Pati-Patani Aur Woh
Author:
KamleshwarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
वरिष्ठ उपन्यासकार कमलेश्वर का यह उपन्यास समकालीन समाज में पुरुष मानसिकता को उघाड़कर रख देता है। देहलोलुप पुरुषों की लिप्सा और कुंठा इस उपन्यास का केन्द्रीय विषय है। पत्नी हो या प्रेमिका, स्त्री हर तरह से पुरुषों द्वारा छली जाती है। इस उपन्यास का कथ्य भले ही रोमांटिक और हलका-फुलका लगे, लेकिन यह साधारणता ही इसकी खास विशेषता है।</p>
<p>समकालीन जीवन की कार्यालयी संस्कृति में स्त्रियों की नियति और पुरुष की लोलुपता को लेखक ने इस उपन्यास में गहरी आन्तरिकता से रेखांकित किया है। पूँजीवादी समाज के प्रतिस्पर्द्धामूलक परिवेश की विडम्बनाओं और अन्तर्विरोधों को उजागर करनेवाला यह उपन्यास शिल्प व भाषा की सहजता के लिए भी याद किया जाएगा।
ISBN: 9788126715664
Pages: 236
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘बाबल तेरा देस में’ आख्यान है—स्त्री के उन दु:खों का, जो अपने ही घर के असुरक्षित, अभेद्य क़िले में क़ैद है। इसकी रेहलगी, बजबजाती अन्धी सुरंगों में कहीं पिता, तो कहीं भाई; कहीं ससुर, तो कहीं-कहीं पति के रूप में एक आदमख़ोर भेड़िया घात लगाए बैठा है; और जिसके हरेक नाके पर तैनात है एक पहरेदार अपने हाथ में थामे धर्म-ग्रन्थों के उपदेशों एवं तथाकथित आदेशों की धारदार नुकीली बरछी।
‘बाबल तेरा देस में’ इसी क़िले की पितृसत्तात्मक ईंट-गारे से चिनी मज़बूत दीवारों और महराबों के बीच दादी, जै़तूनी, असग़री, जुम्मी, पारो, शकीला, शगुफ़्ता, समीना, जै़नब, मैना और मुमताज़ का मौन प्रतिवाद है—वह भी बाहर की दुनिया से नहीं बल्कि हाजी चाँदमल, दीन मोहम्मद, हनीफ़, फ़ौजी, जगन प्रसाद, मुबारक अली तथा कलन्दर जैसे अपने ही घरों के पहरुओं से।
यह विमर्श नहीं है समृद्ध संसार की स्त्रियों की उस मुक्ति का, जो उन्हें कभी और कहीं भी मिल सकती है, अपितु यह अपनी निजता और शुचिता बचाए रखने का लोमहर्षक उपाख्यान भी है। लोकजीवन और क़िस्सागोई की तरंगों से लबरेज़ यह ऐसे जीवन्त-समाज का आख्यान भी है, जो पाठकों को कथा-रस के विभिन्न आस्वादों तथा अपने अभिनव कला-पक्ष से मुठभेड़ कराता, रेत-माटी से सने पाँवों की ऊबड़-खाबड़ मेड़ों पर, जेठ की तपती धूप में चलने जैसा अहसास दिलाता है। भगवानदास मोरवाल का यह उपन्यास ‘बाबल तेरा देस में’ निःसन्देह उस अवधारणा को तोड़ता है कि आज़ादी के बाद मुस्लिम परिवेश को आधार बनाकर उपन्यास नहीं लिखे जा रहे हैं।
Kamyogi
- Author Name:
Sudhir Kakkar
- Book Type:

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Description:
काल : चौथी सदी, भारत का स्वर्णयुग। स्थान वाराणसी के बाहर जंगलों में बना एक आश्रम। ‘कामसूत्र’ के रचयिता वात्स्यायन हर सुबह अपने एक युवा शिष्य को अपने बचपन और युवावस्था की कहानियाँ सुनाते हैं। यह शिष्य इस महान ऋषि की जीवनी लिखना चाहता है। वात्स्यायन के जीवन के बारे में बहुत कम जानकारियाँ उपलब्ध हैं। यह युवा अध्येता इन जानकारियों को अपने मस्तिष्क में दर्ज करता जाता है। साथ ही ‘कामसूत्र’ के उन प्रासंगिक श्लोकों को भी उनमें गूँथता जाता है, जिन्हें उसने कंठस्थ कर लिया है। जो कथा उभरती है, वह अद्भुत है। वात्स्यायन की माँ अवंतिका और मौसी कौशाम्बी के एक वेश्यालय में प्रसिद्ध गणिकाएँ हैं। उसे और उनके विभिन्न प्रेमियों से वात्स्यायन काम-कलाओं की पहली छवियाँ देखते हैं, जो उनके मन पर अमिट छाप छोड़ती है।
सुधीर कक्कड़ अपनी विशिष्ट सूक्ष्म दृष्टि से इस कथा के उन अनगिनत पात्रों के मन की गहराइयों तक पहुँचते हैं, जो अपनी पहचान पाने के विभिन्न चरणों से गुज़र रहे हैं। इस तरह वासना और कामुकता का एक सशक्त आख्यान आकार लेता है, जिसमें प्राचीन कला का सम्मोहन भी है और आश्चर्यजनक विसंगतियाँ भी।
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