीय प्रश्न है, लेकिन निरपेक्ष नहीं, यह मनुष्यता की आहत कोख में चीख़ता प्रश्न है; उम्मीद है हम इसका जवाब ढूँढ़ने का प्रयास करेंगे!
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Dr. Vinod Prakash Gupta 'Shalabh'
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- Description: डॉ. विनोद प्रकाश गुप्ता ‘शलभ’ की ग़ज़लों के कथ्य के पीछे विचार होता है और क्राफ़्ट के पीछे है उनका गहरा अभ्यास जो लगातार और गहरा होता गया है। ‘पत्ते चिनारों के’ उनका तीसरा ग़ज़ल-संग्रह है और इसमें संकलित अधिकांश ग़ज़लों में अनेक छवियाँ उन बीते दिनों की हैं जब पूरी दुनिया पर कोरोना के रूप में एक भयावह संकट की छाया मँडरा रही थी। एक सजग नागरिक और संवेदनशील रचनाकार होने के नाते ‘शलभ’ जी उन हालात पर पैनी निगाह रखते हैं जो हमारे व्यक्तिगत जीवन से लेकर प्रकृति तक को प्रभावित करते हैं। वह चाहे धर्मभीरु अवाम की आस्थाओं का दोहन करने के लिए धर्म और राजनीति की दुरभिसन्धियाँ हों, लगातार बढ़ती सामाजिक-आर्थिक विषमता हो, लोकतांत्रिक मर्यादाओं का सत्ता द्वारा उल्लंघन और अवमूल्यन हो या आम आदमी के उपभोक्ताकारी संजाल में उलझकर व्यक्तित्वहीन हो जाने की दुर्घटना हो, उनकी ग़ज़लें हर इलाके में होकर आती हैं— हर किसी पर हो रहा है दोषारोपण देश अपना कटघरा क्यों हो गया है उनकी ग़ज़लों की ख़ास विशेषता उनकी ज़बान और सहजता है। सुनते ही याद हो जाने वाले उनके शेर अलग-अलग सन्दर्भों में, जीवन और अहसास के अलग-अलग मौकों पर बरबस याद आ जाने की सलाहियत रखते हैं। हिन्दी ग़ज़ल की परम्परा को और-और समर्थ बनाती हुई उनकी ग़ज़लगोई प्रेम और प्रकृति को भी साथ लेकर चलती है, उम्मीद का दामन भी नहीं छोड़ती और वक़्त को घायल करने वाली ताक़तों को बख़्शती भी नहीं।
Namvar Ke Notes
- Author Name:
Namvar Singh
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Description:
आज के विमर्शवादी दौर में नामवर जी के कक्षा-व्याख्यान शास्त्र-निर्माण की भारतीय परम्परा के चिह्न की तरह हैं।
भारतीय आचार्यों के प्रति उनका अनाक्रान्त भाव विस्मित करता है। वे स्वाभाविक रूप से उन स्थानों को बताते हैं जहाँ काव्यशास्त्र की परम्परा में उलट-फेर हुआ है। दूसरे जहाँ बचकर निकलते हैं, नामवर जी वहीं रुकते हैं।
पश्चिम में इंडोलॉजी के प्रति आकर्षण रहा है। इसमें काव्यशास्त्र भी एक है। इस आकर्षण के वस्तुगत कारण कौन से हैं? विचार करने पर स्पष्ट होता है कि वहाँ काव्यशास्त्र सम्बन्धी कुछ प्रस्तावनाएँ, आनुषंगिक चर्चाएँ ही रही हैं। भारतवर्ष में काव्यशास्त्र एक विधिवत् शास्त्र रहा है।
भारतीय काव्यशास्त्र शास्त्र-निर्माण की एकान्तिक साधना का फल नहीं है।
संस्कृत काव्यशास्त्र पर विभिन्न अनुशासनों का प्रभाव और अपने को असाधारण सिद्ध करने की बेचैनी दोनों प्रत्यक्ष हैं।
—इसी पुस्तक से
Pani Ka Patthar
- Author Name:
Mangalesh Dabral
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Description:
पहाड़, पत्थर और पानी की स्मृतियों को टटोलतीं और शहरी जीवन के मैदानी बीहड़ में मनुष्यता के चिन्हों को अंकित करतीं मंगलेश डबराल की ये कविताएँ उनके कवि-मन की श्रमशील रचनात्मकता की साक्षी हैं।
यह संग्रह उनके जाने के बाद संकलित किया गया है। जो कविताएँ इसमें शामिल हैं उनमें कई कविताएँ ऐसी हैं जिन पर वे अभी काम कर रहे थे, और कुछ शायद ऐसी जो पहली कौंध में अभी उतारना शुरू ही हुई थीं, जिन्हें वे अभी और विस्तार देते, लेकिन अपने मौजूदा स्वरूप में भी उन्हें सम्पूर्ण कहा जा सकता है।
भाषा के संयमित व्यवहार और विचार के पक्ष में अपनी जिस दृढ़ता के लिए उनकी कविताओं को जाना जाता है, उनका निर्वाह करते हुए ये कविताएँ उनकी राजनीतिक-सामाजिक पक्षधरता को भी रेखांकित करती हैं।
यह कहना अनुचित नहीं होगा कि यहाँ संग्रहित कविताओं-कवितांशों में मंगलेश जी की अपनी पहचान रहीं तमाम विशेषताओं के चिह्न मौजूद हैं, साथ ही ये संग्रह उनकी रचना-प्रक्रिया का भी कुछ पता हमें देता हैं। उनके होने न होने के अन्तराल में उनकी अनुपस्थिति को झुठलाती और उनके अवदान का साक्ष्य देती इन कविताओं की गूँज देर तक बनी रहती है।
Allama Iqbal
- Author Name:
Allama Iqbal
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- Description: ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतज़ार देख हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसितां हमारा ढूंढ़ता फिरता हूं मैं 'इक़बाल' अपने आप को आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूं मैं
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