Achanak
Author:
GulzarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
साहित्य में मंज़रनामा एक मुकम्मिल फ़ॉर्म है। यह एक ऐसी विधा है जिसे पाठक बिना किसी रुकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें। लेकिन मंज़रनामा का अन्दाज़े-बयाँ अमूमन मूल रचना से अलग हो जाता है या यूँ कहें कि वह मूल रचना का इन्टरप्रेटेशन हो जाता है।</p>
<p>मंज़रनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फ़ॉर्म से रू-ब-रू हो सकें और दूसरा यह कि टी.वी. और सिनेमा में दिलचस्पी रखनेवाले लोग यह देख-जान सकें कि किसी कृति को किस तरह मंज़रनामे की शक्ल दी जाती है। टी.वी. की आमद से मंज़रनामों की ज़रूरत में बहुत इज़ाफ़ा हो गया है।</p>
<p>गुलज़ार की लोकप्रिय फ़िल्म 'अचानक’ उनकी सभी फ़िल्मों की तरह संवेदनशील और सधी हुई फ़िल्म है जिसको अपने वक़्त में बहुत सराहा गया था। दाम्पत्य-प्रेम, पति-पत्नी के बीच भरोसे और शक, भटकाव, प्रतिहिंसा और पश्चाताप की महीन नक़्क़ाशी इस फ़िल्म की विशेषता है। इस पुस्तक में उसी फ़िल्म का मंज़रनामा पेश किया गया है।</p>
<p>पाठकों को दर्शक में तब्दील कर देनेवाली एक प्रभावशाली प्रस्तुति।
ISBN: 9788183618106
Pages: 72
Avg Reading Time: 2 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Chandragupt
- Author Name:
Jaishankar Prasad
- Book Type:

- Description: हिन्दी के कालजयी रचनाकार जयशंकर प्रसाद का यह नाटक भारत के पहले साम्राज्य-निर्माता चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मार्गदर्शक तथा महान कूटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य को केन्द्र में रखकर लिखा गया है। भारत के इतिहास में यह वह कालखंड है जब एक तरफ़ तो लगातार विदेशी आक्रमण हो रहे थे और दूसरी तरफ़ देशी राजा अपने झूठे अभिमान और क्षुद्र स्वार्थों के लिए आपस में ही लड़ रहे थे। देश की सबसे बड़ी राजशक्ति मगध के सम्राट भोग-विलास में डूबे हुए थे। उन्हें न अपने राज्य की सुरक्षा की चिन्ता थी और न अपनी प्रजा के हितों की। ऐसे समय में आचार्य चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को साथ लेकर सीमावर्ती राज्यों को संगठित किया और यूनानी आक्रमणकारी सिकन्दर को मुँहतोड़ जवाब दिया। साथ ही, उन्होंने लोगों में ऐसी भावना का संचार किया कि वे मालव और मागध होने के प्रान्तीय अभिमान को भूलकर भारतवासी कहलाने में गौरव का अनुभव करें। इस प्रकार आचार्य चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने पहली बार, खंड-खंड विभाजित भारत को एक सूत्र में पिरोकर, एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया। ‘चन्द्रगुप्त' नाटक में चित्रित स्थितियों की प्रासंगिकता भारत के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में स्पष्ट देखी जा सकती है।
Bikhare Bimb Aur Pushpa
- Author Name:
Girish Karnad
- Book Type:

-
Description:
गिरीश कारनाड के नाटक नैतिक धारणाओं को कई स्तरों पर विश्लेषित करते हैं। सीधे सन्देशों की स्थूल वाचालता उनके यहाँ नहीं होती। वे जो कथा-भूमि चुनते हैं वह मन-जीवन का एक जटिल वितान रचती है, जिसमें वे नैतिक रूढ़ियाँ जो हमारे लिए अभी तक तमाम सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक हिंसा का आधार बनी आती हैं, अचानक मामूली और बचकाने आग्रह-भर दिखने लगती हैं। वे हमें हमारी जड़ताओं से मुक्त करके अपने उच्चतर सत्यों की तलाश के लिए स्थान देते हैं। इस पुस्तक में संकलित दोनों नाटक भी इसका अपवाद नहीं हैं। मोनोलॉग की शैली में लिखे ये नाटक पुन: हमें कुछ नैतिक चौराहों पर लाते हैं। एक ही चरित्र के दो चेहरों के परस्पर मुखामुखम से बुना नाटक ‘बिखरे बिम्ब’ मंजुला नायक नामक स्त्री, उसकी विकलांग बहन और पति की कहानी कहता है और ‘पुष्प’ में एक शिव-भक्त पुजारी तथा एक गणिका के माध्यम से नैतिक असमंजस की सर्जना की गई है।
दोनों नाटक एक ही कलाकार द्वारा खेले जाने के ढंग से लिखे गए हैं, लेकिन उन्हें पुस्तक रूप में पढ़ना भी कम दिलचस्प नहीं।
Maatigaari
- Author Name:
Hrishikesh Sulabh
- Book Type:

-
Description:
‘बिदेसिया’ के विन्यास के बावजूद संरचनात्मक गठन एक नए ही शिल्प की तरफ़ इशारा करता है जो सुलभ की अपनी निर्मिति है। मौलिकता का एक सबूत तो इनकी अभिव्यक्ति है जो समकालीन जीवन की विसंगतियों के ज़बर्दस्त प्रतिरोध से जन्मी हैं। पारम्परिक प्रविधि को समकालीन सन्दर्भों में रखकर सुलभ ने उसे समकालीन बनाया है और उसकी सम्प्रेषण–क्षमता का बहुविध विस्तार किया है। एक अर्थ में यह नाटक अपनी स्थानीयता का अतिक्रमण भी है, तो दूसरे अर्थ में स्थानीयता का केन्द्रीयकरण भी क्योंकि जब तक स्थानीयता केन्द्रीयता हासिल नहीं करती, तब तक वह सार्वजनिक जीवन की समग्र प्रस्तुति नहीं बनती।
‘माटीगाड़ी’ में सुलभ का नाट्यकौशल अपने पूरे रंग में है। प्रेम की केन्द्रीय संवेदना लेकर सुलभ ने इस नाटक में वसन्तसेना और चारुदत्त के प्रेम सम्बन्ध में अनेक स्तरों को पिरोया है, जिससे यह नाटक जातिवादी उन्माद, राजनीतिक पाखंड, सामाजिक विडम्बनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति बन गया है।
—ज्योतिष जोशी; ‘कथादेश’
‘मृच्छकटिकम्’ की काव्यात्मक संवेदना और शास्त्रीयता से मिलकर ‘बिदेसिया’ की लोकधर्मी चेतना नई नाट्यानुभूति देती है। शूद्रक का नाटक फिर से रचे जाने के क्रम में अपने बीजतत्त्वों का विकास करता है और समसामयिक हो उठता है। ‘माटीगाड़ी’ में हिन्दी तथा भोजपुरी का प्रयोग नए भाषिक स्वाद की अनुभूति कराता है।
Evam Indrajit
- Author Name:
Badal Sarkar
- Book Type:

-
Description:
बादल सरकार के नाटक ‘एवम् इन्द्रजित्’ का भारतीय रंगकर्म में एक विशिष्ट स्थान है। मूलतः बांग्ला में लिखे इस नाटक का अनेक भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। विभिन्न भाषाओं के रंगकर्म में इस नाटक ने बार-बार मंचित होकर प्रशंसा और प्रसिद्धि पर्याप्त बटोरी है।
इस नाटक की लोकप्रियता का कारण इसके कथा व शिल्प में निहित है। युवा वर्ग की महत्त्वाकांक्षा, परवर्ती कुंठा व निराशा का यथार्थपरक चित्रण इसमें किया गया है। नाटक अपनी निष्पत्ति में रेखांकित करता है कि मृत्यु का वरण समस्या का समाधान नहीं है। यह जानते हुए भी कि हमारे पास कोई सम्बल नहीं, हमें जीना है। नाटक का कथ्य अत्यन्त यथार्थवादी होते हुए भी शिल्प प्रतीकात्मक है। जीवन के दस-पन्द्रह वर्षों की अवधि को समेटे हुए यह नाटक जीने की ज़िद का तर्क है।
बादल सरकार की काव्यात्मक भाषा सम्प्रेषण और अर्थ दोनों को समृद्ध करती है। नए कलेवर में प्रस्तुत यह प्रसिद्ध नाटक पाठकों व रंगकर्मियों को ख़ूब भाएगा, ऐसा विश्वास किया जा सकता है ।
प्रसिद्ध रंगकर्मी डॉ. प्रतिभा अग्रवाल ने ‘एवम् इन्द्रजीत्’ का मनोयोगपूर्वक अनुवाद किया है। उनके अनुसार, ‘...मेरे द्वारा किए गए अनुवादों में यह सर्वश्रेष्ठ है।’
Ramlila : Parampara Aur Shailiya
- Author Name:
Induja Awasthi
- Book Type:

- Description: हिन्दी-भाषी क्षेत्र की सबसे प्राचीन और समृद्ध नाट्य परम्परा–रामलीला–की सर्वांगीण झाँकी पहली बार इस पुस्तक में पाठकों को मिलेगी। रामलीला की ऐतिहासिक भूमिका, सुसंस्कृत और मध्ययुगीन नाट्य परम्परा से उसका सम्बन्ध, नाटकीय संवादों के स्रोत, सामाजिक, सांस्कृतिक पुस्तक, प्रदर्शन और अभिनय के व्यवहार, क्षेत्रीय शैलियाँ, रामलीला की रंगमंचीय परम्परा–सभी पक्षों का गंभीर विवेचन इस पुस्तक की विशेषता है। रामचरितमानस का गहरा प्रभाव रामनगर, वाराणसी की विशिष्ट रामलीला शैली पर है। इस पुस्तक में नितान्त नयी सामग्री प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत की गई है। एक अध्याय में रामकथा पर आधारित देश के विभिन्न भागों में प्रचलित पारम्परिक नाट्य-रूपों की चर्चा रामलीला की परम्परा को अखिल भारतीय सन्दर्भ प्रदान करती है। लेखिका ने एक ओर तो स्थान-स्थान के रामलीला प्रदर्शन देखकर तथ्य एकत्र किये और दूसरी ओर अपने चार दशकों के गहरे और व्यावहारिक रंगमंचीय अनुभव के आधार पर इस विवेचन को ऐसा रंग-बोध दिया है जो हिन्दी के नाट्य-अनुसन्धान में सर्वथा नया है। अन्तिम परिशिष्ट में दक्षिण एशियाई देशों की नृत्यनाट्य और रूपांकन कलाओं में रामायण के गहरे प्रभाव का विवेचन पुस्तक की उपादेयता को बढ़ा देता है।
Ab Tak Sab
- Author Name:
Rajesh Joshi
- Book Type:

-
Description:
यह सुखद है कि राजेश जोशी के लगभग सभी नाटक, लिखने के साथ ही मंचित हुए और मंचीय प्रदर्शनों की सफलता के बाद प्रकाशित हुए। निश्चित रूप से इनकी रचना प्रदर्शन की अपेक्षाओं के अनुरूप हुई है इसलिए इनका पहना प्रभाव तो मंचीयता का ही पड़ता है। नाटक पढ़ते समय पाठक, दर्शक की भूमिका में चला जाता है और भले ही वह सिर्फ पाठ से गुजरता हो, प्रस्तुति का अन्तर्भूत प्रभाव उसे बाँधे रहता है। नाटक की आलोचना की भाषा में कहें तो यह विशेषता ‘चाक्षुषता के साथ-साथ दृश्यात्मकता’ की है। राजेश जोशी के लगभग सभी नाटकों में 'भाषा की पूरी शक्ति, उसकी पूरी अर्थवत्ता काव्यात्मकता' तक पहुँचने में है जिसे विख्यात नाट्य चिन्तक नेमिचन्द्र जैन एक सफल नाट्यालेख का सबसे बड़ा गुण या उसकी बड़ी चुनौती स्वीकार करते हैं। कहना न होगा कि नेमि जी नाटक को मूलतः काव्य का एक प्रकार ही मानते थे और एक नाट्यालेख में वे ‘सार्थक और महत्वपूर्ण अनुभूति की सूक्ष्म, संवेदनशील और गहन अभिव्यक्ति' का होना आवश्यक मानते थे।
इस दृष्टि से देखें तो राजेश जोशी के अधिकांश नाटक नाट्यालेख की अनिवार्य अर्हताएँ पूरी करते हैं और सम्बद्ध विषय की सूक्ष्मतम अनुभूति तथा संवेदनशील और गहन अभिव्यक्ति संभव करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में उनका जोर ‘संवाद’ और ‘दृश्यात्मकता’ को उभारने में रहा है जो पाठ को तो अर्थगर्भी बनाते ही हैं, मंचन को उसके पूरे वितान में खुलने का अवसर देते हैं।
—ज्योतिष जोशी
Khamosh ! Adalat Jari Hai
- Author Name:
Vijay Tendulkar
- Book Type:

-
Description:
प्रसिद्ध मराठी नाटककार विजय तेन्दुलकर ने भारतीय रंगमंच को नाटकों के माध्यम से समकालीन समाज की उन उलझी हुई सच्चाइयों से अवगत कराया जो आधुनिक जीवन की उपज हैं और जिनको काले और सफ़ेद के नैतिक खानों में बाँटकर नहीं समझा जा सकता, बल्कि उनको समझने के लिए हमें आधुनिक व्यक्ति की उन तमाम सीमाओं और उत्कंठाओं को समझना होता है जिनसे वह बरबस बँधा होता है।
अपने अनूठे रचनात्मक साहस के साथ विजय तेन्दुलकर ने रंगमंच जैसी सार्वजनिक विधा के माध्यम से ऐसी अनेक विचलित करनेवाली सच्चाइयों की तरफ़ इशारा किया, जिनको छूने का साहस अक्सर रंगमंच में नहीं हुआ था।
‘ख़ामोश! अदालत जारी है’ उनका सबसे प्रसिद्ध नाटक है। असंख्य मंचनों, चर्चाओं और फ़िल्मांकनों के चलते अधिकांश लोग इस नाटक से परिचित हैं। नाटक के भीतर चलते इस नाटक की मुख्य पात्र लीला बेनारे की जीवन-कथा जैसे-जैसे खुलती है हमें हमारे आसपास के समाज, उसकी सफ़ेद सतह के नीचे सक्रिय स्याह मर्दाना यौन-कुंठाओं और स्त्री के दमन की कई तहें उजागर होती जाती हैं।
नाटक का सर्वाधिक आकर्षक पहलू इसका फ़ॉर्म माना गया है। एक अदालत के दृश्य में मानव-नियति की विडम्बनाओं के उद्घाटन को जिस प्रकार नाटककार ने साधा है, वह अद्भुत है। यही कारण है कि रंगकर्मी हों, नाट्यालोचक हों या दर्शक—हर किसी के लिए यह नाटक भारतीय रंगमंच के इतिहास में मील का एक पत्थर है।
Andher Nagari
- Author Name:
Bhartendu Harishchandra
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक 'अंधेर नगरी' भारतेन्दु ने बनारस में नेशनल थियेटर के लिए एक दिन में सन् 1881 में लिखा था जो काशी के दशाश्वमेघ घाट पर उसी दिन अभिनीत भी हुआ था। 'अंधेर नगरी' को रोचक विनोदपूर्ण बनाने के लिए उसका कथात्मक ढाँचा सादा सामान्य रखा है, पर व्यंग्य को तीव्रतर बनाने के लिए ज़रूरी संकेत पहले दृश्य से ही दिए गए हैं। 'अंधेर नगरी' अंग्रेज़ राज्य का ही दूसरा नाम है। संवाद व्यंग्यपूर्ण अभिप्रायमूलक है। समूचा प्रकरण तमाशा जैसा ही है। क्योंकि 'अंधेर नगरी' की अंधेरगर्दी जिस हास्यास्पद परिणति तक दिखाई गई है, वह अकल्पनीय या अविश्वसनीय होते हुए भी यथार्थ के निकट है।
Rakta Kalyan
- Author Name:
Girish Karnad
- Book Type:

-
Description:
सुविख्यात रंगकर्मी और कन्नड़ लेखक गिरीश कारनाड की यह नाट्यकृति एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित है। बसवण्णा नाम का एक कवि और समाज-सुधारक इसका केन्द्रीय चरित्र है। ईस्वी सन् 1106-1168 के बीच मौजूद बसवण्णा को एक अल्पजीवी ‘वीरशैव सम्प्रदाय' का जनक माना जाता है।
लेकिन बसवण्णा के जीवन-मूल्यों, कार्यों और उसके द्वारा रचित पदों की जितनी प्रासंगिकता तब रही होगी, उससे कम आज भी नहीं है, बल्कि अधिक है; और इसी से गिरीश कारनाड जैसे सजग लेखक की इतिहास-दृष्टि और उनके लेखन के महत्त्व को समझा जा सकता है। बसवण्णा के जीवन-मूल्य हैं—सामाजिक असमानता का विरोध, धर्म-जाति, लिंग-भेद आदि से जुड़ी रूढ़ियों का त्याग, और ईश्वर-भक्ति के रूप में अपने-अपने ‘कायक’ यानी कर्म का निर्वाह। आकस्मिक नहीं कि उसके जीवनादर्शों में यदि गीता के कर्मवाद की अनुगूँज है तो परवर्ती कबीर भी सुनाई पड़ते हैं। लेकिन राजा का भंडारी और उसके निकट होने के बावजूद रूढ़िवादी ब्राह्मणों अथवा वर्णाश्रम धर्म के पक्ष में खड़ी राजसत्ता की भयावह हिंसा से अपने ‘शरणाओं’ की रक्षा वह नहीं कर पाता और न उन्हें प्रतिहिंसा से ही रोक पाता है।
लेखक के इस समूचे घटनाक्रम को—बसवण्णा के जीवन से जुड़े तमाम अत्कर्य लोकविश्वासों को झटकते हुए एक सांस्कृतिक जनान्दोलन की तरह रचा है। विचार के साथ-साथ एक गहरी संवेदनशील छुअन और अनेक दृश्यबन्धों में समायोजित सुगठित नाट्यशिल्प।
ज़ाहिर है कि इस सबका श्रेय जितना लेखक को है, उतना ही अनुवादक को है। अतीत के कुहासे से वर्तमान की तर्कसंगत तलाश और उसकी एक नई भाषिक सर्जना—हिन्दी रंगमंच के लिए ये दोनों ही चीज़ें समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।
Soho Mein Marx Aur Anya Natak
- Author Name:
Howard Zinn
- Book Type:

-
Description:
इतिहासकार, विचारक और विश्व-प्रसिद्ध युद्ध-विरोधी लेखक हॉवर्ड ज़िन्न के ये नाटक ऐतिहासिक भी हैं और वैचारिक भी। ज़िन्न अपने आपको कुछ समाजवादी, कुछ अराजकतावादी और कुछ-कुछ लोकतांत्रिक समाजवादी मानते थे। युद्ध के विरोध में उन्होंने व्यापक रूप में लिखा और चर्चित हुए। उन्हें जनता का इतिहास-लेखक कहा गया। उन्होंने अमरीका का इतिहास लोगों को केन्द्र में रखकर लिखा जिसे असंख्य लोगों ने पढ़ा। वे सिर्फ़ इतिहासकार ही नहीं, एक्टिविस्ट भी थे। उनके ये तीनों नाटक उनके वैचारिक पक्ष के साथ-साथ उनके सिद्ध नाटककार होने को भी रेखांकित करते हैं।
‘सोहो में मार्क्स’ एकपात्रीय नाटक है जिसमें मार्क्स स्वयं मंच पर आकर दर्शकों को सम्बोधित करते हैं। दुनिया-भर में अनेक बार खेला गया यह नाटक आज के दौर में माक्र्स और उनके सिद्धान्तों की प्रासंगिकता बताता है। इसमें हमें मार्क्स के निजी जीवन के कुछ दृश्य भी मिलते हैं और साथ ही उनके समकालीनों के साथ उनके सम्बन्धों के भी।
‘वीनस की बेटी’ राष्ट्र के नाम पर लड़े जानेवाले युद्धों और उनके लिए बनाए जानेवाले हथियारों के औचित्य पर सवाल उठाता है। परमाणु अस्त्रों पर काम करनेवाले एक वैज्ञानिक की पत्नी, बेटी और बेटे के आपसी रिश्तों और बहसों के माध्यम से ज़िन्न यहाँ युद्ध और शस्त्रों की व्यर्थता को एक साधारण, घरेलू नज़रिए से बेपर्दा करते हैं।
‘एमा’ अमरीका की अराजकतावादी चिन्तक, राजनीतिक कार्यकर्ता और लेखक एमा गोल्डमन के जीवन पर आधारित नाटक है जिसमें हॉवर्ड ज़िन्न ने उनके जीवन की मुख्य घटनाओं और उनके विचारों को प्रस्तुत किया है। एमा का जन्म रूस में हुआ था। बाद में उन्होंने अमरीका में जन-आन्दोलनों के साथ काम किया। स्त्री-मुक्ति और मज़दूर हितों पर उनके वक्तव्यों को हज़ारों लोग सुनने आते थे। नाटक में ऐसे कई लोमहर्षक दृश्य हैं जिनमें उस क्रान्तिकारी स्त्री की छवि साक्षात् दिखाई पड़ती है।
विचारों को कहीं वक्तव्यों के माध्यम से, कहीं पात्रों की आपसी बहस के माध्यम से और कहीं स्थितियों की बुनावट के द्वारा स्पष्ट रूप में सामने लाना इन नाटकों की विशेषता है। लेकिन ऐसा नहीं कि इससे वे कहीं बोझिल या लोडेड हो गए हों। अपने वातावरण में वे इतने स्वाभाविक और गतिमान होते हैं कि उन्हें पढ़ना भी, खेलना भी और देखना भी अपने आप में एक समग्र अनुभव होगा।
Chor Nikal Ke Bhaga
- Author Name:
Mrinal Pande
- Book Type:

-
Description:
समकालीन हिन्दी कथा-साहित्य, नाटक और पत्रकारिता को अपनी रचनात्मक उपस्थिति से समृद्ध करनेवाली रचनाकार मृणाल पाण्डे की यह नवीनतम नाट्यकृति है। हिन्दी रंगमंच पर भी यह नाटक पिछले दिनों विशेष चर्चित रहा है।
हास्य-व्यंग्य से भरपूर अपने चुटीले भाषा-शिल्प और लोकनाट्य की अनेक दृश्य-छवियों को उजागर करता हुआ यह नाटक वस्तुत: हमारी कला-संस्कृति के बाज़ारीकरण से जुड़े सवालों को उठाता है। कला, सौन्दर्य, प्रेम और परम्परा जैसे तमाम मूल्यों का सौदा हो रहा है, और इस सौदे में राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर कितने ही सफ़ेदपोश शामिल हैं।
नाटक की उक्त अन्तर्वस्तु को उद्घाटित करने के लिए लेखिका ने प्रेम और सौन्दर्य के प्रतीक ताजमहल की चोरी की कल्पना की है। वास्तव में यह एक फंतासी भी है, जिसके सहारे लेखिका उन मानव-मूल्यों पर मँडराते ख़तरों को रेखांकित करती है, जिनकी सफलता मनुष्य जाति की तमाम कलात्मक उपलब्धियों को निरर्थक कर देगी। साथ ही वह कलाओं के उस जनतंत्र को भी लक्षित करती है, जिसे लेकर सत्ता-स्वायत्ता जैसी बहसें अक्सर होती रहती हैं। कहना न होगा कि मृणाल पाण्डे की यह नाट्य-रचना अपने हास्यावरण में गम्भीर अर्थों तक जाने की क्षमता लिए हुए है।
Ande Ke Chhilke : Anya Ekanki Tatha Beej Natak
- Author Name:
Mohan Rakesh
- Book Type:

- Description: आधुनिक हिन्दी नाटय साहित्य और कथा की दुनिया में मोहन राकेश का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। हिन्दी-रंगान्दोलन को एक नई गति और समृद्धि देने में उनकी निर्णायक भूमिका रही है। ‘अंडे के छिलके : अन्य एकांकी तथा बीज नाटक’ उनके कई प्रयोगधर्मी एकांकियों का संग्रह है। प्रयोगशीलता को मोहन राकेश रंगमंच की भाषा और उसके मानवीय पक्ष की समृद्धि से जोड़कर देखते थे, अर्थात् रंगमंचीय उपकरणों की न्यूनता के बावजूद कठिन से कठिन प्रयोग कर पाने की क्षमता के साथ जोड़कर। जयदेव तनेजा राकेश के नाटकों की एक दुर्लभ विशेषता पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि, ''उनके नाटकों में मंचीय सफलता और प्रदर्शनीयता के साथ-साथ साहित्यिकता और पठनीयता का भी विलक्षण गुण विद्यमान है। उनमें इन दोनों विशेषताओं का अद्भुत सामंजस्य हुआ है। नाटकों को पद्य मानने का ही यह परिणाम है कि उनके नाट्य-संवादों और रंग-निर्देशों की भाषा में कोई अन्तर नहीं है। सम्भवत: यही कारण है कि उनके नाटकों को देखते या सुनते हुए ही नहीं, पढ़ते हुए भी बीच में छोड़ना कष्टकर प्रतीत होता है।'' संक्षेप में, इस संग्रह में शामिल नाटकों को हम राकेश के बहुस्तरीय नाट्य-लेखन के समर्थ उदाहरणों के रूप में देख सकते हैं।
Shreshth Bharatiya Ekanki : Vol. 2
- Author Name:
Prabhakar Shrotriya
- Book Type:

-
Description:
आज रंगमंच के उपयुक्त सशक्त नाटकों की शायद सबसे अधिक आवश्यकता है। क्योंकि टी.वी. और फ़िल्मों द्वारा फैलाए गए प्रदूषण को सशक्त नाटक ही सही चुनौती दे सकते हैं, परन्तु इस दृष्टि से वर्तमान परिदृश्य बहुत आशाजनक दिखाई नहीं पड़ता। विभिन्न भारतीय भाषाओं में अच्छे नाटकों का लगातार अभाव होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में यह बहुत आवश्यक है कि भारतीय भाषाओं में रंगमंच के योग्य उत्कृष्ट नाटकों का परस्पर आदान-प्रदान हो। इस तरह का एक प्रयत्न भारतीय भाषा परिषद् द्वारा किया गया है।
दो खंडों में प्रकाशित 'श्रेष्ठ भारतीय एकांकी’ के खंड—दो में असमिया, उर्दू, गुजराती, तमिल, तेलुगू तथा मलयालम के श्रेष्ठ एकांकी संकलित हैं। इसमें रंगमंच के उपयुक्त एकांकी ही प्रायः चुने गए हैं। विभिन्न विभागों का सम्पादन सम्बन्धित भाषाओं के अधिकारी विद्वानों द्वारा किया गया है।
उन्होंने भूमिकाओं में अपनी-अपनी भाषा के नाटक और एकांकी साहित्य के विकास और विशिष्टताओं का गहरा विवेचन किया है। इनसे पाठकों को सम्बन्धित भाषाओं के अवदान की पर्याप्त जानकारी मिल सकेगी। एकांकियों के हिन्दी अनुवाद अत्यन्त प्रामाणिक अनुवादकों द्वारा करवाए गए हैं, ताकि नाटक के कथ्य और नाट्य-भाषा दोनों की रक्षा की जा सके।
'एकांकी' विधा एक तरह से वर्तमान युग का अवदान और आन्दोलन है। अपने समय की ज्वलन्त समस्याएँ और चिन्ताएँ इनके मूल में होती हैं। ऐसी कृतियाँ एक बड़े पाठक और दर्शक समाज के सम्मुख प्रस्तुत करना आज हमारे समय की माँग है।
आशा है, यह संकलन इन अर्थ में भी उपादेय होगा।
Madhukar Shah : Bundelkhand Ka Nayak
- Author Name:
Govind Namdev
- Book Type:

-
Description:
भारत के स्वतंत्रता-आन्दोलन के ऐसे न जाने कितने अध्याय होंगे, जो इतिहास के पन्नों पर अपनी जगह नहीं बना पाए। देश के दूर-दराज़ हिस्सों में जनसाधारण ने अपने दम पर विदेशी शासकों से कैसे लोहा लिया, क्या-क्या झेला, उस सबको क़लमबन्द करने की उस समय न किसी को इच्छा थी, न अवसर। लेकिन पीढ़ियों तक जीवित रहनेवाली किंवदन्तियों में इतिहास के ऐसे अदेखे सूत्र मिल जाते हैं।
1857 के स्वतंत्रता-संग्राम से पहले 1842 के बुन्देल-विद्रोह का प्रकरण भी ऐसा ही है। लिखित इतिहास में इस विषय पर विस्तार से कहीं कुछ भी उपलब्ध नहीं है, लेकिन कुछ सूचनाएँ अवश्य मिलती हैं। उन्हीं को आधार मानकर जुटाई हुई बाक़ी जानकारी को लेकर इस नाटक की रचना की गई है।
कह सकते हैं कि यह रंगमंच के एक सिद्ध जानकार की क़लम से निकली रचना है, जो इस ऐतिहासिक प्रकरण को इतनी सम्पूर्णता से एक नाटक में बदलती है कि इसे पढ़ना भी इसे देखने जैसा ही अनुभव होता है।
बुन्देलखण्ड की खाँटी ज़ुबान, अंग्रेज़ अफ़सरों की हिन्दी और लोकगीतों के साथ बुनी गई यह नाट्य-कृति एक समग्र नाट्य-अनुभव रचती है।
Chandragupt
- Author Name:
Jaishankar Prasad
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी के कालजयी रचनाकार जयशंकर प्रसाद का यह नाटक भारत के पहले साम्राज्य-निर्माता चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मार्गदर्शक तथा महान कूटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य को केन्द्र में रखकर लिखा गया है। भारत के इतिहास में यह वह कालखंड है जब एक तरफ़ तो लगातार विदेशी आक्रमण हो रहे थे और दूसरी तरफ़ देशी राजा अपने झूठे अभिमान और क्षुद्र स्वार्थों के लिए आपस में ही लड़ रहे थे। देश की सबसे बड़ी राजशक्ति मगध के सम्राट भोग-विलास में डूबे हुए थे। उन्हें न अपने राज्य की सुरक्षा की चिन्ता थी और न अपनी प्रजा के हितों की। ऐसे समय में आचार्य चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को साथ लेकर सीमावर्ती राज्यों को संगठित किया और यूनानी आक्रमणकारी सिकन्दर को मुँहतोड़ जवाब दिया। साथ ही, उन्होंने लोगों में ऐसी भावना का संचार किया कि वे मालव और मागध होने के प्रान्तीय अभिमान को भूलकर भारतवासी कहलाने में गौरव का अनुभव करें। इस प्रकार आचार्य चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने पहली बार, खंड-खंड विभाजित भारत को एक सूत्र में पिरोकर, एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया।
‘चन्द्रगुप्त' नाटक में चित्रित स्थितियों की प्रासंगिकता भारत के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में स्पष्ट देखी जा सकती है।
Tughalaq
- Author Name:
Girish Karnad
- Book Type:

- Description: मोहम्मद तुग़लक चारित्रिक विरोधाभास में जीनेवाला एक ऐसा बादशाह था जिसे इतिहासकारों ने उसकी सनकों के लिए ख़ब्ती करार दिया। जिसने अपनी सनक के कारण राजधानी बदली और ताँबे के सिक्के का मूल्य चाँदी के सिक्के के बराबर कर दिया। लेकिन अपने चारों ओर कट्टर मज़हबी दीवारों से घिरा तुग़लक कुछ और भी था। उसने मज़हब से परे इंसान की तलाश की थी। हिंदू और मुसलमान दोनों उसकी नज़र में एक थे। तत्कालीन मानसिकता ने तुग़लक की इस मान्यता को अस्वीकार कर दिया और यही ‘अस्वीकार’ तुग़लक के सिर पर सनकों का भूत बनकर सवार हो गया। नाटक का कथानक मात्र तुग़लक के गुण-दोषों तक ही सीमित नहीं है। इसमें उस समय की परिस्थितियों और तज्जनित भावनाओं को भी अभिव्यक्त किया गया है, जिनके कारण उस समय के आदमी का चिंतन बौना हो गया था और मज़हब तथा सियासत के टकराव में हरेक केवल अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। 3 अप्रैल, 1983, हिंदुस्तान, नयी दिल्ली
Natak Fareb-E-Hasti
- Author Name:
Sadique
- Book Type:

- Description: ‘नाटक फ़रेब-ए-हस्ती’ ग़ालिब पर लिखा गया अनोखा नाटक है। इस नाटक में एक रोचक हादसे की वजह से मिर्ज़ा ग़ालिब को मौजूदा सदी में पेश होना पड़ता है। यह हादसा इतना दिलचस्प है कि 18वीं सदी का मशहूर शायर जब आज की दिल्ली में घूमता है तो मानो हर चीज़ उससे कॉमेडी करती नज़र आती है। लेकिन बात केवल कॉमेडी तक ही सीमित नहीं है, कहानी एक नया मोड़ तब लेती है जब खुफ़िया एजेंसी के कुछ अफ़सर ग़ालिब को पड़ोसी देश का जासूस समझते हुए उनकी गतिविधियों को नोटिस करना शुरू कर देते हैं। लेखक ने इस रोचक फंतासी को एकदम यथार्थवादी अन्दाज़ में पेश किया है जहाँ पर हर दृश्य के बाद स्थितियाँ और भी ड्रामाई होती चली जाती हैं। इस सब के बीच माज़ी और हाल के न जाने कितने सवाल और उनके जवाब जुगनुओं की तरह झिलमिलाते रहते हैं।
Aas-Pados
- Author Name:
Gulzar
- Book Type:

- Description: यह ‘आस-पड़ोस’फ़िल्मकार, गीतकार, शायर और कहानीकार गुलज़ार के तीन ड्रामों से मिलकर बना-बसा है। गुलज़ार जिस तरह अल्फ़ाज़ से मनचाहा काम लेते हैं, उसी तरह उन्होंने ‘आस-पड़ोस’में फॉर्म्स को नई शक्ल दी है। लेकिन यह बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है वह जो इन ड्रामों में कही गई है, बल्कि बहुत सारी बातें। ‘ख़राशें’का सब्जेक्ट दंगे और उनके बीच जीता-लड़ता-मरता-भागता आम आदमी है, और हिन्दू-मुसलमान, भारत-पाकिस्तान होने की उसकी उलझनें हैं जिन्हें सियासत बीच-बीच में कठिन से कठिनतर करती जाती है। ‘लकीरें’उन्हीं सरहदों के बारे में है जो हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बीच खींची गई हैं। वे लकीरें जिन्हें अवाम के दिलों ने अब तक भी पूरी तरह क़ुबूल नहीं किया, लेकिन सरकारें उन्हीं से अपने कितने काम साधती रहती हैं! ‘अठन्नियाँ’में हमारी मुलाक़ात शहर मुम्बई और उसके तारीक हाशियों में ज़िन्दगी की जंग लड़ते लोगों से होती है। कहानियों और नज़्मों की इस बस्ती में दु:खों की भीड़ी-सीलीं गलियाँ भी हैं, और इनसान के हौसलों और ज़िन्दा रहने की ज़िदों का खुला बहुरंगी आसमान भी है। घने अहसास और हमारे दौर की एक पकी हुई क़लम से उतरी इस बस्ती से आप बार-बार गुज़रना चाहेंगे जिसका ख़ाका कहानियाँ खींचती हैं और उस ख़ाके को साँस की गर्मी और आँखों की नमी देने का काम नज़्में करती हैं।
Janvasa
- Author Name:
Ravindra Bharti
- Book Type:

-
Description:
‘जनवासा’ की प्रस्तुति देखकर भूदान के भ्रष्टाचार, स्वयंसेवियों की स्वयं की सेवा और क्रान्तिकारी धारा की पतनशीलता की समकालीनता का दर्शन हुआ। समय के सच पर भारती की अद्भुत पकड़ है।
—अरुण कुमार, ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, पटना
सच कहा जाए तो ‘जनवासा’ मानवीय संवेदनाओं का एक ऐसा कोलाज है जिसका हर रंग सामाजिक सरोकार के ताने-बाने में समाया है। नाटक नक्सलवादी विचारधाराओं के टकराव, भूदान आन्दोलन, वर्णव्यवस्था की बढ़ती खाई, अन्धविश्वास से मुक्ति के द्वार की खोज और अशिक्षा के बीच सम्भ्रान्त वर्गों की स्वार्थलोलुपता के छद्म रूपों को नग्न करता है। बल्कि समाज की अन्धी सुरंग में रोशनी भी दिखाता है, जैसे अब भी बहुत कुछ समाप्त नहीं हुआ है।
—‘दैनिक जागरण’, पटना
मेहनतकश भारतीय जनमानस में उपजे अनेक प्रश्नों की पृष्ठभूमि में आज की सामाजिक-राजनीतिक स्थिति का आईना है ‘जनवासा’। इस नाटक में सुधारवादी एवं तथाकथित क्रान्तिकारी, दोनों ही अपनी सूरत पहचान सकते हैं।
—कामरेड डी. प्रकाश
‘जनवासा’ में क्रान्ति और कल्याण की दुकानदारी करनेवालों के असली स्वरूप को उजागर किया गया है। सत्य के पक्ष में खड़ा होने पर कौन मित्र बनेंगे, कौन दुश्मन—इसकी परवाह किए बग़ैर रवीन्द्र भारती ने साहित्यिक ईमानदारी का परिचय दिया है।
—सुरेश भट्ट, एक्टिविस्ट
एक तीख़ा एवं विचारोत्तेजक नाटक है ‘जनवासा’। भाषा, शिल्प, संगीत एवं कथन, उपकथन हृदयग्राही है। बेहद रोचक यह नाटक सिर्फ़ राजनीतिक-सामाजिक स्थितियों की सच्चाई का न सिर्फ़ दर्शन कराता है, बल्कि भारतीय लोक-परम्परा के बहुरंग को भी उजागर करता है। बहुत दिनों के बाद एक बढ़िया प्ले देखने को मिला।
—डॉ. खालिक चौधरी (समाजशास्त्री)
Aala Afsar
- Author Name:
Mudra Rakshas
- Book Type:

- Description: हिन्दी में व्यापक लोकप्रियता और स्तरीय रचनात्मकता का अद्भुत उदाहरण है मुद्राराक्षस का यह नाटक ‘आला अफ़सर’। हिन्दी में ‘आला अफ़सर’ की लोकप्रियता लगभग अभूतपूर्व है जिसने भारत के हर कोने के रंगकर्मियों और दर्शकों को आकर्षित किया। इसके भारत की अन्य भाषाओं में अनुवाद भी हुए और उन्होंने भी दर्शकों को आकर्षित किया। सबसे लम्बी अवधि तक इस नाटक की प्रस्तुतियाँ मुम्बई जैसी व्यावसायिक रंगमंच की नगरी में हुईं। भारतीय रंगमंच के विदेशी अध्येताओं ने इसे एक गहरे आश्चर्य से देखा और विदेशी पुस्तकों में विस्तार से इस नाटक की चर्चा हुई। सरकार बदलने के बाद भी शासकों का न बदलना, नौकरशाही और राजनीतिज्ञों का रिश्ता एक यथार्थ बन जाना और मजलूमों का न्याय और दया के व्यापार द्वारा शोषण होना, इसके गानों में बताया गया है। मुद्राराक्षस के गानों की भाषा का प्रवाह बेदाग़ और उनका मज़ाहियापन नफ़ीस है। चाहिए कि इसके गाने हर खेल के साथ बेचे जाएँ या बँटें। इसके गाने प्रकाशित हों और रिकार्ड बनें, यह आज की नौटंकी का साहित्य से तक़ाज़ा है—आलोचकों का यह गम्भीर बयान इस बात का प्रमाण है कि रचनात्मक स्तर बनाए रखते हुए भी यह नाटक ‘आला अफ़सर’ हिन्दी नाट्य-जगत की एक बड़ी और लोकरंजक घटना है। इस नाटक में नौटंकी के मूल छन्दों को बनाए रखते हुए हिन्दी की वर्तमान कविता की क्षमताओं का संवेदनशील प्रयोग हुआ है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...