
Julius Caesar
Author:
Arvind Kumar, William ShakespearePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
महाकवि विलियम शैक्सपीयर कृत जूलियस सीज़र मूल अँगरेजी टैक्स्ट और हिंदी काव्यानुवाद शैक्सपीयर की भाषा ऐलिज़ाबेथ कालीन अँगरेज़ी है। वह आज के अँगरेज़ों के लिए भी सहज नहीं है। जब मैंने पहली बार उसे पढ़ा था, तो पूरी तरह उस का मज़ा नहीं ले पाता था। बार-बार कोश देखने से और अँगरेज़ी के नोट पढ़ने से तो मज़ा और भी किरकिरा हो जाता था। जो हिंदीभाषी इस नाटक का अँगरेज़ी पाठ ही पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए उसके सामने दिया गया हिंदी पाठ सहायक ग्रंथ का काम करेगा। कई विश्वविद्यालयों में जूलियस सीजर अँगरेज़ी कोर्स में भी है। उस के छात्रों के लिए तो यह वरदान सिद्ध हो सकता है।
शैक्सपीयर के नाटक अभिनय कला के प्रदर्शन का पूरा अवसर देते हैं। जूलियस सीज़र में हमारे भारतीय उपमहाद्वीप में पिछले अनेक दशकों से जो राजनीतिक घटनाक्रम चलता आ रहा है, उस की झलक भी दिखाई देती है। अनेक विद्यालयों के छात्रों के नाट्य मंडल और शहर-शहर की उत्साही नाट्य मंडलियाँ अँगरेज़ी में जूलियस सीज़र का मंचन करते हैं। लेकिन उनके दर्शक शैक्सपीयर के भावों का पूरा आस्वादन नहीं कर पाते। इस अनुवाद के मंचन से ऐसे नाट्य मंडल शैक्सपीयर की भावभूमि को जन साधारण तक पहुँचा पाएँगे।
ISBN: 9788171196050
Pages: 216
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Kamal Naseem
- Book Type:
- Description: पाँचवीं शताब्दी ई.पू. ग्रीस के 31 क्लासिकल त्रासद नाटकों का संक्षिप्त हिन्दी कथा-रूपान्तरण केवल उन रचनाओं का संक्षिप्त रूपान्तर नहीं, ये छोटी-छोटी खिड़कियाँ और झरोखे हैं जो आपको आज से दो हज़ार पाँच सौ वर्ष पहले की ग्रीक सभ्यता और संस्कृति के ऐसे भव्य संसार में ले जाएँगे, जहाँ देश और काल की सीमाएँ अपने आप ही तिरोहित हो जाती हैं। कास्ट्यूम और मुखौटे अपनी सादगी और रंगीनी में एक ऐसे ‘लार्जर दैन लाइफ़’ पात्रों का संसार रच देते हैं, जहाँ बिना किसी दृश्य और श्रव्य तकनीक के वायुमंडल में बहती आवाज़ें आपके अस्तित्व को अभिभूत कर लेती हैं...। आप सम्मोहित से आगे बढ़ते जाते हैं...एक-एक कर वितान खुलते जाते हैं...और आप देखते हैं ग्रीक महानायकों की बृहद् कर्मभूमि, आकाश को छूती महत्त्वाकांक्षाएँ, मन को छूती करुणा; दिव्य तेज और साहस के कारनामे, दैन्य की पराकाष्ठा; युद्ध का भयावह रक्तपात और नरसंहार, माँओं, बहनों और दासियों का दिल दहलानेवाला चीत्कार; अनैतिकता के गर्हित कर्म और कर्तव्य के लिए प्राण निछावर करने का आत्मबल और धर्म; अहम् और स्वार्थ का कुचक्र, संवेगों का संघर्ष; कोमल आत्मीयता का क्रूर मर्दन और सम्बन्धों पर मर मिटने को तत्पर जीवन—सभी कुछ तो है यहाँ। किन्तु ये केवल झलकियाँ हैं जो निश्चय ही आपको ग्रीक पुराकथाओं और नाटक के समग्र संसार की ओर जाने को अभिप्रेरित करेंगी।
Jati Hi Puchho Sadhu ki
- Author Name:
Vijay Tendulkar
- Book Type:
-
Description:
जीवन के स्याह पक्षों को निर्मम पर्यवेक्षण से उजागर करने के लिए प्रसिद्ध रहे विजय तेन्दुलकर का यह नाटक समकालीन सामाजिक विद्रूप को थोड़ा व्यंग्यात्मक नज़रिए से खोलता है।
एम.ए. की डिग्री से लैस होकर महीपत नौकरी की जिस खोज-यात्रा से गुज़रता है, वह शिक्षा की वर्तमान दशा, समाज के विभिन्न शैक्षिक स्तरों के परस्पर संघर्ष और स्थानीय स्तर पर सत्ता के विभिन्न केन्द्रों के टकराव की अनेक परतों को खोलती जाती है।
इस नाटक को पढ़ते-देखते हुए हमें स्वातंत्र्योत्तर भारत की कई ऐसी छवियों का साक्षात्कार होता है जो धीरे-धीरे हमारे सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन का हिस्सा हो चुकी हैं। वे हमें स्वीकार्य लगती हैं लेकिन उन्हीं के चलते धीरे-धीरे हमारा सामूहिक चरित्र खोखला होता जा रहा है।
अपने दो-टूकपन, सामाजिक सरोकार और व्यंग्य की तीव्रता के कारण अनेक निर्देशकों, अभिनेताओं और असंख्य दर्शकों की पसन्द रहे इस नाटक के दिल्ली में ही शताधिक मंचन हो चुके हैं। मूल मराठी से वसन्त देव द्वारा किए गए इस अनुवाद की गुणवत्ता तो इसी तथ्य से साबित हो जाती है कि पुस्तक रूप में इस नाटक के पाठ और मंच पर उसके प्रदर्शन में कोई बिन्दु ऐसा नहीं आता, जहाँ हिन्दी पाठक किसी अभिव्यक्ति या व्यंजना को अपने लिए अपरिचित महसूस करता हो।
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