Marang Goda Neelkanth Hua
Author:
Mahua MajiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Available
महुआ माजी का उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ अपने नए विषय एवं लेखकीय सरोकारों के चलते इधर के उपन्यासों में एक उल्लेखनीय पहलक़दमी है। जब हिन्दी की मुख्यधारा के लेखक हाशिए के समाज को लेकर लगभग उदासीन हों, तब आदिवासियों की दशा, दुर्दशा और जीवन संघर्ष पर केन्द्रित यह उपन्यास एक बड़ी रिक्ति की भरपाई है।</p>
<p>इस उपन्यास में महुआ माजी यूरेनियम की तलाश से जुड़ी जिस सम्पूर्ण प्रक्रिया को उजागर करती हैं, वह हिन्दी उपन्यास का जोखिम के इलाक़े में प्रवेश है। महुआ माजी ने गहरे शोध, सर्वेक्षण और समाजशास्त्रीय दृष्टि का सहारा लेकर इस उपन्यास के माध्यम से एक ज़रूरी हस्तक्षेप किया है।</p>
<p>उपन्यास का केन्द्रीय पात्र सगेन प्रतिरोध की स्थानिकता को बरकरार रखते हुए विकिरणविरोधी वैश्विक आन्दोलन के साथ भी संवाद बनाता है। हिरोशिमा की दहशत और चेरनोबिल व फुकुशिमा सरीखे हादसे उसकी चेतना को लगातार प्रतिरोधी दिशा देते हैं। अच्छा यह भी है कि यह सबकुछ मानवीय सम्बन्धों की ऊष्मा एवं अन्तर्द्वन्द्व में घुल-मिलकर प्रस्तुत हुआ है। सचमुच उपन्यास में वर्णित बहुत से तथ्य व मुद्दे अभी तक गम्भीर चर्चा का विषय नहीं बन सके हैं। इस रूप में यह उपन्यास एक नई भूमिका के रूप में भी प्रस्तुत है।</p>
<p>—वीरेन्द्र यादव</p>
<p>
ISBN: 9788126727612
Pages: 404
Avg Reading Time: 13 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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कोरिया के लब्धप्रतिष्ठ रचनाकार छ् वे इन हुन की प्रतिनिधि रचना है ‘रंगमंच’, जिसमें फन्तासी के माध्यम से यथार्थ की भीतरी परत को उकेरने का सार्थक प्रयत्न किया गया है।
यह उपन्यास मूलतः कथानायक के पागलपन और समाज को उसके अनुकूल न बदल पाने से उत्पन्न विफलता को दर्शाता है। दक्षिणी क्षेत्र में माता-पिता की छत्रछाया से अलग कथानायक का व्यक्तित्व क्रान्ति और प्रेम के तत्त्वों से निर्मित होता है जो कभी अमैत्रीपूर्ण समाज की आलोचना करता है तो कभी पुराने ख़ुशहाल दिनों की नास्टेल्जिया से घिर जाता है।
कथानायक ली म्यंगजुन दर्शनशास्त्र का छात्र रहा है जो दुनिया और मनुष्य को एक ख़ास नज़रिए से विश्लेषित करता है। उसने उस दौर को देखा है जब वामपंथी और दक्षिणपंथी लोग कोरियाई प्रायद्वीप में अपनी अलग सरकारें स्थापित करने के लिए एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे। वह दिन-प्रतिदिन कोरिया को अपने वैभव और आदर्श से च्युत भ्रष्टाचार के गर्त में गिरते हुए देखकर हताश होता है। तब भागकर उत्तर की ओर चला जाता है जैसा कि उसके पिता ने पहले किया था। मगर उत्तर के कम्युनिस्टों की दृढ़ व्यवस्था के भीतर कुलबुलाती गुप्त शत्रुता को देख वह बेचैन हो उठता है। उत्तर के लोगों को असंख्य नारों के शोर तले सीमित स्वतंत्रता ही हासिल है जहाँ किसी व्यक्ति की सोच और व्यक्तित्व के विकास के लिए कोई जगह नहीं है।
कोरिया की लड़ाई उसे फिर दक्षिणी क्षेत्र सियोल खींच लाती है जहाँ कम्युनिस्ट दस्ता में लड़ते हुए वह गिरफ़्तार होता है और दक्षिण के एक द्वीप पर बन्दी शिविर में रखा जाता है। लड़ाई के बाद कैदियों से समझौते के आधार पर वह तीसरे और तटस्थ देश भारत को अपने शेष जीवन के लिए चुनता है लेकिन समुद्र यात्रा के दौरान समुद्र में कूदकर आत्महत्या कर लेता है।
राष्ट्रीय विभाजन की समस्याओं को प्रखरता से रेखांकित करने के कारण कोरियाई साहित्य के इतिहास में ‘रंगमंच’ ने युगान्तकारी कृति का दर्जा हासिल किया है। हिन्दी पाठकों को यह उपन्यास न केवल पठनीय लगेगा, बल्कि उनकी सोच को रचनात्मक आयाम भी प्रदान करेगा।
Teen Varsh
- Author Name:
Bhagwaticharan Verma
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Description:
हिन्दी जगत के प्रसिद्ध उपन्यासकार भगवतीचरण वर्मा का प्रस्तुत उपन्यास ‘तीन वर्ष’ एक ऐसे युवक की कहानी है जो नई सभ्यता की चकाचौंध से पथभ्रष्ट हो जाता है। समाज की दृष्टि में उदात्त और ऊँची जान पड़नेवाली भावनाओं के पीछे जो प्रेरणाएँ हैं, वह स्वार्थपरता और लोभ की अधम मनोवृत्तियों की ही देन हैं।
पहली बार विश्वविद्यालय को केन्द्र में रखकर छात्र-छात्राओं के जीवन-प्रसंगों को हिन्दी कथा-साहित्य में इतना सहज स्थान प्राप्त हुआ। उनका रहन-सहन, उनके प्रेम-सम्बन्ध और उनकी मनोदशाओं का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करना इस उपन्यास का उद्देश्य था। छात्रों के संवेगों के बहुआयामी चित्र समस्त सामाजिक सन्दर्भों से जुड़कर प्रत्यक्ष हुए।
इस उपन्यास से यह भी स्पष्ट हुआ कि विश्वविद्यालयीन शिक्षा तब सामान्य युवाजन के लिए उपलब्ध नहीं थी। थोड़े से सम्पन्न घरों के सौभाग्यवान युवा ही उस ज़माने में विश्वविद्यालयों में पढ़ने आया करते थे। कुल मिलाकर शिक्षा के विस्तार और प्रसार में आए अन्तर को आँकने और छात्रों की मन:स्थितियों के विकास के अध्ययन के लिए भी इस उपन्यास को पढ़ा जाना ज़रूरी है।
Tatvamasi
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Dhruv Bhatt
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Description:
‘तत्त्वमसि’ उपन्यास एक ऐसे नायक की कथा है जो सहसा और सहज ही अपने आपको खोजने की एक प्रक्रिया में ख़ुद को पाता है। लेकिन यह ‘आत्मान्वेषण’ ज़िम्मेदारियों से दूर एकान्त में नहीं, बल्कि संघर्ष करते मनुष्यों के बीच प्रकृति के मध्य घटित होता है। मनुष्य को संसाधन माननेवाला यह नायक मनुष्य से ‘मानव’ के रूप में साक्षात्कार करता है। पश्चिम के प्रभावों एवं संस्कारों में लिपटा यह नायक इसी प्रक्रिया में अपने भीतर वर्षों की सोई संस्कृति की जड़ों को अंकुरित होते हुए देखता, अनुभव करता है। इस ‘आत्मान्वेषण’ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि नायक इस बात से अनभिज्ञ है कि वह ‘आत्मान्वेषण’ की प्रक्रिया में है। विरोध से आरम्भ हुई उसकी यात्रा स्वीकृति में निःशेष होती है।
नर्मदा की भौगोलिक, सांस्कृतिक और जीवन्त उपस्थिति इस उपन्यास की विशिष्टता है।
यथार्थ, फंतासी और कल्पना एक-दूसरे में ऐसे घुल-मिल गए हैं कि यह उपन्यास पढ़ना अपने आपमें एक विशिष्ट अनुभव की प्रतीति कराता है।
जंगल की आग, जंगल की बारिश, जंगल की चुप्पी, जंगल का शोर, जंगल के दिन, जंगल की रातें, जंगलों में रहते आदिवासी, उनकी संस्कृति और परम्पराएँ—सभी कुछ बड़े कौशल के साथ इस उपन्यास में बुना गया है। इसी अर्थ में यह एक भारतीय उपन्यास है।
Na Hanyante
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- Description: साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत मैत्रेयी देवी के आद्यन्त रसपूर्ण इस उपन्यास में प्रेम के अमर तत्त्व ने समय की अबाध गति को न केवल रोक दिया है, वरन् उसे अतीत की ओर मोड़ दिया है—बयालीस वर्ष पूर्व नवयौवन के निश्छल, निष्पाप प्रेम के सहज और अबोध दिनों की ओर। आज की पकी उम्र की श्वेत-केशिनी, झुर्रियों-भरे चेहरे और ढीले बदन की अमृता; बेटों-पोतोंवाली, सम्पन्न परिवार की सम्भ्रान्त अमृता एक ऐसे असमंजस का शिकार हो गई है, जिसे न तो वह छोड़ ही पा रही है और न अपने हृदय से भींच-बाँधकर रख सकती है। बयालीस वर्ष पहले वह सब कुछ, जो एक विदेशी छात्र को लेकर उसके साथ हुआ था, वह प्रेम ही था न! प्रेम नहीं था तो इस तरह, इस उम्र में, आज की परिस्थितियों में उसकी याद ने उसे इतना क्यों झकझोर दिया है? आधी सदी पहले सात समन्दर पार से आए उस अपरिचित से मिलने को आज वह एकाएक कातर क्यों हो उठी है और अपने अत्यन्त सहनशील पति से उसे एक बार देख आने की अनुमति क्यों चाह रही है? प्रेम जन्म-रहित है, शाश्वत व पुरातन है—शरीर का नाश होने पर भी वह नहीं मरता। न हन्यते हन्यमाने शरीरे।
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