Ghar Ka Bhedi
Author:
Salman AkhtarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
डॉक्टर सलमान अख़्तर के दादा मुज़्तर ख़ैराबादी, मामू मजाज़ लखनवी, वालिद जाँ निसार अख़्तर और भाई जावेद अख़्तर पर लिखे ये लेख साहित्यिक दुनिया में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। ‘घर का भेदी’ उर्दू शायरी की सोच-समझ और आलोचना की ऐसी पहली किताब है जिसमें लेखक ख़ुद अपने ख़ानदान के मशहूर और लोकप्रिय शोअरा के कलाम का विवेचन करता है और साथ ही उनके साहित्यिक ख़ज़ाने की तुलना तत्कालीन सम्माननीय शोअरा के साहित्य से भी करता है। बात की गहराई और बढ़ जाती है जब हमको ये पता चलता है कि इस किताब का लेखक न सिर्फ़ ख़ुद एक विश्वसनीय शायर और साहित्यकार है बल्कि अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एक मनोवैज्ञानिक भी है। नतीजे के तौर पर ‘घर का भेदी’ किताब हमें कला के प्रतीकों और बिंबों से भी परिचित कराती है और उसमें निहित व्यक्तिगत पीड़ा और द्वंद्व से भी।
ISBN: 9789360860141
Pages: 82
Avg Reading Time: 3 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: Jharkhand emerges as a vibrant canvas, portraying a mesmerizing blend of diverse natural, cultural, social, political, and geographical aspects. Across its enchanting terrain, a symphony of vibrant music and captivating dances fills the air, echoing the collective heartbeat of its inhabitants. The rhythmic beats of dhol, mandar, and flute reverberate, underscoring the region’s rich cultural tapestry. Festivals and rituals such as Karma Puja, Sarhul, Tusu, and Sohrai are intricately interwoven into the fabric of daily life, serving as a poignant expressions of reverence towards nature’s profound essence. In this harmonious celebration, the pure simplicity, charm, and equilibrium of Jharkhand's landscape find eloquent expression. In this comprehensive volume, we embark on a meticulous journey through the diverse dimensions of Jharkhand, spanning across 20 insightful chapters. From delving into its historical and geographical roots to dissecting its political, social, cultural, and economic landscapes, every facet is meticulously examined. The narrative doesn’t just stop at the past; it extends to elucidate contemporary developments, programmes, and policies, complemented by enlightening statistical diagrams that provides a clear understanding of the present scenario. Designed as a companion for both aspirants of competitive examinations and avid learners, this book is a treasure trove of knowledge. With 893 objective questions, their detailed answers, and 100 practice question sets, it serves as an indispensable tool for those striving to carve out successful careers. Anticipated to be a prized possession not only for students but also for researchers, educators, and enthusiasts keen on unraveling the enigmatic allure of this state, this volume promises an enriching exploration into the captivating essence of Jharkhand.
Mere Yuvjan Mere Parijan
- Author Name:
Ramesh Gajanan Muktibodh
- Book Type:

- Description: मुक्तिबोधजी अपनी रचनाओं के प्रति कुछ लापरवाह ज़रूर रहे हों किन्तु इसके विपरीत वे लेखक-मित्रों से प्राप्त पत्रों को सहेजकर सुरक्षित रखने में काफ़ी सचेत थे। संग्रह के इन पत्रों की अवधि 28 वर्ष के अन्तराल में फैली हुई है। संग्रह का पहला पत्र 11.3.1936 को प्रभागचन्द्र शर्माजी ने तथा अन्तिम पत्र विनोद कुमार शुक्लजी ने 7.4.1964 को लिखा है। 43 लेखकों के कुल 306 पत्र संग्रहीत हैं। पुस्तक की पांडुलिपि तैयार करते समय नेमिजी के पत्रों की खोज करने पर संयोगवश वे प्राप्त हो गए। अन्यथा उनके पत्रों के बिना यह पुस्तक अपूर्ण-सी रहती। परिशिष्ट में मुक्तिबोधजी के सहपाठी अन्य मित्रों के 15 पत्र हैं। इनकी एक ऐतिहासिकता है। पुस्तक में मात्र 6 पत्र मराठी में लिखे हैं। इनमें एक पत्र प्रभाकर माचवेजी ने 27.12.1939 को पेंसिल से लिखा है जो अंग्रेज़ी से शुरू होकर मराठी में समाप्त होता है। बीच-बीच में अंग्रेज़ी-मराठी का प्रयोग खूब हुआ है। गांधीजी के आश्रम का सुन्दर चित्र खींचा है। इन पत्रों का मूल स्वर या सार संक्षेप एक-दूसरे के प्रति सौम्य आदर और अटूट स्नेह का है। आचार-विचार में मतान्तर रहते हुए भी स्नेहमय सम्बन्धों की मिठास में कोई कमी नहीं। —रमेश गजानन मुक्तिबोध पिछली शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जिस एक कवि ने मरणोत्तर मूर्धन्यता अर्जित की, वे हैं गजानन माधव मुक्तिबोध। वे एक ऐसे कवि भी रहे हैं जिनकी कविता में मित्रता का एक विराट् स्पन्दित परिसर महसूस किया जा सकता है : दरअसल उन्हें एक अनोखे अर्थ में एक बड़ा मित्र-कवि भी कहा जा सकता है। एक स्तर पर उनकी कविता मित्र-संवाद है। वह जो सुने उसको तो सम्बोधित है ही वह अपने मित्रों को भी लगातार और विशेष रूप से सम्बोधित है। हिन्दी के मुख्य अंचल के हाशिए पर रहते हुए भी मुक्तिबोध एक संवादप्रिय व्यक्ति और लेखक थे। इस अनूठे संचयन में लगभग पचास लेखकों के तीन सौ से अधिक पत्र शामिल किए गए हैं। मुक्तिबोध की 1964 में असमय और बेहद दुखद मृत्यु के 43 बरसों बाद इन पत्रों का एकत्र प्रकाश में आना एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक घटना है। इस पत्र-संग्रह से उस समय की याने आज से चालीस साल पहले की हिन्दी साहित्य-संस्कृति के बारे में कुछ ऐसा पता चलता है जो इन दिनों उस संस्कृति से, हमारा दुर्भाग्य है, कि अगर एक दम गायब नहीं तो बहुत बिरला हो गया है। इन पत्रों में कई पत्रिकाओं की व्यथा और संघर्ष की अन्तरंग कथाएँ भी छिपी हुई हैं जैसे हरिशंकर परसाई द्वारा सम्पादित ‘वसुधा’ और नरेश मेहता और श्रीकान्त वर्मा द्वारा सम्पादित ‘कृति’ की। ‘आलोचना’, ‘कल्पना’, ‘हंस’ आदि की अन्तर्कथाएँ भी कुछ पता चलती हैं। कई लेखकों की कठिनाइयों, संघर्षों, समझौतों, दिग्भ्रमों, उलझनों और चतुराइयों का आभास भी यहाँ-वहाँ मिलता है। जो भी हो, यह पत्र-संग्रह मुक्तिबोध को उस समय चल रहे साहित्यिक, वैचारिक और निजी संवाद के एक महत्त्वपूर्ण, सजग और सक्रिय केन्द्र के रूप में भी अवस्थित करता है। —अशोक वाजपेयी
Tum Zindgi Ka Namak Ho
- Author Name:
Vipin Sharma
- Book Type:

- Description: तुम्हारी स्मृतियाँ इतनी गहरी हैं, जैसे नये-नकोर मकान पर कोई बच्चा ईंट के टुकडे से गुस्से में अपना नाम लिख दे। जैसे अलभोर ने रचा है धुंधलको को। रात रचती है सुबह की रोशनी। हर प्रेम रचता है अथवा यूँ कहेंं रचेगा आँसू। आज मेरे यार की शादी है, बैंड में नाच रहे होते हैं कुछ लोग। मगर कहीं दूर सूड़क रही होती है कोई नाक को। आँसू, जो दजला-फरात बनकर उसके गले में भर आए हैं। रोती है बाथरूम में जाकर जार-जार। -इसी किताब से
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