Mahabhoj
Author:
Mannu BhandariPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction3 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
मन्नू भंडारी का ‘महाभोज’ उपन्यास इस धारणा को तोड़ता है कि महिलाएँ या तो घर-परिवार के बारे में लिखती हैं, या अपनी भावनाओं की दुनिया में ही जीती-मरती हैं। ‘महाभोज’ विद्रोह का राजनैतिक उपन्यास है।
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हिन्दी के सजग पाठक के लिए अनिवार्य उपन्यास है ‘महाभोज’।
ISBN: 9788183610926
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘चलनी में अमृत’ यशपाल द्वारा अनूदित एक उपन्यास है जो 1950 के दशक में कमला पूर्नईया टेलर द्वारा ‘नेक्टर इन सीव’ नाम से अंग्रेज़ी में लिखा गया। यह लेखिका का पहला ही उपन्यास था, फिर भी इसे बेस्ट सेलर के रूप में ख्याति मिली और 1955 में अमेरिकन लाइब्रेरी एसोसिएशन ने इस उपन्यास को वर्ष की महत्त्वपूर्ण कृति कहते हुए दर्ज किया। कमला पूर्नईया को संस्कृतियों के टकराव पर लिखने के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
‘चलनी में अमृत’ उपन्यास विपन्नता, भूख और व्यवस्थागत शोषण की मार्मिक कथा सामने लाता है। फ़्लैश बैक से खुलता हुआ यह उपन्यास कथा पात्र रुक्मिणी यानी रुकू की विवाह स्मृति से आरम्भ होता है। उसका विवाह तब हुआ था जब वह केवल बारह वर्ष की थी और सौभाग्य का एकमात्र टुकड़ा उसके हिस्से यही था कि उसका पति नाथन एक सज्जन व्यक्ति था। रुकू के जीवन में सपने और ख़ुशियाँ एक झलक-भर को आती हैं और फिर आर्थिक सामाजिक त्रासदी उन्हें झपट लेती है। खेती को निगलती हुई उद्योग की आहट भी इस उपन्यास में है, जो एक टेनरी (चमड़े का कारख़ाना) की तरह आकर रुकू के जीवन की यातना बनती है। विपन्नता की पराकाष्ठा है कि रुकू की बेटी देह व्यापार के लिए विवश होती है और एक माँ के रूप में रुकू को यह नियति सह लेनी पड़ती है। परिवार में शिशु का जन्म जो आह्लाद लाता है, उसे बच्चों की असमय मृत्यु, उनका पलायन क्रूरता से मिटा भी देता है। कठिन जीवन-यापन के दौरान समय के सच को नकारती सामाजिक मान्यताएँ रुकू और उसके पति दोनों को ब्लैकमेल होने को मजबूर करती हैं। इस तरह इनका पूरा जीवन बूँद-बूँद क्षणिक ख़ुशियों के बीच से गुज़रता है लेकिन कोई भी ख़ुशी इनके पास ठहरने नहीं पाती। इस त्रासदी के पीछे प्रकृति भी है और समाज रचित व्यवस्था भी।
इस तरह, यह उपन्यास अपने समाज के यथार्थ पर भी संवेदनापूर्वक उँगली रखता है। उपन्यास का अनुवाद अपने आस्वाद में इस कृति को मूलतः हिन्दी रचना-सा ही आभास देता है। ‘चलनी में अमृत’ अपने मुख्य सरोकार में आज भी एक प्रासंगिक कृति है।
Chittakobara
- Author Name:
Mridula Garg
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- Book Type:

- Description: जो लिखा है, उसे उपन्यास कहते मुझे संकोच हो रहा है। जिस तरह यह लिखा गया, याद करके हँसी आती है। एक कहानी थी जो मेरे अन्तर्मन में फैलती-सिकुड़ती रहती थी। फिर एक दिन उस कहानी के अन्तराल का एक-एक क्षण अपनी कड़ी से टूटकर बिखर गया। मैंने आँखें फैलाकर देखा तो दीखा, हर क्षण अलग से फैल रहा है और पूरी एक कहानी का आभास दे रहा है। यह सच है कि मैंने उन अलग-अलग क्षणों को लिखने की प्रक्रिया में अलग-अलग जिया है...आखिर मैं थक गई। लिखे हुए पन्नों को एक जगह इकट्ठा किया और यह बात मेरे लिए सुखद आश्चर्य का विषय है कि पूरी पुस्तक में एक अन्तर्धारा बहती हुई दीखती है और एकसूत्रता भी आसानी से पकड़ में आती है। इस उपन्यास में परिच्छेद नहीं हैं। मैं जानती हूँ, जीवन की इतनी प्रवहमान धारा को टुकड़ों में नहीं काटा जा सकता। अन्दर के दबाव के कारण ही शायद यह हो सका है कि क्षणों में जी और लिखी गई इस कहानी के टुकड़ों का क्रम भी बाद में तय हुआ। दरअसल, बहती नदी से किसी किनारे खड़े होकर पानी पियो - क्या फर्क पड़ता है! क्रम-निर्धारण का पूर्वग्रह तो कहानी गढ़ने में होता है; जो कहानी है, वह तो...कोई कहीं से भी साथ हो ले... - इसी पुस्तक से
Aaspas Se Gujrate Hue
- Author Name:
Jayanti
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- Description: ‘अनु–––सर्दियों की एक ख़ुशनुमा ढलती साँझ में मेरे ज़ेहन में आई थी। शाम से लेकर पूरी रात वह मेरे साथ रही। अगले ही दिन मैंने तय कर लिया कि अनु को आकार देना चाहिए। अनु जैसी किसी से मैं आज तक मुखातिब नहीं हुई हूँ। पर टुकड़ों में उसकी छवियाँ मेरे आसपास से गुज़रती रही हैं। आज के दौर की एक सामान्य-सी युवती है अनु, जो कुछ परवरिश के तौर–तरीक़े के चलते, तो कुछ परिस्थितिवश और बहुत कुछ अपने स्वभावगत गुण–अवगुण की वजह से लीक से हटकर चलने की कोशिश में लगी है।’ इस उपन्यास की नायिका के बारे में लेखिका का यह वक्तव्य, अगर बहुत ज़्यादा नहीं तो इतना तो बताता ही है कि वह ‘लीक से हटकर’ चलनेवाली युवती है, उसके ख़ाका को पूरा करने के लिए इतना–भर और जोड़ लेना काफ़ी होगा कि वह हमारे दरवाज़े के बाहर खड़े, ‘इन्स्टैंट’ वर्तमान से उठी हुई नायिका है—अपनी टुकड़ा–टुकड़ा छवियों में ही आकार लेती हुई।
Aaina Saaz
- Author Name:
Anamika
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Description:
हमारे दौर की राजनीति, समाज, आदमी–सब अपने भीतर से लेकर बाहर तक जाने कैसे तो जंजाल में उलझे हुए हैं, और जब उसे सुलझाने चलते हैं, उस जाल से निकलकर खुली, साफ़ जगह में आने के लिए हाथ-पाँव पटकते हैं तो सुलझते-निकलते नहीं, और उलझ जाते हैं।
क्या नहीं है हमारे पास? जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, अब वह भी है, और भरोसा है कि अब जिसकी कल्पना करेंगे, वह भी कल हो उठेगा।
लेकिन ताला अगर कहीं लग गया है तो वह कल्पना ही पर है; और उसके संगी-साथी दूसरे कई मनोभाव-मनोशक्तियाँ और इनका सरदार एक सूफ़ी मन, उजली कामनाओं, और धरती-आकाश को एक करते धवल सपनों की छतरी; यह सब उस ताले के भीतर कहीं छटपटा-सिसक रहे हैं।
खुसरो एक पैदा हुआ, मध्यकालीन कहे जानेवाले उस साँवले हिन्दुस्तान में जिसकी छतें इतनी ऊँची होती थीं, कि हम बौनों की तिमंज़िला बाँबियाँ उनमें खड़ी हो जाएँ। यह उस ख़ुसरो की आत्मकथा से रचा हुआ उपन्यास है जिसमें ख़ुसरो की चेतना को जीनेवाले आज के कुछ सूफ़ी मनवालों की कहानी भी साथ में पिरो दी गई है।
ख़ुसरो इस कथा में अपना वह सब बताते हैं जिस तक हम उनकी नातों, क़व्वालियों और पहेलियों की ओट में नहीं पहुँच पाते–कि उनका एक परिवार था, एक बेटी थी, बेटे थे, पत्नी थी, और थे निज़ाम पिया जिनकी निगाहों के साए तले उन्होंने वह सब सहा जो एक साफ़, हस्सास दिल अपने ख़ून-सने वक़्तों और बेलगाम सनकों से हासिल कर सकता था।
और इसमें कहानी है सपना की, नफ़ीस की, ललिता दी और सरोज की भी, जो आज के हत्यारे समय के सामने अपने दिल के आईने लिए खड़े हैं, लहूलुहान हो रहे हैं, पर हट नहीं रहे, जा नहीं रहे, क्योंकि वे उकताकर या हारकर अगर चले गए तो न पद्मिनियों के जौहर पर मौन रुदन करनेवाला कोई होगा, न इंसानियत को उसके क्षुद्रतर होते वजूद के लिए एक वृहत्तर विकल्प देनेवाला।
Prithvi Ki Rochak Baaten
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Dr. Sheo Gopal Mishra
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- Description: "फारसी लोककथा के अनुसार पृथ्वी की आयु 12,000 वर्ष; बैबीलोन ज्योतिषियों के अनुसार 20 लाख वर्ष; बाइबल के अनुसार 6,000 वर्ष बताई गई है । आर्क बिशप उशर का मत था कि पृथ्वी का जन्म 4004 ई. पू प्रात: 9.00 बजे हुआ! आधुनिक अनुसंधानों से सिद्ध हो चुका है कि हमारे ग्रह पृथ्वी की आयु 40,000 लाख वर्ष है । पृथ्वी को प्रारंभिक दिनों में अपनी धुरी पर चक्कर लगाने में केवल 4 घंटे लगते थे; यानि कि उस समय 2 घंटे का दिन तथा 2 घंटे की रात होती थी! धीरे- धीरे पृथ्वी का परिभ्रमण धीमा पड़ता जा रहा है । अब पृथ्वी को अपनी धुरी पर घूमने में 24 घंटे का समय लगता है; लेकिन एक समय ऐसा होगा जब 1 ,200 घंटे का दिन होगा! तो क्या एक समय ऐसा भी आएगा जब पृथ्वी घूमना बंद कर देगी और पृथ्वी के आधे हिस्से में दिन तथा आधे में सदैव रात ही रहेगी? परंतु पृथ्वी पर आज भी एक स्थान ऐसा है जहाँ कम-से-कम एक दिन अंधकार (रात) नहीं रहता! वैज्ञानिकों का मानना है कि एक समय चंद्रमा अपनी कील पर घूमना बंद कर देगा । उस स्थिति में समुद्र में ज्वार उठने बंद हो जाएँगे! यह तो आप जानते हैं कि समुद्र में ज्वार- भाटे आते हैं; पर शायद आपको यह न ज्ञात हो कि पृथ्वी में भी इस प्रकार के ज्वार उत्पन्न होते हैं! पृथ्वी की ऐसी ही रोचक तथा वैज्ञानिक जानकारी के लिए प्रस्तुत है पुस्तक ' पृथ्वी की रोचक बातें '|
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