Jag Me Noor Badha Kar Dekh
Author:
RameshraajPublisher:
Rachnaye FulfilledLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 42.5
₹
50
Available
1974 से 1990 के बीच लिखी गयीं चतुष्पदियाँ
ISBN: RF-RR-JMNBKD
Pages: 25
Avg Reading Time: 1 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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हिन्दी कविता के लोकतंत्र और लोकायतन में विनोद कुमार शुक्ल की कविता अनूठी सहजता के साथ उपस्थित मिलती है। विनोद कुमार शुक्ल जीवन के विपुल वैविध्य को नगण्य प्रतीत होते उदाहरणों में अनुभव करते हैं। यह ‘मुलायम मामूलीपन’ उनकी कविता में आकर संवेदना का अक्षर-आलेख बन जाता है।
कभी के बाद अभी विनोद कुमार शुक्ल की कविताओं का वह संग्रह है जिस पर कवि के लम्बे जीवनानुभव की सजग छायाएँ हैं। इन छायाओं के बीच जितना दिखना चाहिए उतना ही दिखता है, अतिरिक्त कुछ भी नहीं। शब्दों की अन्तर्ध्वनियों और उनके सहजीवन के पारखी विनोद कुमार शुक्ल की कविताएँ मन्द्र स्वरों में व्यक्त होती हैं। वे कहते हैं, ‘चुप रहने को भी सुन लेना/जीवन की उम्मीद से।’
घर, पड़ोस, मृत्यु, जन्म सरीखे बीज-शब्द इस संग्रह की रचनाओं में अँखुए की तरह उकसे दिखाई देते हैं। ऐसे बहुतेरे शब्दों से हरे-भरे जीवन की शाश्वत सरलता पर कवि मुग्ध है।
मनुष्य और प्रकृति के बीच सम्बन्धों के साझा-सौन्दर्य को कवि भाँति-भाँति से व्यक्त करता है। इसके पश्चात् भी जाने कितना है जो अल्पविराम के बाद और पूर्णविराम से पहले अनुभव किया जा सकता है। अपूर्णता की गरिमा और सार्थकता को भी विनोद कुमार शुक्ल ने रेखांकित किया है। इसका महत्त्व चीन्हते हुए लिखते हैं, ‘इस असमाप्त अधूरे से भरे जीवन को/अभी अधूरा न माना जाए/कि जीवन भरपूर जिया गया।’
प्रस्तुत कविता-संग्रह विनोद कुमार शुक्ल की रचनाशीलता की अद्वितीय आभा का एक और आयाम है।
Hansti Hui Laraki
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Nirmala Thakur
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Description:
निर्मला ठाकुर की कविताएँ यह कहना चाहती हैं कि अनुभव रचना का एक ज़रूरी तत्त्व है। जीवनानुभव की रोशनी में बाहरी दुनिया को देखते हुए उन्होंने कविताओं को आकार दिया है। 'हँसती हुई लड़की' का केन्द्रीय सरोकार स्त्री है। स्त्री की बहुतेरी छवियाँ हैं। यहाँ जीवन का मार्मिक विस्तार है। ‘रूप—कई रूप’ कविता में ’नन्ही/मुन्नी दँतुली में हँसी—दूध की' से लेकर सन्ध्या की देहरी तक आ पहुँची स्त्री-जिजीविषा का वर्णन है। निर्मला ठाकुर ने बहुत संजीदगी के साथ आधी आबादी के संघर्षों व स्वप्नों को चित्रित किया है। ‘औरत की दुनिया’ इस सन्दर्भ में ख़ासतौर पर पढ़ी जानी चाहिए।
इन कविताओं का सशक्त पक्ष है ‘अबूझ की समझ’। यही कारण है कि इनमें सुसंवेद्य पारदर्शिता है। ‘बर्तन माँजती हुई स्त्री की फलश्रुति है—इधर देखो/मुखातिब हो ज़रा हमसे/मुख पर कौन सी छाया घनेरी/लिए बैठी हो/उठो न/चेहरा इधर कर/ऊपर उठाओ/समय का दर्पण तुम्हारे सामने है।’ कवयित्री ने स्त्री-जीवन के कोलाहल और अकेलेपन की शिनाख़्त की है।
रिश्ते, प्रकृति, रूपबोध व जनजीवन आदि कविताओं में शामिल हैं। 'स्वर्ग सुख' कविता पढ़कर निराला की वह ‘तोड़ती पत्थर’ याद आ सकती है। ‘जो करना’ आत्मकथात्मक है और बेहद मार्मिक।
भाषा-शिल्प की सहजता में विन्यस्त ये कविताएँ एक संवेदनशील मन का आईना हैं।
Bichhdal Kono Pireet Jakan
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- Description: Collection of Maithili Poems. मनुष्य केँ आ जीवनक आन सब रूप केँ जे गछाडऩे अछि आपदा ओ विपदा सभ तकर संताप समाएल अछि एहि संग्रहक अनेक कविता मे। निरंतर आभासी होइत जाइत एहि समय मे यथार्थक ठोस ऐन्द्रिक बोध खिया रहल अछि आ ताहि सँ जीवन मे कएक तरहक मारूक कमी ओ दिक्कत सभ आबि रहल अछि। जीवन ओ जगतक ठोस विवरण सभ सँ भरल-पुरल एहि संग्रहक कविता सभ थोड़बहुत काट करैत अछि एहि बातक। आ संगहि जगजियार होइत जाइत अछि एहि सँ जीवनक त्रासद विसंगति ओ विडम्बना सभ; शोषण ओ अन्यायक मर्मांतक रूप सभ; आ इतिहासक दारूण संत्रास सभ। जे किछु शुभ ओ सुंदर बचल अछि जीवनक व्यापक ओ गझिन तानीभरनी मे ताहि मे सँ किछु अनूप जोगाओल गेल अछि एहि संग्रह मे। आ बीच-बीच मे छिटकैत चलैत अछि अस्तित्वक स्वरूपक अबंचक कि रोमांचित कर’वला सूक्ष्म बात सभ सेहो। प्रकृति ओ मनुष्य, अपन संगिनी ओ रूपसी मिथिला, तथा भाषा ओ कलाक विभिन्न रूप सँ जे 'पिरीत’ छनि कवि केँ ताहि सँ डगडग करैत कविता सभ ही केँ जुड़ा दैत अछि, जीवन मे आस्था केँ टेक दैत अछि आ संघर्षक लेल संबल सेहो। दनुफक फूल जकाँ सादा, साफ, हल्लुकओ खलसैत भाषा ओ शिल्प मे रचल गेल एहि संग्रहक कविता सभ सहजहि जीवनक पिरितिया बना दैत अछि। गहन शुभाशंसाक संग हम हलसि क’ एकर स्वागत करैत छी। उत्सवक घड़ी थिक ई मैथिली कविताक लेल। —हरेकृष्ण झा
Kavishree
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