Kuchh Aur Nazmein
Author:
GulzarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
गुलज़ार के गीत हिन्दी फ़िल्मों की गीत परम्परा में अपनी पहचान ख़ुद हैं, प्रवृत्ति के साथ उनके कवि का जैसा अनौपचारिक और घरेलू रिश्ता है, वैसा और कहीं नहीं मिलता। जितने अधिकार से गुलज़ार क़ुदरत से अपने कथ्य और मन्तव्य के सम्प्रेषण का काम लेते रहे हैं, वैसा भी और कोई रचनाकार नहीं कर पाया है। न फ़िल्मों में और न ही साहित्य में।</p>
<p>इस किताब में वे नज़्में शामिल हैं जिनमें से ज़्यादातर को आप इस किताब में ही पढ़ सकते हैं, यानी कि ये गीतों के रूप में फ़िल्मों के मार्फ़त आप तक कभी नहीं पहुँचीं। इसमें गुलज़ार की कुछ लम्बी नज़्में भी शामिल हैं, कुछ छोटी और कुछ बहुत छोटी जिन्हें उन्होंने ‘त्रिवेणी’ नाम दिया है। इनको पढ़ना एक अलग ही तजुर्बा है।
ISBN: 9788183616638
Pages: 177
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
TUM AAI HO!
- Author Name:
Sujash Kumar Sharma
- Book Type:

- Description: जितना शाश्वत प्रेम है, उतनी ही शाश्वत हैं वेदनापथियों की प्रेम कविताएँ! कोई कवि इस सृष्टि में यदि शादी को युगल समाधि जैसी नई दृष्टि से देखता है तो निश्चित ही कविताएँ कुछ अलग रूप ग्रहण करने लगती हैं। दरअसल, ईश्वर के दरबार की सबसे प्यारी प्रार्थनाएँ हैं, 'तुम आई हो!’ में संगृहीत कविताएँ। पुस्तक की भूमिका में एक प्रेम-पत्र है। वस्तुत: सारी कविताओं में ही प्रेम-पत्रों का माधुर्य और सौंदर्य की उपासना के मूर्त सूत्र हैं। इसके अलावा, कविताएँ एक निश्चित घटनाक्रम में भी हैं, जो क्रमश: पवित्रता के सोपानों की तरह हैं कि जैसे-जैसे आप पृष्ठ पलटते जाएँगे, आप अपने भीतर प्रेम को और भी प्रगाढ़ और भी घनीभूत होता महसूस करेंगे। अभी उड़ान बाक़ी है, कि अभी जीवन का छप्पन भोग सजा है, कि अभी तो उठाया है पहला कौर, निवाला एक, कि अभी शेष है, दिन का भोजन पूरा, कि अभी रात बाक़ी है, रात का भोजन भी, कि अभी कितने तो दिन, जीवन भरे, प्रतीक्षा में हैं हमारे, कि अभी कई-कई भोर होना है, कितने तो सुप्रभात, अभी एक रात, आज भी कह रही कानों में-शुभ रात्रि! हाँ प्रिये! शुभ रात्रि। कि अभी शेष है, कितने सूर्यों का उदित होना, नित्य, कितने चंद्रमाओं का आना, कि बचे हैं अभी, कितने-कितने वसंत, कितनी ही बारिशों की रिमझिम, कितनी ठंडियों की रातें, कितने गुलाबी धूप तो शेष हैं, अभी बचे हैं बहुत, जीवन के रंग-बिरंगे मौसम। ऐसी ही ताज़गी और जीवंतता से लबरेज़ एक ऐसी किताब, जिसे प्रेमी-प्रेमिका भी पढ़ सकते हैं और पति-पत्नी भी। वे भी जिन्हें लगता है कि प्रेम चूक गया या कि उमर चूक गई। आप अपने प्रिय को प्रेम की उष्मा और ऊर्जा से भरा 'कुछ’ यदि भेंट करना चाहते हैं, तो इन कविताओं का गुच्छ सर्वोत्तम उपहार हो सकता है।
Taash Ke Patte Par Likhi Kavita
- Author Name:
Vaibhav Kothari
- Book Type:

- Description: Book
Dinkar Ki Sooktiyan
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
सूक्तियों की भूमिका अक्सर प्रेरक होती है। वे हमारी संवेदना और विचारों को स्पर्श कर परिष्कृत करने का काम करती हैं। वे किसी भी भाषा में लिखी गई हों, बोलचाल में इस तरह घुलमिल जाती हैं कि उद्देश्य हो या उपदेश उसकी पूर्व पीठिका की तैयारी में सहज ही उदाहरण बन व्यक्त हो जाती हैं, और बात की प्रामाणिकता तनिक बढ़ जाती है।
सूक्ति-संग्रह का रिवाज उर्दू में रहा है, मगर हिन्दी में यह यदा-कदा ही देखने को मिलता है। संस्कृत में भी एक समय सुभाषित-संचय की प्रथा ख़ूब बढ़ी थी। ऐसे शब्द-समूह, वाक्य या अनुच्छेदों को सुभाषित कहते हैं जिसमें कोई बात सुन्दर ढंग से या बुद्धिमत्तापूर्ण तरीक़े से कही गई हो। शायद इसी से प्रेरित हो कभी दिनकर जी ने भी कई सुभाषित रचे थे जो उनके ‘नये सुभाषित’ संग्रह में शामिल हैं। और दिनकर जी की मानें तो ‘वर्तमान संग्रह में नए सुभाषित से एक पंक्ति भी नहीं ली गई है। इस संग्रह की सभी सूक्तियाँ मेरे नाना काव्य-संग्रहों में से चुनी गई हैं।’ निस्सन्देह, ‘दिनकर की सूक्तियाँ’ एक राष्ट्रकवि की एक ऐसी कृति है जो विचारोत्तेजक और मार्गदर्शक तो है ही, प्रखर चिन्तन और मानवतावादी दर्शन का एक अनुपम संग्रह भी है।
Chuka Bhi Hun Main Nahin !
- Author Name:
Shamsher Bahadur Singh
- Book Type:

-
Description:
शमशेर बहादुर सिंह की कविता एक विलक्षण संसार की रचना करती है जिसमें आपको अपनी नहीं उसकी शर्तों पर जाना होता है। इस कविता को आप चलते-जाते ऐसे ही नहीं पढ़ सकते, यह कविता अपने काठिन्य से नहीं, जैसा कि कुछ लोग आरोप लगाते हैं, बल्कि अपनी अद्वितीयता से आपको पढ़ने की आपकी कंडीशंड आदतों से छूटकर वापस नए सिरे से सावधान होने को कहती है।
यह शमशेर का उस दौर में आया संग्रह है जब कवि के रूप में उनका स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण हो चुका था। इससे पहले उनकी ‘कुछ कविताएँ’, ‘कुछ और कविताएँ’, और ‘इतने पास अपने’ जैसे संकलन आ चुके थे और हिन्दी कविता की दुनिया में उन्हें लेकर पक्ष-विपक्ष बन चुका था। इसलिए यह संग्रह और भी महत्त्वपूर्ण है, हालाँकि जिस तरह उनके पहले कविता-संग्रह के लिए कविताओं का चयन जगत् शङ्खधर ने किया था, इस किताब में भी चयन उन्हीं का रहा, अर्थात् अब तक अपनी कविता को लेकर उनका संकोच जस का तस था। इस संग्रह की भूमिका में भी वे कहते हैं—‘अपनी काव्य-कृतियाँ मुझे दरअसल सामाजिक दृष्टि से कुछ बहुत मूल्यवान नहीं लगतीं। उनकी वास्तविक सामाजिक उपयोगिता मेरे लिए एक प्रश्नचिह्न-सा ही रही है, कितना ही धुँधला सही।’ अपने काव्य-कर्म को लेकर उनके इसी संशय ने शायद उन्हें भाषा और शिल्प के उस मानक तक पहुँचाया जिसे उनके जीते-जी ही ‘शमशेरियत’ कहा जाने लगा था, और उन्हें ‘कवियों का कवि’। बकौल नामवर सिंह, ‘शमशेर की आत्मा ने अपनी अभिव्यक्ति का जो एक प्रभावशाली भवन अपने हाथों तैयार किया है, उसमें जाने से मुक्तिबोध को भी डर लगता था—उसकी गम्भीर प्रयत्नसाध्य पवित्रता के कारण।’ और बकौल मलयज, ‘एक नितान्त निजी मुहावरा अपने पवित्र दर्प में तना हुआ।’
बहरहाल ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ का यह संस्करण हिन्दी की नई पीढ़ी को एक आमंत्रण के रूप में प्रस्तुत है कि वह भी अपने इस पूर्वज, और कविता-परम्परा के श्रेष्ठतम पैमानों में से एक, कवि की कविताओं को जाने।
Pratirodh Ka Stree-Swar : Samkaleen Hindi Kavita
- Author Name:
Savita Singh
- Book Type:

-
Description:
कवयित्री और प्रखर स्त्रीवादी आलोचक सविता सिंह द्वारा सम्पादित ‘प्रतिरोध का स्त्री-स्वर’ में संकलित कविताएँ शक्ति की ऐसी सभी संरचनाओं के विरुद्ध प्रतिरोध की कविताएँ हैं, जो स्त्रियों को उनके अधिकार से वंचित करती हैं। वह चाहे पितृसत्ता हो, धार्मिक सत्ता, जातिवादी या राजनीतिक सत्ता हो। कहा जा सकता है कि ये कविताएँ अस्मिता विमर्श की सीमाओं का अतिक्रमण करती हैं या उसकी परिधि को और व्यापक बनाती हैं। ये विचारों पर फैल रहे कोहरे को भेदने की कोशिश हैं। घर से दफ़्तर तक, संसद से सड़क तक, सचिवालय से न्यायालय तक सारी जगह इनकी निगाह की हद में है। इन कविताओं में बोलने वाली स्त्री मानती है और जानती है कि उसका प्रतिनिधित्व करती हुई दिखती सरकार उसकी नहीं है।
ये कविताएँ स्त्री की स्वतन्त्रता की व्यापक परिभाषा रचती हैं। वहाँ सवर्ण और दलित स्त्री के भेद के सवाल भी हैं और यह समझदारी भी कि राजनीतिक लोकतंत्र जब सामाजिक लोकतन्त्र में परिवर्तित होगा तभी सफल होगा। उनका ग़ुस्सा दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद के विरुद्ध भी है और सामाजिक संरचना के ख़िलाफ़ भी।
महामारी से उठे सवाल और कोरोना के दौरान सफ़ाई कामगारों के सवाल भी इन कविताओं की जद में हैं। ये कविताएँ प्रतिरोध का वह स्त्री स्वर हैं जो अपनी धरती से जुड़ा है, जो इस धरती का आदि वासी है।
—राजेश जोशी
Humanist Social Vision of a Jungle Poet
- Author Name:
Kuvempu +1
- Rating:
- Book Type:

- Description: This book carries 51 poems of Kuvempu in translation with a long introduction to give the pan India audience an understanding of Kuvempu's major concerns. Prof Raghunath has made his choice carefully to represent Kuvempu's social concern, and that seems to be at the heart of his introductory piece.
Shabri
- Author Name:
Shri Naresh Mehta
- Book Type:

- Description: ‘शबरी’ में कवि आधुनिकता के अधिक पास होते हैं। उन्होंने लिखा है—‘वाल्मीकि ने सामाजिक वर्ण-व्यवस्था से ऊपर व्यक्ति के आध्यात्मिक स्वत्व एवं असंग कर्म को प्रतिष्ठापित किया और शबरी वही बीज चरित्र है। चरित्र की दृष्टि से शबरी मंत्र चरित्र लगती है'—अपनी छोटी-सी उपस्थिति में सार-भूत। ‘शबरी’ काव्य विचारों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। एक दलित स्त्री को अपने कर्म-श्रम के ज़रिए ऊपर उठाकर ऋषि मतंग जिस भूमि पर प्रतिष्ठित करते हैं, उससे पौराणिकता की रक्षा भी होती है और वर्ण-व्यवस्था के विरुद्ध उठती आज की आवाज़ को भी बल मिलता है।
Pakistani Urdu Shayari Vol. 1
- Author Name:
Narendra Nath
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Mrityunjayee
- Author Name:
Bhagwat Jha Azad
- Book Type:

-
Description:
‘मृत्युंजयी’ का मुख्यराग है—लोक मुक्ति। दलित, शोषित, उपेक्षित, प्रताड़ित, पीड़ित; आर्थिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक दृष्टि से सर्वथा उपेक्षित और अज्ञान के अन्धकार में भटकते अज्ञानी लोगों की बिलखती चेतना के रेगिस्तानी समुद्र में आस्था और संकल्प की सुगम राह बना डालने की युक्ति : “करो उपकृत धरा लोक को/अपना ज्ञान बाँटकर उनको/श्रम से मंडित जग जीवन है/यह रहस्य बतला कर उनको।”
“अपने सत्कर्मों से मानव/जीवन काल बढ़ा सकता है/धर्म आचरण से आत्मा को/वह उदात्त बना सकता है।”
कवि ने यहाँ तत्त्व के लिए संघर्ष किया है, अभिव्यक्ति को सक्षम बनाने के लिए संघर्ष किया है और लोक दृष्टि विकसित करने के लिए जन संघर्ष को अनिवार्य माना है : “मिटा भूत के पद्चिन्हों को/भूल पुराने व्यथा-व्यंग्य को/नई राह पर कदम बढ़ाकर/नई कहानी लिख डाला है/एक नया संसार बनाकर।”
‘मृत्युंजयी’ पढ़कर आप एक ऐसे फूल की कल्पना कर सकते है जो कभी जुही भी हो जाता है तो कभी कमल, कभी मौलश्री, कभी अमलतास तो कभी शेफालिका। ‘मृत्युंजयी’ पढ़ने और उसकी संवेदना के आन्तरिक सतह का स्पर्श करने के पश्चात आपको सहज अनुभव होगा कि महाकवि भागवत झा ‘आज़ाद’ अपने शब्दों से जीवन की परिधि का विस्तार करते हैं। उनकी कविता मानव मन में उच्चतर जीवन मूल्यों के प्रति उत्कंठा और आस्था जगाती है और इस तरह मानवीय नश्वरता के विरुद्ध शाश्वरता का जयगान करती है।
Chidambara
- Author Name:
Sumitranandan Pant
- Book Type:

-
Description:
‘चिदंबरा’ मेरी काव्यचेतना के द्वितीय उत्थान की परिचायिका है। उसमें ‘युगवाणी’ से लेकर ‘अतिमा’ तक की रचनाओं का संचयन है—सन् ’37 से ’57 तक प्राय: बीस वर्षों की विकास-श्रेणी का विस्तार।
‘चिदंबरा’ की पृथु-आकृति में मेरी भौतिक, सामाजिक, मानसिक, आध्यात्मिक संचरणों से प्रेरित कृतियों को एक स्थान पर एकत्रित देखकर पाठकों को उनके भीतर व्याप्त एकता के सूत्रों को समझने में अधिक सहायता मिल सकेगी। इनमें मैंने अपनी सीमाओं के भीतर, अपने युग के बहिरन्तर के जीवन तथा चैतन्य को, नवीन मानवता की कल्पना से मंडित कर, वाणी देने का प्रयत्न किया है। मेरी दृष्टि में ‘युगवाणी’ से लेकर ‘वाणी’ तक मेरी काव्य-चेतना का एक ही संचरण है, जिसके भीतर भौतिक और आध्यात्मिक चरणों की सार्थकता, द्विपद मानव की प्रकृति के लिए, सदैव ही अनिवार्य रूप से रहेगी।
‘‘पाठक देखेंगे कि (इन रचनाओं में) मैंने भौतिक-आध्यात्मिक, दोनों दर्शनों से जीवनोपयोगी तत्त्वों को लेकर, जड़-चेतना सम्बन्धी एकांगी दृष्टिकोण का परित्याग कर, व्यापक सक्रिय सामंजस्य के धरातल पर, नवीन लोक-जीवन के रूप में, भरे-पूरे मनुष्यत्व अथवा मानवता का निर्माण करने का प्रयत्न किया है, जो इस युग की सर्वोपरि आवश्यकता है?’’
—भूमिका से
Hasrat Mohani
- Author Name:
Hasrat Mohani
- Book Type:

- Description: चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है आरज़ू तेरी बरक़रार रहे दिल का क्या है रहा रहा न रहा वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
Desh
- Author Name:
Harprasad Das
- Book Type:

-
Description:
‘देश’ को उत्तर–आधुनिक महाकाव्य माना गया है। बल्कि इसे सिर्फ़ एक संरचना ही कहा जाए तो कवि को कोई आपत्ति नहीं होगी, यदि इसकी वास्तुकला में पाठक मेद, खनिज और काष्ठ के प्रयोग को पहचान ले। इस विलक्षण संरचना में बहुमुखी कल्पना का प्रयोग है, यथार्थ की एक मुख्य धारा इसमें कल्पना का स्रोत बनकर प्रवाहित होती है। किसी स्थिर बिन्दु से देश को देखने का तरीक़ा इसमें अद्भुत रूप से बदलता है। इस बदलाव में एक तीव्र और जादुई शक्ति है जो कविताओं को एकात्मकता प्रदान करती है, हालाँकि यह संरचना किसी पूर्व–निर्धारित काव्यवस्तु को प्रतिष्ठित नहीं करना चाहती।
देश की कविताओं में अनेक आरम्भ हैं और अनेक अन्त, परन्तु यह सब किसी एक निर्दिष्ट समाप्ति की ओर अग्रसर नहीं होता, बल्कि एक व्यापक असमाप्ति का निर्माण करता है। इसका उत्तर–आधुनिक रूप इसी असमाप्त निर्मिति से बनता है। ‘देश’ भूखंड है, भाग्य है, निवास है, निर्वासन है, यहाँ तक कि ‘देश’ देशान्तर है और देशोत्तर भी। विविधता के बीच अस्तित्व की यह खोज वस्तुपरकता के परे शुद्ध कविता के अन्त:करण को प्रस्तुत करती है। समकालीन भारतीय साहित्य में इस कृति को अपनी कलात्मकता की लय, लोक–चेतना की मिथकीय पुन:प्रतिष्ठा और मार्मिक अस्तित्वबोध के लिए पहचाना जाएगा।
Meraki
- Author Name:
Harshita Ray +4
- Rating:
- Book Type:

- Description: Meraki is a journey in pages, filled with experiences and emotions that we hope you can resonate with, and realise you aren’t alone. It is bittersweet growth in words; an account of our stories that we hope, to some extent, are yours too. Describing this compilation in a few words, wouldn’t do it justice, but to put it simply- Meraki is the story of five passionate teenagers presented in forms of poetry and prose.
Prakriti Aur Kriti
- Author Name:
Gyanendrapati
- Book Type:

- Description: नरक्षेत्र के भीतर बद्ध रहने वाली काव्य-दृष्टि की अपेक्षा सम्पूर्ण जीवन-क्षेत्र और समस्त चराचर के क्षेत्र में मार्मिक तथ्यों का चयन करने वाली दृष्टि उत्तरोत्तर अधिक व्यापक और गम्भीर कही जाएगी। रामचन्द्र शुक्ल (रसात्मक बोध के विविध रूप : चिन्तामणि भाग-1 यह है वह दृष्टि-पथ जिस पर संचरण करते हुए ‘प्रकृति और कृति’ कविता-संग्रह का अस्तित्व आकृत हुआ है। ज्ञानेन्द्रपति के कवि-कर्म में अयात्रित जीवन-क्षेत्रों में परिभ्रमण की उत्सुकता आरम्भ से ही मौजूद रही है; सुगम लीक पर चलते रहने की जगह ऊबड़-खाबड़ में भटकते हुए एक तरह के कठिन आनन्द से उत्फुल्ल बने रहना उनके कवि का प्रकृत स्वभाव रहा है। सर्जना की इस प्रचेष्टा की परिणति ‘प्रकृति और कृति’ आपके हाथों में है। यहाँ एक तरफ मानवेतर प्राणियों की अन्यता नहीं, अनन्यता के एहसास के साथ प्रकृति के विविध प्रारूपों की जीवन्त उपस्थिति मिलेगी और मिलेंगे जीवन को पुनर्नव करते हुए ऋतु-चक्र के गति-लेख, तो दूसरी तरफ वे निर्मितियाँ जो मानवकृत होते हुए भी अपनी इयत्ता को जीती रहती हैं : अनेकरूपा सत्ता के संवेदना-पगे साक्षात्कार! यहाँ ईश्वर भी एक कृति है—सर्वोत्तम मानवीय रचना—जिसको अब अनकिया नहीं किया जा सकता। कविता की इस दुनिया में कुछ भी निर्जीव नहीं, जैव स्पंदन से रहित नहीं। चराचर जगत् के ओर-छोर तक प्रसृत हो जाना चाहने वाली इस काव्य-सृष्टि की केन्द्रकील, लेकिन, मनुष्यता का आत्मबोध ही है। भाव-प्रसार के क्षेत्र की व्यापकता मानव-आत्म की संवृद्धि के समरूप है। कविता इसी तरह हमारे लिए अपने अध्यात्म को अर्जित करती है। आशा है, इस पुस्तक से गुजरते हुए पाठक अपनी आँखों में नई आँखों का उन्मीलन महसूस करेंगे और कविता से उनकी प्रीति कुछ और गाढ़ी हो उठेगी।
Gubare-Ayyaam
- Author Name:
Faiz Ahmed 'Faiz'
- Book Type:

- Description: ‘ग़ुबारे-अय्याम’ फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’ की आख़िरी कविता पुस्तक है जिसका प्रकाशन उनके निधन के बाद हुआ था। साल 1981 से 1984 के बीच लिखी गईं इन नज़्मों और ग़ज़लों का मुख्य स्वर अपने पूरे जीवन पर दृष्टिपात करने जैसा है। जैसाकि हमें मालूम है उनका निजी और सार्वजनिक जीवन असाधारण ढंग से घटनाप्रधान रहा। जेल भी गए और जीवन के कई साल निर्वासन में भी गुज़ारे। ‘ग़ुबारे-अय्याम’ की पहली कविता ‘तुम ही कहो क्या करना है’ में फ़ैज़ ने प्रगतिशील सोच वाले उन तमाम लोगों के संघर्ष को शब्द दिए हैं जिन्होंने पूरी मानवता के लिए बराबरी और इज़्ज़त के सपने देखे थे; जो जवान हौसलों के साथ एक बड़ी दुनिया बनाने निकले थे, लेकिन उन्हें गहरी निराशा मिली—‘जब अपनी छाती में हमने/इस देस के घाओ देखे थे/था वेदों पर विश्वास बहुत/और याद बहुत से नुस्ख़े थे/...’ पर घाव इतने पुराने और जटिल थे कि ‘वेद इनकी टोह को पा न सके/और टोटके सब बेकार गए’। ‘ग़ुबारे-अय्याम’ में संकलित ‘एक नग़्मा कर्बला-ए-बेरूत के लिए’, ‘एक तराना मुजाहिदीने-फ़िलस्तीन के लिए’, ‘हिज्र की राख और विसाल के फूल’ तथा ‘आज शब कोई नहीं है’ जैसी नज़्में और ग़ज़लें उनके आख़िरी दिनों की पीड़ा को व्यक्त करती हैं लेकिन उम्मीद से ख़ाली वे भी नहीं हैं।
Is Yatra Mein
- Author Name:
Leeladhar Jagudi
- Book Type:

-
Description:
‘‘लीलाधर जगूड़ी ने अपने दूसरे संग्रह द्वारा हिन्दी कविता में अपनी एक अलग पहचान बना ली है। यह एक बड़ी बात है। इन कविताओं में जीवन को उसकी समग्रता में पकड़ने की कोशिश है जो इधर के ख्यातिप्राप्त कवि भी नहीं कर पा रहे हैं। या तो वे अपनी भीतरी दुनिया में रमे रहते हैं या बाहरी दुनिया में भटकते रहते हैं। जगूड़ी ने दोनों छोरों को पकड़ा है, साधने की कोशिश की है, किसी एक का निषेध नहीं किया है। दोनों दुनियाओं को जोड़ने का प्रयास उनकी इस संग्रह की कविताओं में अक्सर दीखता है। इससे कवि इनसान की तरह आत्मीय बनता है, पैग़म्बर या क्रान्तिकारी की तरह आस्था और आतंक नहीं जगाता। इस तरह उनका रास्ता धूमिल से अधिक सही है। जगूड़ी की इस यात्रा में अन्तः और बाह्य यात्राओं का विलय है। सच्चे कवि के लिए ये दोनों यात्राएँ अलग नहीं होतीं, केवल उन पर आग्रह घटता-बढ़ता रहता है। अपने अनुभूतिलोक के कारण, प्रतिबद्धता के नाम पर ‘रूपवादी’ और ‘राजनीतिवादी’ उसे एक का होकर रखना चाहते हैं और प्रचारित करते हैं कि दूसरा संसार झूठा है। वास्तविक प्रतिबद्धता अनुभूति की ही प्रतिबद्धता है जिसे कवि निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में प्राप्त करता है और उससे बचता नहीं, रचता है।
जगूड़ी की दूसरी विशेषता इन दोनों दुनियाओं को जोड़ने का शिल्प है और तीसरा उनका बड़बोला न होना है। शिल्प के क्षेत्र में उनके बिम्ब फिसलते हुए प्रकृति से इनसान की ओर, इनसान से प्रकृति की ओर आते-जाते हैं। इस यात्रा में कहीं एक जगह रम नहीं जाते।
पेड़ के प्रतीक से जितना अधिक काम उन्होंने लिया है उतना बहुत कम नए कवियों ने लिया है। भाषा उनकी बोलचाल की, सहज है पर उसका प्रयोग वह एक असहज तेवर के साथ करते हैं, जिसकी ज़रूरत उनके जैसे कवियों को नहीं होनी चाहिए। भाषा का आप किसी आग्रह के साथ प्रयोग कर रहे हैं यह पाठक को बता देना कवि की अपनी ताक़त कम कर लेना है। कहीं-कहीं कविता के पूरे विन्यास में न खपने और चौंकाने वाले शब्दों का प्रयोग उन्होंने किया है जो अब उन्हें छोड़ देना चाहिए। कविता के सम्पूर्ण आकर्षण को किसी एक भड़कीले, असहनशील शब्द की ओर नहीं फेरना चाहिए।
लीलाधर जगूड़ी का यह संग्रह ध्यान से पढ़ा जाना चाहिए।’’
—सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(दिनमान, 13 मई, 1975)
Kavita Se Lambi Kavita
- Author Name:
Vinod Kumar Shukla
- Book Type:

-
Description:
अपने असाधारण मितकथन के लिए विनोद कुमार शुक्ल समकालीन साहित्यिक परिदृश्य में इतने विख्यात हैं कि कइयों को उनकी इतनी सारी लम्बी कविताएँ देखकर थोड़ा अचरज हो सकता है। अपेक्षाकृत अधिक व्यापक फलक को समेटती हुई ये कविताएँ, फिर भी, उनके संयम और काव्य–कौशल की ही उपज हैं। उनका भूगोल किसी भी तरह से स्फीति नहीं, विस्तार है। एक तरह से यह कहा जा सकता है कि अपने प्रथम प्रस्तोता गजानन माधव मुक्तिबोध के शिल्प का विनोद कुमार शुक्ल अपने ढंग से पुनराविष्कार कर रहे हैं।
वहीं खड़े–खड़े मेरी जगह निश्चित हुई
थोड़ी हुई
ज़्यादा नहीं हुई।
एक ऐसे संसार और समय में जहाँ प्राय: सभी अपने लिए ज़्यादा से ज़्यादा की चाह करते और न पाकर दुखी होते रहते हैं, विनोद ‘थोड़े–से’ को ही टटोलने और उसी को अपनी निश्चित जगह मानकर उससे अपने समय को ज़्यादा से ज़्यादा पकड़ते–समझते रहते हैं। उनकी कविता हमारी समझ और संवेदना, जो होता है उसके लिए हमारी ज़िम्मेदारी के अहसास को बढ़ानेवाली कविता है। वह हम पर अपना बोझ नहीं डालती और न ही किसी नैतिक ऊँचाई से हमें आतंकित करने की चेष्टा करती है। उसमें आत्मदया नहीं, बेबाकी है : दोषारोपण नहीं, आत्मालोचन है। वह हमारी सहचारी कविता है और हर समय उसे पढ़ते हुए हम इस विस्मय से भर जाते हैं कि वह हमसे हमारी तकलीफ़, संघर्ष, बेचारगी और ज़िम्मेदारी की कथा कहती है और ऐसे कि कवि और हम दोनों का ही वह जैसे शामिलात खाता है। लम्बी कविताओं का यह संकलन हिन्दी कविता की निश्चय ही शताब्दी के अन्त पर एक नई उपलब्धि है।
—अशोक वाजपेयी।
Neelima
- Author Name:
Gopal Singh 'Nepali'
- Book Type:

- Description: प्रकृति और मानवता, ये दो बिन्दु गोपाल सिंह नेपाली के कवि-मन की स्थायी धुरी रहे हैं—एक तरफ प्रकृति में निहित असीम सौन्दर्य और सम्भावनाएँ, दूसरी तरफ पराधीनता, विषमता, शोषण और अभावों के बीच डूबती-उतराती-हाँफती मनुष्यता। उनकी कविताओं में ये दोनों ही सरोकार प्रबल रूप में अपनी उपस्थिति जताते हैं। ‘नीलिमा’ में संग्रहीत कविताओं में ये दोनों भाव देखे जा सकते हैं। ‘गगन भी नील नयन भी नील’ इस संग्रह की पहली कविता है। इस कविता में आई तुलनात्मक भावधारा को नेपाली जी अपने लिए किंचित नई एवं भिन्न मानस-क्षितिज की वस्तु मानते थे। कविता के छात्रों और सर्जकों के लिए आज भी उनकी कविताएँ इसलिए प्रासंगिक और पठनीय हैं कि जीवन और मन के हर भाव को कविता में व्यक्त करने का सतत प्रयास उनके यहाँ दिखता है, और यह सिर्फ वर्णन नहीं है, विचार, दृष्टि और अनुभूति को एक जगह जोड़ता छन्द-बद्ध काव्य है। ‘तारों की रात’, ‘संध्या गान’, ‘प्रभातगान’, ‘धार पर जले लहर के दीप’ आदि अनेक कविताएँ हैं जो प्रकृति को देखने के लिए हमें एक विशेष दृष्टि देती हैं, वहीं ‘कवि’ शीर्षक गीत में वे मनुष्य संसार से प्राप्त भावनाओं को भी व्यक्त करते हैं जग को दुख है, जग रोता है/कुछ पाता है, सब खोता है युग-ईश्वर की बलि-वेदी पर/जग बार-बार बलि होता है ; मैं जग के दुख में शामिल हूँ इन आँखों में जलधार लिये।
Seven Leaves One Autumn
- Author Name:
Sukrita Paul Kumar
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Ant Anant
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

-
Description:
यह संकलन सम्पूर्ण निराला-काव्य का परिचय देने के लिए नहीं, बल्कि इस उद्देश्य से तैयार किया गया है कि इससे पाठकों को उसकी मनोहर तथा उदात्त झाँकी-भर प्राप्त हो, जिससे वे उसकी ओर आकृष्ट हों और आगे बढ़ें।
निराला की ख़ासियत क्या है? वे प्रचंड रूमानी होते हुए भी क्लासिकी हैं, भावुक होते हुए भी बौद्धिक, क्रान्तिकारी होते हुए भी परम्परावादी तथा जहाँ सरल हैं, वहाँ भी एक हद तक कठिन। उनकी अपनी शैली है, अपनी काव्य-भाषा। अभिव्यक्ति की अपनी भंगिमाएँ और मुद्राएँ।
यह सर्वथा स्वाभाविक है कि उनके निकट जानेवाले पाठकों से यह अपेक्षा की जाए कि उनका काव्यानुभव बच्चन, दिनकर या मैथिलीशरण गुप्त तक ही सीमित न हो। जब वे किंचित् प्रयासपूर्वक उक्त कवियों से हटकर उनके काव्य-लोक में प्रवेश करेंगे, तो पाएँगे कि उनकी तुलना में वे उनके ज़्यादा आत्मीय हैं।
निराला के प्रसंग में सरलता का यह मतलब क़तई नहीं है कि उनकी कविताएँ पाठकों के मन में बेरोक-टोक उतर जाएँ। कारण यह है कि उनके लिए काव्य-राचन सशक्त भावनाओं का मात्र अनायास विस्फोट नहीं था, बल्कि वे अपनी प्रत्येक कविता को किंचित् आयासपूर्वक पूरी बौद्धिक सजगता के साथ गढ़ते थे। स्वभावतः उनकी सम्पूर्ण अभिव्यकि कलात्मक अवरोध से युक्त है, जिसे ग्रहण करने के लिए थोड़ा धैर्य और श्रम आवश्यक है।
इस पुस्तक में निराला के काव्य-विकास की तीनों अवस्थाओं—पूर्ववर्ती, मध्यवर्ती और परवर्ती—की सौ चुनी हुई सरल कविताएँ संकलित की गई हैं, प्राय रचना-क्रम से। आरम्भिक दोनों अवस्थाओं में सृजन के कई-कई दौर रहे हैं, कविता और गीत के, जिसकी सूचना अनुक्रम से लेकर पुस्तक के भीतर सामग्री-संयोजन तक में दी गई है।
पाठक मानेंगे कि यह कविता की एक नई दुनिया है, अधिक आत्मीय और प्रत्यक्ष, जिसे भाषा सजाती नहीं बल्कि अपनी भीतरी शक्ति से खड़ी करती है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...