Anubhav
Author:
Hemangini A. RanadePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Unavailable
अश्वत्थामा के माथे पर के सदा बहते घाव की तरह मनुष्य की पेशानी पर भी प्रकृति ने एकाकीपन का एक ज़ख़्म बड़ा है। इस ज़ख़्म को भरने के सफल-असफल प्रयासों का नाम जीवन है। सामाजिक क्षेत्र में, महत्त्वाकांक्षा का दामन थाम, कुछ कर गुज़रने की ललक इस घाव को किन्हीं अंशों में भरने में सहायक होती है। परन्तु मन के एकाकीपन का ज़ख़्म सदा रिसता रहता है। पारसी पृष्ठभूमि पर लिखे इस उपन्यास की नायिका खोर्शेद की छोटी-सी दुनिया कमज़ोर दिमाग़ माँ, प्यारे पेसी अंकल, आया मेरी तथा इब्राहीम पॉववाले तक सीमित है, जहाँ प्रेम एवं विश्वास से घिरी, वह अपने छोटे-छोटे सुखों को लेकर सन्तोष से जी रही है। जिस स्कूल में वह पढ़ी है, वहीं नौकरी पा जाना उसके सुख की पराकाष्ठा है। यहाँ उसका सम्पर्क होता है दो भाइयों से। केखुशरू यानी केकी, जो दफ़्तर में उसका बॉस है, और मीनोचेहेर या मीनू जो उसकी इच्छा, आकांक्षाओं का केन्द्र बिन्दु है। वक़्त आने पर उसे अपने जन्म की हक़ीक़त से अवगत कराया जाता है। यह जानकारी उसकी छोटी-सी दुनिया को क्षत-विक्षत कर देती है। जब वह कुछ सँभलती है तो पाती है कि अब न उसके पास कोई भूतकाल बचा है, न आगे कहीं भविष्य ही दिखाई देता है। पेसी अंकल, आया मेरी, इब्राहीम पॉववाला, सभी का साथ छूट जाता है। माँ को वह स्वयं अलग करती है। फिर एक दौर आता है जिसमें ज़िद और हिम्मत के बल पर वह नियति द्वारा, अपने हिस्से में बाँटी गई, इस असमानबाजी में, बाहरी पहलू पर तो विजय हासिल कर लेती है, पर आन्तरिक पहलू पर, प्राप्त अनुभव को ही लक्ष्य मानकर उसे अन्तत: समझौता करने के लिए विवश होना पड़ता है।
ISBN: 9788171784837
Pages: 165
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
सुपरिचित कथाकार पंकज बिष्ट का यह उपन्यास एक रिटायर्ड पिता की बीमारी और फिर उनके अन्तिम संस्कारों के लिए शहर से गाँव पहुँचे भाई-बहन की कथा है। लेकिन एक ओर यदि वे दोनों अपनी-अपनी धुरी पर घूमते हुए माता-पिता के ‘प्रेतों’ से उबरने के लिए छटपटाते दिखाई देते हैं तो दूसरी ओर अपने विगत से ही नहीं, वर्तमान और भविष्य से भी जा टकराते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो कुमाऊँ के एक छोटे-से गाँव और परिवार से शुरू होकर यह कथा एक समूचे समाज और उसकी मानसिकता को समझने के रचनात्मक प्रयत्न में बदल जाती है और साथ ही एक व्यक्ति की अस्वाभाविक जीवनेच्छा की विकृतियों को भी उजागर करती है।
उपन्यास का केन्द्रीय कथाक्षेत्र अपने इतिहास में अनेक विशिष्टताएँ छुपाए होने और उत्तर भारत के इतना निकट होने के बावजूद उसकी मुख्य सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धारा से पूरी तरह अलग रहा है। फलस्वरूप यहाँ के लोगों का रहन-सहन और सोच-विचार किस तरह और किस हद तक प्रभावित हुआ, इसे भी यहाँ पर्यटनवादी रोमांटिकता से मुक्त होकर संकेतित किया गया है।
वस्तुत: पंकज बिष्ट की यह महत्त्वपूर्ण कथाकृति पारिवारिक सम्बन्धों के ताने-बाने के बावजूद विभिन्न ऐतिहासिक तथ्यों, लोककथाओं और किंवदंतियों के माध्यम से आधुनिकता और परम्परा के जटिल टकराव को तो दर्शाती ही है, उससे उपजे जीवन-मृत्यु और स्वर्ग-नरक सम्बन्धी बुनियादी सवालों पर भी विचार करती है।
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