
Parishishta
Author:
Giriraj KishorePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Unavailable
‘दिनमान’ (5-11 अगस्त, 1984) के ‘फ़िलहाल’ स्तम्भ में, ‘परिशिष्ट’ के बारे में गिरिराज किशोर का कथन छपा था, “अनुसूचित कोई जाति नहीं, मानसिकता है। जिसे अभिजातवर्ग (जिसका वर्चस्व हो) परे ढकेल देता है, वह अनुसूचित हो जाता है।” ‘परिशिष्ट’ इसी भयानक मानसिकता को उद्घाटित करनेवाला एक महाअभियोग है। अपने बहुचर्चित उपन्यास ‘यथा प्रस्तावित’ में भी गिरिराज ने इसी वर्ग की दारुण पीड़ा को चित्रित किया था। राष्ट्रीय महत्त्व की महान शिक्षा-संस्थाओं में किसी तरह दाख़िला प्राप्त करनेवाले साधनहीन और तथाकथित जातिहीन छात्रों की त्रासदी, उबलते तेल में डाल दिए जानेवाले व्यक्ति के संत्रास की तरह होती है जो पहली बार ‘परिशिष्ट’ के रूप में सामने आई है।</p>
<p>राष्ट्रीय स्तर पर ऊँच-नीच और छुआछूत का विष फैला है। आरक्षणवादी नीतियों के बावजूद इनसान को जिस अमानवीय स्थिति का सामना करना पड़ता है, वह हर एक को अपने गिरहबान में मुँह डालकर झाँकने के लिए मजबूर करती है। उपन्यास से पता चलता है कि लेखक उस सबका अन्तरंग साक्षी है। अपनी मुक्ति की लड़ाई लड़नेवाला हर पात्र एक ऐसे दबाव में जीने के लिए मजबूर है जो या तो उसे मरने के लिए बाध्य करता है या फिर संघर्ष को तेज़ कर देने की ख़ामोश प्रेरणा देता है। यह उपन्यास गिरिराज किशोर की पहचान को ही गहरा नहीं करता बल्कि हिन्दी उपन्यास की परम्परा को समृद्ध भी करता है।</p>
<p>एक लड़ाकू जहाज़ की तरह ऊपर उठते-उठते फट पड़नेवाला, उसी वर्ग का एक पात्र रामउजागर आत्महत्या से पहले नोट लिखकर जेब में रख लेता है कि “मेरा जाना स्वेच्छा से है। गवेषणात्मक है। हालाँकि उसका प्रतिफल दूसरों को बाँट पाना सम्भव नहीं होगा।...किसी घृणा या शिकायत के कारण नहीं, एक आत्मीयता और आत्म-सन्तोष के कारण मेरा केवल यही प्रश्न है कि जब प्रकृति, जिससे हम सब कुछ पाते हैं, घृणामुक्त है, तो मनुष्य मुक्त क्यों नहीं?”... उपन्यास का नायक अनुकूल एक संकल्पशील व्यक्ति है जो सहता है, भोगता है और विचलित नहीं होता। वस्तुतः ‘परिशिष्ट’ संत्रास, संघर्ष और संकल्प की महागाथा है।
ISBN: 9788126720644
Pages: 347
Avg Reading Time: 12 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: चौदह फेरे तब केबल टी.वी. के धारावाहिक शुरू नहीं हुए थे और हिन्दी पत्रिकाओं में छपनेवाले लोकप्रिय धारावाहिक साहित्य-प्रेमियों के लिए आकर्षण और चर्चा का वैसे ही विषय थे, जैसे आज के सीरियल। चौदह फेरे जब ‘धर्मयुग’ में धारावाहिक रूप में छपने लगा तो इसकी लोकप्रियता हर किस्त के साथ बढ़ती गई। कूर्मांचल समाज में तो शिवानी को कई लोग चौदह फेरे ही कहने लगे थे। उपन्यास के रूप में इसका अन्त होने से पहले अहिल्या की फैन बन चुकी प्रयाग विश्वविद्यालय की छात्राओं के सैकड़ों पत्र उनके पास चले आए थे, ‘प्लीज, प्लीज शिवाजी जी, अहिल्या के जीवन को दुःखान्त में विसर्जित मत कीजिएगा।’ कैम्पसों में, घरों में शर्तें बदी जाती थीं कि अगली किस्त में किस पात्र का भविष्य क्या करवट लेगा। स्वयं शिवानी के शब्दों में ‘‘मेरे पास इतने पत्र आए कि उत्तर ही नहीं दे पाई। परिचित, अपरिचित सब विचित्र प्रश्न पूछते हैं - ’’ ‘क्या अहिल्या फलाँ समझा गया इसी भय से गर्मी में पहाड़ जाने का विचार त्यागना पड़ा। क्या पता किसी अरण्य से निकलकर कर्नल साहब छाती पर दुनाली तान बैठें?’’ कूर्मांचल से कलकत्ता आ बसे एक सम्पन्न-कुटिल व्यवसायी और उसकी उपेक्षिता परम्पराप्रिय पत्नी की रूपसी बेटी अहिल्या, परस्पर विरोधी मूल्यों और संस्कृतियों के बीच पली है। उसका राग-विराग और उसकी छटपटाती भटकती जड़ों की खोज आज भी इस उपन्यास को सामयिक और रोचक बनाती है। जाने-माने लेखक ठाकुरप्रसाद सिंह के अनुसार, इस उपन्यास की कथा धारा का सहज प्रवाह और आँचलिक चित्रकला के से चटख बेबाक रंग इस उपन्यासकी मूल शक्ति हैं।
Paltu Babu Road
- Author Name:
Phanishwarnath Renu
- Book Type:
-
Description:
'पल्टू बाबू रोड' अमर कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु का लघु उपन्यास है। यह उपन्यास पटना से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'ज्योत्स्ना' के दिसम्बर, 1959 से दिसम्बर, 1960 के अंकों में धारावाहिक रूप से छपा था। रेणु के निधन के बाद 1979 में पुस्तकाकार प्रकाशित हुआ।
नई-नई कथाभूमियों की खोज करनेवाले रेणु 'पल्टू बाबू रोड' में एक क़स्बे को अपनी कथा का आधार बनाते हैं। वे कठोर, विकृत और ह्रासोन्मुख समाज को लेखकीय प्रखरता के साथ परखते हैं। इस उपन्यास में रेणु अपने गाँव-इलाक़े को छोड़कर बैरगाछी क़स्बे को कथाभूमि बनाते हैं। इस क़स्बे की नियति पल्टू बाबू जैसे काइयाँ, धूर्त, कामुक बूढ़े के हाथ में है। उसने क़स्बे के लिए ऐसी राह निर्मित की है जिस पर राजनीतिज्ञ, ठेकेदार, व्यापारी, वकील (पूरे क़स्बे के लोग ही) चल रहे हैं। लगता है, क़स्बावासी शतरंज के मोहरे हैं और पल्टू बाबू इनके संचालक।
इस उपन्यास का लक्ष्य है उच्च वर्ग के अंतर्विरोधों, उसकी गिरावट, राजनीतिक और आर्थिक सम्बन्धों में यौन-व्यापार आदि का चित्रण। निम्न वर्ग छिटपुट आया है। आदर्शवादी पात्र विडम्बना से घिरे हैं। भाषा प्रवाहपूर्ण और अर्थव्यंजक है। अत्यन्त पठनीय उपन्यास।
Shastra Vidaai
- Author Name:
Ernest Hamingway
- Book Type:
- Description: ‘शस्त्र विदाई’ अर्नेस्ट हेमिंग्वे के विश्वप्रसिद्ध उपन्यास ‘ए फ़ेयरवेल टू आर्म्स’ का अनुवाद है। कई फ़िल्मों का आधार बन चुके और विश्व की अनेक भाषाओं में अनूदित इस उपन्यास की पृष्ठभूमि में प्रथम विश्वयुद्ध है। 1929 में प्रकाशित ‘ए फेयरवेल टू आर्म्स’ का कथावाचक पात्र अमेरिकी फ़ेडरिक हेनरी है जो इतालवी सेना में लेफ़्टिनेंट है। प्रथम विश्वयुद्ध के लोमहर्षक विवरणों, सनकी सिपाहियों, युद्ध और विस्थापन से जूझते नागरिकों से अँटे उपन्यास के विशाल फ़लक का केन्द्र हेनरी और कैथरीन बार्कले का प्रेम है। इस उपन्यास के प्रकाशन के साथ ही हेमिंग्वे एक आधुनिक अमेरिकी लेखक के रूप में स्थापित हो गए थे, यही उपन्यास उनका पहला बेस्टसेलर था।
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