Jangali Phool
Author:
Joram Yalam NabamPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
अरुणाचल प्रदेश के 26 मुख्य आदिवासी समाजों में न्यीशी भी शामिल है। न्यीशी समाज में प्रचलित लोक कथाओं में एक प्रसिद्ध पुरखे तानी (पिता) को अनेक पत्नियां रखने वाले, प्रेमविहीन, बलात्कारी और आवारा व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है जो अपनी असाधारण बल-बुद्धि का इस्तेमाल भी सिर्फ औरतें हासिल करने के लिए करता है। लेखिका ने तानी की इस छवि पर सवाल उठाया है। न सिर्फ सवाल उठाया है बल्कि उसकी मूल छवि और उससे जुड़े अन्य मिथकीय प्रसंगों को अपनी कल्पना से फिर से निर्मित करने का बीड़ा उठाया है। इसी का सुफल है यह उपन्यास ‘जंगली फूल’।</p>
<p>भारत के आदिवासी समाजों में एक छोटे से शिक्षित बौद्धिक वर्ग द्वारा लिखे जा रहे आधुनिक साहित्य में ‘जंगली फूल’ एक असाधारण कृति है। यह कृति न सिर्फ न्यीशी आदिवासी समाज की ऐतिहासिक जीवन-यात्रा और उसकी संस्कृति तथा समाज का एक प्रामाणिक अन्दरूनी चित्र प्रस्तुत करती है बल्कि पूर्वोत्तर के आदिवासियों में प्रचलित कुछ अन्धविश्वासों, विवेकहीन परम्पराओं, परस्पर युद्धों तथा स्त्रियों पर अत्याचार करने वाली प्रथाओं के खिलाफ संघर्ष करते हुए सुख-शान्ति से जीने वाले एक नए समाज का चित्र भी साकार करती है। लेखिका के प्रगतिशील मानवतावादी दृष्टिकोण ने इस उपन्यास के माध्यम से आदिवासी समाजों में एक नवजागरण लाने का प्रयास किया है।</p>
<p>प्रेम की महिमा का गुणगान करने वाले इस उपन्यास में कई शक्तिशाली स्त्री चरित्र हैं जिनकी नैसर्गिकता से प्रभावित हुए बिना हम नहीं रह सकते। स्त्री-पुरुष के बीच मित्रता के सम्बन्ध को अपना आदर्श घोषित करने वाली यह साहसिक कृति अपनी खूबसूरत और चमत्कारिक भाषा के कारण बेहद पठनीय बन गई है।</p>
<p>खुद एक न्यीशी लेखिका द्वारा अपने न्यीशी समाज का प्रामाणिक चित्रण और उसके सामाजिक रूपान्तरण का क्रान्तिकारी आह्वान आदिवासियों में लिखे जा रहे साहित्य में ‘जंगली फूल’ को एक दुर्लभ कृति बनाता है।</p>
<p>—वीर भारत तलवार
ISBN: 9788119092383
Pages: 216
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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व्यक्तियों के बजाय पतन के प्रतीक बन जाना था।
लाइसेंसों, ठेकों, ज्योतिषियों, बिना रीढ़ के बुद्धिजीवियों और धन के परजीवियों की एक पूरी दुनिया इस उपन्यास में हमें दिखाई देती है।
उपन्यास में ख़ास तौर पर देखने लायक़ है—दिल्ली की सड़कों-गलियों-बाज़ारों आदि का विवरण देनेवाली लेखक की भाषा जो एक कैमरे की तरह एक-एक चीज़ का विवरण देती चलती है। शब्द चित्र हो उठते हैं, और लेखक नि:संगतापूर्वक कहानी को उनके बीच से आगे लिए जाता है।
Sanskar
- Author Name:
U.R. Ananthamurthy +1
- Book Type:

- Description: यू.आर. अनन्तमूर्ति के इस कन्नड़ उपन्यास को युगान्तरकारी उपन्यास माना गया है। ब्राह्मणवाद, अन्धविश्वासों और रूढ़िगत संस्कारों पर अप्रत्यक्ष लेकिन इतनी पैनी चोट की गई है कि उसे सहना सनातन मान्यताओं के समर्थकों के लिए कहीं–कहीं दूभर होने लगता है। ‘संस्कार’ शब्द से अभिप्राय केवल ब्राह्मणवाद की रूढ़ियों से विद्रोह करनेवाले नारणप्पा के दाह–संस्कार से ही नहीं है। अपने लिए सुरक्षित निवास–स्थान, अग्रहार आदि के ब्राह्मणों के विभिन्न संस्कारों पर भी रोशनी डाली गई है—स्वर्णाभूषणों और सम्पत्ति–लोलुपता जैसे संस्कारों पर भी! ब्राह्मण–श्रेष्ठ और गुरु प्राणेशाचार्य तथा चन्द्री, बेल्ली और पद्मावती जैसे अलग और विपरीत दिखाई देनेवाले पात्रों की आभ्यन्तरिक उथल–पुथल के सारे संस्कार अपने असली और खरे–खोटेपन समेत हमारे सामने उघड़ आते हैं। धर्म क्या है? धर्मशास्त्र क्या है? क्या इनमें निहित आदेशों में मनुष्य की स्वतंत्र सत्ता के हरण की सामर्थ्य है, या होनी चाहिए? ऐसे अनेक सवालों पर यू.आर. अनन्तमूर्ति जैसे सामर्थ्यशील लेखक ने अत्यन्त साहसिकता से विचार किया है, और यही वैचारिक निष्ठा इस उपन्यास को विशिष्ट बनाती है।
Banbhatt Ki Aatmakatha
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Rating:
- Book Type:

- Description: आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की विपुल रचना-सामर्थ्य का रहस्य उनके विशद शास्त्रीय ज्ञान में नहीं, बल्कि उस पारदर्शी जीवन-दृष्टि में निहित है, जो युग का नहीं युग-युग का सत्य देखती है। उनकी प्रतिभा ने इतिहास का उपयोग ‘तीसरी आँख’ के रूप में किया है और अतीत-कालीन चेतना-प्रवाह को वर्तमान जीवनधारा से जोड़ पाने में वह आश्चर्यजनक रूप से सफल हुई है। बाणभट्ट की आत्मकथा अपनी समस्त औपन्यासिक संरचना और भंगिमा में कथा-कृति होते हुए भी महाकाव्यत्व की गरिमा से पूर्ण है। इसमें द्विवेदी जी ने प्राचीन कवि बाण के बिखरे जीवन-सूत्रों को बड़ी कलात्मकता से गूँथकर एक ऐसी कथाभूमि निर्मित की है जो जीवन-सत्यों से रसमय साक्षात्कार कराती है। इसमें वह वाणी मुखरित है जो सामगान के समान पवित्रा और अर्थपूर्ण है-‘सत्य के लिए किसी से न डरना, गुरु से भी नहीं, मंत्रा से भी नहीं; लोक से भी नहीं, वेद से भी नहीं।’ बाणभट्ट की आत्मकथा का कथानायक कोरा भावुक कवि नहीं वरन कर्मनिरत और संघर्षशील जीवन-योद्धा है। उसके लिए ‘शरीर केवल भार नहीं, मिट्टी का ढेला नहीं’, बल्कि ‘उससे बड़ा’ है और उसके मन में आर्यावर्त्त के उद्धार का निमित्त बनने की तीव्र बेचैनी है। ‘अपने को निःशेष भाव से दे देने’ में जीवन की सार्थकता देखने वाली निउनिया और ‘सबकुछ भूल जाने की साधना’ में लीन महादेवी भट्टिनी के प्रति उसका प्रेम जब उच्चता का वरण कर लेता है तो यही गूँज अंत में रह जाती हैद-‘‘वैराग्य क्या इतनी बड़ी चीज है कि प्रेम देवता को उसकी नयनाग्नि में भस्म कराके ही कवि गौरव का अनुभव करे?’’
Marang Goda Neelkanth Hua
- Author Name:
Mahua Maji
- Book Type:

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Description:
महुआ माजी का उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ अपने नए विषय एवं लेखकीय सरोकारों के चलते इधर के उपन्यासों में एक उल्लेखनीय पहलक़दमी है। जब हिन्दी की मुख्यधारा के लेखक हाशिए के समाज को लेकर लगभग उदासीन हों, तब आदिवासियों की दशा, दुर्दशा और जीवन संघर्ष पर केन्द्रित यह उपन्यास एक बड़ी रिक्ति की भरपाई है।
इस उपन्यास में महुआ माजी यूरेनियम की तलाश से जुड़ी जिस सम्पूर्ण प्रक्रिया को उजागर करती हैं, वह हिन्दी उपन्यास का जोखिम के इलाक़े में प्रवेश है। महुआ माजी ने गहरे शोध, सर्वेक्षण और समाजशास्त्रीय दृष्टि का सहारा लेकर इस उपन्यास के माध्यम से एक ज़रूरी हस्तक्षेप किया है।
उपन्यास का केन्द्रीय पात्र सगेन प्रतिरोध की स्थानिकता को बरकरार रखते हुए विकिरणविरोधी वैश्विक आन्दोलन के साथ भी संवाद बनाता है। हिरोशिमा की दहशत और चेरनोबिल व फुकुशिमा सरीखे हादसे उसकी चेतना को लगातार प्रतिरोधी दिशा देते हैं। अच्छा यह भी है कि यह सबकुछ मानवीय सम्बन्धों की ऊष्मा एवं अन्तर्द्वन्द्व में घुल-मिलकर प्रस्तुत हुआ है। सचमुच उपन्यास में वर्णित बहुत से तथ्य व मुद्दे अभी तक गम्भीर चर्चा का विषय नहीं बन सके हैं। इस रूप में यह उपन्यास एक नई भूमिका के रूप में भी प्रस्तुत है।
—वीरेन्द्र यादव
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