Bindu Sindhu Ki Oor
Author:
VairamuthuPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Unavailable
भारतीय साहित्य के वर्तमान युग के शलाका-पुरुष कमलेश्वर जी के शब्दों में—‘समकालीन कविता परिदृश्य पर तमिल कवि वैरमुत्तु ने जिस तरह अपने अनुवाद के साथ हिन्दी में उपस्थिति दर्ज की है, उससे साबित होता है कि कविता भाषाओं की सीमा में बँधी नहीं रह सकती। इन कविताओं में वैरमुत्तु अपनी सम्पूर्ण प्रतिभा और कलात्मक प्रखरता के साथ मौजूद हैं। वह शब्दों को ध्वजा की तरह फहराकर कविता नहीं बुनते, वरन् समय को पकड़कर कविता में ही भविष्य का सपना गूँथ देते हैं। वे जीवन में शेष हो चली आस्थाओं की पुनर्रचना करते हैं। उनके शब्दों में संवेदना की छायाएँ झाँकती हैं।...कवि के रचना-संसार में वह सब कुछ है जिसके माध्यम से वह आत्मा की क्षत-विक्षत स्मृतियों में जाकर समय की संवेदना और खुद की सृजनशीलता के मानवीय स्रोतों को खोजता है, तब ही कविता क्लासिकी रंगत के साथ पाठकों को झकझोरने लगती है।’</p>
<p>हिन्दी में विचार-कविताओं के प्रवर्तक तथा स्वप्नदर्शी चिन्तक डॉ. बलदेव वंशी का निरीक्षण है—‘कविताओं में सर्वाधिक मुखर स्वर प्रकृतिपरक कविताओं, प्रकृति-तत्त्वों, प्रकृति-सत्यों, लयों-रंगतों-गतियों एवं विभिन्न बिम्ब-प्रतीकों आदि का है। इसी से कवि की समृद्ध अनुभूतिशीलता, संवेदना, दृष्टिबोध की व्यापकता का परिचय मिलता है और इसी के आधार पर उसके स्वर की प्रामाणिकता भी सिद्ध होती है; क्योंकि प्रकृति अपने आप में एक सत्य है।...निसर्ग (प्रकृति) के साथ ऐसा एकात्म भाव वैरमुत्तु के कवि की ऐसी विरल विशेषता है, जो उन्हें भिन्न एवं महत्त्वपूर्ण बनाती है। युग की बाज़ारवादी, आर्थिक भूमंडलीकरण की अमानवीयता एवं संवेदना-विहीनता के विपरीत वे आत्मिक एवं संवेदनात्मक आग्रहों को लेकर अपनी और भारतीय विश्वदृष्टि की विधेयता सिद्ध कर रहे हैं...‘माटी की गंध’ से भरपूर मस्ती और संघर्ष की साहसिक उत्फुल्लता तथा मज़दूर-ग़रीब-शोषित के प्रति अक्षय आत्मीयता उन्हें बृहत्तर आयामों से जोड़ती है।’</p>
<p>
ISBN: 9788126708222
Pages: 303
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Pakistani Urdu Shayari Vol. 3
- Author Name:
Narendra Nath
- Book Type:

-
Description:
भारत के मुक़ाबले पाकिस्तान में रचनाकारों के सामने कहीं ज़्यादा चुनौतियाँ रही हैं। ‘पाकिस्तानी उर्दू शायरी’ शृंखला के सम्पादक इस तथ्य को रेखांकित करते हुए कहते हैं कि हिन्दुस्तान में जिस विद्रोह को हेडलाइन बनाया जा सकता है, पाकिस्तान में उसी विद्रोह को वर्ग पहेली के गुप्तार्थों की तरह रचना में छिपाया जाता है। इसलिए वहाँ के लेखकों-शायरों ने अपने तर्ज़े-बयाँ को ऐसे तराशा है कि जो कहना था, वह तो कहा ही गया, उससे कविता का मेयार भी उठा।
‘पाकिस्तानी उर्दू शायरी’ शीर्षक यह शृंखला और इसमें शामिल रचनाएँ बताती हैं कि उधर के शायरों ने अपनी राजनीतिक चुनौतियों का सामना करते हुए कैसे अपनी कहन को और ज़्यादा असरदार, ज़्यादा मारक और अचूक बनाया है।
इनमें से अनेक नाम हिन्दी पाठक के लिए नये होंगे, क्योंकि ऐसे लोग कुछ ही हैं जिनकी रचनाएँ हिन्दी लिप्यंतरण में इधर आईं और मक़बूल हुईं। इस शृंखला का उद्देश्य ही दरअसल पाकिस्तान के उन शायरों को हिन्दी समाज तक पहुँचाना है जिन्होंने बहुत अच्छा लिखा है, लेकिन जो अभी तक किसी हिन्दी संकलन में नहीं आ पाए।
यह शृंखला और इसमें शामिल रचनाएँ यह भी बताती हैं कि बँटवारे के बावजूद भारत और पाकिस्तान का आधारभूत ‘ईथॉस’ एक ही है; कितने शे’र, कितनी नज़्में बिना बाधा के अपने बिम्बों और रूपकों के साथ हमारी अपनी कविताओं के साथ आ बैठती हैं। इस खंड में बारह शायरों की ग़ज़लें, नज़्में और फुटकर शे’र शामिल हैं।
Andhere Ke Rang
- Author Name:
Mukund Laath
- Book Type:

-
Description:
मुकुन्द लाठ हमारे मूर्धन्य विचारकों और संगीतवेत्ताओं में से एक हैं। सुखद संयोग यह है कि उन्होंने कविताएँ भी लिखी हैं और वे अपने ढंग के अकेले कवि हैं। विस्मय की बात यह है कि उनकी कविता में संसार की पदार्थमयता और उनकी सहज वैचारिकता में न तो कोई अलगाव है और न ही एक का दूसरे पर कोई बोझ। वे अपने आसपास को जिस सजग संवेदनशीलता और नन्हीं सचाइयों में देख पाते हैं, वह अनोखा गुण है। उनके अवलोकन में सूक्ष्मता है, उनकी अभिव्यक्ति में सफ़ाई है। वे मर्म के कवि हैं, किसी विचार के प्रवक्ता नहीं। उनकी कविता का वितान बड़ा है पर उनमें सहज विनय है, कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं। वे सहज भाव से कह पाते हैं : ‘उडऩा तो/चिडिय़ा से सीख लिया/अब तो आकाश कहाँ पूछता हूँ।’ उनके अलावा हिन्दी में और कवि हैं जो कह सके ‘है इन्हीं पत्तों में कहीं/ढूँढ़ना मत/पंख हूँ, आकाश है।’ रज़ा पुस्तक माला में अपनी आयु के आठवें दशक में लिखी गईं एक कवि की इन कविताओं को हम सादर-सहर्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
—अशोक वाजपेयी
Amrit Manthan
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
‘अमृत मंथन’ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की ओजस्वी कविताओं का संकलन है।
इस पुस्तक में दिनकर जी की कुछ कविताएँ 1945 से 1948 के बीच लिखी गई थीं, जो तत्कालीन परिस्थितियों की दस्तावेज़ हैं तथा राष्ट्रकवि की जनहित के प्रति प्रतिबद्ध मानसिकता को हमारे सामने लाती हैं।
इन कविताओं में जहाँ देश के विराट व्यक्तित्वों के प्रति कवि का श्रद्धा-निवेदन है, वहीं कुछ कविताओं में उत्कट देश-प्रेम की ओजस्वी अभिव्यक्ति है। कुछ कविताएँ देशी एवं विदेशी कवियों की उत्कृष्ट रचनाओं का सरस अनुवाद हैं तो कुछ कविताओं में निसर्ग का सुन्दर चित्रण है।
इन कविताओं की विशेषता है—इनकी प्रांजल, प्रवाहमयी भाषा, उच्चकोटि का छंद-विधान और सहज भाव-सम्प्रेषण।
हिन्दी काव्य के स्वर्ण-युग की यात्रा करने के लिए यह पुस्तक उत्तम साधन है।
Kamal : Sampurna Rachanayen
- Author Name:
Devraj
- Book Type:

- Description: लमाबम कमल आधुनिक काल के मणिपुरी साहित्य की नींव रखनेवाले रचनाकारों में से एक थे। जिसे हम आज मणिपुरी भाषा की मौलिक और समृद्ध रचनाधर्मिता कहते हैं, उसके विकास का मूल स्रोत कमल की कविताएँ हैं। उपन्यास, कहानी और नाटक के क्षेत्र में भी उनकी देन ऐतिहासिक महत्त्व रखती है। अडाङ्ल और चाओबा के साथ मिलकर कमल ने मणिपुरी भाषा की अब तक की श्रेष्ठतम रचनाकार-त्रयी का निर्माण किया। कमल ने मणिपुरी भाषा और साहित्य की निर्धनता दूर करके उसे विश्व की समृद्ध भाषाओं और उनके साहित्य के मध्य गौरवपूर्ण स्थान दिलाने का स्वप्न देखा था। साथ ही वे मणिपुरी साहित्य को उत्कृष्ट मानव-मूल्यों और इतिहास व समाजगत सजगता से जोड़कर विकसित करना चाहते थे। उनका सम्पूर्ण साहित्य इसी अद्भुत स्वप्न को साकार करने की महती साधना का प्रतिफल है। मणिपुर में रहकर वहाँ के साहित्य तथा समाज का अध्ययन करनेवाले हिन्दी के कवि आलोचक डॉ. देवराज ने एल. कमल सिंह की सम्पूर्ण रचनाओं का अनुवाद और सम्पादन किया है। मणिपुर के साहित्य में आधुनिकता के विकास के साथ-साथ, सुदूरपूर्व के इस राज्य की संस्कृति और समाज को समझने की दृष्टि से यह संकलन अत्यन्त उपयोगी है
Sampoorna Kavitayein : Kumar Vikal
- Author Name:
Kumar Vikal
- Book Type:

-
Description:
कुमार विकल राजनीतिक कवि हैं। उनकी कविता पढ़ते हुए पाठकों को स्वाधीनता के बाद की भारतीय राजनीति की कुछ अत्यन्त भयावह वास्तविकताओं और त्रासद स्थितियों की संवेदनशील पहचान मिलती है। उनकी कविताओं में आपातकाल के गहरे आतंक के दिल दहलाने वाले चित्र हैं, नक्सलबाड़ी आन्दोलन के ख़ूँख़्वार दमन की विभीषिका की अभिव्यक्ति है और पंजाब में आतंक के राज से उपजी दहशत की ख़बरें हैं। लेकिन वे राजनीतिक घटनाओं के ब्यौरों पर नहीं, उनके सामाजिक अभिप्राय, जनजीवन पर पड़ने वाले प्रभाव और मनुष्य के लिए उनके अर्थ के बारे में लिखते हैं।
इन कविताओं से गुज़रते हुए यह भी मालूम होता है कि कुमार विकल को हर तरह के छद्म और पाखंड से चिढ़ है; वह चाहे समाज में हो, साहित्य में हो या रचना की भाषा में। इस छद्म को उघाड़ने की वे बार-बार कोशिश करते हैं। उन्हें कविता की ताक़त पर बहुत भरोसा रहा इसलिए उन्होंने नए अनुभवों, नए अर्थों और नए भाषिक रचाव के लिए संघर्ष करनेवाली कविताएँ लिखीं, लेकिन वे अपने समय और समाज में कविता की सीमाएँ भी जानते थे, इसलिए ‘अपनी कविता से बाहर’ ‘कविता से कोई बड़ा हथियार’ गढ़ने की बात भी करते हैं।
कुमार विकल की कविता एक बेचैन मन की कविता है। यह बेचैनी जितनी राजनीतिक है उतनी ही नैतिक भी है। वे एक ओर भारत में फैलते वनतंत्र में साधारण आदमी को लगातार असुरक्षित देखकर बेचैन होते हैं तो दूसरी ओर सुरक्षा की चाहत के शिकार मनुष्य की मरती हुई मनुष्यता भी उन्हें व्याकुल करती है!
उनकी सम्पूर्ण कविताओं की यह प्रस्तुति निश्चय ही कविता-प्रेमी पाठकों के लिए एक उत्तेजक अनुभव सिद्ध होगी।
Phir Kabhi Aana
- Author Name:
Sitakant Mahapatra
- Book Type:

-
Description:
ओड़िया के वरिष्ठ कवि सीताकान्त महापात्र का यह संग्रह मृत्यु के विरुद्ध जीवन की हठ और प्रकृति में निबद्ध जीवन की अलग-अलग सम्भावनाओं का आख्यान है। जीवन के मौन क्षणों को भाषा में अंकित करते हुए वे इन कविताओं में जिस तरह जिजीविषा की नि:शब्द बोली को स्वर देते हैं वह अद्भुत है। चाहे यमराज से दोस्ताना बातें करते हुए उन्हें फिर कभी आने के लिए कहना हो या पृथिवीवासी वृक्षविरोधी यमदूतों को सम्बोधित वृक्ष-संहिता की कविताओं में बिंधा वृक्षालाप, और संग्रह की अन्य कविताएँ, सीताकान्त जी मनुष्य और प्रकृति से बने समवेत लोक की उत्तरजीविता की कामना को मंत्र की तरह जपते हैं।
“कल नहीं रहूँगा मैं/कुआँ-कुआँ का स्वर सुनाई दे रहा होगा/नन्ही मुस्कान होगी उसकी/फूल होंगे, मधुमक्खियाँ होंगी/ईश्वर उस बच्चे की मुस्कान देख तब भी आशान्वित होंगे।”
मरण के ऊपर जीवन की सम्भावनाओं को धन की तरह संचित करती ये पंक्तियाँ एक बड़े कवि की ओर से अपने आगे आनेवाले समय को शुभ आमंत्रण की तरह प्रकट होती हैं। एक अन्य कविता में वे कहते हैं :
“कितनी ख़ुशी से/इन्तिज़ार करती है लॉन की घास/दो नन्हे पैरों को चूमने का/फूलों के गमले गिर जाने का/तरह-तरह के रंग पहचाने जाने के लिए/रंग-बिरंगी दवा की गोलियाँ/पन्नी की क़ैद से मुक्त हो बाहर आने को।”
लेकिन धरती के जीवन को किसी परालोक का उपहार वे नहीं मानते। मनुष्य की संघर्ष-शक्ति और अपनी दुनिया आप सिरजने, बचाने और बढ़ाने की उद्दाम इच्छा को वे दैवी शक्ति से स्वतंत्र एक सत्ता के रूप में रेखांकित करते हैं, और जिस तरह यम को वापस जाने के लिए कहते हैं उसी तरह देवताओं को भी सुना देते हैं कि हमारे उद्धार के लिए नहीं, आप अवतार लेकर आते हैं, तो अपनी किसी परेशानी के कारण आते होंगे।
“स्वर्ग की चकाचौंध से चौंधियाकर/दीर्घ तनु, दिव्य रूप देवता गण/उससे अधीर हो भाग आते हैं हमारे बीच/धरातल के अँधेरे में/...दो, उन्हें अपना साथी बनने दो।”
Saanjh Ka Neela Kivaar
- Author Name:
Bhavana Shekhar
- Book Type:

-
Description:
भारतीय कविता विशेषकर हिन्दी कविता में अभी का समय स्त्री-नवजागरण का समय है। भक्तिकाल के बाद इतनी बड़ी संख्या में इतनी तेजोमय स्त्री कवियों का आविर्भाव हुआ है। भावना शेखर इसी स्त्री-काव्य का एक नवीनतम शिखर हैं। अन्तर केवल यह है कि भावना शेखर की कविताएँ रूढ़ या प्रचलित अर्थ में स्त्रीवादी कविताएँ नहीं हैं। ये बस उतनी ही और वैसी ही जाग्रत कविताएँ हैं जितनी कि किसी भी कविमात्र द्वारा सृजित हो सकती हैं—स्त्री वा पुरुष। क्योंकि ये मनुष्य जाति बल्कि सम्पूर्ण जीव-जगत और ब्रह्मांड की कविताएँ हैं। ‘बिछुड़न’ शीर्षक कविता इस जगत व्याप्ति का अद्भुत उदाहरण है। ‘हृदय की भूमि में’, ‘गुरुत्वाकर्षण’ की शक्ति को पहचानती भावना शेखर की कविताओं के लिए कुछ भी अस्पृश्य नहीं है। बचपन की स्मृतियों से लेकर ऐन्द्रिक अनुभवों और गहन लालसा से भरी ये कविताएँ सहसा हमें बेचैन कर देती हैं। ‘मेरी नसों में कुछ जी उठा है/मालूम होता है/दीवार के उस पार गुज़री हो तुम अभी-अभी’—आज केवल भावना शेखर ही ऐसी पंक्ति रच सकती हैं। और इतना नया और सूक्ष्म विवरण भी—‘पत्तों से छनती धूप बदरंग है कलई उतरे बर्तनों सी’, साथ-साथ भावना ने ऐसी कविताएँ भी लिखी हैं जो मूलत: स्त्री-अनुभव की कविताएँ हैं जैसे ‘सत्रहवीं दहलीज़’ या ‘ऋतुस्नान के बाद’। लेकिन यहाँ कोई तिक्तता या द्वेष नहीं है, केवल एक पृथक् जीवनचर्या है और यही इस कविता की प्रतिरोध-भूमि है। ‘बित्ता-भर ज़मीन’ की तलाश पूरे संग्रह की प्रेरणा-शक्ति है, फिर भी यहाँ कुछ भी सपाट या अनगढ़ नहीं है। ‘यह अभिधा नहीं व्यंजना है’ कवि का कहना है जो सच तथा प्रामाणिक है तथा ‘स्त्रीलिंग’ का इन्द्रधनुषी आक्षितिज प्रसार। इस संग्रह की एक अनूठी और मार्मिक कविता है ‘स्त्रीलिंग।’ इन कविताओं को पढ़ना एक नए अनुभव-संसार, एक नए शिखर की चमक और प्राणवायु को आत्मसात् करना है। मैं केवल एक कविता उद्धृत कर रहा हूँ—
“चूल्हे की राख में बुझते अंगारे
हथेली पर सूखती क़तरा-भर नमी
इकलौते पैर पर लँगड़ाती मैना
और पुलिया के पारवाली बंजर ज़मीं
कभी तो सुलगेगी बुझती चिंगारी
चुल्लू-भर तरावट मुट्ठी में होगी
उस ओर होगी परिन्दों की आहट
मेरी मुँडेर भी गौरैया फुदकेगी”
—अरुण कमल
Danuphak Phool Jakan
- Author Name:
Vidyanand Jha
- Book Type:

- Description: देसक इतिहास आइ अपन निर्दयतम दौर सँ गुजरि रहल अछि जखन भाषा मे अपन अन्त:करणक रक्षा क' सकब एक कठिन चुनौती बनल अछि। मैथिलीक बहुलांश कवि-समुदाय केँ हमरा लोकनि आइ जत' रौरव के उत्सव मनबैत देखबा लेल अभिशप्त छी, विद्यानंद ने तँ अपन जनानुभव सँ एकात भेला अछि आ ने अभिव्यक्तिक जरब उठेबा मे कनियो थकमकाइत छथि। देसवासीक नियति केँ प्रभावित केनिहार हरेक प्रपंच पर हुनका लग अपन कविता छनि। नाना प्रकारक मानवीय आ प्राकृतिक उत्पातक बीच ओ साधारण जन पर पड़ैत एकर प्रभावे केँ उचित-अनुचितक दिशानिर्देशक मानैत रहला अछि। स्मृति सेहो कोना उपस्थित होइत छैक, से हम सब एत' बारंबार देखि सकै छी। हुनक काव्यानुभवक अनुरूपे हुनकर ई संग्रह सेहो विविधता आ व्यापकता सँ भरल अछि। समकालीन कविताक लेल अवश्ये ई एक महत्त्वपूर्ण बात थिक जे हमर ई कवि अपन हरेक नव संग्रह मे पछिला संग्रह सँ आगू बढ़ल देखाइत छथि। हुनकर पाठक लोकनि से एहू संग्रह मे देखि सकता। —तारानंद वियोगी # विद्यानंदक कविता मे आत्म निरीक्षणक एक टा अद्भुत पद्धति छनि। अस्तित्ववादक आधुनिक परम्पराक देशज आ लौकिक सहज विमर्श सँ जेना बियाह होइत हो। जतबे भावोत्तेजित ततबे निरीह, शांत, आ प्रतीतिकर। खेतिहर, गामक लोक, ऑरवेल, अम्बेडकर आ महात्मा गांधी—एहन अनेक पात्र हिनक काव्य मे सजीव भ'क' संवाद करैत अछि। कवि केँ धन्यवाद जे ओ अपन काव्य रचना मे सतत सत्यपरक, तथ्यपरक आ साहित्यिक सौन्दर्यपरक संतुलनक संग समुचित संसार गढ़ैत रहलाह अछि। —देव नाथ पाठक
Phir Meri Yaad
- Author Name:
Kumar Vishwas
- Rating:
- Book Type:

- Description: ‘कोई दीवाना कहता है’ काव्य-संग्रह के प्रकाशन के 12 वर्षों बाद प्रकाशित हो रहा ‘फिर मेरी याद’ कुमार विश्वास का तीसरा काव्य-संग्रह है। इस संग्रह में गीत, कविता, मुक्तक, क़ता, आज़ाद अशआर— सबकी बहार है। “कुमार विश्वास के गीत ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ के सांस्कृतिक दर्शन की काव्यगत अनिवार्यता का प्रतिपादन करते हैं। कुमार के गीतों में भावनाओं का जैसा सहज, कुंठाहीन प्रवाह है, कल्पनाओं का जैसा अभीष्ट वैचारिक विस्तार है तथा इस सामंजस्य के सृजन हेतु जैसा अद्भुत शिल्प व शब्दकोष है, वह उनके कवि के भविष्य के विषय में एक सुखद आश्वस्ति प्रदान करता है।” —डॉ. धर्मवीर भारती “डॉ. कुमार विश्वास उम्र के लिहाज़ से नए लेकिन काव्य-दृष्टि से ख़ूबसूरत कवि हैं। उनके होने से मंच की रौनक बढ़ जाती है। वह सुन्दर आवाज़, निराले अन्दाज़ और ऊँची परवाज़ के गीतकार, ग़ज़लकार और मंच पर क़हक़हे उगाते शब्दकार हैं। कविता के साथ उनके कविता सुनाने का ढंग भी श्रोताओं को नई दुनिया में ले जाता है। गोपालदास नीरज के बाद अगर कोई कवि, मंच की कसौटी पर खरा लगता है, तो वो नाम कुमार विश्वास के अलावा कोई दूसरा नहीं हो सकता है.” —निदा फ़ाज़ली “डॉ. कुमार विश्वास हमारे समय के ऐसे सामर्थ्यवान गीतकार हैं, जिन्हें भविष्य बड़े गर्व और गौरव से गुनगुनाएगा।” —गोपालदास ‘नीरज’
Rekhte Ke Beej Aur Anya Kavitayein
- Author Name:
Krishna Kalpit
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी कविता के परिदृश्य में कृष्ण कल्पित की जगह एकदम अलग और विशिष्ट है। बहैसियत कवि उन्हें जितनी चिन्ता अपने समय और समाज की है, उतने ही गम्भीर वे नागरिक परिसर में कविता के स्थान, उसकी भूमिका और व्यक्तित्व को लेकर भी बराबर रहते हैं। भाषा और भाषिक साहस के धनी ऐसे कम ही रचनाकार आज हमारे सामने हैं। बकौल देवी प्रसाद मिश्र, ‘दुस्साहस, असहमति, आवेश, अन्वेषण, पुकार, आह, ताक़त का विरोध, शिल्प-वैविध्य, नैतिक जासूसी और बाजदफ़ा पॉलिटिकली इनकरेक्ट—इस सबने मिलकर कृष्ण कल्पित को हमारे समय का सबसे विकट काव्य-व्यक्तित्व बना दिया है।’
इस संग्रह में शामिल कविता ‘रेख़्ते के बीज’, अगर अन्य कविताओं को फ़िलहाल न भी देखें, तो अकेली ही उनके सामर्थ्य को रेखांकित करने के लिए काफ़ी है। शिव किशोर तिवारी के अनुसार, ‘आगामी समयों में 'रेख़्ते के बीज’ को उत्तर-आधुनिकता की प्रतिनिधि कविता के रूप में उद्धृत किया जाएगा। शंभु गुप्त का कहना है कि ‘उनके अलावा अन्य कोई कवि इतिहास को इतने मौजूँ तरीक़े से पुनराख्यायित नहीं कर पाता जैसा उन्होंने सम्भव किया है।’ स्वीकृति और अस्वीकृति की पतली रेखा पर चलते हुए वे अकसर अपनी मेधा और निर्भीकता से समकालीन साहित्य-जगत को विचलित भी करते हैं, लेकिन उनकी कविता हर आपत्ति से बड़ी ही सिद्ध होती है। युवा कवि अविनाश मिश्र के शब्दों में, ‘एक योग्य कवि की उपेक्षा उसे पराक्रमी बनाती चलती है। कृष्ण कल्पित ने शिल्प से आक्रान्त और शब्द से आडम्बर किए बग़ैर हिन्दी कविता में एक असन्तुलन पैदा किया है। उनकी कविता पूरब की कविता की नई प्रस्तावना है।'
Yun Bhi Kabhi-Kabhi
- Author Name:
Mamta Tiwari
- Book Type:

-
Description:
जब ज़िन्दगी की रोशनी ने अचानक काला लिबास पहन लिया और अन्धकार छा गया तब कविता ने मुझे सिखाया कि उस मुक़ाम पर जहाँ दूसरों की बुराइयों की चोट से रोना नहीं आता, बल्कि लोगों की अच्छाइयाँ देख आँखें भर आती हैं, बस तभी असली कविता की शुरुआत होती है, और आज आँखों में कुछ नमी सी है...।
Shoknach
- Author Name:
R. Chetankranti
- Book Type:

-
Description:
महत्त्वपूर्ण कवि आर. चेतनक्रांति का यह पहला संग्रह जवाबदेह भाषा और फ़ॉर्म के साथ-साथ हिन्दी कविता के समकालीन परिदृश्य में नए मुहावरे ईज़ाद करने के कारण अपनी मौलिक पहचान बनाता है।
चेतन की भाषा में एक ख़ास तरह का व्यंग्य है जो विडम्बनाओं एवं विद्रूपताओं की खिल्ली उड़ाता चलता है। जो लोग कविता (साहित्य) को मनोरंजन की चीज़ समझते हैं, उन्हें चेतन की कविताएँ निराश करेंगी क्योंकि ये कविताएँ पाठकों का टाइम पास नहीं करतीं, बल्कि रचनात्मक उत्तेजना और बेचैनी से भर देती हैं।
अपने कठिन समय की जटिल मानव-स्थितियों की ज़रूरी पड़ताल करती ये कविताएँ उन अवरोधक शक्तियों की भी शिनाख़्त करती हैं जो सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जीवन की सहजता को अपने ढंग से नियंत्रित करना चाहती हैं। कवि के गहरे सरोकारों के दायरे में रिक्शेवाले, दैनिक वेतनभोगी, भूखे बच्चे एवं भूकम्प पीड़ित हैं तो दूसरी तरफ़ ‘सीलमपुर की लड़कियाँ’ भी हैं जिन्होंने अपनी हज़ारसाला पुरानी आत्माओं को उतारकर चुपके से एक नया सपना देखने का जोखिम उठाया है।
चेतन कविता और औसत राजमार्ग से अलग इस कठिन समय में अपनी रचनात्मक बेचैनी के साथ एक अलग और नया रास्ता बनाते हैं जो क़तार के आख़िरी आदमी के सपनों तक पहुँचता है और उसकी संवेदना से स्वयं को जोड़ता है। लेकिन चेतन अनुभूतियों के ही नहीं, दृढ़ विचारों और स्पष्ट ‘विज़न’ के कवि हैं।
Herwa
- Author Name:
Sunita Jain
- Book Type:

- Description: Poems
Sugandh Ki Awaaz Me
- Author Name:
Ashok Shah
- Book Type:

- Description: अशोक शाह के अनुभव का संसार बहुत विस्तृत है और उनमें बहुत कुछ को अपनी कविता में ले आने की आकुलता और बेचैनी है। आत्मिक सवालों से जूझने के साथ ही अनेक सामाजिक, आर्थिक, विकास की नयी धारणाओं, स्त्री, पर्यावरण, समय, ईश्वर और दर्शन जैसे अनेक विषयों पर नये तरह से सोचने और कहने की बेचैनी इन कविताओं में लक्ष्य की जा सकती है। वो यादों में जीने वाले, रीति-रिवाजों की बेडिय़ों में जकड़े रहने वाले, अतीत की रखवाली करते रहने वाले और यादों में ही दफ्न हो जाने वाले व्यक्ति नहीं होना चाहते। इस संग्रह में एक लम्बी कविता है—समय और मेरी कहानी। यह कविता अपने आपको जानने की कोशिश से शुरू होकर मानव जीवन की विकास यात्रा के अनेक सवालों से जूझती कविता है। अमीबा जैसे एककोशीय जीव से बहुकोशीय जीवों से होती हुई मनुष्य के धरती पर आने की यह एक लम्बी कथा है। मनुष्य द्वारा आग को खोजने और उसके साथ ही प्रकृति और स्वयं उसकी ही देह में होने वाले परिवर्तनों के अनेकानेक संदर्भ यहाँ हैं। यह कविता मनुष्य की पूरी जीवन यात्रा पर सवाल खड़े करती है। यहाँ तक कि औद्योगिक क्रांति पर भी उसका संदेह है कि वह उसकी दूसरी बड़ी बेवकूफी हो सकती है। यह जि़न्दगी जो आदमी बनकर ठहर गयी है, यह आगे कौन से रूप धरेगी? उसे पता नहीं है, लेकिन वह इस बात के प्रति पूरी तरह आश्वस्त है कि कुछ भी अमिट नहीं है। जीवन निरन्तर परिवर्तनशील है। अशोक शाह की नज़र जीवन की विडम्बनाओं को कई स्तरों पर छूती है। यहाँ तक कि उसे पता है कि ईश्वर मात्र हमारे स्वार्थ, डर और महत्वाकांक्षाओं की प्रतिमूर्ति भर है। अशोक शाह की इन पंक्तियों से इन कविताओं के मिजाज को समझने का कोई इशारा शायद मिल सकता है : मैं ही दुनिया का पहला और आखिरी पाठ हूँ अभी-अभी पढ़ा है और बयां कुछ भी नहीं। —राजेश जोश
Mujhmein Kuchh Hai Jo Aaina Sa Hai
- Author Name:
Dhruv Gupt
- Book Type:

-
Description:
‘मुझमें कुछ है जो आईना सा है’ ध्रुव गुप्त की ग़ज़लों-नज़्मों का वह संग्रह है जिसमें रोशनी का अँधेरा और अँधेरे की रोशनी है। और यही शायर की वह हासिलात हैं जिनके सहारे नहीं, ताक़त से उसने अपनी शायरी के मिज़ाज और फ़न को एरक जदीद मुकाम दिया है।
ध्रुव गुप्त की शायरी की एक बड़ी ताक़त है—लोक। लोक गाँव का, नगर का। शायर के इस लोक में सम्बन्ध-सरोकार, दुःख-आग और आवारगी तथा दूब-भर उम्मीद के विभिन्न रंग-रूप और आयामों के अन्दाज़े-बयाँ सुर में सृजन-सा नज़र आते हैं। लफ़्ज़ों की आँखों और ज़ुबाँ से पता चलता है कि लोग यहाँ अपने ख़्वाबों के लिए जीते भी हैं, मरते भी हैं और मारे भी जाते हैं। इसलिए यहाँ ख़ामोशियाँ भी गाई जाती हैं।
संग्रह में ग़ज़लें हों या नज़्म—स्रोतों का एक बड़ा हिस्सा, अपने कथ्य-प्रकृति के इन्तख़ाब में बचपन और माँ का है। समाज और संस्कृति का है, जो तसव्वुर और हक़ीक़त की केन्द्रीयता में वजूद और आफ़ाक की निर्मिति के लिए अहम भूमिका निभाते हैं। घुटन और टूटन के मद्देनज़र शायर का यह गहरा इन्द्रिय-बोध ही है कि अपनी दुनिया के लिए इस उत्तर-आधुनिक दुनिया में वह, जो दिख सके-देख सके, उसे आदमी की नज़र से ही नहीं बल्कि उस चिड़िया की नज़र से भी देखता है—जिसका एक घर के एक कमरे में अपना एक घर था, और जिसमें एक दिन सामान इतने रखे गए कि घर में उसका घर रहा ही नहीं और वह भी एक दिन एक घर के एक बन्द कमरे में मर गई!
ज्यूँ मुन्दरिज है कि शायरी चाहे उर्दू की हो या हिन्दी की लफ़्ज़ों के हक़्काक बनने से कोई शायर नहीं हो जाता। शायर तो वही होता है जो अपने ज़ख़्मों की परतों में जीने के लिए रोज़ मरता रहता हो और यहाँ भी उसे खरोंचते हुए गुज़रता हो वक़्त! ध्रुव गुप्त के इस संग्रह के किसी शेर, किसी अच्छर, किसी मिसरे से ही सही, एहसास और अनुभव की यह तासीर अँधेरे की रोशनी और रोशनी के अँधेरे में एक परिन्दे के उड़ान भरने-सा प्रतीत होती है और यह प्रतीति ही ‘मुझमें कुछ है जो आईना सा है’ की प्रतीति भी है!
Parchhain ka Sach
- Author Name:
Narmada Prasad Upadhyaya
- Book Type:

- Description: मन से परछाईं दूर नहीं हो पाती, लेकिन जब जीवन की देहलीज पर साँझ दस्तक देती है, तब जीवन का अर्थ समझ आने लगता है। अपनी जिंदगी की शाम में कैफ भोपाली जीवन और उससे जुड़ी परछाईं इन दोनों का अर्थ इन पंक्तियों में समझा गए हैं— जिंदगी शायद इसी का नाम है, दूरियाँ, मजबूरियाँ, तन्हाइयाँ। क्या यही होती है शामे इंतजार, आहटें, घबराहटें, परछाइयाँ। जीवन की साँझ में ये परछाइयाँ हमें अपने अस्तित्व का स्मरण करा देती हैं। नंदकिशोर कहते हैं— सूरज ढला तो कद से ऊँचे हो गए साये, कभी पैरों से रौंदी थीं यही परछाइयाँ हमने। सोचता हूँ, ये परछाइयाँ साँझ होते-होते क्यों लंबी होने लगती हैं? इसलिए कि ये ढल जाने की बाट जोहती हैं। इनके रिश्ते ऊषा से नहीं होते, भोर से नहीं होते, सुबह के आँचल में छुपी आशाओं से नहीं होते। इनके रिश्ते उस रात से होते हैं, जिसकी प्रकृति से परछाईं की प्रकृति मिलती है। दोनों स्याह होते हैं, दोनों भटकाते हैं और दोनों उजास की पराजय में अपनी जय के उत्सव रचते हैं। रात का उत्सव अँधेरा है और परछाईं का पर्व वह ढलती साँझ है, जिसके आगमन पर उजास की धड़कनें मंद होने लगती हैं। परछाईं छलना है। उसकी परिणति अंधकार है। वह अपना उत्तराधिकार रात को सौंपती है। इसलिए भले परछाईं कुछ देर हमारे साथ-साथ चलकर हमें अपने साथ होने का आभास कराए, वह आश्वस्ति नहीं है, विश्वास नहीं है। —इसी संग्रह से
Ghazale Akhil ki
- Author Name:
Akhilesh Nigam 'Akhil'
- Book Type:

-
Description:
ग़ज़ल की धारा गंगाजल की तरह होती है जो उसमें डुबकी लगाने वाले को पूर्णतया भाव-विभोर कर देती है, दिलो-दिमाग को तरो-ताज़गी देती है तथा नकारात्मक विचारों को दूर कर उसे सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है।
यह ग़ज़ल कृति ग़ज़ल सम्बन्धी तमाम विशिष्टताओं से अभिमंडित है। ग़ज़लों में कहीं प्रेम व सौन्दर्य की सघन अनुभूतियाँ हैं तो कहीं बनते-बिगड़ते नए समाज की क्रूरता आक्रामकता, अवसरवादिता, बाज़ारवाद व ढेर सारी असंगतियाँ हैं। ग़ज़लों में प्रतिवाद के प्रखर स्वर विद्यमान हैं। जो ग़ज़लें सामाजिक बिडम्बनाओं में डूबी हैं उनमें प्रस्तुत तीक्षता एक विशिष्ट मिज़ाज को प्रकट करती है। ऐसी ग़ज़लों की भाव भूमि निराली ही नहीं प्रभावोत्पादी भी है। ग़ज़लों में भाषा की सादगी के साथ-साथ उनमें अर्थ की गहराई भी है। ग़ज़लों में सहज अभिव्यक्ति पर बल दिया गया है। भले ही उसमें अन्य भाषाई शब्दावली प्रयुक्त जाए।
ग़ज़लों के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने की पुरजोर कोशिश की गयी है। सर्व धर्म समभाव, नशा मुक्त समाज की स्थापना, कन्या भ्रूण हत्या का विरोध, पर्यावरण प्रदूषण के विरुद्ध अभियान, मानवता के सन्देश के साथ-साथ उत्साहपूर्वक जीवन जीने की बात ग़ज़लों में विद्यमान है।
मीरा याज्ञिक की डायरी
Media Monthon
- Author Name:
Dr. Mukesh Kumar
- Book Type:

- Description: Book
Is Yatra Mein
- Author Name:
Leeladhar Jagudi
- Book Type:

-
Description:
‘‘लीलाधर जगूड़ी ने अपने दूसरे संग्रह द्वारा हिन्दी कविता में अपनी एक अलग पहचान बना ली है। यह एक बड़ी बात है। इन कविताओं में जीवन को उसकी समग्रता में पकड़ने की कोशिश है जो इधर के ख्यातिप्राप्त कवि भी नहीं कर पा रहे हैं। या तो वे अपनी भीतरी दुनिया में रमे रहते हैं या बाहरी दुनिया में भटकते रहते हैं। जगूड़ी ने दोनों छोरों को पकड़ा है, साधने की कोशिश की है, किसी एक का निषेध नहीं किया है। दोनों दुनियाओं को जोड़ने का प्रयास उनकी इस संग्रह की कविताओं में अक्सर दीखता है। इससे कवि इनसान की तरह आत्मीय बनता है, पैग़म्बर या क्रान्तिकारी की तरह आस्था और आतंक नहीं जगाता। इस तरह उनका रास्ता धूमिल से अधिक सही है। जगूड़ी की इस यात्रा में अन्तः और बाह्य यात्राओं का विलय है। सच्चे कवि के लिए ये दोनों यात्राएँ अलग नहीं होतीं, केवल उन पर आग्रह घटता-बढ़ता रहता है। अपने अनुभूतिलोक के कारण, प्रतिबद्धता के नाम पर ‘रूपवादी’ और ‘राजनीतिवादी’ उसे एक का होकर रखना चाहते हैं और प्रचारित करते हैं कि दूसरा संसार झूठा है। वास्तविक प्रतिबद्धता अनुभूति की ही प्रतिबद्धता है जिसे कवि निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में प्राप्त करता है और उससे बचता नहीं, रचता है।
जगूड़ी की दूसरी विशेषता इन दोनों दुनियाओं को जोड़ने का शिल्प है और तीसरा उनका बड़बोला न होना है। शिल्प के क्षेत्र में उनके बिम्ब फिसलते हुए प्रकृति से इनसान की ओर, इनसान से प्रकृति की ओर आते-जाते हैं। इस यात्रा में कहीं एक जगह रम नहीं जाते।
पेड़ के प्रतीक से जितना अधिक काम उन्होंने लिया है उतना बहुत कम नए कवियों ने लिया है। भाषा उनकी बोलचाल की, सहज है पर उसका प्रयोग वह एक असहज तेवर के साथ करते हैं, जिसकी ज़रूरत उनके जैसे कवियों को नहीं होनी चाहिए। भाषा का आप किसी आग्रह के साथ प्रयोग कर रहे हैं यह पाठक को बता देना कवि की अपनी ताक़त कम कर लेना है। कहीं-कहीं कविता के पूरे विन्यास में न खपने और चौंकाने वाले शब्दों का प्रयोग उन्होंने किया है जो अब उन्हें छोड़ देना चाहिए। कविता के सम्पूर्ण आकर्षण को किसी एक भड़कीले, असहनशील शब्द की ओर नहीं फेरना चाहिए।
लीलाधर जगूड़ी का यह संग्रह ध्यान से पढ़ा जाना चाहिए।’’
—सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(दिनमान, 13 मई, 1975)
Aankhein
- Author Name:
Sara Shagufta
- Book Type:

-
Description:
पाकिस्तान में उर्दू की शायरात शायरी के मैदान में शायरों से कहीं आगे निकल गई हैं, जिसकी मिसाल दुनिया भर में किसी देशकाल में नहीं मिलेगी। उन शायरात में जो पोस्ट-मॉडर्न कहलाती हैं, उनमें सारा शगुफ़्ता, अज़रा अब्बास, किश्वर नाहीद, नसरीन अंजुम भट्टी, अनूपा, तनवीर अंजुम और शाइस्ता हबीब के नाम ज़्यादा नुमायाँ हैं। लेकिन सारा शगुफ़्ता इनमें सब से ऊपर हैं। ‘सुपर पोएटेस’ या ‘क्वीन ऑफ़ पोएटिक्स’ के तौर पर वह चमत्कार से कम नहीं। ...पढ़ने वाले मेरी राय से इत्तिफ़ाक़ करेंगे कि इतनी आला शायरी पश्चिम में भी नहीं हो रही। यह शायरी हालाँकि आज की पोस्ट-मॉडर्न रिवायत की तरह सुगठित नहीं लेकिन असर-अंगेज़ी में अपना जवाब नहीं रखती, और आला सतह की शायरी को भी कहीं पीछे छोड़ जाती है।
—मुबारक अहमद, आँखें (उर्दू) के फ़्लैप से
सारा जिस तरह की ज़िन्दगी गुज़ारती थी, ज़हनी सतह पर ख़ुद भी उसे पसंद नहीं करती थी। इसीलिए हमेशा अपराध-भाव से भरी रहती थी। उसकी शायरी में इसी अपराध-भाव की झलक नज़र आती है। ऐसी ज़िन्दगी को वह ख़ुद से चिमटाये हुए चलती थी... एक नज़्म में वह कहती है : मुझे रोटी दो, और फिर गाली दो।
—अतिया दाऊद, ‘सारा मेरी दोस्त’ से
...सारा शगुफ़्ता के नाम और उसकी शायरी को दूसरे समकालीन शायरों और उनकी रचनाओं के साथ ब्रैकेट नहीं किया जा सकता। यह तो ज़रूर है कि उसने ज़्यादातर नज़्में नस्री नज़्म के रूप में लिखीं लेकिन उसकी नस्री शायरी पिछले तीन दशकों (1960 के बाद) से अब तक की नस्री शायरी से बिलकुल अलग नज़र आती है। उसकी शब्दावली की बनावट बेमिसाल है। हम उसकी शायरी की विषय-वस्तु पर बात करें तो उसकी आँखें सब से अहम समयकाल—चरम-जीवन से चरम-मृत्यु तक फैली है। कम से कम भारतीय उपमहाद्वीप में सारा शगुफ़्ता के सिवा कोई ऐसी औरत नज़र नहीं आती जिसने शायरी और अदब के माध्यम से इस इन्तहा पर पहुँच कर सच—बल्कि नंगा सच—बोला हो।
—अहमद हमीश, मशहूर शायर और ‘आँखें’ (उर्दू) के प्रकाशक
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...