Aadivasi : Vikas Se Visthapan
Author:
Ramanika GuptaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
आदिवासियों का पलायन और विस्थापन सदियों से होता रहा है और ये आज भी जारी है। आदिवासियों के जंगलों, ज़मीनों, गाँवों, संसाधनों पर क़ब्ज़ा कर उन्हें दर-दर भटकने के लिए मजबूर करने के पीछे मुख्य कारण हमारी सरकारी व्यवस्था रही है। वे केवल अपने जंगलों, संसाधनों या गाँवों से ही बेदख़ल नहीं हुए बल्कि मूल्यों, नैतिक अवधारणाओं, जीवन-शैलियों, भाषाओं एवं संस्कृति से भी वे बेदख़ल कर दिए गए हैं।</p>
<p>हमारे मौलिक सिद्धान्तों के अन्तर्गत सभी को विकास का समान अधिकार है। लेकिन आज़ादी के बाद के पहले पाँच वर्षों में लगभग ढाई लाख लोगों में से 25 प्रतिशत आदिवासियों को मजबूरन विस्थापित होना पड़ा। विकास के नाम पर लाखों लोगों को अपनी रोज़ी-रोटी, काम-धंधों तथा ज़मीनों से हाथ धोना पड़ा। उनको मिलनेवाले मूलभूत अधिकार जो उनकी ज़मीनों से जुड़े थे, वे भी उन्हें प्राप्त नहीं हुए।</p>
<p>आदिवासियों के प्रति सरकार तथा तथाकथित मुख्यधारा के समाज के लोगों का नज़रिया कभी संतोषजनक नहीं रहा। आदिवासियों को सरकार द्वारा पुनर्वसित करने का प्रयास भी पूर्ण रूप से सार्थक नहीं हो सका। अन्ततः अपनी ही ज़मीनों व संसाधनों से विलग हुए आदिवासियों का जीवन मरणासन्न अवस्था में पहुँच गया।</p>
<p>21वीं सदी में पहुँचकर भी हमारे देश का आदिवासी समाज जहाँ विकास की बाट जोह रहा है। वहीं दूसरी तरफ़ सरकार की उदासीन नीतियों के कारण उनकी स्थिति ज्यों की त्यों ही है।</p>
<p>विकास के नाम पर छले जा रहे आदिवासियों के पलायन और विस्थापन आदि समस्याओं पर केन्द्रित यह पुस्तक समाज और सरकार के सम्मुख कई सवाल खड़े करती है।
ISBN: 9788183612173
Pages: 156
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: कृष्ण कुमार का यह नया निबन्ध-चयन उनके शैक्षिक लेखन को एक वृहत्तर सांस्कृतिक सन्दर्भ देता है। बच्चों के लालन-पालन और उनकी शिक्षा से जुड़े सवालों की पड़ताल यहाँ बीसवीं सदी के अन्तिम वर्षों में बदलती-बनती नागरिक संस्कृति की परिधि में की गई है। खिलौनों और पाठ्य-पुस्तकों की भाषा से लेकर धार्मिक अलगाववाद की राजनीति और सामाजिक विषमता तक एक लम्बी प्रश्न-शृंखला है, जिसमें कृष्ण कुमार अपनी सुपरिचित चिन्ताएँ पिरोते हैं। इन चिन्ताओं में साहित्य की परख, स्त्री की असुरक्षा और भाषा के भविष्य जैसे विविध प्रसंग शामिल हैं। अपनी व्यंजनापरक शैली और चीज़ों को रुककर देखने की ज़िद से कृष्ण कुमार ने एक बड़ा पाठक-वृत्त बनाया है। अध्यापन और लेखन के बीच कृष्ण कुमार एक व्यक्तिगत पुल बनाने में सफल हुए हैं। यह पुल उनके शैक्षिक सरोकारों को खोजी यात्राओं पर ले जाता है और उनके पाठकों को स्कूल की चारदीवारी और बच्चों के मनोजगत में प्रवेश कराता है।
Everybody Loves A Good Drought
- Author Name:
P. Sainath
- Book Type:

- Description: A CLASSIC OF REPORTAGE FROM RURAL INDIA BY AWARD-WINNING AUTHOR, WITH A FOREWORD BY GOPALKRISHNA GANDHI – Prescribed in over 100 universities – Reveals the human face of poverty – Key to understanding issues of globalization, human rights, development economics in India – One of the classics of journalism Acclaimed across the world, prescribed in over 100 universities and colleges, and included in part in The Century’s Greatest Reportage (Ordfront, 2000), alongside the works of Gabriel Garcia Marquez, Studs Terkel and John Reed, Everybody Loves a Good Drought is the established classic on rural poverty in India. Twenty years after publication, it remains unsurpassed in the scope and depth of reportage, providing an intimate view of the daily struggles of the poor and the efforts, often ludicrous, made to uplift them. An illuminating introduction accompanying this twentieth-anniversary edition reveals, alarmingly, how a large section of India continues to suffer in the name of development so that a small percentage may prosper. Besides exposing chronic misgovernance, it is also a devastating comment on the media’s failure to speak for the voiceless.
Aranyapantha
- Author Name:
Pt. Sanjay Tignath
- Book Type:

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Description:
‘अरण्यपंथा’ में वे समस्त मौलिक दुविधाएँ अन्तर्निहित हैं जो ज्ञान के गहन प्रान्तरों में विद्यमान हैं, क्योंकि ‘अरण्यपंथा’ उन्हीं के अपार और संकीर्ण पथ से निकलती है। इसमें मात्र आशय है किन्तु प्रयोजन स्पष्ट नहीं है। यदि प्रयोजन के आग्रह को त्यागा जा सकता हो तो सम्भवतः ‘अरण्यपंथा’ रुचिकर लगे।
मैंने उपनिषद ग्रन्थों का पुनर्अध्ययन किया और यहाँ पाया कि मैं उनकी अनुभूतियों को पहले की अपेक्षा अधिक निकटता से अनुभव कर रहा था, तथापि ‘अरण्यपंथा’ न तो वैज्ञानिक व्याख्याओं में घुसती है और न ही उपनिषद को अपने तर्क का हिस्सा बनाने की चेष्टा करती है। सचमुच उपनिषद को तो इस पुस्तक के कथ्य में बिना स्पर्श करते हुए ही मात्र आनन्द के स्रोत की तरह उद्धृत किया गया है।
—लेखक की क़लम से
Prasangvash : Sahitya Aur Samaj ki Chand Bahasen
- Author Name:
Pranay Krishna
- Book Type:

-
Description:
यह पुस्तक ऐसे लेखों का संग्रह है जो पिछली एक चौथाई सदी से कुछ अधिक समय में भिन्न-भिन्न प्रसंगों तथा अवसरों पर लिखे गए हैं। इन लेखों के विषय नए-पुराने सभी तरह के हैं, लेकिन उन पर चली बहसें नितान्त समकालीन होने के चलते लेखों का सम्बन्ध भी समकालीन वैचारिक परिवेश से है-राजनीति, समाज और साहित्य के अनेक सवाल व्याख्या, पुनर्व्याख्या, दुर्व्याख्या की अनिवार्य प्रक्रियाओं से गुजरते हैं- व्याख्या की राजनीति में हस्तक्षेप ही इन लेखों का मुख्य मकसद है।
पुस्तक के कई लेख पहले भाषण के रूप में सामने आए, बाद को प्रकाशित होने के बाद लेख बन गए। सभी लेख जिन पत्रिकाओं में, जिस साल प्रकाशित हुए, उनका उल्लेख हर लेख के आखीर में कर दिया गया है, भाषणों के सन्दर्भ भी इसी प्रकार दर्ज हैं, कुछेक ऐसे भाषण भी है, जो लेख रूप में प्रकाशित नहीं हुए थे।
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