Ve Din
Author:
Nirmal VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
निर्मल वर्मा के कथा-शिल्प में उसी तरह मौजूद रहता है, जैसे हमारे जीवन में—लगातार मौजूद लेकिन अदृश्य। उससे हमारे दुःख और सुख तय होते हैं, वैसे ही जैसे उनके कथा-पात्रों के होते हैं। कहानी का विस्तार उसमें बस यह करता है कि इतिहास के उन मूक और भीड़ में अनचीन्हे ‘विषयों’ को एक आलोक-वृत्त से घेरकर नुमायाँ कर देता है, ताकि वे दिखने लगें, ताकि उनकी पीड़ा की सूचना एक जवाबी सन्देश की तरह इतिहास और उसकी नियन्ता शक्तियों तक पहुँच सके। इस प्रक्रिया में अगर उनकी कथा कुछ ऐसे व्यक्तियों को रच देती है जिनकी वैयक्तिकता की आभा हमारे लिए ईर्ष्या का कारण हो उठे, तो यह उनका व्यक्तिवाद नहीं है, व्यक्ति के स्तर पर एक वैकल्पिक मनुष्य का ख़ाक़ा तैयार करने की कोशिश है।</p>
<p>इस उपन्यास के चरित्रों की पीड़ा और उस पीड़ा को पहचानने, अंगीकार करने की उनकी इच्छा और क्षमता उन्हें हमारे मौजूदा असहिष्णु समाज के लिए मूल्यवान बनाती है। वह चाहे रायन हो, इंदी हो, फ्रांज हो या मारिया, उनमें से कोई भी अपने दुख का हिसाब हर किसी से नहीं माँगता फिरता। चेकोस्लोवाकिया की बर्फ़-भरी सड़कों पर अपने लगभग अपरिभाषित-से प्रेम के साथ घूमते हुए ये पात्र जब पन्नों पर उद्घाटित होते हैं, तो हमें एक टीसती हुई-सी सान्त्वना प्राप्त होती है, कि मनुष्य होने का जोखिम लेने के दिन अभी लद नहीं गए।</p>
<p>‘वे दिन’ निर्मल वर्मा का प्रथम उपन्यास है। यह क्रिसमस के चन्द शान्तिपूर्ण दिनों की गाथा है, एक अवसादपूर्ण प्रेमकथा जो बर्फ़ और धूप, छुट्टियों के ख़ालीपन, पुराने शहर के पुलों और टावरों के बीच चुपचाप चलती है। हर पात्र का अपना अतीत है, जो यूरोप की युद्धोत्तर पीढ़ी की अभिशप्त छाया से जुड़ा है, और उपन्यास के विभिन्न पात्रों को जोड़नेवाली एक ‘रहस्यमय’ नियति भी है, जो छोटी-से-छोटी घटना को अर्थवत्ता प्रदान करती है।
ISBN: 9789360864217
Pages: 248
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Do Upanyas
- Author Name:
Krishna Sobti
- Book Type:

-
Description:
‘वह समय’—कृष्णा जी ने इस टुकड़े को यही नाम दिया था, जिसे ‘ज़िन्दगीनामा’ के दूसरे भाग का हिस्सा होना था। सम्बन्धों के सामाजिक तर्कों और नैतिक आग्रहों के ऊपर चलती दिलों की यह कहानी शाह जी और राबयाँ की है। शाह जी अपने आधे को पार कर चुके हैं और राबयाँ जवानी की सीढ़ियाँ चढ़ रही है—तुकें मिलाती है, कवित्त लिखती है, शाह जी उसके लिखे को दुरुस्त करते हैं, उसे पढ़ाते-सिखाते हैं। इसी में उम्र, मज़हब और परिवारों की हदों से ऊपर उठ दोनों कहीं जुड़ जाते हैं...और उस दिन जब कचहरी से लौटते हुए शाह जी बाढ़ में घिर जाते हैं, राबयाँ अपनी छत से उन्हें देखती है और उन्हें बचाने पानी में कूद जाती है...दोनों को ढूँढ़ लिया जाता है, लेकिन शाह जी फिर लौट नहीं पाते, चले ही जाते हैं, और राबयाँ उनके पीछे...यह कहानी इश्क़ की है, इश्क़ की रूहानियत की,...कृष्णा सोबती की क़लम ही इसकी पवित्रता को इतने सुच्चेपन से आँक सकती थी!
इस जिल्द में मौजूद दूसरी कृति का सम्बन्ध इस समय से है—आज की दिल्ली से। रियल एस्टेट के मगरमच्छों के हत्थे चढ़े एक युवक की यह कहानी पैसे के उथले दलदल में छपछपाते उस तबके के बारे में बताती है, जिसके लिए सबसे पहला और सबसे आख़िरी मूल्य पैसा ही है। यह भी कि गाँवो-क़स्बों से रोटी-रोजगार की तलाश में आए लोगों को यह दलदल कैसी सफ़ाई से अपनी गिरफ़्त में ले लेता है!
Suno Kabir
- Author Name:
Soni Pandey
- Book Type:

- Description: सुनो कबीर युवा कथाकार सोनी पांडेय का पहला उपन्यास है। इसमें वे आज़मगढ़ के एक गाँव इब्राहिमपुर की कथा कह रही हैं। उपन्यास इस बात का जीवन्त दस्तावेज है कि एक साझी विरासत और सपने साझा करते हुए लोग राजनीतिक साजिशों का शिकार होकर कैसे एक दूसरे को शक की नजर से देखने लगते हैं। असल में इनके साझेपन के बीच एक दरार है जिस पर सवार होकर बाँटने वाली तमाम ताकतें बार-बार इन तक आती हैं। ये दरार है जाति और धर्म की चौहद्दी को बनाए रखते हुए एकता बनाए रखने की कोशिश करना। जाति या धर्म के बाहर घटित हुआ एक प्रेम भी इस कथित एकता को ध्वस्त कर देता है और उस्मान की मुहब्बत भरी दुनिया उजड़ जाती है। लेकिन यहीं से उपन्यास नई उठान लेता है जहाँ उस्मान अपने निजी जीवन में त्रासदी का शिकार होकर भी इस दुनिया में मुहब्बत बचाए रखते हैं। सोनी अपनी कहानियों में कस्बाई जीवन का खदबदाता हुआ यथार्थ रचती रही हैं। सुनो कबीर में वे अपनी इस चिर-परिचित जमीन में और गहरे धँसी हैं। यहाँ पर उस्मान, फेकू, मोनिका, मनोहर या पिंकी जैसे एकदम साधारण चरित्रों की स्वप्नशील पर यथार्थपरक दुनिया है। यहाँ पर मोनिका या पिंकी जैसी स्त्रियाँ हर व्यूह को तोड़ते हुए आगे बढ़ रही हैं। ये बराबर मनुष्य होना अपना हक मानते हुए एक सपना देखती हैं और इन्हें ऐसे साथी मिलते हैं जो इन सपनों के सहयात्री बनते हैं। मंच पर स्त्री भूमिकाएँ करने वाला फेकू अपने जीवन में एक खास तरह का पुरुष होने के स्टीरियोटाइप से दूर हो रहा है। ये एक ऐसी स्थिति है जिसकी वजह से उसका दाम्पत्य जीवन कुछ समय के लिए खतरे में जरूर आता है पर एक दिन उसकी पत्नी भी जानती है कि फेकू इस दुनिया के पुरुषों की तुलना में कितना ज्यादा मनुष्य और साथी है। एक पठनीय और जरूरी उपन्यास।
Bachpan
- Author Name:
Leo Tolstoy
- Book Type:

-
Description:
तोल्स्तोय विश्व-स्तर पर पढ़े जाने वाले रूसी लेखक हैं। वे दुनिया के उन कुछ लेखकों में शामिल है, जिन्हें हर भाषा और हर देश में अपना मानकर पढ़ा जाता है, जो सम्पूर्ण मानवता की सम्पत्ति हैं।
यह छोटा-सा उपन्यास उनकी आरम्भिक रचना है, जिसमें उन्होंने अपनी दस वर्ष की आयु के बाद के कुछ वर्षों का वर्णन किया है। इसकी रचना उन्होंने तब की थी जब वे सत्ताईस वर्ष के थे। इस आत्मकथात्मक रचना में उन्होंने बालपन की सादगी, भोलेपन और दैनन्दिन जीवन की नाटकीयता को ख़ासतौर पर पकड़ा है। वय:संधि के मोड़ पर खड़े एक किशोर के मन की उथल-पुथल भी इसमें अभिव्यक्त हुई है और एक लेखक के रूप में तोल्स्तोय की प्रतिभा की संभावनाएँ भी उनकी इस रचना में सामने आई थीं जिन्हें उस समय के लेखकों ने विशिष्ट माना था।
निर्मल वर्मा के अनुवादों की शृंखला में भी इस पुस्तक का स्थान बहुत शुरू में आता है। तोल्स्तोय की लेखन-शैली और संवेदना को हिन्दी में प्रस्तुत करते हुए उन्होंने मूल की बारीकियों को सम्प्रेषणीय ढंग से वहन किया है।
Dashkriya
- Author Name:
Baba Bhand
- Book Type:

-
Description:
दशक्रिया’ मराठी के प्रख्यात कथाकार बाबा भांड के इसी नाम से मराठी में प्रकाशित उपन्यास का अनुवाद है। इस उपन्यास में लेखक ने भानुदास नामक एक किशोर चरित्र को केन्द्र में रखकर समाज की जड़ रूढ़िवादिता, जाति व्यवस्था, निर्धनता आदि के आवरण में छुपे मनुष्यता के करुण चेहरों और विपरीत परिस्थितियों में भी मानवीय जिजीविषा और साहस की प्रज्ज्वलित ज्योति को रेखांकित किया है।
मृत्यु और शव के अन्तिम संस्कारों से अपनी जीविका अर्जित करनेवाले एक समुदाय के माध्यम से उपन्यासकार इस पुस्तक में वर्गों और वर्णों में बँटे भारतीय समाज का एक प्रभावशाली चित्र प्रस्तुत करता है।
तटस्थ और यथार्थवादी शैली में प्रामाणिक वर्णनों से भरपूर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृति।
—भूमिका से
Kashi Ka Assi
- Author Name:
Kashinath Singh
- Book Type:

- Description: ज़िन्दगी और ज़िन्दादिली से भरा एक अलग क़िस्म का उपन्यास। उपन्यास के परम्परित मान्य ढाँचों के आगे प्रश्नचिह्न। ‘अस्सी’ काशीनाथ की भी पहचान रहा है और बनारस की भी। जब इस उपन्यास के कुछ अंश ‘कथा रिपोर्ताज’ के नाम से पत्रिकाओं में छपे थे तो पाठकों और लेखकों में हलचल-सी हुई थी। छोटे शहरों और क़स्बों में उन अंक विशेषों के लिए जैसे लूट-सी मची थी, फ़ोटोस्टेट तक हुए थे, स्वयं पात्रों ने बावेला मचाया था और मारपीट से लेकर कोर्ट-कचहरी की धमकियाँ तक दी थीं। अब यह मुकम्मल उपन्यास आपके सामने है जिसमें पाँच कथाएँ हैं और उन सभी कथाओं का केन्द्र भी अस्सी है। हर कथा में स्थान भी वही, पात्र भी वे ही—अपने असली और वास्तविक नामों के साथ, अपनी बोली-बानी और लहज़ों के साथ। हर राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय मुद्दे पर इन पात्रों की बेमुरव्वत और लट्ठमार टिप्पणियाँ काशी की उस देशज और लोकपरम्परा की याद दिलाती हैं जिसके वारिस कबीर और भारतेन्दु थे। उपन्यास की भाषा उसकी जान है—भदेसपन और व्यंग्य-विनोद में सराबोर। साहित्य की ‘मधुर मनोहर अतीव सुन्दर’ वाणी शायद कहीं दिख जाए!
Plague
- Author Name:
Albert Camus
- Book Type:

- Description: ‘प्लेग’ में एक जनसमूह पर महामारी के रूप में आई भीषण विपत्ति का और उससे आक्रान्त लोगों की वैयक्तिक और सामूहिक प्रतिक्रियाओं का चरम यथार्थवादी अंकन किया गया है, साथ ही सर्वग्रासी भय, आतंक, मृत्यु और तबाही के बीच अजेय मानवीय साहस की मार्मिक संघर्षगाथा भी प्रस्तुत की गई है।
Chaar Kanya
- Author Name:
Taslima Nasrin
- Book Type:

-
Description:
‘चार कन्या’ में यमुना, शीला, झूमुर और हीरा की कथा है। यमुना एक मामूली लड़की है, उसके भीतर बूँद–बूँद कर जन्म लेती है—अपने अधिकारबोध के प्रति तीव्र जागरूकता। ऐसी सुलझी हुई जागरूक लड़कियों को काफ़ी कुछ भुगतना पड़ता है। समाज के उलटे–सीधे नियम उन्हें बहुत सताते हैं, यमुना को भी ख़ूब सताया। शीला ठगी जाती है अपने प्रेमी द्वारा। ऐसी सैकड़ों शीलाएँ राह में चल–फिर रही हैं पर सभी तो अपनी ज़ुबान पर वे बातें नहीं ला सकतीं, क्योंकि इससे ठगनेवालों पर प्रहार के बजाय शीलाओं पर ही उलटी मार
पड़ती है—समाज उन्हीं पर पत्थर फेंकता है, उनके ही मुँह पर थूकता है।
‘लज्जा’ जैसी चर्चित कृति की लेखिका तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास स्त्री–विमर्श की कई खिड़कियाँ खोलता है, जिससे आती बयार से पाठक अछूता नहीं रह सकता।
50 Mahan Swatantrata Senani
- Author Name:
Rishi Raj
- Book Type:

- Description: "जिन लोगों ने देश को स्वाधीन कराने का स्वप्न देखा, इसकी कल्पना की और दृढ निश्चय कर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया, उनका पुण्य स्मरण करना हमारा पुनीत कर्तव्य है। उनके बलिदान को आज की युवा पीढ़ी तक पहुँचाना हमारा परम धर्म है। जिस आजादी की हवा में हम साँस ले पा रहे हैं, अपने लिए, अपने घर-परिवार के लिए कुछ कर पा रहे हैं, इसमें कहीं-न-कहीं उन सभी के बलिदान की सुगंध है। इसलिए इन हुतात्माओं को कोटि-कोटि वंदन-अभिनंदन! शहीदों से जुडे़ स्थानों पर जाना, उनको समय-समय पर याद करना व उनको श्रद्धांजलि देना, यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा होना चाहिए। आनेवाली पीढि़यों को अपने गौरवमयी अतीत व हमारे शूरवीरों के महान् जीवन से परिचय करवाना हम सबका धर्म बनता है। राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करनेवाले हुतात्माओं की एक लंबी शृंखला है। उनमें से 50 अमर सपूतों के प्रेरणाप्रद जीवन से पाठकों को परिचित कराने का यह उपक्रम है, जो निश्चित रूप से हर भारतीय को पढ़ना ही चाहिए।"
Siyasat
- Author Name:
Shivani Sibbal
- Book Type:

-
Description:
निजी महत्त्वाकांक्षाओं, पारिवारिक सीमाओं और सामाजिक बदलावों की दिलचस्प कहानी!
एक ही घर में एक ही स्त्री के पाले अहान सिकन्द और राजेश कुमार बचपन के मित्र हैं लेकिन दोनों की दुनिया बहुत अलग है। अहान अमीर परिवार का इकलौता वारिस है जबकि राजेश उसी परिवार के ड्राइवर का लड़का। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, बचपन की उनकी दोस्ती बदलने लगती है। आहान से यह आशा की जाती है कि वह उत्तराधिकार में मिले विरासत को आगामी पीढ़ी के लिए बचाकर रखे जबकि वहीं राजेश से दुनिया की यही आशा है कि वह अधिक से अधिक अपने पिता की तरह घरेलू नौकर बनकर न जिये। लेकिन उसकी योजनाएँ बड़ी हैं।
सियासत एक नई प्रतिभाशाली कलम के आगमन का एलान है जो नई दिल्ली के व्यावसायिक एवं राजनीतिक परिवारों की गोपन दुनिया का परीक्षण करती है।
Devdas
- Author Name:
Sharatchandra
- Book Type:

-
Description:
‘देवदास’ शरतचन्द्र का पहला उपन्यास है। लिखे जाने के सोलह साल बाद तक यह अप्रकाशित रहा। शरत स्वयं इसके प्रकाशन के लिए उत्साही नहीं थे, लेकिन 1917 ई. में इसके छपने के साथ ही व्यापक रूप से इसकी चर्चा शुरू हो गई थी। विभिन्न भारतीय भाषाओं में इसके अनेक अनुवाद हुए। अनेक भारतीय भाषाओं में इस पर फ़िल्में बनीं। आख़िर ‘देवदास’ की इतनी लोकप्रियता के क्या कारण हैं? यह कृति क्यों कालजयी बन गई? असल में ‘देवदास’ सामन्ती ढाँचेवाले भारतीय समाज में घटित एक ऐसी प्रेमकथा है जिसमें गहरी संवेदनशीलता है। शरत ने उसे इतनी अन्तरंगता से लिखा है कि ‘देवदास’ की कहानी में सबको कहीं-न-कहीं अपनी ज़िन्दगी भी दिखाई दे जाती है। ‘देवदास’ भारतीय समाज-व्यवस्था की अनेक विसंगतियों पर एक कड़ी टिप्पणी भी है।
पत्रकार सुरेश शर्मा ने ‘देवदास’ की विस्तृत भूमिका में पहली बार इस कृति और उसके सर्जक शरतचन्द्र के बारे में अनेक नई जानकारियाँ दी हैं। यह भूमिका न सिर्फ़ इस कृति का नया मूल्यांकन करती है, बल्कि इस बात की भी तलाश करती है कि ‘देवदास’ की पारो और चन्द्रमुखी कौन थी? शरत को ये पात्र जीवन में कहाँ और कब मिले?—इन जानकारियों के साथ ‘देवदास’ को पढ़ना उसमें नया अर्थ पैदा करेगा।
Nar Naari
- Author Name:
Krishna Baldev Vaid
- Book Type:

-
Description:
यह उपन्यास कृष्ण बलदेव वैद के सबसे चर्चित और बहस तलब रचनाओं में से एक है। उन्होंने हिन्दी की मुख्यधारा से अकसर दूर ही रहते हुए भाषा को ऐसी कृतियाँ दी हैं जो शिल्प के हमारे साथ सोचने के तरीक़ों को भी विचलित करती रही हैं।
‘नर नारी’ उपन्यास स्त्री की समूची सामाजिक, पारिवारिक और दैहिक इयत्ता को केन्द्र में रखता है, और उनसे जुड़े प्रश्नों पर एक संकुल भावभूमि के परिप्रेक्ष्य में विचार करता है। पितृसत्तात्मक सामाजिक तंत्र में सम्पत्ति के उत्तराधिकार, विवाह-संस्था की वैधता, यौन- शुचिता और इससे जुड़े कई विधि-निषेधों पर अत्यन्त ज़ोर दिया जाता है। पति-पत्नी, बहन-भाई, माँ-बेटे आदि सभी सम्बन्ध अन्तत: इन्हीं सब के सन्दर्भ में परिभाषित होते दिखते हैं।
इनके बीच ही मौजूद है स्त्री-पुरुष का आदिम रिश्ता जो एक दूसरी की उपस्थिति को एक प्राकृतिक और समान भूमि पर परिभाषित करता है। बाँझ माँजी, रसीला, सीमा और मीनू आदि इस उपन्यास के ऐसे स्त्री पात्र हैं जिनका जीवन और दृष्टिकोण इन तमाम प्रश्नों पर अलग-अलग ढंग से प्रकाश डालता है।
संवादों के बीच से ही दृश्यों को साकार करते हुए उपन्यास को पढ़ना जैसे अपने ही मन की भीतरी तहों की यात्रा करने जैसा है। लेखक कहीं पर न पात्रों का बाहरी विवरण देता है, न परिस्थितियों का, फिर भी सब जैसे पाठक की आँखों के सामने साकार होता चलता है। एक पठनीय और विचारणीय उपन्यास।
Parchaiyoon Ke Pichee Vistaar
- Author Name:
Harsh Ranjan
- Book Type:

- Description: क्या ये उसी के खून का रंग है, उसके हाथों में, उसके आंचल पर, उसके आँखों में, उसके होठों पर, उसके माथे पर.... उसका ये शृंगार भी रवि को नहीं रोक पाया। धिक्कार है उसके प्यार को कि वो ये नहीं समझ पाई कि रवि के दिमाग में तब क्या चल रहा था और वो उसे उसके विचारों की काल-कोठरी में यंत्रणाओं के बीच अकेला छोडकर निकल गयी। इन विचारों में उलझे-उलझे वो रोती हुई फर्श पर बैठ गयी। वो लगातार रोती रही और इसी बीच उसकी आँख लग गयी। रवि कमरे से बाहर निकला और गुंजन को लांघते हुए दरवाजे की तरफ जाने लगा। गुंजन की आँखें खुली! “रुक जाओ रवि! रवि...” रवि रुक गया। वो पीछे मुड़ा! वो मुस्कुरा रहा था। गुंजन उसकी तरफ झपटी.... गुंजन की आँखें खुल गयी। वो खड़ी हुई और वाशबेसिन के आगे आई। उसने आईना देखा। रोते-रोते आँखें फूल गयी थीं, बिंदी बिखर गयी थी, बाल बिखर गए थे.... बाहर निकलने के लायक होने के लिए वो तैयार हुई और मुट्ठी में चिट्ठी दबाये पर्स लेकर वो बाहर आई। उसने दरवाजे पर ताला मारा। मोबाईल पर गुलशन ने कॉल की। पूरी रिंग हुई पर गुंजन ने फोन नहीं उठाया। गुंजने बाहर निकलकर एक बार पीछे मुड़ी, पलकों पर आंसून थे और होठों पर मौन। ये सामने जो दरवाजा बंद दिख रहा है, उसकी दो चाबियाँ है, एक गुंजन के पास और दूसरी रवि के पास। वो सारी ताकत समेटकर आगे बढ़ी। उसे पता है कि जब तक ये घर है तब तक वो डोर से कटी पतंग नहीं कहेगी खुद को। उसके आँचल से ढुलककर साँझ ढल गयी और वो धीमे फिर दृढ़तर होते तेज कदमों से आगे बढ़ गयी।
Mithila
- Author Name:
Amrit Tripathi
- Book Type:

- Description: मिथिला और कुसुमाकर के अधूरे प्रेम की कहानी है। उनमें भी मिथिला की ज़्यादा, कुसुमाकर की कम। एक पारम्परिक, संस्कारी परिवार की संगीत-प्रेमी मिथिला अन्तत: इस संसार से उस प्रेम के बिना ही विदा हो गई जिस प्रेम की प्यास उसकी आत्मा तक भरी हुई थी। संगीत में गहरी रुचि का धनी कुसुमाकर जीवन की आवश्यकताओं के मद्देनज़र पहले उससे दूर चला जाता है, उसे ख़्याल भी नहीं आता कि जिस मिथिला को वह अपने ऑटोग्राफ़ देकर चला आया है, वही एक दिन उसके जीवन में लौटेगी। वह लौटी और उसकी अतृप्त रूह का एकमात्र आसरा बन गई, पर तब तक वह किसी और की हो चुकी थी। कोई ऐसा व्यक्ति उसके जीवन का कर्णधार हो गया था जो उसके मन को नहीं समझता था। लेकिन जो उसे आपादमस्तक समझता-जानता था, क्या वह उसका हो सकता था? नहीं। अन्तत: वही हुआ। मृत्यु-शैया पर लेटी हुई मिथिला ने उसे अपना अन्तिम पत्र लिखा, और उसके प्रति अपनी आत्मा में बसे प्यार को स्वीकार करते हुए बताया कि वह जा रही है, उस अज्ञात की ओर जहाँ हो सकता है वे कभी मिलें, या हो सकता है कभी नहीं मिलें। गहरे प्रेम से पगी इस प्रेम-कथा को पढ़ना अधूरी और अतृप्त रूहों से भरे हमारे वर्तमान को एक राहत देता है, और हमें सोचने पर भी विवश करता ह
Bihar Main Nilahe Kothiyon Ka Itihas
- Author Name:
Minden Wilson
- Book Type:

- Description: नील फैक्टरियों के किस्से आमतौर पर उत्तर बिहार से जुड़े हैं, वह भी चंपारण और तिरहुत से। इसका मुख्य कारण यह रहा है कि नील की खेती में शोषण पर आधारित तौर-तरीके के खिलाफ और नीलहे रैयतों (नील की खेती करनेवालों) के प्रति हो रहे अत्यधिक आर्थिक उत्पीड़न के खिलाफ चंपारण में सत्याग्रह हुए। इसलिए भारत में उपनिवेशवाद के शोषक चरित्र व साथ ही इसके प्रतिरोध के अध्ययन में रुचि रखनेवालों और इतिहासकारों के लिए उत्तर बिहार में नील की खेती जिज्ञासा के विषय रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक मिंडेन विल्सन रचित ‘History of Indigo Factory in Bihar’ का हिंदी अनुवाद है। यह रिपोर्ट मुख्यतः उत्तर बिहार के क्षेत्रों के नील उद्योगों के संबंध में है। मिंडेन ने उत्तर बिहार की लगभग सभी छोटी-बड़ी नील फैक्टरियों की स्थापना, क्रमिक विकास एवं उनके पतन का कारण सहित विस्तृत विवरण लिखा है तथा उत्तर बिहार के नील एवं चीनी उद्योगों के लिए बेहतर उत्पादन के तरीकों का भी उल्लेख किया गया है। मिंडेन विल्सन एक ब्रिटिश नागरिक थे। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में नील उद्योग के प्रबंधन क्षेत्र में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है। औपनिवेशिक भारत में प्रमुख समृद्ध नील उत्पादकों की श्रेणी में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। नील उद्योग के क्षेत्र में मिंडेन विल्सन ने अपना प्रारंभिक जीवन मॉरीशस में बिताया। भारत आने के पूर्व वे मॉरीशस के गन्ना उद्योग से भी जुड़े रहे। बेहतर जीवन की तलाश में मिंडन ने भारत आने का निर्णय लिया, जहाँ उनकेबड़े भाई पहले से ही नील उद्योग से जुड़े थे। वर्ष 1847 में अमेरिकन जहाज ‘अलबाटरोस’ से कलकत्ता पार्ट सिटी पर उनका आगमन हुआ। वहाँ से वे बिहार के नील उत्पादन क्षेत्र में आए। उसके पश्चात् बिहार के अनेक नील फैक्टरियों में सहायक प्रबंधक व प्रबंधक के तौर पर उन्होंने कार्य किया। नील उद्योग क्षेत्र में उनका व्यापक अनुभव था।
Kuchh Din Aur
- Author Name:
Manzoor Ehtesham
- Book Type:

-
Description:
‘कुछ दिन और’ निराशा के नहीं, आशा के भँवर में डूबते चले जाने की कहानी हैं—एक अन्धी आशा, जिसके पास न कोई तर्क है, न कोई तंत्र; बस, वह है अपने-आप में स्वायत्त।
कहानी का नायक अपनी निष्क्रियता में जड़ हुआ, उसी की उँगली थामे चलता रहता है। धीरे-धीरे ज़िन्दगी के ऊपर से उसकी पकड़ छीजती चली जाती है। और, इस पूरी प्रक्रिया को झेलती है उसकी पत्नी—कभी अपने मन पर और कभी अपने शरीर पर। वह एक स्थगित जीवन जीनेवाले व्यक्ति की पत्नी है। इस तथ्य को धीरे-धीरे एक ठोस आकार देती हुई वह एक दिन पाती है कि इस लगातार विलम्बित आशा से कहीं ज़्यादा श्रेयस्कर एक ठोस निराशा है जहाँ से कम-से-कम कोई नई शुरुआत तो की जा सकती है। और, वह यही निर्णय करती है।
‘कुछ दिन और’ अत्यन्त सामान्य परिवेश में तलाश की गई एक विशिष्ट कहानी है, जिसे पढ़कर हम एकबारगी चौंक उठते हैं और देखते हैं कि हमारे आसपास बसे इन इतने शान्त और सामान्य घरों में भी तो कोई कहानी नहीं पल रही।
Qabze Zaman
- Author Name:
Shamsurrahman Farooqui
- Book Type:

- Description: यह छोटा-सा उपन्यास उर्दू की क़िस्सागोई की बेहतरीन मिसाल है। इक्कीसवीं, सोलहवीं और अठारहवीं सदियों के अलग-अलग सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मिज़ाज तथा उनके अपने वक़्तों की बोली-बानी में रचा गया है। जो फ़ारूक़ी साहब इस फ़न के उस्ताद लेखकों में एक हैं। कहानी बयान करने पर उन्हें कमाल हासिल है। इस उपन्यास की मुख्य विषय-वस्तु यह क़िस्सा है कि दिल्ली का एक सिपाही जिसका घर जयपुर के किसी गाँव में था, अपनी लड़की की शादी के लिए रुपए-पैसे का बन्दोबस्त करके अपने घर को चला लेकिन रास्ते में उसे डाकुओं ने लूट लिया। ख़ाली हाथ जयपुर पहुँच उसने लोगों से सुना कि वहाँ एक दानी तवायफ़ रहती है जो मदद कर सकती है। सिपाही ने उससे तीन सौ रुपए का क़र्ज़ लिया और जाकर अपनी बेटी की शादी की। वापसी में वह क़र्ज़ लौटाने जब उसके पास गया तो पता चला कि तवायफ़ गुज़र चुकी है और पैसे वापस लेने को कोई वारिस भी नहीं है। यह सोचकर कि मृत आत्मा की क़ब्र पर फ़ातिहा पढ़ता चलूँ, जब पहुँचा तो देखा कि क़ब्र फटी हुई है और उसमें एक दरवाज़ा-सा कहीं जाता दिखाई दे रहा है। वह उसमें अन्दर गया तो वहाँ एक महल में उस तवायफ़ से मिला। उसने पैसे वापस करना चाहा तो यह कहकर कि यह जगह तुम्हारे लिए नहीं है, तवायफ़ ने उसे महल से निकलवा दिया। महल के बाहर एक मैदान था, बाग़ थे। वह वहाँ पर कोई तीन घंटे घूमा और जब बाहर निकला तो देखा कि दुनिया में तीन सौ साल का अरसा बीत चुका है। यह उपन्यास उसके इन दोनों वक्तों की दुनियाओं की उनके अपने मिज़ाज में दिलचस्प अक्काशी करता है और क्योंकि यह सारा क़िस्सा बयान किया है इक्कीसवीं सदी के एक शख़्स ने तो हमारा यह वक़्त भी इसमें आ गया है। इस तरह इस छोटे से उपन्यास की काया में तीन बड़े ज़मानों को समेट दिया गया है... “मालूम होता है कि अल्लाह ताला अपने किसी शख़्स के लिए लम्बे ज़माने को भी मुख़्तसर कर देता है जबकि वह दूसरों के लिए तवील ही रहता है।’’
Shaane Tareekh
- Author Name:
Sudhakar Adeeb
- Book Type:

-
Description:
शेरशाह सूरी महज़ एक बादशाह नहीं ‘शाने तारीख़’ था। वह अपने समय का एक ऐसा व्यक्ति था जो किसी राजवंश में नहीं जन्मा था। एकदम धूल से उठा एक ऐसा व्यक्तित्व था जो संघर्ष की आँधियों में तपकर मध्यकालीन भारत के राजनैतिक आकाश पर एक तूफ़ान की तरह छा गया। एक ऐसा अभूतपूर्व तूफ़ान जो सिर्फ़ पाँच बरस चला, मगर जो अपना असर सदियों तक के लिए इस धरती पर छोड़ गया...
हुमायूँ के सुयोग्य बेटे अकबर ने भी अपने पूर्ववर्ती शेरशाह के सुशासन और उसकी धार्मिक सहिष्णुता का अनुगमन किया और उसके दिखाए मार्ग पर सुदीर्घ काल तक चलकर ही वह महान बना। शेरशाह ने सूत्र रूप में जो राजकाज के सिद्धान्त दिए उन्हें और भी विकसित कर जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर इतिहास में अपना नाम अमर कर गया। लेकिन जो लोग अपनी राह ख़ुद बनाते हैं, इतिहास में उनका नाम चाहे जितना श्वेत और श्याम हो, समय उनसे प्रेरित होकर उसमें नित नए रंग भरता है। शेरशाह सूरी इस लिहाज़ से अकबर महान से भी अधिक एक रचनात्मक प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति और उससे बड़ा राष्ट्र-निर्माता था। यदि उसे अपने जीवन में दस-पन्द्रह बरस और मिले होते तो शायद लोग अकबर को भी उस तरह याद न करते जैसा आज करते हैं। शेरशाह वास्तव में इतिहास का गौरव था और अपनी इसी अद्वितीयता के कारण सदैव रहेगा !...
Tarpan
- Author Name:
Shivmurti
- Book Type:

-
Description:
‘तर्पण’ भारतीय समाज में सहस्राब्दियों से शोषित, दलित और उत्पीड़ित समुदाय के प्रतिरोध एवं परिवर्तन की कथा है। इसमें एक तरफ़ कई-कई हज़ार वर्षों के दुःख, अभाव और अत्याचार का सनातन यथार्थ है तो दूसरी तरफ़ दलितों के स्वप्न, संघर्ष और मुक्ति चेतना की नई वास्तविकता। इस नई वास्तविकता के मानदंड भी नए हैं, पैंतरे भी नए और अवक्षेपण भी नए। उत्कृष्ट रचनाशीलता के समस्त ज़रूरी उपकरणों से सम्पन्न ‘तर्पण’ दलित यथार्थ को अचूक दृष्टि-सम्पन्नता एवं सरोकार के साथ अभिव्यक्त करता है।
गाँव में ब्राह्मण युवक चन्दर दलित युवती रजपत्ती से बलात्कार की कोशिश करता है। रजपत्ती और साथ की अन्य स्त्रियों के विरोध के कारण वह सफल नहीं हो पाता। उसे भागना पड़ता है। लेकिन दलित बलात्कार किए जाने की रिपोर्ट लिखाते हैं। ‘झूठी रिपोर्ट’ के इस अर्द्धसत्य के ज़रिए शिवमूर्ति हिन्दू समाज की वर्णाश्रम व्यवस्था के घोर विखंडन का महासत्य प्रकट करते हैं। इस पृष्ठभूमि पर इतनी बेधकता, दक्षता और ईमान के साथ अन्य कोई रचना दुर्लभ है।
समकालीन कथा साहित्य में शिवमूर्ति ग्रामीण वास्तविकता के सर्वाधिक समर्थ और विश्वसनीय लेखकों में हैं। ‘तर्पण’ उनकी क्षमताओं का शिखर है। रजपत्ती, भाईजी, मालकिन, धरमू पंडित जैसे अनेक चरित्रों के साथ अवध का एक गाँव अपनी पूरी सामाजिक, भौगोलिक संरचना के साथ यहाँ उपस्थित है। गाँव के लोग-बाग, प्रकृति, रीति-रिवाज, बोली-बानी—सब कुछ—शिवमूर्ति के जादू से जीवित-जाग्रत हो उठे हैं। युगों की रुद्ध शापित चेतना जब अपने प्रतिरोध और प्रतिशोध पर परवान चढ़ती है तो उसकी नज़र वर्तमान तक ही महदूद नहीं रहती, वह अतीत के सारे अभिशप्त पुरखों का तर्पण करती है और वैयक्तिकता सामूहिकता में ढलकर क्रान्ति का नया पाठ रचती है।
संक्षेप में कहें तो ‘तर्पण’ ऐसी औपन्यासिक कृति है जिसमें मनु की सामाजिक व्यवस्था का अमोघ सन्धान किया गया है। एक भारी उथल-पुथल से भरा यह उपन्यास भारतीय समय और राजनीति में दलितों की नई करवट का सचेत, समर्थ और सफल आख्यान है।
Antim Aakanksha
- Author Name:
Siyaramsharan Gupt
- Book Type:

- Description: किसी के स्वस्थ व्यवहार और उपकार के प्रति समर्पण की सीमा तक पहुँची हुई ऐसी कृतज्ञता कि बचपन से चाकरी में रहनेवाला नौकर अपने हमउम्र स्वामि-पुत्र के परिवार में अगले जन्म में भी जन्म लेने और उस परिवार की चाकरी करने की अन्तिम आकांक्षा अन्तिम साँस लेते समय प्रकट कर रहा हो—यही है वह अन्तरधारा जो इस उपन्यास में अनादि से अन्त तक प्रवाहित हो रही है। नौकर रमला को सेवा के पहले ही दिन पूरा नाम रामलाल से पुकारने का जो भाव उसका ख़ास पुत्र प्रकट करता है, वह भाव धीरे-धीरे अपने उत्कर्ष की ओर बढ़ता जाता है और रामलाल की अन्तिम आकांक्षा का कारण बन जाता है। उपन्यासकार सियारामशरण गुप्त अपने उपन्यासों में किसी न किसी ऐसी ही उत्कृष्ट भावना अथवा मान्यता को आधार बनाकर अपने उपन्यास की रचना करने के क़ायल थे, जिसे उन्होंने इस उपन्यास की भी अन्तरधारा के रूप में अपने कथानक में प्रवाहित किया है, जिससे उपन्यास रोचक और मनोरंजक बनने के साथ ही पाठक के अन्तर्मन को भी प्रभावित करनेवाला बन गया है
Jism Jism Ke Log
- Author Name:
Shazi Zaman
- Book Type:

-
Description:
“जब जिस्म सोचता, बोलता है तो जिस्म सुनता है।”
“आप तो बोलते भी हैं, सुनते भी हैं, लिखते भी हैं...”
“लिखता भी हूँ?” मैंने कहा।
एक कम्पन, एक हरकत-सी हुई तुम्हारे जिस्म में—जैसे मेरी बात का जवाब दिया हो।
“रूमानी शायर जिस्म पर भी जिस्म से लिखता है,’’ मैंने कहा।
“आप जिस्मानी शायर हैं!”‘जिस्म जिस्म के लोग’ बदलते हुए जिस्मों की आत्मकथा है। ‘जिस्म जिस्म के लोग’ में—और हर जिस्म में—बदलते वक़्त और बदलते ताल्लुक़ात का रिकॉर्ड दर्ज है।
“इतने वक़्त के बाद...,” तुमने मुझसे या शायद जिस्म ने जिस्म से कहा।
“कितने वक़्त के बाद?”
“जिस्म की लकीरों से वक़्त लिखा हुआ है।”
“दोनों जिस्मों पर वक़्त के दस्तख़त हैं,” मैंने कहा।
जिस्म पर वक़्त के दस्तख़त को मैंने उँगलियों से छुआ तो तुमने याद दिलाया—
“सूरज के उगने, न सूरज के ढलने से...
“वक़्त बदलता है जिस्मों के बदलने से।’”
दुनिया का हर इंसान अपना—या अपना-सा—जिस्म लिए घूम रहा है। उन्हीं जिस्मों को समझने, उन पर—या उनसे—लिखने और ‘जिस्म-वर्षों के गुज़रने की दास्तान है ‘जिस्म जिस्म के लोग’।
“बहुत जिस्म-वर्ष गुज़र गए...जिस्म जिस्म घूमते रहे!” मैंने कहा।
“तो दुनिया घूमकर इस जिस्म के पास क्यूँ आए?”
“जिस्मों जिस्मों होता आया”,
वक़्त के दस्तख़त पर मेरे हाथ रुक गए,
“अब ये जिस्म समझ में आया।”
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...