
Ghazale Akhil ki
Author:
Akhilesh Nigam 'Akhil'Publisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
ग़ज़ल की धारा गंगाजल की तरह होती है जो उसमें डुबकी लगाने वाले को पूर्णतया भाव-विभोर कर देती है, दिलो-दिमाग को तरो-ताज़गी देती है तथा नकारात्मक विचारों को दूर कर उसे सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है।</p>
<p>यह ग़ज़ल कृति ग़ज़ल सम्बन्धी तमाम विशिष्टताओं से अभिमंडित है। ग़ज़लों में कहीं प्रेम व सौन्दर्य की सघन अनुभूतियाँ हैं तो कहीं बनते-बिगड़ते नए समाज की क्रूरता आक्रामकता, अवसरवादिता, बाज़ारवाद व ढेर सारी असंगतियाँ हैं। ग़ज़लों में प्रतिवाद के प्रखर स्वर विद्यमान हैं। जो ग़ज़लें सामाजिक बिडम्बनाओं में डूबी हैं उनमें प्रस्तुत तीक्षता एक विशिष्ट मिज़ाज को प्रकट करती है। ऐसी ग़ज़लों की भाव भूमि निराली ही नहीं प्रभावोत्पादी भी है। ग़ज़लों में भाषा की सादगी के साथ-साथ उनमें अर्थ की गहराई भी है। ग़ज़लों में सहज अभिव्यक्ति पर बल दिया गया है। भले ही उसमें अन्य भाषाई शब्दावली प्रयुक्त जाए।</p>
<p>ग़ज़लों के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने की पुरजोर कोशिश की गयी है। सर्व धर्म समभाव, नशा मुक्त समाज की स्थापना, कन्या भ्रूण हत्या का विरोध, पर्यावरण प्रदूषण के विरुद्ध अभियान, मानवता के सन्देश के साथ-साथ उत्साहपूर्वक जीवन जीने की बात ग़ज़लों में विद्यमान है।</p>
<p>मीरा याज्ञिक की डायरी
ISBN: 9789393603630
Pages: 142
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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शायद इसीलिए ये कविताएँ प्रकृति का अवलम्ब कभी नहीं छोड़तीं। प्रकृति के स्वरों में ये रिश्तों के राग को भी गाती हैं और विराग को भी। टूटते-भागते सम्बन्धों को पकड़ने की कोशिश में यदि इनकी हथेलियाँ रिस रही हैं और नानी के कहने से आसमान में दूर बैठे चाँद को मामा मान लेने पर पश्चात्ताप कर रही हैं तो यह भरोसा भी उनमें विन्यस्त है कि ‘भीतर जमे रिश्ते ही/बाहरी मौसम से बचाते हैं।’ संग्रह की कई कविताएँ सम्बन्ध या कहें कि ‘सेन्स ऑफ़ बिलांगिंग’ को बिलकुल अलग भूमि पर देखती हैं, मसलन यह छोटी-सी कविता : ‘तुम्हें ख़ुश रखने की आदत/देवदार-सी/मेरे भीतर उग रही है/और इसीलिए मैं बहुत बौनी होती जा रही हूँ।’ या फिर ‘अपाहिज सम्बन्ध’ शीर्षक एक और छोटी कविता।
संग्रह की अधिकांश कविताओं में प्रेम एक अंडरकरंट की तरह बहता है और कभी-कभी पर्याप्त मुखर होकर बोलता हुआ भी दीखता है—उछाह में भी और अवसन्नता में भी। लेकिन बहुत शालीन संयम के साथ, जो रचनाकार के अहसास की गहराई का प्रमाण है। शायद इसी गहरे का परिणाम यह भी है कि अपने आस-पास के भौतिक-सामाजिक यथार्थ को लक्षित कविताएँ इन्हीं विषयों पर लिखी गईं अनेक समकालीन कविताओं से कहीं अधिक सारगर्भित और व्यंजक हैं, उदाहरण के लिए, ‘बम्बई-1’, एंड ‘बम्बई-2’, ‘अफ़वाह’ और ‘पुल कहाँ गया’ शीर्षक कविताएँ। कहना न होगा कि अपनी संयत अभिव्यक्ति में सधी ये कविताएँ हिन्दी कविता के पाठकों के लिए संवेदना के एक अलग इलाक़े को खोलेंगी।
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चूँकि आपने अपनी इस कविता में सब कुछ खोलकर रखा है इसलिए मैं भी आपको साफ़-साफ़ बताना चाहती हूँ कि आपकी सीख मुझे बहुत देर से मिली। आप चाहते हैं कि मेरी बेटी प्रेम करे तो थोड़ा रुककर क्योंकि ‘प्रेम करने की सही उम्र नहीं यह’ और ‘मेरी बेटी काँपते और डरते हुए नहीं, इस डगर पर/सँभलकर चलते हुए करे प्रेम/अपने भीतर अद्भुत स्वाद लिए बैठे प्रेम के इस फल को/वह हड़बड़ी में नहीं धैर्य से नमक के साथ चखे।’
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Hriday Ki Hatheli
- Author Name:
Pushpita Awasthi
- Book Type:
-
Description:
‘शब्द बनकर रहती हैं ऋतुएँ’, ‘अक्षत’ और ‘ईश्वराशीष’ के बाद ‘हृदय की हथेली’ से पुष्पिता अवस्थी ने प्रणय, प्रतीक्षा, विरह, आतुरता, समर्पण और आराधना की लौकिक अनुभूतियों को लोकैषणा के सँकरे दायरे से बाहर निकालकर जैसे एक आध्यात्मिक सिहरन में बदल दिया है। ‘आँसू दुनिया के लिए आँख का पानी है/लेकिन तुम्हारे लिए दु:ख की आग है’ कहते हुए कवयित्री ने प्रबन्धन-पटु समय में प्रेम की एक सरल रेखा खींचनी चाही है। उसके यहाँ ‘प्रेम के रूपक’ नहीं हैं, प्रणय का पिघलता ताप है, आँखों की चौखट में विश्वास की अल्पना है, अन-जी आकांक्षाओं की प्यास है, प्रेम का धन-धान्य है, स्मृति के कुठले में सँजोए अन्न की तरह अतीत का वैभव है। अचरज नहीं कि कवयित्री ख़ुद यह कहती है—‘इन कविताओं की व्यंजना आकाश की तरह निस्सीम है और आकाश गंगा की तरह अछोर भी। इनके अन्दर की यात्रा मन के रंगों-रचावों की यात्रा है, रस-कलश की छलकन है। सृजन के राग का आरोहण और कृत्रिमता के तिमिर का तिरोहण है।’
प्रेम के उद्दाम आदिम संगीत से होती—प्रेम का गान करने और उसका मान रखनेवाले कवियों—कालिदास, जयदेव, विद्यापति, घनानन्द की परम्परा की ही धात्री पुष्पिता फिर एक बार पुण्य के पारावार में संतरण करना चाहती हैं, अपनी गंगा में प्रिय की यमुना को जीते हुए कृष्ण को राधा-भाव और राधा को कृष्ण-भाव में जीते हुए देखना चाहती हैं। उनकी पदावलियों में अनुरक्त और विदग्ध अनुभवों—दोनों की उमगती कसक भरी है, रचनेवाले के भीतर जैसे अकेलेपन की पिघलती मोमबत्ती। शब्दों के ताप में प्रणय की तपश्चर्या है, प्रेम को पृथ्वी की पहली और अन्तिम चाहत की तरह महसूस करने की उत्कंठा है। प्यार की पवित्र जाह्नवी को दिनोंदिन मैला कर रहे समय के बावजूद देह की आकाश गंगा में तैरकर आँखें पार उतर जाना चाहती हैं ठहरे हुए समय से मोक्ष के लिए। इन कविताओं का सलीक़ेदार अपनत्व मन पर एक ऐसी छाप छोड़ता है जैसे इन अनुभूतियों के साथ, पढ़नेवाला भी सह-यात्रा कर रहा हो।
Jatayu, Rugova Aur Anya Kavitayein
- Author Name:
Sitanshu Yashashchandra
- Book Type:
-
Description:
भारतीय कविता के शीर्षस्थ प्रतिनिधि सितांशु यशश्चन्द्र की मूल गुजराती कविताओं को हिन्दी अनुवाद में पढ़ते हुए लगता है कि हमारी कविता वास्तव में विश्व कविता को एक नया आयाम एवं स्वर दे रही है जो अतिआधुनिक भाव-संवेदन का संवहन करती हुई भी ठेठ भारतीय मिथकों और पौराणिक भूमि में मूलबद्ध है। सितांशु यशश्चन्द्र आज के मनुष्य और जीवन का संधान करते हुए सुदूर अतीत में जाते हैं और उन सर्वनिष्ठ तत्त्वों का उत्खनन करते हैं जो जटायु से लेकर इब्राहीम रुगोवा तक व्याप्त है। और ये तत्त्व हैं जिजीविषा, जीने की लालसा और संघर्ष का अपार ताब और सतत प्रतिरोध जिसके दो उज्ज्वल प्रतिनिधि हैं पौराणिक जटायु और समकालीन रुगोवा और इनके मध्य अनेकानेक स्त्री-पुरुष, नदी-पहाड़ और समस्त ब्रह्मांड—‘मगरमच्छों को मरने न देना नदी/तुम्हारे जल को जीवित रखने का अब कोई और उपाय बचा नहीं है’ तथा 'पूस की रात को बिना चुनौती दिये यूँ जीतने नहीं देना है'।
यह एक भयानक लोक है जहाँ ‘नदी के पास पानी भी नहीं जिसे कहा जा सके सचमुच पानी’ और जहाँ बड़वानल के उजियारे में दिखता है पानी, जहाँ ‘हवा को जलाने वाली बिजली गिरती है’। सितांशु जी ने हमारे समय की त्रासदी और विद्रूप को अत्यन्त तीव्र एवं अप्रत्याशित बिम्बों में पुंजीभूत किया है—‘वहाँ उस तरफ पानी में से उठाई गई बगुले की चोंच में/तड़पती मछलियाँ/कुछ ही पलों में बगुलों के पंखों की सफेदी में बदल जाएँगी’। स्थिति की भयावहता का हिला देने वाला बिम्ब है—‘हरे पेड़ को देखकर लगता है/कि यह सूख गया होता तो कुछ ईंधन मिलता/ऐसा समय है यह’। और इस समय की शिनाख्त के लिए कवि पास की मलिन बस्ती से लेकर चे गेवारा, हो ची मिन्ह और यूसुफ मेहरअली तक जाता है। वह एक ऐसा कवि है जो ‘बिना ढक्कन की कलम’ लिए पूरी पृथ्वी पर चलता जा रहा है ताकि तत्काल हर हरकत, हर जुंबिश को दर्ज किया जा सके। यहाँ पूर्वज भी हैं, परदादा, परदादी, पत्नी, बेटा, बेटी विपाशा, गाय, जीव-जन्तु और ‘सारा का सारा ब्रह्मांड एकदम सटा हुआ सा’—‘तारा-पगडंडियाँ’ और ‘ऐसी रोशनी जो अँधेरे की चमड़ी छीलकर रख देती है’। सितांशु यशश्चन्द्र ब्रह्मांड-बोध के कवि हैं जिसकी चरम अभिव्यक्ति ‘महाभोज’, ‘तारे’ और ‘लगभग सटकर’ सरीखी कविताओं में होती है जब लगता है कि ‘इस स्वर लीला में धीरे-धीरे मैं अपनी मानव भाषा भूलता जा रहा हूँ’। इस खगोलीय प्रसार के बावजूद, स्मृति के अर्णव-प्रसार के बावजूद यहाँ हर वस्तु की निजता और विलक्षणता स्थापित और समादृत है जिसका एक उदाहरण ‘हर चीज दो, दो’ है। यह बेहद नाजुक और मसृण संवेदों की कविता है। सितांशु जी सूक्ष्म और विराट दोनों को एक साथ देख सकते हैं यहाँ छोटा से छोटा कम्पन भी समस्त ब्रह्मांड की अभिव्यक्ति है और हर घटना का प्रभाव-प्रसार आकाश-गंगा तक।
यह न तो निचाट वक्तव्यों की कविता है न अवरयथार्थवादी मुद्राओं की। भारतीय काव्य की परम्परा में यह उपमाओं, रूपकों और बिम्बों के माध्यम से हर आम और खास को सम्बोधित है। क्योंकि गांधी जी का आग्रह था कि खेतों में काम करने वाले, कुएँ से पानी खींचने वाले कोशिया मजदूर भी समझ सकें ऐसी कविता लिखनी चाहिए; यह कवि के सौन्दर्यशास्त्र का एक मूल संकल्प है। इसीलिए यह गहरे राजनैतिक आशयों की भी कविता है। पूरे संग्रह में अनवरत बेचैनी और छटपटाहट है और स्वाधीनता के लिए संघर्ष। ये कविताएँ अनुभवों को केवल प्रकाशित ही नहीं करतीं, बल्कि विश्लेषित करते हुए एक तार्किक उपसंहार तक ले जाने का उद्यम करती हैं। सम्भवत: यही कारण है कि इस कविता की गति सर्पिल और कई बार तो वलयाकार है, भावों-विचारों का ऐसा गुम्फन जो पाठक को भी अपने भँवर में खींच लेता है—
मेरी कविता जैसी दूसरी कोई जगह
मेरे पास कहीं बची नहीं रह गई
जहाँ मतभेद या मनमेल को लेकर
खुलकर बात हो सके
सितांशु यशश्चन्द्र की कविता ऐसी ही सार्वजनिक जगह है—उदार, प्रशस्त और निर्बन्ध। और साथ ही नितान्त निजी और एकान्त। शायद इसीलिए ‘मुझे इसके घर में घर जैसा लगता है’।
—अरुण कमल
Raag Virag
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:
-
Description:
...यह उन कविताओं का संग्रह है जिनमें जितना आनन्द का अमृत है, उतना ही वेदना का विष। कवि चाहे अमृत दे, चाहे विष, इनके स्रोत इसी धरती में हों तो उसकी कविता अमर है।
...जैसे ‘उड़ि जहाज को पंछी फिरि जहाज पर आवै’, निराला की कविता आकाश में चक्कर काटने के बाद इसी धरती पर लौट आती है।
...निराला की कल्पना धरती के भीतर पैठकर वनबेला की सुगन्ध के साथ ऊपर उठती है।
...इस धरती के सौन्दर्य से निराला का मन बहुत दृढ़ता से बँधा हुआ है। आकाश में उड़नेवाले रोमांटिक कवियों और धरती के कवि निराला में यही अन्तर है।
...नारी के सौन्दर्य के बिना बसन्त का उल्लास अधूरा है। निराला की शृंगारी रचनाएँ देखकर विरोधी आलोचक कहते थे—ये कैसे छायावादी कवि हैं, जो अपने को ही रहस्यवादी कहते हैं और नारी सौन्दर्य के गीत भी गाते हैं।
...निराला ने गतकर्म सरोज को अर्पित कर दिए, फिर नया कर्म आरम्भ किया, उन्होंने ‘राम की शक्ति-पूजा' लिखी। ‘सरोज-स्मृति’ से निराला का आधा दु:ख सरोज की मृत्यु के कारण है, आधा उनके अपने संघर्षों के कारण।
...वह दु:ख की कथा सरोज के जन्म से पहले शुरू हुई थी और सरोज की मृत्यु के बाद बहुत दिन तक चलती रही। उसी की एक कड़ी है ‘राम की शक्ति-पूजा'।
...यह संग्रह निराला के सुदीर्घ कवि जीवन की सार्थकता का भी प्रमाण है।
—रामविलास शर्मा (इसी संग्रह से)
Hamari Umra Ka Kapas
- Author Name:
Hemant Deolekar
- Book Type:
- Description: Awating description for this book
Phases of the Moon
- Author Name:
Ismaeel Ahmad
- Rating:
- Book Type:
- Description: Intimate. Raw. Emotional. The moon doesn’t get tired of making people feel full even when she’s empty, does she? This book is a collection of poetry that has been built by tears, laughter, friends, family, the obscure niceties and fallacies of this world. Just like the moon, we seldom struggle with being full, and other times with being empty, and sometimes a conflict in between. But, we are whole, nevertheless. Being trapped in a cycle is not always an endless routine, but new beginnings, pure intentions, untethered release too. This book will carry you into themes of heartbreak, rebirth, sadness, happiness, friendship, loneliness and more. Hold my hand, and let’s walk through hurting, healing, and loving.
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