Ramlila : Parampara Aur Shailiya
Author:
Induja AwasthiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 636
₹
795
Unavailable
हिन्दी-भाषी क्षेत्र की सबसे प्राचीन और समृद्ध नाट्य परम्परा–रामलीला–की सर्वांगीण झाँकी पहली बार इस पुस्तक में पाठकों को मिलेगी। रामलीला की ऐतिहासिक भूमिका, सुसंस्कृत और मध्ययुगीन नाट्य परम्परा से उसका सम्बन्ध, नाटकीय संवादों के स्रोत, सामाजिक, सांस्कृतिक पुस्तक, प्रदर्शन और अभिनय के व्यवहार, क्षेत्रीय शैलियाँ, रामलीला की रंगमंचीय परम्परा–सभी पक्षों का गंभीर विवेचन इस पुस्तक की विशेषता है। रामचरितमानस का गहरा प्रभाव रामनगर, वाराणसी की विशिष्ट रामलीला शैली पर है। इस पुस्तक में नितान्त नयी सामग्री प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत की गई है। एक अध्याय में रामकथा पर आधारित देश के विभिन्न भागों में प्रचलित पारम्परिक नाट्य-रूपों की चर्चा रामलीला की परम्परा को अखिल भारतीय सन्दर्भ प्रदान करती है। लेखिका ने एक ओर तो स्थान-स्थान के रामलीला प्रदर्शन देखकर तथ्य एकत्र किये और दूसरी ओर अपने चार दशकों के गहरे और व्यावहारिक रंगमंचीय अनुभव के आधार पर इस विवेचन को ऐसा रंग-बोध दिया है जो हिन्दी के नाट्य-अनुसन्धान में सर्वथा नया है। अन्तिम परिशिष्ट में दक्षिण एशियाई देशों की नृत्यनाट्य और रूपांकन कलाओं में रामायण के गहरे प्रभाव का विवेचन पुस्तक की उपादेयता को बढ़ा देता है।
ISBN: 9788171795840
Pages: 279
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Kunal
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- Description: कुसुमा-सलहेस आ अन्य छह गोट नाटक लगभग पैंतालीस वर्ष सँ निर्देशक रूप मे आ तीस वर्ष सँ नाट्यकार रूप मे मैथिली रंगमंच सँ जुड़ल कुणाल एक टा प्रयोगधर्मी नाटककार रूप मे जानल-मानल नाम छथि। हिनक अनेक नाटकक अनेक सराहनीय प्रदर्शन भेल अछि। मुदा पुस्तकाकार मैथिली मे हिनक पहिल नाट्य-पुस्तक यैह छनि, जखन कि ओ सत्तरि वर्षक भेलाह अछि। एहि पुस्तक मे कुणालक सात गोट पूर्णकालिक मौलिक नाटक संग्रहित अछि। पहिल नाटक 'चालीस चोर आ गोनू झा उर्फ ज्ञान झाक खिस्सा' अछि जे 'भंगिमा' मे छपल छल, बाकी छओ गोट नाटक 'विदापत', 'कुसुमा-सलहेस', 'प्रेम-प्रतिज्ञा उर्फ श्रुवावतीक जय', 'विश्वासक शक्ति उर्फ सुकन्याक विवाह', 'प्रेमक विस्तार उर्फ श्वेताक आविष्कार' आ 'प्रेमक परीक्षा उर्फ सुप्रभा आ अष्टावक्र' नाटक 'अंतिका' मे 2003 सँ 2014क बीच छपल। '...उर्फ ज्ञान झाक खिस्सा' मे अपना ठाम प्रचलित गोनू झाक खिस्साक रचनात्मक उपयोग करैत नाट्यकार अतीतक कथा कहैतो वर्तमान मे छथि। 'विदापत' नाटक कुलीन समाज सँ अलग साधारण लोक-मानस मे कवि विद्यापतिक पहिचान आ महत्त्व केँ प्रभावी ढंग सँ रखैत अछि। 'कुसुमा-सलहेस' दलित समाजक एक टा सर्व-स्वीकृत योद्धा नायकक वीरताक संग-संग प्रेमक अद्भुत आख्यान अछि, जकर ई नाट्य-रचना हरदम मन रहैवला अछि। शेष चारि गोट सुखांत नाटक पौराणिक आख्यान पर आधारित अछि, मुदा ई चारो स्त्रीक छवि आ वैचारिक आदर्शक जे रूप प्रदर्शित करैत अछि ओ एकरा समकालीन बनबैत अछि। सं —गौरीनाथ
Greece Ke Trasad Natak
- Author Name:
Kamal Naseem
- Book Type:

- Description: पाँचवीं शताब्दी ई.पू. ग्रीस के 31 क्लासिकल त्रासद नाटकों का संक्षिप्त हिन्दी कथा-रूपान्तरण केवल उन रचनाओं का संक्षिप्त रूपान्तर नहीं, ये छोटी-छोटी खिड़कियाँ और झरोखे हैं जो आपको आज से दो हज़ार पाँच सौ वर्ष पहले की ग्रीक सभ्यता और संस्कृति के ऐसे भव्य संसार में ले जाएँगे, जहाँ देश और काल की सीमाएँ अपने आप ही तिरोहित हो जाती हैं। कास्ट्यूम और मुखौटे अपनी सादगी और रंगीनी में एक ऐसे ‘लार्जर दैन लाइफ़’ पात्रों का संसार रच देते हैं, जहाँ बिना किसी दृश्य और श्रव्य तकनीक के वायुमंडल में बहती आवाज़ें आपके अस्तित्व को अभिभूत कर लेती हैं...। आप सम्मोहित से आगे बढ़ते जाते हैं...एक-एक कर वितान खुलते जाते हैं...और आप देखते हैं ग्रीक महानायकों की बृहद् कर्मभूमि, आकाश को छूती महत्त्वाकांक्षाएँ, मन को छूती करुणा; दिव्य तेज और साहस के कारनामे, दैन्य की पराकाष्ठा; युद्ध का भयावह रक्तपात और नरसंहार, माँओं, बहनों और दासियों का दिल दहलानेवाला चीत्कार; अनैतिकता के गर्हित कर्म और कर्तव्य के लिए प्राण निछावर करने का आत्मबल और धर्म; अहम् और स्वार्थ का कुचक्र, संवेगों का संघर्ष; कोमल आत्मीयता का क्रूर मर्दन और सम्बन्धों पर मर मिटने को तत्पर जीवन—सभी कुछ तो है यहाँ। किन्तु ये केवल झलकियाँ हैं जो निश्चय ही आपको ग्रीक पुराकथाओं और नाटक के समग्र संसार की ओर जाने को अभिप्रेरित करेंगी।
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