Shabri
Author:
Shri Naresh MehtaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
‘शबरी’ में कवि आधुनिकता के अधिक पास होते हैं। उन्होंने लिखा है—‘वाल्मीकि ने सामाजिक वर्ण-व्यवस्था से ऊपर व्यक्ति के आध्यात्मिक स्वत्व एवं असंग कर्म को प्रतिष्ठापित किया और शबरी वही बीज चरित्र है। चरित्र की दृष्टि से शबरी मंत्र चरित्र लगती है'—अपनी छोटी-सी उपस्थिति में सार-भूत। ‘शबरी’ काव्य विचारों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। एक दलित स्त्री को अपने कर्म-श्रम के ज़रिए ऊपर उठाकर ऋषि मतंग जिस भूमि पर प्रतिष्ठित करते हैं, उससे पौराणिकता की रक्षा भी होती है और वर्ण-व्यवस्था के विरुद्ध उठती आज की आवाज़ को भी बल मिलता है।
ISBN: 9788180316760
Pages: 61
Avg Reading Time: 2 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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मनोज मेहता के काव्य-सामर्थ्य का एक ग़ौरतलब पहलू यह भी है कि लोकजीवन से उनकी संलग्नता उन्हें अपनी भाषा के अन्य बहुतेरे कवियों की तरह अतिशय रोमानीपन की ओर नहीं धकेलती। ‘सुलगा हुआ राग’ में जहाँ मनोज उपलब्ध जीवन को उत्सवित करते हैं, वहाँ भी उनका काव्य विवेक अपनी वस्तुपरकता को खोकर असन्तुलित नहीं होता और न ही वह अतिरिक्त ऐश्वर्य अर्जित करने के लिए शिल्प की कलावादी तिकड़मों का सहारा लेता है। यह एक ऐसा काव्य-विवेक है जो आवयविक अनुभवों को लेकर बेहद सादगी और धीरज के साथ अपने आशयों को स्पष्ट करता है और भीषण संकटों के मौजूदा दौर में जीवन-प्रसंगों की मानवीय आन्तरिकता को भाषा के आईने में कुछ यों ले आता है कि वह बार-बार अपनी अनोखी आकस्मिकता के नएपन से हमें एक दुर्लभ सौन्दर्यबोध की ज़मीन पर नए आविष्कार की तरह बाँध लेती है—मानो हमारे भीतर पहले कुतूहल और फिर सरोकारों का ख़ूब समृद्ध ताना-बाना निर्मित करती हुई।
‘सुलगा हुआ राग’ की अन्तर्वस्तु में सहज और आयासहीन जनोन्मुख प्रतिबद्धता है, आख्यान है और निरन्तर गूँजती एक लय है जिसमें क्रियाओं और ध्वनियों की आवाजाही और हलचलें शामिल हैं—पर इस सबके बावजूद कुछ भी स्फीत नहीं होता। यहाँ शामिल कविताओं में मनोज मेहता के अनुभव प्रान्तरों की ऐसी अन्तर्यात्रा के साक्ष्य हैं जिनमें हमारे सामूहिक मन की बेचैन दीप्तियाँ तो हैं ही, उसकी अपराजेय जिजीविषा का गान भी है।
‘सुलगा हुआ राग’ के एक से दूसरे छोर तक मनोज मेहता ने चाहे जितने भी स्वरों का संयोजन किया हो, यहाँ न तो कहीं किसी विवादी स्वर का खलल है और न ही कोई मुद्रा दोष।
‘सुलगा हुआ राग’ में यह सब सम्भव हो पाया है तो इसलिए कि इसकी निर्मिति में एक विनम्र किन्तु दृढ़ प्राणवत्ता बसी है।
—पंकज सिंह
Shiv Ki Chhati Par Kali Ka Paon
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Kafir
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Description:
पके हुए प्रेम की एक पहचान यह भी है कि सृजन के शिल्प में वह कभी-कभी कच्चा भी रह जाता है। इस तरह की लिखाई उत्कृष्टता की आकांक्षा व दबाव से मुक्त, सहज और स्वाभाविक होती है। काफ़िर की कविताएँ इसी सरलता से पैदा हुई हैं, जो दुनिया में प्रेम की उपस्थिति पर भरोसा जगाती हैं। इन कविताओं से गुज़रते हुए मैंने पाया कि इनकी बनावट में वैशिष्ट्य का आग्रह नहीं, किंतु जीवन की धड़कती हुई ध्वनि जहाँ-तहाँ गूँजती है।
काफ़िर की कविताओं में महज़ प्रेम नहीं है, बल्कि एक पक्के प्रेमी की तरह तबाह हो जाने की पर्याप्त चाह भी है। इस जटिल सरंचना वाले अंधकारपूर्ण संसार में उनकी कविताओं का प्रेमी ऐसा प्रतीत होता है मानो बिना बिजली वाले किसी गाँव में अमावस की तिथि पड़ी हो और सुदूर आकाश में सितारे जगमगा रहे हों।
इस दौर में प्रेम की कविता एक बड़ी चुनौती से जूझ रही है। प्रेम की अभिव्यक्ति में भावों की तीव्रता को गति की तीव्रता ने विचलित किया है। इस कठिनाई से उबरने का उपाय है एक सघन जीवन से जन्मा धैर्य और अपनी कला के प्रति वीतरागी भाव। काफ़िर की कविता में व्याप्त तीव्र भावनात्मक संवेग और निर्वाण की अवस्था के प्रति मद्धम आसक्ति एक तरह का विरोधाभासी दृश्य रचते हैं। नए-नए उपमान या बिम्बों से विस्मय जगाने वाली तकनीक नहीं, बल्कि उपरोक्त विरोधाभास के आंतरिक संघर्ष से उपजा धैर्य इन कविताओं की प्राणवायु है। —बाबुषा कोहली
Yashodhara
- Author Name:
Maithlisharan Gupt
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Description:
राजभवन की सुख-समृद्धि तथा ऐश्वर्य और भोग-विलास को ही नहीं वरन् यशोधरा जैसी पत्नी तथा राहुल जैसे एकमात्र पुत्र का परित्याग करके निर्वाण के मार्ग में निकले भगवान बुद्ध की कथा इतनी महान बनी कि स्वयं बौद्ध धर्म के जन्म और विस्तार की प्रेरक कथा बन गई।
मैथिलीशरण गुप्त मूलत: कवि थे, जो राष्ट्रकवि बन गए। अत: उन्होंने भगवान बुद्ध की कथा को काव्य-कथा के रूप में प्रस्तुत किया है। इस रचना में गुप्त जी ने यशोधरा के त्याग की परम्परा को मुख्य रूप से उद्घोषित किया है, जिसने भगवान बुद्ध के राजभवन लौटने और स्वयं यशोधरा के कक्ष में उससे भेंट करने जाने पर अपने बेटे राहुल का महान पुत्रदान देकर अपने मन की महानता को प्रतिष्ठित किया। राष्ट्रकवि की यह रचना मनोरंजक ही नहीं, प्रेरक भी है।
Jeene Ke Liye Zamin
- Author Name:
Atma Ranjan
- Book Type:

- Description: आत्मा रंजन की ये कविताएं जीवन की उन लुकी छिपी संभावनाओं को बचाने की कविताएँ हैं जिनमें उड़ाने हैं, बीज के छतनार वट–वृक्ष में बदलने की संभावनाएं हैं। यह एक ऐसी आग की कविता है जिससे जलने की नहीं पकने की गंध आती है। जो मनुष्य की रोटी और रोशनी से जुड़ी है। आत्मा रंजन की कविता वस्तुतः जीवन की बहुत साधारण चीज़ों और बहुत साधारण और सामान्य लगती क्रियाओं में नये अर्थ तलाश करती है। वह साधारणता में छिपी असाधारणता को ढूंढ लेती है। वह स्पर्श और थपकी में लड़ने के हौसले को देख लेती है, क्योंकि वह थपकी के बीच आटे की लोई के रोटी के आकार में बदलने की क्रिया को लक्ष्य कर सकती है। यही कारण है कि वह जड़ों के जड़ हो गये या मान लिए गये अर्थ से अलग उसमें छिपी ऊर्जा को देख भी सकती है और समझ भी सकती है। यह एक ऐसी कविता है जो बार बार कुचले जाने के ख़िलाफ़ उठ खड़े होने वाली घास को पहचानती है। इस कविता को किसी भी चीज़ के किसी अन्य चीज़ में होने की आकांक्षा नहीं है, वह अपने होने में ही चीज़ों के सुंदर होने को देख सकती है। यह कविता बंद पड़े दरवाज़ो पर साँकल की तरह दस्तक देती है। यह हमारे समय की विडंबनाओं और विद्रूपों के ख़िलाफ़ न केवल प्रतिरोध की बल्कि एक लगातार जूझते व्यक्ति की कविता है। यह कविता सबके जीने के लिए ज़मीन की आकांक्षा की कविता है। इसमें अपनी ज़मीन और अपनी भाषा की गंध है। झूंंब, हूल, कुटुवा, गाडका, बियूल की टहनियां जैसे अनेक स्थानीय संदर्भ हमारी भाषा में कुछ नया जोड़ते हैं। इन कविताओं में हमारे समय के बहुत सारे सवाल, महामारी से उपजे संकट और नफ़रत की राजनीति से बढ़ रही हिंसा, बाज़ारवाद और यूज़ एंड थ्रो की संस्कृति के अनेक चेहरे उजागर होते हैं। ये कविताएं न होने में होने की संभावनाओं को देखने की कविताएं हैं। – राजेश जोशी
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