Frozen Tears
Author:
AdvythPublisher:
Author'S Ink PublicationsLanguage:
EnglishCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 226.1
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266
Available
A highly intelligent serial killer is loose in the Metro city in India. His targets are unconnected people from different age groups, the only common element being that he gives his victims a painless death. Dev, a senior police officer who is assigned the case, is struck by the empathetic way in which the killer masterminds his horrific acts. His conventional ways of investigating the case lead nowhere. He is then joined by his daughter, Rudra, who is a psychiatrist and criminologist working for the London police Department. Rudra brings in her novel ways of investigation of getting into the killer mind and has her first breakthrough. As the case proceeds, Rudra is shocked to discover how crimes all over the world are driven by universal passions, and how, with the slight provocation, even seemingly innocent people can be driven to horrendous crimes. But what Rudra does not know is that the killer, who is always one step ahead of her, is much closer to home than she thinks. It takes a terrible tragedy to prove that to her. Join author advyth as he narrates this unique crime investigation thriller that is full of eye-opening insights on the human mind that will shock one and all.
ISBN: 9789390006106
Pages: 224
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: -
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‘‘मानवता और उसके इस संसार में जो सत्य अनादिकाल से क्रियाशील है, उसे समझने और पाने के लिए जितना दिमाग़ी परिश्रम इस भारतवर्ष के योगी-महात्माओं ने किया है, उतना कहीं के भी महापुरुषों ने नहीं किया है। इस ओर प्रत्येक ऋषि अपने-अपने तरीक़े से, स्वतंत्र रूप से, अनुसन्धान करते आए हैं। मगर वे सभी यही अनुभव करते रहे कि प्रत्येक मार्ग एक-दूसरे का पूरक है। इस तरह अन्त में वे एक ही सत्य पर पहुँचते भी थे। तुम बच्चे हो बेटा, तुमने कुछ पुस्तकें पढ़ी हैं, वह भी अंग्रेज़ी पुस्तकों में वर्णित विचारों को पचाने का प्रयास मात्र किया है। इस तरह तुम न तो उन ऋषियों की घनघोर साधनाओं को समझोगे और न उनके अतुलनीय बुद्धि-वैभव को ही। तुम उनकी बुद्धि-शक्ति की कल्पना करो जिन्होंने अंक व्यवस्था का आविष्कार किया और शून्य का पता चलाया। तुम भारतीय ज्ञान-विद्या और अभिनय-शास्त्र को भी समझने का प्रयास करो। इस देश में धर्म सिर्फ़ राम जपना ही नहीं रहा है। मनुष्य का प्रत्येक आचरण परमेश्वर-प्राप्ति का एक साधन समझा जाता था। अतः वैद्य चिकित्सा करते समय, गायक गाते समय, गणितज्ञ किसी समस्या को हल करते समय, राजा राज्य-कार्य करते समय, पत्नी पति-सेवा करते समय, भंगी झाड़ू लगाते समय; इस तरह प्रत्येक व्यक्ति अपने प्रत्येक आचरण को ही ईश्वर का एक क़दम समझता था। कम-से-कम विधि और व्यवस्था इसी ओर रही है।’’ ‘‘खैर, ऐसा ही सही; आखिर उन सब अनुष्ठानों से भारत ने क्या पाया? सैकड़ों बरस की ग़ुलामी जब मुसलमान आए तो उसका ग़ुलाम हुआ; जब अंग्रेज़ आए तो उसका ग़ुलाम हुआ। जातीय जीवन में कुछ भी शक्ति रहती तो वह इतनी जल्दी और इतने शौक से ग़ुलामी को स्वीकार नहीं करता। बाबा जी, यह सत्य है कि मैंने धर्म का अध्ययन नहीं किया, पर क्या वजह है कि हम इतने क्षीण चारित्र्य के हो गए कि अपनी स्त्रियों तक को आततायियों से बचा नहीं सके? बुरा नहीं मानिए। जानने की व्यग्रता में मेरी पवित्र वेदना सन्निहित है।’’
‘‘मैं मानता हूँ, जातीय जीवन गिर गया है। हज़ारों बरसों से गिरता आ रहा है।’’
‘‘कब बढ़ी हालत में थी? इतिहास में तो कुछ प्रमाण नहीं मिलता। सब आपस में लड़े-भिड़े हैं। सैकड़ों बार लड़कियों के लिए लड़ाइयाँ हुई हैं।’’ ‘‘यह तो ग़लत बात है। इतिहास सदा मात्र सच्ची और सही घटनाओं को प्रस्तुत नहीं करता।’’ ‘‘तो सही क्या है—आपकी प्रिय धारणाएँ? आपकी प्रिय विचारधाराएँ?’’ ‘‘तो तुम्हारा क्या कहना है?’’ ‘‘मेरा यह कहना है कि इन भौगोलिक प्रतिष्ठानों का कुछ भी अर्थ नहीं है। क्या अर्थ है भारत भूमि का; क्यों आप भारत को पुण्यभूमि और भगवान का प्रिय देश कहते हैं? चीनी लोगों ने कौन-सा अपराध किया कि उनके देश में कोई पुण्यभूमि की मान्यता नहीं मिलती? सच बात तो यह है कि मनुष्य जहाँ-जहाँ जमकर रहते गए, उन्होंने अपनी उसी जमाअत तथा भू-भाग को महत्त्वपूर्ण समझना प्रारम्भ किया। उसके ममत्व में जो बेमतलब और बेबुनियाद का एक भाव चढ़ता गया, उसे राष्ट्रीयता कहते हैं। जैसे-जैसे यातायात की सुगमताएँ बढ़ती जाएँगी और मानव एक-दूसरे के निकटतम सम्पर्क में आता जाएगा, वैसे-वैसे राष्ट्र और राष्ट्रीयता भी कम होती जाएगी, भाषाएँ कम होती चलेंगी, जातियाँ मिटती चलेंगी और धर्म भी घटता चलेगा। विज्ञान पूरी मानवता को एक धरातल पर खड़ा कर देगा; एक सत्य पर व्यवस्थित कर देगा। जो चीज़ भेद-भाव को प्रश्रय देती हुई उसे मान्यता प्रदान करती है, उसे मैं ग़लत, झूठ और अन्याय मानता हूँ। इससे मैं मानवता को बचाऊँगा।’’
अध्यात्म और साम्यवाद को केन्द्र में रखकर रचा गया आनन्द शंकर माधवन का विचारोत्तेजक उपन्यास है—‘अनामंत्रित मेहमान’। अपने इस पठनीय उपन्यास में लेखक ने जहाँ दो विपरीत धाराओं का अपनी तार्किक दृष्टि से विवेचन-विश्लेषण प्रस्तुत किया है, वहीं निश्छल प्रेम और उदारता के आगे कठोर से कठोर व्यक्ति भी किस तरह स्वयं को पराजित-सा महसूस करने लगता है, इसका बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है।
Sej Per Sanskrit
- Author Name:
Madhu Kankariya
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Description:
समाज और व्यवस्था के कटु-तिक्त अनुभवों से सम्पन्न उपन्यासकार हैं मधु कांकरिया। उनका यह उपन्यास बेधक, जुझारू, धैर्यवान और अन्ततः विद्रोही स्त्री की आन्तरिक पीड़ा का बड़ा ही मार्मिक विश्लेषण-अंकन करता है। धार्मिक चिन्तन और व्यवहार से आप्लावित संसार में स्त्री-जीवन कितना कठोर, क्रूर और भयावह हो सकता है, ‘सेज पर संस्कृत’ के बहाने इस यातना-गाथा का हमें पोर-पोर परिचय मिलता है।
उपन्यास में आर्थिक विपन्नता में जकड़ी ऐसी माँ का चित्रण है जो अध्यात्म को मुक्तिमार्ग मान, यह चाहती है कि उसकी जवान बेटियाँ भी उसी मार्ग को अपना लें, ताकि उनके जीवन को नया आयाम मिले, क्योंकि उसकी धारणा है कि किसी स्त्री के साध्वी बन जाने पर परिवार का मान-सम्मान अनायास बढ़ जाता है, आर्थिक विपन्नता दूर हो जाती है। छोटी बेटी तो माँ के पद-चिह्नों पर चल पड़ती है लेकिन बड़ी बेटी शुरू से अन्त तक धर्माडम्बरों का घोर विरोध करती है।
साध्वियों की जीवन-स्थिति एवं उनके अन्तर्बाह्य संघर्ष को मार्मिक शब्द देनेवाले इस उपन्यास में जहाँ सामाजिक-आर्थिक विषमता को विस्तार दिया गया है, वहीं अन्याय और शोषण की अभिव्यक्ति को नई भाव-भूमि।
Doobte Mastool
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Shri Naresh Mehta
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Description:
परिस्थितियों के संघात से टूटती-बनती एक अप्रतिम सुन्दर नारी की विवश-गाथा का प्रतीक नाम है—‘डूबते मस्तूल’। वस्तुत: नारी की यह विवशता किसी भी युग में कम नहीं हुई है। उसका विन्यास परिवेश के बदलने के साथ कुछ परिवर्तित भले ही लगे, पर पुरुष कभी उसे वही स्थान और मान्यता नहीं देता जो वह किसी अन्य पुरुष को देता है। स्वयं नारी को अपने इस भोग्या स्वरूप से कितना विद्रोह है पर प्रकृति के विधान का उल्लंघन कर पाना एक सनातन समस्या है। अपने इस प्रथम उपन्यास ‘डूबते मस्तूल’ में नरेश जी ने नारी के एक प्रखर स्वरूप को भावनाओं और घटनाओं, के माध्यम से जब प्रस्तुत किया था सन् 1954 में, तभी से इसकी नायिका रंजना हिन्दी-उपन्यास के पाठकों की स्मृति बन गई।
A Little Chorus of Love : Love through Ages
- Author Name:
Dipti Menon +4
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- Description: What is love? The question brews a million different answers. Love is not an entity. It is an emotion that embraces several hues and shades within. 'A Little Chorus of Love � Love through Ages' simply follows the same idea and assembles 24 different writers portraying love in a form they acknowledge the best.
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