Prem Aur Patthar
Author:
Varsha DasPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
<span lang="HI">इस लघु</span><span lang="HI">-</span><span lang="HI">नाटक संकलन में वर्षा दास द्वारा किए गए चार कहानियों के नाट्य</span><span lang="HI">-</span><span lang="HI">रूपान्तरण हैं जिनमें उन्होंने कहानी के मूल मन्तव्य को बिना कोई हानि पहुँचाए उसे नाट्य</span><span lang="HI">-</span><span lang="HI">रूप दिया है</span><span lang="HI">।</span><span lang="HI"> पहला नाटक डॉ</span><span lang="HI">. </span><span lang="HI">लोकनाथ भट्टाचार्य की बांग्ला कहानी </span><span lang="HI">‘</span><span lang="HI">प्रेम ओ पाथर</span><span lang="HI">’ </span><span lang="HI">पर आधारित है</span><span lang="HI">।</span><span lang="HI"> इसके केन्द्र में शिव की एक प्राचीन प्रस्तर</span><span lang="HI">-</span><span lang="HI">मूर्ति है जो कथा</span><span lang="HI">-</span><span lang="HI">नायक के लिए एक बड़े नैतिक निर्णय का आधार बनती है</span><span lang="HI">।</span><span lang="HI"> वह उस मूर्ति की चोरी करनेवाले एक तथाकथित संस्कृति</span><span lang="HI">-</span><span lang="HI">प्रेमी द्वारा दी जानेवाली नौकरी को भी ठुकरा देता है और आगे हमेशा के लिए उससे सम्बन्ध समाप्त कर लेता है</span><span lang="HI">।</span></p>
<p><span lang="HI">दूसरा नाटक लाभुबहन मेहता की गुजराती कहानी </span><span lang="HI">‘</span><span lang="HI">बिन्दी</span><span lang="HI">’ </span><span lang="HI">पर आधारित है जिसमें एक युवती के आकस्मिक वैधव्य और फिर उसके जीवन के एक नए मोड़ की कहानी को रूपायित किया गया है</span><span lang="HI">।</span><span lang="HI"> नाटक </span><span lang="HI">‘</span><span lang="HI">मरा हुआ</span><span lang="HI">’ </span><span lang="HI">डॉ</span><span lang="HI">. </span><span lang="HI">लोकनाथ भट्टाचार्य की ही बांग्ला दिलचस्प नाटक है जिसमें एक कुत्ते की मौत और मनुष्यों से उसके सम्बन्ध</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI">को बहुत मनोरंजक ढंग से प्रकाश डाला गया है</span><span lang="HI">।</span></p>
<p><span lang="HI">‘</span><span lang="HI">जेसल</span><span lang="HI">-</span><span lang="HI">तोरल</span><span lang="HI">’ </span><span lang="HI">एक गुजराती लोककथा पर आधारित नाटक है जिसमें एक किंवदन्ती के माध्यम से हमें एक नैतिक सबक मिलता है</span><span lang="HI">।</span><span lang="HI"> कहानी एक लुटेरे की है जो अन्त में अपने किए पर पश्चात्ताप करता है और बदल जाता है</span><span lang="HI">।</span>
ISBN: 9788126729685
Pages: 124
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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श्रीमैथिलीशरण गुप्त के नाटकों का यह संग्रह एक साथ प्रकाशित होने के कारण ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इस अर्थ में और भी महत्त्वपूर्ण है कि अभी तक अप्रकाशित, ‘निष्क्रिय-प्रतिरोध’ और ‘विसर्जन’, नाटकों के पहली बार प्रकाशन के कारण अधिकतर मूल्यवान है। इसमें पाँच मौलिक और चार अनूदित कुल नौ नाटक सम्मिलित हैं। इन सभी प्रकार के नाटकों के चयन में गुप्त जी ने वैविध्य का ध्यान रखा है। इन नाटकों का मुख्य उद्देश्य अपने समय के महत्त्वपूर्ण और चुनौती-भरे प्रश्नों का उत्तर देना रहा है।
‘अनघ’ नाटक अहिंसा, करुणा, लोक-सेवा आदि पर आधारित है। ‘विसर्जन’ में पहली बार बेगार प्रथा की ख़िलाफ़त की गई है। यह बेगार प्रथा और शोषण के ख़िलाफ़ सशक्त नाटक है। ‘निष्क्रिय-प्रतिरोध’ दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहान्सबर्ग पर केन्द्रित है जो महात्मा गांधी द्वारा कुलियों पर किए गए अत्याचार के विरोध की याद दिलाता है। महाकवि भास के संस्कृत नाटकों के किए गए अनुवादों में पारिवारिकता, उदारता, सत्याग्रह, लोक-सेवा, अन्तरात्मा की प्रतिध्वनि और अहिंसा आदि मूल्यों की मार्मिक अभिव्यक्ति है। श्रीमैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा लिखित इस संग्रह के नाटक उनके समय के प्रश्नों को समझाने और उनका उत्तर खोजने के अतिरिक्त आज के नारी-विमर्श एवं दलित-विमर्श के चिन्तन को भी रेखांकित करते हैं।
Kutte
- Author Name:
Vijay Tendulkar
- Book Type:

- Description: से दूर पिछड़े क्षेत्र में नियुक्त एक सेल्समैन, उसका एक बेहद चतुर-दुनियादार सहायक, घोडके, एक प्रौढ़वय स्त्री और उसके कुत्ते। इस नाटक की कथा इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है। अपने घर-परिवार से दूर अकेलेपन और अनिद्रा से त्रस्त नायक घोडके की मार्फ़त उस रहस्यमयी स्त्री की कोठी में जा पहुँचता है जहाँ वह अपने सात पालतू कुत्तों के साथ रहती है। उसका विश्वास है कि इनमें से किसी एक कुत्ते के रूप में उसके दिवंगत पति ने पुनर्जन्म लिया है। स्त्री का दिव्य रूप, अभिजात संयम और आध्यात्मिक वलय नायक को पूरी तरह अपनी गिरफ़्त में ले लेता है। और, एक अभागी रात वह कुछ ऐसा कर गुज़रता है जो उसके भीतरी-बाहरी संसार को पूरी तरह बदल डालता है। विजय तेन्दुलकर के अन्य नाटकों की तरह यह नाटक भी मानव-जीवन की विडम्बनाओं और विद्रूपताओं को बड़े कौशल से खोलता है और दर्शक को सोच के एक नए धरातल पर ले जाता है। रंगशिल्प और मंचीय भाषा के लिहाज़ से भी यह नाटक विशिष्ट है। अपनी नाट्य-विधियों और गतिमयता के कारण यह पाठक और दर्शक, दोनों के लिए एक चिरस्मरणीय अनुभव होने की क्षमता रखता है।
Maatigaari
- Author Name:
Hrishikesh Sulabh
- Book Type:

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Description:
‘बिदेसिया’ के विन्यास के बावजूद संरचनात्मक गठन एक नए ही शिल्प की तरफ़ इशारा करता है जो सुलभ की अपनी निर्मिति है। मौलिकता का एक सबूत तो इनकी अभिव्यक्ति है जो समकालीन जीवन की विसंगतियों के ज़बर्दस्त प्रतिरोध से जन्मी हैं। पारम्परिक प्रविधि को समकालीन सन्दर्भों में रखकर सुलभ ने उसे समकालीन बनाया है और उसकी सम्प्रेषण–क्षमता का बहुविध विस्तार किया है। एक अर्थ में यह नाटक अपनी स्थानीयता का अतिक्रमण भी है, तो दूसरे अर्थ में स्थानीयता का केन्द्रीयकरण भी क्योंकि जब तक स्थानीयता केन्द्रीयता हासिल नहीं करती, तब तक वह सार्वजनिक जीवन की समग्र प्रस्तुति नहीं बनती।
‘माटीगाड़ी’ में सुलभ का नाट्यकौशल अपने पूरे रंग में है। प्रेम की केन्द्रीय संवेदना लेकर सुलभ ने इस नाटक में वसन्तसेना और चारुदत्त के प्रेम सम्बन्ध में अनेक स्तरों को पिरोया है, जिससे यह नाटक जातिवादी उन्माद, राजनीतिक पाखंड, सामाजिक विडम्बनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति बन गया है।
—ज्योतिष जोशी; ‘कथादेश’
‘मृच्छकटिकम्’ की काव्यात्मक संवेदना और शास्त्रीयता से मिलकर ‘बिदेसिया’ की लोकधर्मी चेतना नई नाट्यानुभूति देती है। शूद्रक का नाटक फिर से रचे जाने के क्रम में अपने बीजतत्त्वों का विकास करता है और समसामयिक हो उठता है। ‘माटीगाड़ी’ में हिन्दी तथा भोजपुरी का प्रयोग नए भाषिक स्वाद की अनुभूति कराता है।
Chandragupt
- Author Name:
Jaishankar Prasad
- Book Type:

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Description:
हिन्दी के कालजयी रचनाकार जयशंकर प्रसाद का यह नाटक भारत के पहले साम्राज्य-निर्माता चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मार्गदर्शक तथा महान कूटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य को केन्द्र में रखकर लिखा गया है। भारत के इतिहास में यह वह कालखंड है जब एक तरफ़ तो लगातार विदेशी आक्रमण हो रहे थे और दूसरी तरफ़ देशी राजा अपने झूठे अभिमान और क्षुद्र स्वार्थों के लिए आपस में ही लड़ रहे थे। देश की सबसे बड़ी राजशक्ति मगध के सम्राट भोग-विलास में डूबे हुए थे। उन्हें न अपने राज्य की सुरक्षा की चिन्ता थी और न अपनी प्रजा के हितों की। ऐसे समय में आचार्य चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को साथ लेकर सीमावर्ती राज्यों को संगठित किया और यूनानी आक्रमणकारी सिकन्दर को मुँहतोड़ जवाब दिया। साथ ही, उन्होंने लोगों में ऐसी भावना का संचार किया कि वे मालव और मागध होने के प्रान्तीय अभिमान को भूलकर भारतवासी कहलाने में गौरव का अनुभव करें। इस प्रकार आचार्य चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने पहली बार, खंड-खंड विभाजित भारत को एक सूत्र में पिरोकर, एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया।
‘चन्द्रगुप्त' नाटक में चित्रित स्थितियों की प्रासंगिकता भारत के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में स्पष्ट देखी जा सकती है।
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