Karbala
Author:
PremchandPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
प्रेमचन्द का यह नाटक कर्बला की इतिहास-प्रसिद्ध घटना पर आधारित है जिसमें पैगम्बर हज़रत मुहम्मद के नवासे हज़रत हुसैन अपने कई परिजनों और समर्थकों के साथ शहीद हो गए थे। कर्बला की लड़ाई मुसलमानों के लिए ऐतिहासिक रूप से जितनी महत्त्वपूर्ण है उतनी ही धार्मिक रूप से भी, इसलिए अनगिनत लेखकों-कवियों ने अपनी रचनाओं में इसका बयान किया है, विशेषकर फ़ारसी-उर्दू साहित्य में काफ़ी कुछ लिखा गया है। लेकिन प्रेमचन्द से पहले इस घटना को विषय बनाकर नाटक सम्भवतः नहीं लिखा गया। हज़रत हुसैन सचाई और इनसानियत की रक्षा के लिए लड़े थे। इस लड़ाई में बहुत से हिन्दुओं ने भी उनका साथ दिया था। उनके साथ कुछ हिन्दू भी शहीद हुए थे। प्रेमचन्द ने इस ऐतिहासिक तथ्य का समावेश इस नाटक में किया है। उनका मकसद स्पष्ट है, वे न केवल मेलजोल की संस्कृति की एक अनुपम ऐतिहासिक मिसाल की याद दिलाते हैं बल्कि समाज में मेलजोल की संस्कृति को सुदृढ़ करने की वर्तमान आवश्यकता को भी रेखांकित करते हैं।
ISBN: 9788197989650
Pages: 200
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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शिव-सती प्रसंग को आधार बनाकर लिखी गई इस काव्य-नाटिका में दुष्यन्त कुमार ने बड़ी बेबाकी से कई ऐसे प्रसंगों को उठाया है जो हमारे समय में प्रासंगिक हैं। देवताओं में शिव ऐसे मिथक हैं जो औरों से बिलकुल अलग आभावाले हैं। इस शिव की ख़ासियत यही है कि अगर इनका तीसरा नेत्र खुल गया तो फिर दुनिया को ख़ाक होते देर नहीं लगेगी। सभी प्रार्थना करते हैं कि यह नेत्र यूँ ही बन्द रहे। क्या यह शिव उस आम आदमी की शक्ति का पर्याय नहीं जिसके जगने पर सत्ताधीशों को ज़मींदो़ज़ होते देर नहीं लगती। ये सत्ताधीश अपनी भलाई इसी में समझते हैं कि शिव अपना नेत्र बन्द रखें। अर्थात् जनता अपनी शक्ति अपने सामर्थ्य को भूली रहे। वह सोयी ही रहे, किसी भी क़ीमत पर जगने न पाए। यह शिव जो कि एक जन-प्रतीक है, दुनिया भर के विष को अपने कण्ठ में समाहित किए हुए है। चार अंकों में फैला काव्य-नाट्य ‘एक कण्ठ विषपायी’ का वितान कुछ ऐसा ही है।
काव्य-नाटिका ‘एक कण्ठ विषपायी’ में एक पात्र है ‘सर्वहत’ जो अनायास ही उभरकर आधुनिक प्रजा का प्रतीक बन गया। दरअसल यह सर्वहत उस सर्वहारा वर्ग का ही प्रतिनिधि है जो हर जगह उपेक्षित रहता है। एक जगह यह सर्वहत कहता है—‘मैं सुनता हूँ...मैं सब कुछ सुनता हूँ, सुनता ही रहता हूँ, देख नहीं सकता हूँ, सोच नहीं सकता हूँ और सोचना मेरा काम नहीं है। उससे मुझे लाभ क्या मुझको तो आदेश चाहिए। मैं तो शासक नहीं प्रजा हूँ। मात्र भृत्य हूँ केवल सुनना मेरा स्वभाव है।’ क्या आज भी जनता की यही स्थिति नहीं है? वह मूकद्रष्टा की भूमिका में होती है। जनता के सेवक के नाम पर शासन करनेवाले नेता और नौकरशाह अपने को अधिनायक समझने लगते हैं। लोकतंत्र भी आज महज़ एक मज़ाक़ बनकर रह गया है। वंशवाद, परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद से आज सभी दल आप्लावित हैं। एक जगह सर्वहत कहता भी है—‘शासन के ग़लत-सलत झोंकों के आगे भी फ़सलों-से विनयी हम बिछे रहे। निर्विवाद हमारे व्यक्तित्व के लहलहाते हुए खेतों से होकर दक्ष ने बहुत-सी पगडंडियाँ बनाईं, कर दीं सब फ़सलें बर्बाद।’
Chahakata Chauraha
- Author Name:
Varsha Das
- Book Type:

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style="font-weight: 400;">रेडियो नाटक एक स्वतंत्र विधा है जिसकी सम्पूर्ण अनुभूति संगीत के साथ प्रस्तुत उसके रेडियो प्रसारण से ही होती है। लेकिन पाठ के रूप में रेडियो नाटक को पढ़ना भी एक समग्र अनुभव है जो हिन्दी पाठक अनेक वरिष्ठ लेखकों द्वारा रेडियो के लिए लिखे नाटकों के माध्यम से प्राप्त कर चुके हैं।
यह नाटक-संकलन उसी शृंखला की एक कड़ी है जिसमें अनेक विधाओं में समान कौशल से सृजनशील रहीं कला समीक्षक, कथाकार और कवयित्री वर्षा दास के तीन नाटक संकलित हैं। शिक्षा, अपने अधिकारों के प्रति सजगता, आपसी रिश्तों और महिला सशक्तीकरण को विभिन्न पहलुओं से आँकते, रेखांकित ये सरल-सहज नाटक अपनी विधा के साथ तो न्याय करते ही हैं, पठनीयता की भी तमाम शर्तों को पूरा करते हैं।
एक सिद्धहस्त रचनाकार के रूप में अपनी कला और कल्पना से दृश्यों को साकार करती हुईं वर्षा दास इन नाटकों के माध्यम से हमें अपनी रचनात्मकता के एक नए आयाम से परिचित कराती हैं।
Dank
- Author Name:
Vasant Kanetkar
- Book Type:

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