Prashna Aur Marichika
Author:
Bhagwaticharan VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 716
₹
895
Unavailable
‘भूले-बिसरे चित्र’ और ‘सीधी सच्ची बातें’ के बाद भगवती बाबू की एक और बृहद् औपन्यासिक कृति...भारत के निकट अतीत के इतिहास को कथा के माध्यम से प्रस्तुत-विश्लेषित करने का एक साहसपूर्ण प्रयोग।</p>
<p>इस उपन्यास में लेखक ने जिस ज्वलन्त प्रश्न को वाणी दी है, वह आज हर भारतीय के मन में घुमड़ रहा है। वह प्रश्न है कि क्यों अपनी अगाध जन-शक्ति और प्रचुर भौतिक साधनों के होते हुए भी भारत एक शक्तिशाली देश नहीं बन पाया।</p>
<p>लेखक ने गहराई में जाकर इस समस्या का कारण भी खोज निकाला है और निष्कर्ष दिया है—हर ओर फैले स्वार्थ और भ्रष्टाचार को देखते हुए भी जो लोग यह आशा करते हैं कि कोई स्वच्छ शासन-तंत्र देश को पुनरुत्थान की ओर ले जाएगा, वे मरीचिका के पीछे भटक रहे हैं।</p>
<p>किन्तु भाग्यवादी होते हुए भी लेखक देश के भविष्य के प्रति निराश नहीं है। गीता के उपदेशों पर विश्वास करते हुए उसका कहना है कि वर्तमान व्यवस्था के नष्ट होने के बाद एक नए भारत का जन्म होगा। इसके अलावा हमारी वर्तमान समस्याओं का और कोई समाधान नहीं है।</p>
<p>प्रश्न और मरीचिका आज़ादी के बाद से 1962 तक के भारत का एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है।
ISBN: 9788126705764
Pages: 442
Avg Reading Time: 15 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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महुआ माजी का उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ अपने नए विषय एवं लेखकीय सरोकारों के चलते इधर के उपन्यासों में एक उल्लेखनीय पहलक़दमी है। जब हिन्दी की मुख्यधारा के लेखक हाशिए के समाज को लेकर लगभग उदासीन हों, तब आदिवासियों की दशा, दुर्दशा और जीवन संघर्ष पर केन्द्रित यह उपन्यास एक बड़ी रिक्ति की भरपाई है।
इस उपन्यास में महुआ माजी यूरेनियम की तलाश से जुड़ी जिस सम्पूर्ण प्रक्रिया को उजागर करती हैं, वह हिन्दी उपन्यास का जोखिम के इलाक़े में प्रवेश है। महुआ माजी ने गहरे शोध, सर्वेक्षण और समाजशास्त्रीय दृष्टि का सहारा लेकर इस उपन्यास के माध्यम से एक ज़रूरी हस्तक्षेप किया है।
उपन्यास का केन्द्रीय पात्र सगेन प्रतिरोध की स्थानिकता को बरकरार रखते हुए विकिरणविरोधी वैश्विक आन्दोलन के साथ भी संवाद बनाता है। हिरोशिमा की दहशत और चेरनोबिल व फुकुशिमा सरीखे हादसे उसकी चेतना को लगातार प्रतिरोधी दिशा देते हैं। अच्छा यह भी है कि यह सबकुछ मानवीय सम्बन्धों की ऊष्मा एवं अन्तर्द्वन्द्व में घुल-मिलकर प्रस्तुत हुआ है। सचमुच उपन्यास में वर्णित बहुत से तथ्य व मुद्दे अभी तक गम्भीर चर्चा का विषय नहीं बन सके हैं। इस रूप में यह उपन्यास एक नई भूमिका के रूप में भी प्रस्तुत है।
—वीरेन्द्र यादव
Anubhav
- Author Name:
Hemangini A. Ranade
- Book Type:

- Description: अश्वत्थामा के माथे पर के सदा बहते घाव की तरह मनुष्य की पेशानी पर भी प्रकृति ने एकाकीपन का एक ज़ख़्म बड़ा है। इस ज़ख़्म को भरने के सफल-असफल प्रयासों का नाम जीवन है। सामाजिक क्षेत्र में, महत्त्वाकांक्षा का दामन थाम, कुछ कर गुज़रने की ललक इस घाव को किन्हीं अंशों में भरने में सहायक होती है। परन्तु मन के एकाकीपन का ज़ख़्म सदा रिसता रहता है। पारसी पृष्ठभूमि पर लिखे इस उपन्यास की नायिका खोर्शेद की छोटी-सी दुनिया कमज़ोर दिमाग़ माँ, प्यारे पेसी अंकल, आया मेरी तथा इब्राहीम पॉववाले तक सीमित है, जहाँ प्रेम एवं विश्वास से घिरी, वह अपने छोटे-छोटे सुखों को लेकर सन्तोष से जी रही है। जिस स्कूल में वह पढ़ी है, वहीं नौकरी पा जाना उसके सुख की पराकाष्ठा है। यहाँ उसका सम्पर्क होता है दो भाइयों से। केखुशरू यानी केकी, जो दफ़्तर में उसका बॉस है, और मीनोचेहेर या मीनू जो उसकी इच्छा, आकांक्षाओं का केन्द्र बिन्दु है। वक़्त आने पर उसे अपने जन्म की हक़ीक़त से अवगत कराया जाता है। यह जानकारी उसकी छोटी-सी दुनिया को क्षत-विक्षत कर देती है। जब वह कुछ सँभलती है तो पाती है कि अब न उसके पास कोई भूतकाल बचा है, न आगे कहीं भविष्य ही दिखाई देता है। पेसी अंकल, आया मेरी, इब्राहीम पॉववाला, सभी का साथ छूट जाता है। माँ को वह स्वयं अलग करती है। फिर एक दौर आता है जिसमें ज़िद और हिम्मत के बल पर वह नियति द्वारा, अपने हिस्से में बाँटी गई, इस असमानबाजी में, बाहरी पहलू पर तो विजय हासिल कर लेती है, पर आन्तरिक पहलू पर, प्राप्त अनुभव को ही लक्ष्य मानकर उसे अन्तत: समझौता करने के लिए विवश होना पड़ता है।
The Angels on Earth
- Author Name:
Indira Dhar Mukkherjee
- Book Type:

- Description: The Angels On Earth
Facts Fictions Imaginations
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Bhupen N Sarma
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- Description: Truth is that few questions accelerated My beeps of heart are still unanswered. Were those evictions prudent? Why distress come always for most of the innocent commoners after every changing of game?? Are there any remedies??? Who has to take care???? I am still in pursuit and shall remain.
Uday Ravi
- Author Name:
B. Puttaswamayya
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Description:
‘उदय-रवि’, ‘क्रान्ति-कल्याण’ उपन्यास मालिका का पहला खंड है। कन्नड़ के विशिष्ट रचनाकार बी. पुट्टस्वामय्या मूलतः नाटक लिखने में रुचि लेते थे।...किन्तु नाटक की कई सीमाएँ होती हैं। नाटक-मंडली के अभिनेताओं की संख्या, संवाद कहने में उनकी क्षमता आदि बातों की ओर नाटककार को ध्यान देना पड़ता है। उपन्यास में इस प्रकार की कोई सीमा नहीं होती। इसलिए एक बड़ा कैनवस का उपयोग करके एक बृहत् उपन्यास की रचना करने की पुट्टस्वामय्या ने जो योजना बनाई, उसी का परिणाम ‘उदय-रवि’, ‘राज्यपाल’, ‘कल्याणेश्वर’, ‘नागबन्ध’, ‘अधूरा सपना’ तथा ‘क्रान्ति-कल्याण’ उपन्यासों का सिलसिला रहा। ये छह के छह अलग-अलग उपन्यास भी हैं और सब मिलाकर एक ही उपन्यास भी।
बसवेश्वर के युग के जनजीवन का चित्रण करनेवाले इन उपन्यासों की मालिका समवेत रूप में एक विशेष प्रकार का ऐतिहासिक उपन्यास है। सामाजिक जीवन को व्यक्त करनेवाले इस उपन्यास के लिए अभिलेख तथा लिखित साहित्य से सन्दर्भों को चुन लिया गया है। चौंकानेवाली बात यह थी कि इस उपन्यास लेखन के लिए पुट्टस्वामय्या ने एक हज़ार अभिलेखों का अध्ययन किया था।
‘उदय-रवि’—ई.सं. 1950—में तैलप (तृतीय) के सिंहासनारोहण से लेकर बसवेश्वर के मंत्री बनने तक की घटनाओं का चित्रण है।
सिद्धहस्त लेखक बी. पुट्टस्वामय्या ने प्रांजल भाषा में एक युग को साकार कर दिया है। भालचन्द्र जयशेट्टी का सतर्क अनुवाद उपन्यास को मूल आस्वाद से अभिन्न रखने में समर्थ सिद्ध हुआ है।
Vyasparva
- Author Name:
Durga Bhagwat
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- Description: महाभारत भारतीय मनीषा की ऐसी पूँजीभूत अभिव्यक्ति है कि इसके बारे में यह कथन अतियुक्ति नहीं लगती कि जो कुछ भारत में है वह सब महाभारत में है, और जो इसमें नहीं है वह कहीं नहीं है। आश्चर्य नहीं कि ऐसे महाग्रन्थ का अध्ययन, मनन और उसकी व्याख्या किसी के लिए भी आसान नहीं है। उसके सामाजिक आशय के सम्यक स्वरूप को पहचानना अथवा विशद रूप में समझाना तो और भी कठिन है। इस कठिनाई के प्रत्युत्तरस्वरूप, मराठी भाषा की प्रमुख चिन्तक-साहित्यकार दुर्गा भागवत ने इस पुस्तक में, महाभारत के सत्य को उसके प्रमुख पात्रों के ज़रिये अत्यन्त सहज और लालित्यपूर्ण ढंग से व्याख्यायित किया है। ‘व्यासपर्व’ गहन चिन्तन और ललित अभिव्यक्ति के सहज सामंजस्य से निर्मित कृति है जिसमें विदुषी लेखक ने स्पष्ट किया है कि करुणा जब प्राणों में बस जाती है तभी धर्म का दर्शन होता है। उन्होंने इस जीवन-सत्य की ओर भी संकेत किया है कि मनुष्य मूलतः मनुष्य है; उसका लक्ष्य भी मनुष्य ही है। श्रीकृष्ण, भीष्म, द्रोण, गान्धारी, अश्वत्थामा, अर्जुन, दुर्योधन, कर्ण, विदुर, द्रौपदी, एकलव्य आदि की अद्भुत झाँकी इस पुस्तक में साकार उपस्थित हुई है जिनमें व्यक्तित्व और इतिहास ही नहीं, हमारा समय भी मुखरित होता है। निःसन्देह ‘व्यासपर्व’ भारतीय संस्कृति की एक बहुआयामी व्याख्या है। यह कृति गद्य भी है और काव्य भी, जो ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ के समन्वित स्वरूप को उद्भासित करती है। बार-बार पढ़ने और संग्रह करने योग्य एक अनुपम पुस्तक।
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