Nachnaniya
Author:
Ravindra BhartiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Unavailable
रवीन्द्र भारती गाहे-बगाहे अपनी कविताएँ सुनाते रहते हैं। उन्हें सुनना हमेशा प्रीतिकर लगता है। साधारणजन के साथ धूल-माटी में घूमती कवि की रागात्मकता जिस पैनेपन के साथ उजागर होती है, वह विलक्षण है। वह न सिर्फ़ भीतर तक पैठ जाती है बल्कि उसका ताप भी स्मृतियों में देर तक बना रहता है।</p>
<p>—जयप्रकाश नारायण; ‘प्रतिकार’, मार्च, 1978</p>
<p>रवीन्द्र भारती की ग्राम्य अनुभूति की विशेषता केवल प्रकृति, केवल मनुष्य या केवल पशु-पंछी को लेकर ही नहीं दिखाई देती, प्रकृति-मनुष्य, पशु-पंछी का एक स्वतः समावेश होता है। सच कहा जाए तो भारती की कविताओं में लोकरंगों की एक अलग ही टोन है जो उनके दूसरे समकालीनों में देखने को नहीं मिलती।</p>
<p>—किशन पटनायक; ‘समय’, दिसम्बर, 1980</p>
<p>रवीन्द्र भारती बिलकुल हमारे आसपास बिखरे तमाम सन्दर्भों में से सबसे सहज तत्त्वों व तथ्यों को तिनकों की तरह उठाते हैं और किसी जादूगर की तरह इशारों में ही बस स्पर्श करते हैं और एकबारगी हमारी सोई संवेदनाएँ जीवन्त हो उठती हैं। दरअसल प्रतीकों का एक अनन्त विस्तार है उनकी कविताओं में। शहर, उसकी आपाधापी और तथाकथित तार्किकता में खोए जीवन के लिए उनकी कविताएँ बड़ी राहत हैं।</p>
<p>—शशि भूषण; ‘इंडिया टुडे’, फरवरी, 2001
ISBN: 9788183613651
Pages: 88
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
एकान्त नवें दशक में उभरे उन महत्त्वपूर्ण कवियों में एक हैं जिन्होंने अपनी कविताओं में अपने समय के लोक समाजों के सुख-दु:ख, हँसी-ख़ुशी, करुण-आश्चर्य, चीख़-चीत्कार आदि भावों को दर्ज किया है। आधुनिकता के दबाव में ग्रामीण समाजों में बढ़ रही ‘भावों की ग़रीबी’ को भी उन्होंने बख़ूबी अपनी कविताओं में जगह दी है। न केवल लोक के मानवीय भाव बल्कि धीरे-धीरे भारतीय समाज में हो रहे ग्रामीण समाजों के वंचितीकरण, बाज़ार-संस्कृति के आक्रामक प्रसार में अपने को बचाए रखने की जद्दोजहद, इस जद्दोजहद से निकलती भारतीय समाज के इस ‘बहुजन की राजनीति’ उनकी कविताओं में दर्ज है। उनकी कविताएँ आधुनिकता के टकराव से छिन्न-भिन्न हो रहे मानवीय भावों के जीवन्त दस्तावेज़ हैं।
पिछले दिनों हिन्दी समाज, हिन्दी कविता, भारतीय राजसत्ता एवं उसके विमर्श से गाँव, किसान एवं उसकी चिन्ताएँ ग़ायब होती गई हैं। एकान्त ने उन ग़ायब होते समूहों को अपनी कविताओं में दर्ज किया है। उनकी कविताएँ समाज में हो रहे अनेक सूक्ष्म परिवर्तनों, उस पर आम आदमी की प्रतिक्रियाओं को डॉक्यूमेंट कर उन्हें अत्यन्त सहज एवं मानवीय लोकेशन में अवस्थित कर आज के समय में प्रभावी हस्तक्षेप करती दिखती हैं।
इस संकलन में एक लम्बी कविता ‘डूब’ संकलित है जो भारत में जनजातीय समाजों के विस्थापन की पीड़ा को कविता-विमर्श का विषय बनाती है। वे एक समर्थ कवि हैं। अपने समय को कविता में लाना वे बख़ूबी जानते हैं। प्रिंट एवं मीडिया के शोर में आज जब हिन्दी काव्य-परिदृश्य में काव्यविहीन कविताएँ अच्छी कविताओं की जगह आकर क़ाबिज़ हो गई हैं, एकान्त के इस संकलन की कविताएँ हिन्दी की बेहतरीन कविताओं का नमूना प्रस्तुत करती हैं।
—बद्री नारायण
Aur Meera Nachti Rahi
- Author Name:
Mamta Tiwari
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- Description: Awating description for this book
Life Trials
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Ramesh Pokhriyal 'Nishank'
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- Description: Shri Ramesh Pokhriyal "Nishank", like all romantic poets, is generally a poet who is strong-willed and intelligent and possesses an unusually subtle mind. While going through his poetry and nature poetry, we see nature sympathetically with unusual unreputable emotional responses. Moreover, it stands in sharp contrast to rationalistic moods. Nishank is fond of personifying nature and is desirous of associating with the beauteous forms of the world that coexist with the laws and order of the universe. When Nishank fuses scientific and religious notions, he proposes a metaphysical idea adapted to the cosmos' natural design. Hence, through this choicest collection of his poems, Nishank agrees with the universal phenomenon that nature provides an influence which spontaneously refines and purifies the soul of the human generation. A "must-read" collection of representative poems of Shri Nishank.
Dukh Koi Chidiya To Nahi
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Amit Manoj
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- Description: Poems
Pul Kabhi Kahali Nahi Milte
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Sudhanshu Upadhyaya
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- Description: सुधांशु उपाध्याय की ये कविताएँ भविष्य को जिस रूप में वर्तमानित करती हैं, उससे वर्तमान और भविष्य और व्यतीत का चेहरा त्रिशिरा की तरह दिखाई पड़ने लगता है। वैसे तो कविता अपने समय की संवेदन शून्यता को पहचानने और उसे पूरने का काम करती ही है, बल्कि ऐसा करके ही वे कविताएँ बनती हैं। सुधांशु की इन कविताओं में यह तत्त्व जिस मुहावरे में व्यक्त हुआ है, उसे भाषा की सहज लाक्षणिकता कहा जा सकता है। सुधांशु की विशेषता यह है कि वे ‘घटना’ को काव्य वस्तु में बदलते समय उसकी वास्तविकता का निषेध नहीं करते हैं, बल्कि उसके ‘देश’ को कभी-कभी काल के आयाम से मुक्त कर देते हैं। फलत: मनुष्य की पीड़ा, बेचैनी, खीज, कुढ़न आदि चिन्तनशीलता से भावित होकर ही कविता का रूप ग्रहण करती है। यह संकलन इसका प्रमाण है। गीतों की प्रमुख विशेषता मुहावरों का निर्माण और विकास है। इस संकलन में कवि ने नए मुहावरों को अन्वेषित किया है। मुहावरों का प्रयोग कविता नहीं बनाता, बल्कि मुहावरों का विकास कविता बनाता है। सामान्य शब्द जब अपना कोशीय अर्थ छोड़कर, ‘संकेत बन जाते हैं तो गीत की निर्वचन क्षमता ग्रहीता प्रति ग्रहीता बदलती रहती है। इस संग्रह की कविताओं को काव्य-रूढ़ियों से मुक्त होकर इस अर्थ में पढ़ा जाना चाहिए। ‘वाह’ और ‘आह’ के तत्त्वों से रहित होने के कारण इन कविताओं का महत्त्व बढ़ जाता है। लगभग सभी गीतों में मनुष्य के प्रति गहरी संसक्ति है और इसीलिए मार्मिक चिन्ता भी। सुधांशु अपने पहले संग्रह से ही निरर्थक शब्दों के प्रयोग-प्रवाह से बचते रहे हैं। इस संग्रह में अब वह कवि की आदत हो गया है। इसलिए मैं मानता हूँ कि उनकी कविताओं में ‘उक्तिवैचित्र्य या अनूठापन’ के बजाय बिम्बविधान की क्षमता है। इस अर्थ में वे क़तार से कुछ भिन्न हैं और इसे उनके इस संग्रह से भली-भाँति समझा जा सकता है। —सत्यप्रकाश मिश्र
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