Sidha-Sada Rasta
Author:
Rangeya RaghavPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 716
₹
895
Available
‘सीधा-सादा रास्ता’ भगवतीचरण वर्मा के चर्चित उपन्यास ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते’ की उत्तर-कथा है। इस उपन्यास के पात्र, परिस्थितियाँ, सामाजिक व्यवहार, घर, सम्पत्ति और भूगोल सब वही हैं जो ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते’ के हैं लेकिन ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते’ की कहानी ‘सीधा-सादा रास्ता’ के पात्रों का मात्र अतीत है। इस तरह ‘सीधा-सादा रास्ता’ ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते’ के आगे की कहानी है।</p>
<p>रांगेय राघव को भगवतीचरण वर्मा के उपन्यास में वर्णित पात्रों, परिस्थितियों और विचारों में कुछ विकृतियाँ नज़र आईं, इसलिए उन्होंने उन्हीं पात्रों और परिस्थितियों के आधार पर इस उपन्यास की रचना की। हिन्दी साहित्य के दो दिग्गजों के वैचारिक संघर्ष का प्रतिफलन यह उपन्यास पढ़ना अपने आपमें एक दिलचस्प अनुभव से गुज़रने जैसा है।</p>
<p>प्रस्तुत उपन्यास के लेखक रांगेय राघव के ही शब्दों में, “जैसा जो वर्मा जी का पात्र है, उसको मैंने वैसा ही लिया है, पर वर्मा जी ने चित्र का एक पहलू दिखाया है, मैंने दूसरा भी।”</p>
<p>यह उपन्यास इस तथ्य की पुष्टि करता है कि ‘देश और काल के बिना कुछ भी सीधा...सादा...रास्ता नहीं है।’</p>
<p>अपनी रौ में बहा ले जानेवाली भाषा, अनूठे शिल्प और ज़बर्दस्त अन्तर्वस्तु के कारण यह उपन्यास पाठकों के रचनात्मक सोच को नया आयाम प्रदान करेगा, ऐसी आशा है।
ISBN: 9788171198115
Pages: 388
Avg Reading Time: 13 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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समय तथा समाज की तमाम विसंगतियों को अपने भीतर समेटे यह एक ऐसा बहुआयामी उपन्यास है जिसमें प्रेम की अन्त:सलिला भी बहती है तथा एक देश का टूटना और बनना भी शामिल है। यह उपन्यास लेखिका के गम्भीर शोध पर आधारित है और इसमें बांग्लादेश मुक्ति-संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों तथा उर्दूभाषी नागरिकों द्वारा बांग्लाभाषियों पर किए गए अत्याचारों तथा उसके ज़बर्दस्त प्रतिरोध का बहुत प्रामाणिक चित्रण हुआ है। उपन्यास का एक बड़ा हिस्सा उस दौर के लूट, हत्या, बलात्कार, आगजनी की दारुण दास्तान बयान करता है। उस दौरान मानवीय आधार पर भारतीय सेना द्वारा पहुँचाई गई मदद और मुक्तिवाहिनी को प्रशिक्षण देने के लिए भारतीय सीमा क्षेत्र में बनाए गए प्रशिक्षण शिविरों तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार द्वारा निभाई गई भूमिका का भी ज़िक्र इसमें है।
युवा लेखिका महुआ माजी का यह पहला उपन्यास है। लेकिन उन्होंने राष्ट्र-राज्य बनाम साम्प्रदायिक राष्ट्र की बहस को बहुत ही गम्भीरता से इसमें उठाया है और मुक्तिकथा को भाषायी राष्ट्रवाद की अवधारणा की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया है। ज़मीन से जुड़ी कथा-भाषा और स्थानीय प्रकृति तथा घटनाओं के जीवन्त चित्रण की विलक्षण शैली के कारण यह उपन्यास एक गम्भीर मसले को उठाने के बावजूद बेहद रोचक और पठनीय है।
Surajmukhi Andhere Ke
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Krishna Sobti
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Description:
रेशम की-सी नरम ठंडी मगर उष्म शैली में प्रस्तुत इस उपन्यास में एक ऐसी लड़की की कहानी है जिसके फटे बचपन ने उसके सहज भोलेपन को असमय चाक कर दिया और उसके तन-मन के गिर्द दुश्मनी की कँटीली बाड़ खींच दी।
अन्दर और बाहर की दोहरी दुश्मनी में जकड़ी रत्ती की लड़ाई मानवीय-मन की नितान्त उलझी हुई चाहत और जीवन-भरे संघर्ष की दस्तावेज़ है।
‘मित्रो मरजानी‘, ‘डार से बिछुड़ी’ और ‘यारों के यार’ से अलग और आगे इस उपन्यास में कृष्णा सोबती ने गहन संवेदना के स्तर पर कलाकार की तीसरी आँख से पर्त-दर-पर्त तन-मन की साँवली प्यास को उकेरा है।
आधुनिक भाव-बोध की पीठिका पर मनोविज्ञान की गूढ़तम पहेलियों को सादगी से आँक कर सोबती ने एक ऐसे वयस्क माध्यम और शिल्प की स्थापना की है जो एक साथ परम्परागत शिल्प और मूल्यों को चुनौती है।
आदर्शों की भव्यता से अलग हटकर ‘सूरजमुखी अँधेरे के’ यथार्थ और सत्य के निरूपण की वह असाधारण सत्य-कथा है जिसका सत्य कभी मरता नहीं।
Tatari Veeran
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- Description: सन् 1940 में प्रकाशित ‘तातारी वीरान’ दीनो बुत्साती की एक उत्कृष्ट कृति है। इसमें कुशल लेखक ने मँजी शैली के माध्यम से मानव-जीवन में व्याप्त बेतुकेपन (absurdity) को अपनी वैचित्र्यपूर्ण भाव-संवेदनाओं के ताने-बानों से पिरोया है। उपन्यास में व्यक्त दर्शन एक तरह का अस्तित्ववादी चिन्तन है। कथानक की बुनावट की दृष्टि से यह एक अतियथार्थवादी रचना है जिसमें कथा-संयोजन स्वैरकल्पना (fantasy) के माध्यम से होता है। ‘तातारी वीरान’ के पात्र जीवन-भर अपने द्वारा ही निर्मित भ्रमों के क़ैदी बनकर एक आशा में पूरी ज़िन्दगी गुज़ार देते हैं—जीवन में कुछ बड़ा कर पाने की निर्मूल आशा में! जीवन के हर आयाम में छाया बेतुकापन वस्तुत: एक सम्भावित भय से परिचालित रहता है। मानवीय सम्बन्धों की आधारभूमि एक-दूसरे के बीच की ऐसी ‘जानकारी’ पर निर्मित होती है जो ठोस नहीं अपितु दलदल युक्त है—जिसमें बेतुकेपन की अन्त:सलिला निरन्तर बहती रहती है।
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