Sabase Bada Sawal
Author:
Harishankar ParsaiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
हरिशंकर परसाई की कई कहानियों का मंचन विभिन्न रंग-मंडलियाँ और निर्देशक करते रहे हैं। नाटकीयता उनकी कहानियों के प्रमुख तत्त्वों में से एक है जिसके चलते वे आसानी से बेहतरीन नाट्य-प्रस्तुतियों में ढल जाती हैं।</p>
<p>लेकिन ‘सबसे बड़ा सवाल’ नाटक ही है, और सम्भवत: परसाई जी की एकमात्र नाट्य-रचना। दृश्य-योजना, पात्रों की संकल्पना, परिस्थितियों के ‘कंस्ट्रास्ट’ और दृश्यों के कम्पोजीशन में यह नाटक श्रेष्ठ नाटकों की कोटि में ठहरता है जिसे पढ़ना जितना दिलचस्प है, मंच पर देखना उससे भी ज्यादा उत्तेजक होगा।</p>
<p>नाटक की कथावस्तु राजनीतिक है, और पृष्ठभूमि है एक चुनाव की जिसमें चार पार्टियाँ हिस्सा ले रही हैं—काली पार्टी, सफेद पार्टी, पीली पार्टी और विजय पार्टी।</p>
<p>सुसंगत दृश्यों, संवादों और समाज व राजनीति के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले पात्रों के माध्यम से यह नाटक भ्रष्टाचार, राजनेताओं के पाखंड और आम जनता के भीड़ में बदल जाने की प्रवृत्ति के साथ-साथ युवा वर्ग की दिशाहीन समझौतापरस्ती को भी उजागर करता है। नाटक में कई मोड़ ऐसे भी आते हैं जहाँ से हमें अपना वर्तमान झाँकता दिखाई देता है।
ISBN: 9789360864897
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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—‘नवभारत टाइम्स (पटना संस्करण) 27 अप्रैल, 1994
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‘लहरों के राजहंस’ में एक ऐसे कथानक का नाटकीय पुनराख्यान है जिसमें सांसारिक सुखों और आध्यात्मिक शान्ति के पारस्परिक विरोध तथा उनके बीच खड़े हुए व्यक्ति के द्वारा निर्णय लेने का अनिवार्य द्वन्द्व निहित है। इस द्वन्द्व का एक दूसरा पक्ष स्त्री और पुरुष के पारस्परिक सम्बन्धों का अन्तर्विरोध है। जीवन के प्रेम और श्रेय के बीच एक कृत्रिम और आरोपित द्वन्द्व है, जिसके कारण व्यक्ति के लिए चुनाव कठिन हो जाता है और उसे चुनाव करने की स्वतंत्रता भी नहीं रह जाती। चुनाव की यातना ही इस नाटक का कथा-बीज और उसका केन्द्र-बिन्दु है। धर्म-भावनाओं से प्रेरित इस कथानक में उलझे हुए ऐसे ही अनेक प्रश्नों का नए भाव-बोध के परिवेश में परीक्षण किया गया है। सुन्दरी के रूपपाश में बँधे हुए अनिश्चित, अस्थिर और संशयी मतवाले नन्द की यही स्थिति होनी थी कि नाटक का अन्त होते-होते उसके हाथों में भिक्षापात्र होता और धर्म-दीक्षा में उसके केश काट दिए जाते।
‘लहरों के राजहंस’ के कथानक को आधुनिक जीवन के भावबोध का जो संवेदन दिया गया है, वह इस ऐतिहासिक कथानक को रचनात्मक स्तर पर महत्त्वपूर्ण बनाता है। वास्तव में, ऐतिहासिक कथानकों के आधार पर श्रेष्ठ और सशक्त नाटकों की रचना तभी हो सकती है, जब नाटककार ऐतिहासिक पात्रों और कथा-स्थितियों को ‘अनैतिहासिक’ और ‘युगीन’ बना दे तथा कथा के अन्तर्द्वन्द्व को आधुनिक
अर्थ-व्यंजना प्रदान कर दे।
सभी देशों के नाटक-साहित्य के इतिहास में विभिन्न युगों में जब भी श्रेष्ठ ऐतिहासिक नाटकों की रचना हुई है, तब नाटककारों ने प्राचीन कथानकों को नई दृष्टि से देखा है और उनको नई अर्थ-व्यंजनाएँ दी हैं। उसी परम्परा में मोहन राकेश का यह नाटक भी है जो अध्ययन-कक्षों तथा रंगशालाओं में पाठकों और दर्शकों, दोनों को रस देता है।
Katha Shakuntala Ki
- Author Name:
Radhavallabh Tripathi
- Book Type:

- Description: शकुंतला-दुष्षंत की कथा की इस नाट्य-प्रस्तुति को जो चीज़ विशिष्ट बनाती है, वह है इसका काल-बोध और तत्कालीन परिवेश का तथ्यपरक निरूपण। ‘महाभारत’ में किंचित् परिष्कृत रूप में सबसे पहले आनेवाली यह कथा वास्तव में वैदिक काल की है। इसके पात्र वेदों के समय से सम्बन्ध रखते हैं। दुष्यंत के पुत्र भरत का ज़िक्र भी वेदों में मिलता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ‘महाभारत’ में यह कथा जिस रूप में आई, उसके बजाय यह नाटक इस कथा के उस रूप को आधार बनाता है जो वैदिक काल में रहा होगा। ‘महाभारत’ में, और उसके बाद हम जिस भी रूप में इस कथा को देखते हैं, उसकी जड़ें सामन्ती मूल्य-संरचना में हैं। वैदिक संस्करण निश्चय ही कुछ भिन्न रहा होगा और उसका परिप्रेक्ष्य आदिम मूल्यबोध से रहा होगा। इस नाटक में कथा के उसी रूप को पकड़ने का प्रयास किया गया है। इसीलिए यहाँ ‘दुष्यंत’ को ‘दुष्षंत’ कहा गया है जो ‘महाभारत’ तथा वैदिक साहित्य में आता है। यह प्रचलित कथा मूलत: मातृसत्तात्मक समाज से ताल्लुक़ रखती है जहाँ लड़कियों को अपना जीवन साथी चुनने की पूरी छूट है, जैसाकि शकुंतला भी करती है। नाटक में भूख और अकाल की भी चर्चा है जिन्हें वेदों के ही कुछ प्रसंगों के आधार पर पुन:सृजित किया गया है। भाषा, संवाद-रचना और प्रसंगानुकूल दृश्य-रचना के चलते यह नाटक शकुंतला की जानी-पहचानी कथा को हमारे सामने नए और भावप्रवण रूप में प्रस्तुत करता है; जो मंच के लिए जितना अनुकूल है, साधारण पाठ के लिए भी उतना ही रुचिकर है।
Rang Kolaj
- Author Name:
Devendra Raj Ankur
- Book Type:

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Description:
रंग कोलाज रंगमंच के कुछ अनिवार्य सवालों पर उत्तेजक बहस छेड़ती है। इसमें अभिनेता, निर्देशक, नाट्य रचना, नुक्कड़ नाटक, कहानी मंचन के बहाने रंगमंच के बदलते स्वरूप और समीकरणों को कई स्तरों पर परखने की कोशिश की गई है। कुछ सैद्धान्तिक सवाल उठाए गए हैं तो दूसरी ओर प्रयोग के धरातल पर भी संवाद बनाने की शुरुआत की गई है।
साहित्य के अध्येता और सक्रिय रंगकर्मी देवेन्द्र राज अंकुर का यह अध्ययन हिन्दी रंगकर्म के विद्यार्थियों और सुधी पाठकों के लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। अभिनेता की रचना प्रक्रिया, भारतीय रंगमंच में एकल अभिनय, अभिनेता और दर्शक के आपसी सम्बन्ध, नुक्कड़ नाटकों के व्याकरण, उनकी परम्परा तथा नाटककार और निर्देशक के अन्तर्सम्बन्धों पर अपने अनुभवों के परिप्रेक्ष्य में प्रकाश डालने के अलावा इस पुस्तक में लेखक ने कृष्ण बलदेव वैद और काशीनाथ सिंह की रचनात्मकता पर भी एक रंगकर्मी-आलोचक की हैसियत से पर्याप्त प्रकाश डाला है।
विवेचनात्मक आलेखों के साथ-साथ इस पुस्तक में दो नाटकों के अनुवाद भी शामिल हैं, और, साथ ही महेश आनन्द द्वारा अंकुर जी से लिया गया एक साक्षात्कार भी जो इस पुस्तक की उपयोगिता को और ज़्यादा बढ़ा देता है।
Ande Ke Chhilke : Anya Ekanki Tatha Beej Natak
- Author Name:
Mohan Rakesh
- Book Type:

- Description: आधुनिक हिन्दी नाटय साहित्य और कथा की दुनिया में मोहन राकेश का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। हिन्दी-रंगान्दोलन को एक नई गति और समृद्धि देने में उनकी निर्णायक भूमिका रही है। ‘अंडे के छिलके : अन्य एकांकी तथा बीज नाटक’ उनके कई प्रयोगधर्मी एकांकियों का संग्रह है। प्रयोगशीलता को मोहन राकेश रंगमंच की भाषा और उसके मानवीय पक्ष की समृद्धि से जोड़कर देखते थे, अर्थात् रंगमंचीय उपकरणों की न्यूनता के बावजूद कठिन से कठिन प्रयोग कर पाने की क्षमता के साथ जोड़कर। जयदेव तनेजा राकेश के नाटकों की एक दुर्लभ विशेषता पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि, ''उनके नाटकों में मंचीय सफलता और प्रदर्शनीयता के साथ-साथ साहित्यिकता और पठनीयता का भी विलक्षण गुण विद्यमान है। उनमें इन दोनों विशेषताओं का अद्भुत सामंजस्य हुआ है। नाटकों को पद्य मानने का ही यह परिणाम है कि उनके नाट्य-संवादों और रंग-निर्देशों की भाषा में कोई अन्तर नहीं है। सम्भवत: यही कारण है कि उनके नाटकों को देखते या सुनते हुए ही नहीं, पढ़ते हुए भी बीच में छोड़ना कष्टकर प्रतीत होता है।'' संक्षेप में, इस संग्रह में शामिल नाटकों को हम राकेश के बहुस्तरीय नाट्य-लेखन के समर्थ उदाहरणों के रूप में देख सकते हैं।
Hanoosh
- Author Name:
Bhisham Sahni
- Book Type:

- Description: ‘हानूश’ भीष्म साहनी का एक ऐसा नाटक है जिसमें कलाकार की सृजन की अदम्य अकुलाहट और उसकी निरीहता को रूपायित किया गया है। धर्म और सत्ता के गठबन्धन के साथ सामाजिक शक्तियों के संघर्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति भी है यह अनमोल नाटक ‘हानूश’। कलाकार के पारिवारिक तनावों का अनूठा अंकन हुआ है ‘हानूश’ में। इस नाटक में एक ऐसे कलकार को केन्द्रीय भूमिका मिली है जो शुरू में ताला बनानेवाला एक सामान्य मिस्त्री है, बाद में उसके दिमाग़ में घड़ी बनाने का विचार उत्पन्न होता है और वह घड़ी बनाने में लग जाता है। विषम परिस्थितियों से जूझता हुआ वह घड़ी बनाने के काम में लगातार सत्रह साल गुज़ार देता है और अन्ततः इस लगन और कड़ी मेहनत के परिणामस्वरूप वह चेकोस्लोवाकिया की पहली घड़ी बनाने में कामयाब होता है। उसकी बनाई गई घड़ी नगरपालिका की मीनार पर लगाई जाती है, लेकिन इतनी बड़ी सफलता के बाद कलाकार को क्या मिलता है? बादशाह कलाकार की आँखें निकलवा लेता है, ताकि वह उस तरह की दूसरी घड़ी नहीं बना सके। चेक-इतिहास की इस छोटी-सी घटना से भीष्म साहनी ने हिन्दी को यह यादगार नाटक सौंपा है जो आज छह दशक बाद भी रंग-प्रेमियों के लिए यथार्थ और आश्चर्य का एक सामंजस्य-सा प्रतीत होता है।
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