
Sanshay Ki Ek Raat
Author:
Shri Naresh MehtaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
‘संशय की एक रात’ में कवि ने राम के भीतर युद्ध के प्रति संशय पैदा कर एक आधुनिक मनुष्य की चिन्ता प्रकट की है, राम के चरित्र की पुनर्रचना की है, जिसकी सम्भावना राम के चरित्र में है और निश्चय ही यह कृति हिन्दी साहित्य की उपलब्धि है। नरेशजी की दृष्टि में राम सनातन प्रज्ञा-पुरुष है, ऐसा पुरुष स्वयं तो इतिहास मुक्त होता है, पर इतिहास किसे मुक्त करता है? क्योंकि इतिहास किसी की व्यक्तिगत निर्मिति नहीं है। फिर भी वह अपने प्रश्नों का उत्तर हर युग में प्रज्ञा-पुरुष से माँगता है, यही अभूतपूर्व संकट नरेश मेहता के राम के सामने है, जो न वाल्मीकि के राम के सामने था, न तुलसी या अन्य कवि के राम के सम्मुख। राम के सामने संशय यह है कि सीता के लिए युद्ध करना सार्वत्रिक है या व्यक्तिगत? क्योंकि राम व्यक्तिगत युद्ध में सेना को, प्रजा को झोंकना नहीं चाहते। संशय राम का है, पर उत्तर उन्हें अकेले नहीं देना है, इतिहास-निर्माता के जो घटक हैं, उन्हें मिलकर समाधान निकालना है जिनमें से प्रत्येक इस प्रश्न के भीतर से अपना अर्थ खोजता है।
ISBN: 9788180316753
Pages: 85
Avg Reading Time: 3 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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दिनेश कुशवाह हमारे समय के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उनकी काव्य-प्रतिभा का क्या कहना! निरन्तर अमूर्त, नीरस, उजाड़ और अपठनीय होती हिन्दी कविता को उन्होंने 'इसी काया में मोक्ष' जैसा मुहावरा दिया जो समकालीन हिन्दी कविता के लिए नया अध्याय साबित हुआ। उनका दूसरा कविता-संग्रह 'इतिहास में अभागे' मानुष सत्यों की बेजोड़ कविताई है। दिनेश जी 'असिधाराव्रती' हैं। तलवार की धार पर चलने में उन्हें मज़ा आता है।
अद्भुत कथन-शैली, देशी मिठास और शास्त्रीय परिर्माजन से भरी भाषा का जो मणिकांचन योग दिनेश कुशवाह की कविता में उपस्थित होता है, अन्यत्र दुर्लभ है। कल्पना, प्रतीकों और बिम्बों से सज्जित अपनी कविता में वे वैज्ञानिक-दार्शनिक तर्कों के साथ ऐसी सरसता न जाने कहाँ से लाते हैं। जबकि वैचारिक आधार और राजनीतिक दृष्टि ही उनकी कविता के पाथेय हैं। प्रेम एवं करुणा की जो पुकार दिनेश कुशवाह की कविता में मिलती है, उसके अनुकरण में बार-बार अनेक कवि कंठ फूट पड़ते हैं। वे कबीर की तरह सच को सबसे बड़ा तप मानते हैं, और मुक्तिबोध की तरह अभिव्यक्ति के ख़तरे उठाना जानते हैं।
'चल्लू भर पानी का सनातन प्रश्न', 'भूमंडलीकृत आषाढ़ का एक दिन', 'महारास', 'आज भी खुला है अपना घर फूँकने का विकल्प', 'उजाले में आजानुबाहु', 'इतिहास में अभागे', 'मैंने रामानन्द को नहीं देखा', 'बहेलियों को नायक बना दिया', 'अच्छे दिनों का डर', 'विश्वग्राम की अगम अँधियारी रात', 'भय सेना', 'प्रेम के लिए की गई यात्राएँ', 'ईश्वर के पीछे', 'प्राणों में बाँसुरी' 'हर औरत का एक मर्द है', 'हरिजन देखि', 'यह पृथ्वी बच्चों के लिए है' तथा 'पूछती है मेरी बेटी' आदि कविताएँ इस बात का प्रमाण हैं।
काव्य विषयों के नवाचार के मामले में तो दिनेश कुशवाह का कोई शानी नहीं है। वे वाणी के उद्भट पंडित और काव्य के मर्मज्ञ कवि हैं। रूढिय़ों, अवैज्ञानिक धारणाओं, अन्धविश्वासों, अविचारित आस्थाओं, नियोजित पाखंडों, सुनियोजित षड्यंत्रों तथा कपट कुचालों पर कठिन कुठाराघाट करने से वे कभी नहीं चूकते। कविता और जीवन, दोनों में उनकी वाक्शक्ति से हतप्रभ विरोधी भी सहज बैर बिसराकर उनका बखान करने लगते हैं।
—शिवमूर्ति
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