Sakharam Binder
Author:
Vijay TendulkarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
<span style="font-weight: 400;">सरोजिनी वर्मा द्वारा मराठी के प्रसिद्ध नाटककार विजय तेंदुलकर की अत्यन्त विवादास्पद और बहुचर्चित कृति ‘सखाराम बाइंडर’ का सशक्त और प्राणवान अनुवाद, जिसने रंगमंच पर दाम्पत्य जीवन की गोपनीय नैतिकता का साहसपूर्ण ढंग से पर्दाफ़ाश किया है। सरकारी नियंत्रण को चुनौती देकर उच्चतम न्यायालय से लेखकीय अभिव्यक्ति के आधार पर मान्यता पानेवाला यह अपने ढंग का अकेला और अनूठा नाटक है।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">‘सखाराम बाइंडर’ को इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि वह ग़लाज़त से भरी दिखावटी सम्भ्रान्तता को पहली बार इतने सक्षम ढंग से चुनौती देता है। रटे-रटाए मूल्यों को सखाराम ही नहीं, इस नाटक के सारे पात्र अपनी पात्रता की खोज में ध्वस्त करते चले जाते हैं। जिन नक़ली मूल्यों को हम अपने ऊपर आडम्बर की तरह थोपकर चिकने-चुपड़े बने रहना चाहते हैं, उसे सही-सही इस आईने में निर्ममता से उघड़ता हुआ देखते हैं। ‘सखाराम बाइंडर’ वही आईना है। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">भाषा के स्तर पर सारे पात्र बड़ी खुली और ऐसी बाज़ारूपन से संयुक्त भाषा का प्रयोग करते हैं जिन्हें हमने अकेले-दुकेले कभी सुना ज़रूर होगा, किन्तु उसे अपने संस्कारिता का अंश मानने में सदैव कतराते रहे हैं।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पूरे नाटक में कथावस्तु की विलक्षणता न होते हुए भी पात्रों का आपसी संयोजन भाषा के जिस स्तर पर नाटककार ने किया है, वही नाटकीयता को उभारने में अद्भुत रूप से सफल हुआ है।</span>
ISBN: 9788180315725
Pages: 158
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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जगदीशचन्द्र माथुर का ‘कोणार्क’ अत्यन्त सफल कृति है। नाट्यकला की ऐसी सर्वांगपूर्ण सृष्टि अन्यत्र देखने को नहीं मिली। विषय-निर्वाचन, कथा-वस्तु, क्रम-विकास, संवाद, ध्वनि, मितव्ययिता आदि दृष्टियों से ‘कोणार्क’ अद्भुत कला-कृति है।
छोटे-छोटे अंकों के भीतर एक विराट युग का स्पन्दन गागर में सागर की तरह छलक उठता है। उपक्रम तथा उपसंहार लेखक के अत्यन्त मौलिक प्रयोग हैं, जिनमें नाटक की सीमाएँ एक रहस्य-विस्तार में खो-सी गई हैं। उपक्रम में आँखों के सामने एक विस्मृत ऐतिहासिक युग का ध्वंस-शेष, कल्पना में समुद्र ही तरह आर-पार उद्वेलित होकर साकार हो उठता है।
कलाकार का बदला जीवन-सौन्दर्य ही चुनौती नहीं देता, वह अत्याचारी को भी जैसे अतल अन्धकार में डाल देता है। सहनशील ‘विशु’ तथा विद्रोही ‘धर्मपद’ में कला के प्राचीन और नवीन युग मूर्तिमान हो उठते हैं। ‘विशु’ और ‘धर्मपद’ का पिता-पुत्र का नाता और तत्सम्बन्धी करुण-कथा इतिहास के गर्जन में घुल-मिलकर नाटक को मार्मिकता प्रदान करती है।
आज के संघर्ष के जर्ज युग में ‘कोणार्क’ द्वारा ‘कला और संस्कृति’ अपनी चिरन्तन उपेक्षा का विद्रोहपूर्ण सन्देश मनुष्य के पास पहुँचा रही है।
— सुमित्रानंदन पंत
‘सन् 1950 में लिखित’
Rangmanch ke Siddhant
- Author Name:
Mahesh Anand
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी में एक ऐसी पुस्तक की लम्बे समय से प्रतीक्षा थी जो पूर्व और पश्चिम में प्रचलित नाट्य सिद्धान्तों को एक स्थान पर और सुग्राह्य भाषा में उपलब्ध कराती हो। ‘रंगमंच के सिद्धान्त’ इसी उद्देश्य की पूर्ति करती है। समकालीन रंगमंच के अध्येता महेश आनन्द तथा रंगकर्म के व्यावहारिक और सैद्धान्तिक पक्षों का एक-सी निष्ठा के साथ निर्वाह करते आ रहे सुपरिचित रंगकर्मी देवेन्द्र राज अंकुर के कुशल सम्पादन में तैयार इस पुस्तक में अरस्तू से लेकर भारतेन्दु और फिर बादल सरकार तक के रंग सिद्धान्तों का विवेचन अधिकारी विद्वानों और रंगकर्मियों द्वारा किया गया है।
यह पुस्तक बताती है कि रंगमंच केवल किसी नाट्य-कृति को अभिनेताओं द्वारा मंच पर खेल देना भर नहीं होता। समाज, मनुष्य, उसकी मनोरचना और नियति के साथ रंगमंच के सम्बन्ध को लेकर हर युग में चिन्तक और रंगकर्मी चिन्तन-मनन करते रहे हैं और मानव-जीवन की एक अधिकाधिक विश्वसनीय प्रतिकृति के रूप में रंगकर्म को स्थापित करने के लिए नई-नई शैलियाँ ढूँढ़ते और विकसित करते रहे हैं। उन तमाम सिद्धान्तों-शैलियों को प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है जो अपने समय में रंगकर्म के लिए दिशा-निर्देशक बने और आज भी हमारी सोच को उत्तेजित करते हैं। जिन विचारकों के सिद्धान्तों का विश्लेषण किया गया है, वे हैं: अरस्तू, स्तानिस्लाव्स्की, मेयरहोल्ड, आर्तो, ब्रेष्ट, क्रेग, माइकेल चेख़व, ग्रोतोव्स्की, पीटर ब्रुक, ज़ेआमि, भरत, भारतेन्दु, प्रसाद और बादल सरकार।
Pagla Ghora
- Author Name:
Badal Sarkar
- Book Type:

- Description: सुप्रसिद्ध नाटककार बादल सरकार की यह कृति बांग्ला और हिन्दी दोनों भाषाओं में अनेक बार मंचस्थ हो चुकी हैं। बांग्ला में शम्भू मित्र (‘बहुरूपी’, कलकत्ता) और हिन्दी में श्यामानन्द जालान (‘अनामिका’, कलकत्ता), सत्यदेव दुबे (‘थियेटर यूनिट’, बम्बई) तथा टी.पी. जैन (‘अभियान’, दिल्ली) ने इसे प्रस्तुत किया। गाँव का निर्जन श्मशान, कुत्ते के रोने की आवाज़, धू-धू करती चिता और शव को जलाने के लिए आए चार व्यक्ति—इन्हें लेकर नाटक का प्रारम्भ होता है। हठात् एक पाँचवाँ व्यक्ति भी उपस्थित हो जाता है—जलती हुई चिता से उठकर आई लड़की, जिसने किसी का प्रेम न पाने की व्यथा को सहने में असमर्थ होकर आत्महत्या कर ली थी और जिसके शव को जलाने के लिए मोहल्ले के ये चार व्यक्ति उदारतापूर्वक राजी हो गए थे। आत्महत्या करनेवाली लड़की के जीवन की घटनाओं की चर्चा करते हुए एक-एक करके चारों अपने अतीत की घटनाओं की ओर उन्मुख होते हैं, उन लड़कियों के, उप-घटनाओं के बारे में सोचने को बाध्य होते हैं जो उनके जीवन में आई थीं और जिनका दुखद अवसान उनके ही अन्याय-अविचार के कारण हुआ था । किन्तु ‘पगला घोड़ा’ में नाटककार का उद्देश्य न तो शमशान की बीभत्सता के चित्रण द्वारा बीभत्स रस की सृष्टि करना है और न ही अपराध-बोध का चित्रण। बादल बाबू के शब्दों में यह ‘मिष्टि प्रेमेर गल्प’ अर्थात् ‘मधुर प्रेम-कहानी’ है।
Yayati
- Author Name:
Girish Karnad
- Book Type:

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Description:
हर व्यक्ति जैसे दुःख और द्वन्द्व का एक भँवर है और फिर वह भँवर एक नदी का हिस्सा भी है; और यह हिस्सा होना भी पुनः एक दुःख और द्वन्द्व को जन्म देता है। इसी तरह एक शृंखला बनती जाती है जिसका अन्त व्यक्ति की उस आर्त्त पुकार पर होता है कि ‘भगवान, इसका अर्थ क्या है?’ ‘ययाति’ नाटक के सारे पात्र इस शृंखला को अपने-अपने स्थान से गति देते हैं, जैसे जीवन में हम सब। अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं से प्रेरित-पीड़ित इस तरह हम जीवन का निर्माण करते हैं।
राजा ययाति की यौवन-लिप्सा, देवयानी और चित्रलेखा की प्रेमाकांक्षा, असुरकन्या शर्मिष्ठा का आत्मपीड़न और दमित इच्छाएँ, और पुरु का सत्ता और शक्ति-विरोधी अकिंचन भाव—ये सब मिलकर जीवन की ही तरह इस नाटक को बनाते हैं, जो जीवन की ही तरह हमें अपनी अकुंठ प्रवहमयता से छूता है।
अपने अन्य नाटकों की तरह गिरीश करनाड इस नाटक में भी पौराणिक कथाभूमि के माध्यम से जीवन की शाश्वत छटपटाहट को संकेतित करते हुए अपने सिद्ध शिल्प में एक अविस्मरणीय नाट्यानुभव की रचना करते हैं।
Ramlila : Parampara Aur Shailiya
- Author Name:
Induja Awasthi
- Book Type:

- Description: हिन्दी-भाषी क्षेत्र की सबसे प्राचीन और समृद्ध नाट्य परम्परा–रामलीला–की सर्वांगीण झाँकी पहली बार इस पुस्तक में पाठकों को मिलेगी। रामलीला की ऐतिहासिक भूमिका, सुसंस्कृत और मध्ययुगीन नाट्य परम्परा से उसका सम्बन्ध, नाटकीय संवादों के स्रोत, सामाजिक, सांस्कृतिक पुस्तक, प्रदर्शन और अभिनय के व्यवहार, क्षेत्रीय शैलियाँ, रामलीला की रंगमंचीय परम्परा–सभी पक्षों का गंभीर विवेचन इस पुस्तक की विशेषता है। रामचरितमानस का गहरा प्रभाव रामनगर, वाराणसी की विशिष्ट रामलीला शैली पर है। इस पुस्तक में नितान्त नयी सामग्री प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत की गई है। एक अध्याय में रामकथा पर आधारित देश के विभिन्न भागों में प्रचलित पारम्परिक नाट्य-रूपों की चर्चा रामलीला की परम्परा को अखिल भारतीय सन्दर्भ प्रदान करती है। लेखिका ने एक ओर तो स्थान-स्थान के रामलीला प्रदर्शन देखकर तथ्य एकत्र किये और दूसरी ओर अपने चार दशकों के गहरे और व्यावहारिक रंगमंचीय अनुभव के आधार पर इस विवेचन को ऐसा रंग-बोध दिया है जो हिन्दी के नाट्य-अनुसन्धान में सर्वथा नया है। अन्तिम परिशिष्ट में दक्षिण एशियाई देशों की नृत्यनाट्य और रूपांकन कलाओं में रामायण के गहरे प्रभाव का विवेचन पुस्तक की उपादेयता को बढ़ा देता है।
Mahasagar
- Author Name:
Jaywant Dalvi
- Book Type:

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‘संध्या-छाया’ और ‘पुरुष’ जैसे चर्चित नाटकों के रचयिता जयवन्त दलवी का यह नाटक भी, न सिर्फ़ मराठी में, बल्कि हिन्दी में भी बहुत पसन्द किया जाता रहा है। मराठी रंगमंच पर इसकी लगभग एक हज़ार से ज़्यादा प्रस्तुतियाँ हो चुकी हैं, और अब भी जब कोई रंगमंडल इसे खेलता है, दर्शकों की भीड़ लग जाती है। अनेक ख्यातनामा निर्देशक और अभिनेता इससे जुड़े रहे हैं।
नाटक का मुख्य पात्र, कहें तो, वह मानव-मन है जो कभी-कभी भावनाओं के महासागर का रूप ले लेता है और उसकी उत्ताल तरंगों पर समाज द्वारा बनाई संस्थाएँ, उदाहरण के लिए परिवार, टूटे झोंपड़े की तरह तैरने लगती हैं। नाटक में दिगम्बर और सुमी दो मित्र हैं जो अपने-अपने परिवार में प्रसन्नतापूर्वक रहते हैं। सुमी का पति घनश्याम है और दिगम्बर की पत्नी चम्पू है। चम्पू दिगम्बर के छोटे भाई वसन्त को लेकर असहज है क्योंकि उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, और सुमी अपने बॉस रहमान के प्यार में पड़ जाती है। इस सबका परिणाम भावोद्रेकपूर्ण नाटकीय स्थितियों में होता है, और दर्शक मनुष्य के चरित्र की अनेक परतों को अपने सामने से गुज़रते देखता है।
नाटक में सुदीर्घ और स्पष्ट लेखकीय निर्देश इसे न केवल भावी निर्देशकों-अभिनेताओं के लिए ग्राह्य बनाते हैं, बल्कि पुस्तक रूप में पढ़नेवाले पाठक भी नाटक के पात्रों और परिस्थितियों से ज़्यादा तादात्म्य स्थापित कर पाते हैं।
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