Taash Ke Patte Par Likhi Kavita
Author:
Vaibhav KothariPublisher:
Shivna PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 180
₹
225
Available
Book
ISBN: 9789390593545
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: "आधुनिक दोहा शिल्प और आकार में पारंपरिक होकर भी अपने कथ्य और संवेदन में अत्यंत अर्वाचीन और तरोताजा है, जो समकालीन हिंदी कविता के यथार्थ रूपों और उसकी संवेदना को पकड़ने में सक्षम है। डॉ. दिनेश चन्द्र अवस्थी दोहा छंद के एक समर्थ एवं सशक्त हस्ताक्षर हैं। ईश्वर, धर्म, दर्शन, परिवार, पत्नी, बच्चे, माता-पिता, घर, गली, शहर, कार्यालय, पशु-पक्षी, राजनीति, व्यंग्य, अवसरवादिता, न्याय, मक्कारी, भ्रष्टाचार, मनोविकार, देशभक्ति, आतंक, अफसर, नेता, श्रमजीवी, जीवन, नीति, व्यवहार, सिद्धांत, प्रेम, मित्रता, विश्वजनीन घटनाएँ और चिंतन को जिस मानवीय दृष्टिकोण से डॉ. अवस्थीजी ने देखने का यत्न किया है, वह सब छोटे-छोटे सांस्कृतिक चित्रों के रूप में सहज ही मन को विमुग्ध करती है। डॉ. अवस्थी के दोहे अभिधा की नींव पर प्रतिष्ठित होते हुए भी लाक्षणिकता के सोपानों पर आरूढ़ होते हुए व्यंजना की ऊँचाइयों को सहज ही संस्पर्श करते हैं। डॉ. दिनेश चन्द्र अवस्थीजी द्वारा विरचित प्रस्तुत कृति ‘दोहा-वल्लरी’ सुधी साहित्यकारों, विचारकों एवं सहृदयों के मध्य लोकप्रिय एवं समादृत होगी। "
Yahan Oj Bolta Hai
- Author Name:
Shailey
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- Description: Poems
Yugpurush Jaiprakash Narayan
- Author Name:
Uma Shanker Verma
- Book Type:

- Description: जनक्रांति झुग्गियों से न हो जब तलक शुरू, इस मुल्क पर उधार है इक बूढ़ा आदमी। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के क्रांतिकारी व्यक्तित्व की झलक देतीं सूर्यभानु गुप्त की उपरोक्त पंक्तियाँ बतलाती हैं कि आम जन में परिवर्तन के सपने को जयप्रकाश नारायण ने कैसे रूपाकार दिया था। युगपुरुष जयप्रकाश में प्रसिद्ध कवि, संपादक उमाशंकर वर्मा ने हिंदी के ऐसे सैकड़ों कवियों की कविताएँ संकलित की हैं, जिन्होंने जयप्रकाश के क्रांतिकारी उद्घोष को सुना और उससे उद्वेलित हुए। भगीरथ, दधीचि, भीष्म, सुकरात, चंद्रगुप्त, गांधी, लेनिन और न जाने कैसे-कैसे संबोधन जे.पी. को दिए कवियों ने। उन्हें याद करते हुए आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने सही कहा कि ‘इस देश की संस्कृति का जो कुछ भी उत्तम और वरेण्य है, वह उनके व्यक्तित्व में प्रतिफलित हुआ है।’ आरसी प्रसाद सिंह, इंदु जैन, उमाकांत मालवीय, कलक्टर सिंह केसरी, जगदीश गुप्त, जानकी वल्लभ शास्त्री, धर्मवीर भारती, पोद्दार रामावतार अरुण, बालकवि बैरागी, बुद्धिनाथ मिश्र, रामधारी सिंह दिनकर, कुमार विमल, नीरज आदि प्रसिद्ध कवियों-गीतकारों सहित सैकड़ों रचनाकारों की लोकनायक के प्रति काव्यांजलि को आप यहाँ पढ़ सकते हैं। —कुमार मुकुल
Khirkiyan Jhank Rahin Kamre ke Par
- Author Name:
Pramod Upadyay
- Book Type:

- Description: Hindi nav geet by Pramod Upadhyay.
Aankhon Mein Uljhi Dhoop
- Author Name:
Amita Sharma
- Book Type:

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Description:
ये कविताएँ कुछ हद तक ‘पर्सनल पोएम्स’ हैं, निजी कविताएँ। जैसे व्यक्तिगत काव्य-डायरियाँ। इनका ‘मैं’ कोई पराया ‘मैं’ नहीं। पूरी तरह आत्मकथात्मक ‘मैं’ भी नहीं। यह एक अन्दर की कहीं छिपी-ढँकी इच्छा के कविता में प्रकट होने की प्रक्रिया में आकार लेता ‘मैं’ है। सपनों का ‘मैं’। कविता में सपना देखनेवाला ‘मैं’। ये कविताएँ निर्द्वंद्व मानवीय सम्बन्धों की ऊष्मा का प्रगीत हैं। अपने बेहद निजी, दैहिक सम्बन्ध को भी प्रकृति के पूरे वैभव और समूचे ब्रह्मांड के साथ विमर्श में पाने की लालसा इन कविताओं में है। इहलौकिक सम्बन्धों के बारे में कोई मुखरता यहाँ नहीं है, पर कोई अन्तर्बाधा भी नहीं। यह एक ऐसा अप्रतिम और अनाम सम्बन्ध है जैसे आकाश में चिड़िया की उड़ान होती है जो हवा पर अपने पदचिह्न नहीं छोड़ती। इन कविताओं में लौकिक और अलौकिक के बीच सहज आवाजाही है। इसलिए कोई मिथक यहाँ आता भी है तो उसकी सिर्फ़ हल्की-सी पदचाप ही सुनाई पड़ती है। इन कविताओं में शब्द की चिन्ता और शब्द की काया का स्वीकार बहुत दिलचस्प भी है और अलग-सा भी। ये शब्द की आज़ादी और मौन के साहस, दोनों को जानती हैं। वे शब्द और देह को एक-दूसरे के विकल्प की हद तक देखने और उसे एक-दूसरे की जगह रखने की कोशिश करती हैं। ये कविताएँ एक ऐसा दिक् रचती हैं जहाँ किसी अनुपस्थित की अदेह उपस्थिति है। उस अनुपस्थित के शब्दों की गूँज है। उसके स्पर्श का अहसास है। देहदीन देह की ख़ामोशी है। अनुपस्थित समय है। एक स्टिललाइफ़ जैसा चित्र, जिसमें हर चीज़ पर किसी अनुपस्थित की छाप भी है और उसके किसी भी क्षण आ जाने की संभावना है। इन कविताओं की खनक में चुप और बातूनीपन का दुर्लभ सन्तुलन है। इसे सुनना थोड़ा अटपटा हो सकता है, पर कहना चाहता हूँ कि यह सन्तुलन किसी स्त्री की कविता में ही सम्भव हो सकता है।
—राजेश जोशी
Siya-Piya Katha
- Author Name:
Ushakiran Khan
- Book Type:

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Description:
सीता-कथा राम के पश्चाताप-विगलित विलाप पर पूर्णता पाती है। वही राम जिन्हें पाकर सीता ने अपने होने को सार्थक समझा, वही राम जिनके पीछे-पीछे वे चौदह वर्षों के लिए वन जाने को साथ हो लीं, और जिनके महान, लोकोपकारी उद्देश्य के लिए उन्होंने रावण की लंका में बन्दी-जीवन व्यतीत किया। वही राम सब कुछ प्राप्त कर लेने के बाद लोक-भय के चलते उन्हें पुनः वनगमन करा देते हैं। वही राम फिर उस स्वाभिमानिनी सीता के लिए विलाप करते हैं जो उनके राजवंश को दो वीर-पुत्र देकर हमेशा के लिए चली जाती है।
सीता की कथा मर्यादा कही जाने वाली नैतिक-सामाजिक संरचनाओं के पुरुष-केन्द्रित संस्थानीकरण की सीमाओं की कथा भी है। कितना सहज है पुरुषों की तमाम पौरुष-प्रतिष्ठापक गतिविधियों की सबसे तीखी नोक का स्त्री के मर्मस्थल में कार बिंध जाना। सिय पिय कथा की सीता कहती हैं :
गड़ता है काँटा/अनेकानेक हीन-भाव का/अधैर्य का/ संशय का/और अन्ततः अस्तित्व का राजा राम/आज मैं करती हूँ मुक्त/बिला रही हूँ माटी में
यह उस स्त्री का अन्तिम कथन है जो अपने प्रेम और समर्पण भाव की गहनता के कारण पुरुष के तथाकथित मर्यादा-तंत्र को प्रश्नांकित नहीं करती, बस उसके बीच से सिर तानकर निकल जाती है। यही पुरुष के बल-वैभव पर उसकी टिप्पणी है, यही उसका प्रतिरोध है। लेकिन राम का विलाप उसकी उपलब्धि नहीं, क्योंकि प्रतिशोध उसका ध्येय नहीं। सिय पिय कथा की सीता पश्चाताप-दग्ध राम को पुनः यह कहने आती हैं :
जब राजधर्म पसरेगा/बनकर अन्धकार/सीता का प्रेम प्रकट होगा/सीता ही होगी समाहार
यह खंडकाव्य इसी सीता की महिमा का गान करते हुए हमारे बाहुबली वर्तमान में स्त्री-तत्व की आवश्यकता की ओर इंगित करता है।
Do Sharan
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
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Description:
निराला की सम्पूर्ण गीत-रचना का एक बहुत बड़ा भाग शरणागति या प्रपत्ति-भाव के गीतों से सम्बद्ध है। भक्ति, प्रार्थना और शरणागति के गीत ‘परिमल’ संग्रह से ही हमें मिलने लगते हैं। इसकी क्षीण ध्वनि उनके पहले संग्रह ‘अनामिका’ की ‘माया’ कविता में हमें सुनाई देती है। ‘या कि ले कर सिद्धि तू आगे खड़ी, त्यागियों के त्याग की आराधना’—कहकर कवि अपनी रचनात्मकता की उस विशेष दिशा की ओर संकेतित करता है, जो आगे चलकर उसके अवसाद, उसकी उदासी, खिन्नता, मृत्यु-भय और आत्म-जर्जरता से होती हुई, अन्ततः शरणागति की प्रार्थना-भूमि पर उसे उतारती है।
‘आराधना’ और ‘अर्चना’ में उसकी संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है। अकेले ‘अर्चना’ में शरणागति के लगभग 34-35 गीत संगृहीत हैं। ‘गीत-गुंज’ और उनके अन्तिम संग्रह ‘सांध्य काकली’ में भी यह प्रार्थना-क्रम तिरोहित नहीं हुआ है। यद्यपि अपने जीवन के अन्तिम दिनों में निराला ‘प्रार्थना की व्यर्थता’ की बात भी करते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन यह उत्कट नैराश्य के क्षणों की ही अभिव्यक्ति लगती है, अन्यथा वे अपनी कारुणिक आत्म-जर्जरता में लगातार ‘प्रभु’ की अमर फ़ैंटेसी में शरण लेते हुए दिखाई देते हैं। उनके सारे संग्रहों को मिलाकर शरणागति और प्रार्थना-क्रम के इन गीतों की संख्या लगभग 90 के आस-पास पहुँचती है। इस तरह निराला के अन्तःसंगीत का एक बहुत महत्त्वपूर्ण भाग ‘प्रभु’ के इसी साक्षात्कार से सम्बद्ध है।
वरिष्ठ लेखक दूधनाथ सिंह ने निराला की प्रपत्ति भाव की कविताओं को संकलित किया है। इन कविताओं में मनुष्य की उस आत्मिक मुक्ति की जद्दोजहद को सहज ही परिलक्षित किया जा सकता है, जो दरअसल सम्पूर्ण मानवमुक्ति का एक महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य हिस्सा है।
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