1084ven Ki Maan
Author:
Mahashweta DeviPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
<strong>महाश्वेता देवी</strong></p>
<p>जन्म : 1926; ढाका।</p>
<p>पिता श्री मनीष घटक सुप्रसिद्ध लेखक थे।</p>
<p>शिक्षा : प्रारम्भिक पढ़ाई शान्तिनिकेतन में, फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए.।</p>
<p>अर्से तक अंग्रेज़ी का अध्यापन।</p>
<p>कृतियाँ अनेक भाषाओं में अनूदित।</p>
<p>हिन्दी में अनूदित कृतियाँ : ‘चोट्टि मुण्डा और उसका तीर’, ‘जंगल के दावेदार’, ‘अग्निगर्भ’, ‘अक्लांत कौरव’, ‘1084वें की माँ’, ‘श्री श्रीगणेश महिमा’, ‘टेरोडैक्टिल’, ‘दौलति’, ‘ग्राम बांग्ला’, ‘शाल-गिरह की पुकार पर’, ‘भूख’, ‘झाँसी की रानी’, ‘आंधारमानिक’, ‘उन्तीसवीं धारा का आरोपी’, ‘मातृछवि’, ‘सच-झूठ’, ‘अमृत संचय’, ‘जली थी अग्निशिखा’, ‘भटकाव’, ‘नीलछवि’, ‘कवि वन्द्यघटी गाईं का जीवन और मृत्यु’, ‘बनिया-बहू’, ‘नटी’ (उपन्यास); ‘पचास कहानियाँ’, ‘कृष्ण द्वादशी’, ‘घहराती घटाएँ’, ‘ईंट के ऊपर ईंट’, ‘मूर्ति’ (कहानी-संग्रह); ‘भारत में बँधुआ मज़दूर’ (विमर्श)।</p>
<p>सम्मान : ‘जंगल के दावेदार’ पुस्तक पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। ‘मैगसेसे अवार्ड’ तथा ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित।</p>
<p>निधन : 28 जुलाई, 2016 (कोलकाता)।</p>
<p>
ISBN: 9788171198290
Pages: 142
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘गीता’ शीर्षक यह उपन्यास पहले ‘पार्टी कामरेड’ नाम से प्रकाशित हुआ था। इसके केन्द्र में गीता नामक एक कम्युनिस्ट युवती है जो पार्टी के प्रचार के लिए उसका अख़बार बम्बई की सड़कों पर बेचती है और पार्टी के लिए फंड इकट्ठा करती है। पार्टी के प्रति समर्पित निष्ठावान गीता पार्टी के काम के सिलसिले में अनेक लोगों के सम्पर्क में आती है। इन्हीं में से एक पदमलाल भावरिया भी है जो पैसे के बल पर युवतियों को फँसाता है। उसके साथी एक दिन उसे अख़बार बेचती गीता को दिखाकर फँसाने की चुनौती देते हैं। गीता और भावरिया का लम्बा सम्पर्क अन्ततः भावरिया को ही बदल देता है।
अपने अन्य उपन्यासों की तरह इस उपन्यास में भी यशपाल देश की राजनीति और उसके नेताओं के चारित्रिक अन्तर्विरोधों को व्यंग्यात्मक शैली में उद्घाटित करते हैं। उपन्यास में कम्यून जीवन का बड़ा विश्वसनीय अंकन हुआ है जिसके कारण इस उपन्यास का ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके लिए काफ़ी समय तक यशपाल मुम्बई में स्वयं कम्यून में रहे थे। अपने ऊपर लगाए गए प्रचार के आरोप का उत्तर देते हुए यशपाल उपन्यास की भूमिका में संकेत करते हैं कि वास्तविकता को दर्पण दिखाना भी प्रचार के अन्तर्गत आ सकता है या नहीं, यह विचारणीय है।
Raat Ke Gyarah Baje
- Author Name:
Rajesh Maheshwari
- Book Type:

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‘रात के ग्यारह बजे’ नारी के विविध रूपों को काले और सफ़ेद खानों में रखकर देखने के बजाय ‘ग्रे एरिया’ में अलग-अलग शेड्स दिखाता है। बहुत ही विश्वसनीय प्रसंगों के ताने-बाने में। राजेश माहेश्वरी के इस उपन्यास की स्त्रियाँ शिक्षित हैं और आत्मविश्वास से भरी हुई हैं। कठिनाइयों के अथाह दुर्गम को पार कर वे अस्तित्व के संघर्ष में निरन्तर आगे बढ़ती हुई नज़र आती हैं।
उपन्यास के किरदार मानसी, राकेश, आनन्द, गौरव और पल्लवी के बीच रिश्तों की परतें बहुत उलझी हुई हैं। ये सभी किरदार ज़िन्दगी की गाड़ी में सवार सहयात्री से लगते हैं जिनके जीवन की घटनाएँ कहीं न कहीं हमारे अपने जीवन की सच्चाई से हमें अवगत कराते हुए प्रतीत होते हैं। 'विश्वास’ का वास्तविक अर्थ हम तब समझ पाते हैं जब हमारे साथ विश्वासघात होता है। और तभी पता चलता है कि विश्वास का धागा जितना सच्चा होता है, उतना ही कच्चा भी होता है। लेखक ने इस अनुभव को बहुत कारगर ढंग से चित्रित किया है।
इस उपन्यास को पढ़ते हुए एक बात अलग से ध्यान खींचती है कि स्त्री-स्वतंत्रता और स्वावलम्बन के समर्थक पुरुष उनके हित में चाहे जो करते हों, लेकिन उनके हँसी-मज़ाक़ में भी उसी तरह की बातें होती हैं जो किसी सामान्य पुरुष के। उपन्यास की भाषा कथा-प्रवाह को गतिशील बनाए रखनेवाली है तथा कथानक की बुनावट ऐसी कि लगे, जैसे कोई फ़िल्म देख रहे हों!
आज के दौर में स्त्री और पुरुष के बीच के रिश्तों को समझने के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास।
Seen : 75
- Author Name:
Rahi Masoom Raza
- Book Type:

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“अली अमजद से मिलाया था न मैंने तुमको?”
“वह राइटर?”
“हाँ!”
“हाँ-हाँ यार, याद आ गया। बड़ा मज़ेदार आदमी है।”
“उसी का तो चक्कर है।” हरीश ने कहा, “आज ही प्रीमियर है। और वह मर गया। समझ में नहीं आता क्या करूँ?”
“मर कैसे गया?”
“पता नहीं। मैं अभी वहीं जा रहा हूँ।”
आईने में उसने अपने चेहरे को उदास बनाकर देखा। उसे अपना उदास चेहरा अच्छा नहीं लगा। उसने आँखों को और उदास कर लिया...
अली अमजद मरा नहीं, क़त्ल किया गया है। और उसे क़त्ल किया है इस जालिम समाज, बेमुरव्वत हालात और इस बेदर्द फ़िल्म इंडस्ट्री ने...
उसने गरदन झटक दी। बयान का यह स्टाइल उसे अच्छा नहीं लगा।
मेरा दोस्त अली अमजद एक आदमी की तरह जिया और किसी हिन्दी फ़िल्म की तरह बिला वज़ह ख़त्म हो गया।...
दाढ़ी बनाते-बनाते उसने अपना बयान तैयार कर लिया। और इसलिए जब वह अली अमजद के फ़्लैट में दाख़िल हुआ तो वह बिलकुल परेशान नहीं था।
हिन्दी फ़िल्म उद्योग की चमचमाती दुनिया की कुछ स्याह और उदास छवियों को बेपर्दा करता उपन्यास।
Pagalkhana
- Author Name:
Gyan Chaturvedi
- Book Type:

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Description:
ज्ञान चतुर्वेदी का यह पाँचवाँ उपन्यास है। इसलिए उनके कथा-शिल्प या व्यंग्यकार के रूप में वह अपनी औपन्यासिक कृतियों को जो वाग्वैदग्ध्य, भाषिक, शाब्दिक तुर्शी, समाज और समय को देखने का एक आलोचनात्मक नज़रिया देते हैं, उसके बारे में अलग से कुछ कहने का कोई औचित्य नहीं है। हिन्दी के पाठक उनके 'नरक-यात्रा', 'बारामासी' और 'हम न मरब' जैसे उपन्यासों के आधार पर जानते हैं कि उन्होंने अपनी औपन्यासिक कृतियों में सिर्फ़ व्यंग्य का ठाठ खड़ा नहीं किया, न ही किसी भी क़ीमत पर पाठक को हँसाकर अपना बनाने का प्रयास किया, उन्होंने व्यंग्य की नोक से अपने समाज और परिवेश के असल नाक-नक़्श उकेरे।
इस उपन्यास में भी वे यही कर रहे हैं। जैसा कि उन्होंने भूमिका में विस्तार से स्पष्ट किया है, यहाँ उन्होंने बाज़ार को लेकर एक विराट फैंटेसी रची है। यह वे भी मानते हैं कि बाज़ार के बिना जीवन सम्भव नहीं है। लेकिन बाज़ार कुछ भी हो, है तो सिर्फ़ एक व्यवस्था ही जिसे हम अपनी सुविधा के लिए खड़ा करते हैं। लेकिन वही बाज़ार अगर हमें अपनी सुविधा और सम्पन्नता के लिए इस्तेमाल करने लगे तो?
आज यही हो रहा है। बाज़ार अब समाज के किनारे बसा ग्राहक की राह देखता एक सुविधा-तंत्र-भर नहीं है। वह समाज के समानान्तर से भी आगे जाकर अब उसकी सम्प्रभुता को चुनौती देने लगा है। वह चाहने लगा है कि हमें क्या चाहिए, यह वही तय करे। इसके लिए उसने हमारी भाषा को हमसे बेहतर ढंग से समझ लिया है, हमारे इंस्टिंक्ट्स को पढ़ा है, समाज के रूप में हमारी मानवीय कमज़ोरियों, हमारे प्यार, घृणा, ग़ुस्से, घमंड की संरचना को जान लिया है, हमारी यौन-कुंठाओं को, परपीड़न के हमारे उछाह को, हत्या को अकुलाते हमारे मन को बारीकी से जान-समझ लिया है, और इसीलिए कोई आश्चर्य नहीं कि अब वह चाहता है कि हमारे ऊपर शासन करे।
इस उपन्यास में ज्ञान चतुर्वेदी बाज़ार के फूलते-फलते साहस की, उसके आगे बिछे जाते समाज की और अपनी ताक़त बटोरकर उसे चुनौती देनेवाले कुछ बिरले लोगों की कहानी कहते हैं।
Mahim Mein Qatla
- Author Name:
Jerry Pinto
- Book Type:

- Description: फ़िक्की बुक ऑफ़ द ईयर अवार्ड के लिए अन्तिम सूची में चयनित उपन्यास मातुंगा रोड रेलवे स्टेशन के टॉयलेट में एक नौजवान की लाश मिलती है। उसका पेट पूरी तरह फटा हुआ है। रिटायर्ड पत्रकार पीटर फ़र्नांडीज़ अपने दोस्त इंस्पेक्टर जेंडे के साथ इस हत्या की जाँच में शामिल हो जाता है, और उसके सामने एक ऐसी दुनिया खुलती है जिसमें गुप्त कामनाएँ हैं, लालच है और निराशा है—एक ऐसी दुनिया जिसके बारे में उसको शक है कि उसका बेटा भी शामिल है। यह कहानी जितनी भय और समानुभूति के सहारे आगे बढ़ती है उतना ही उन मर्दों को जानने की इच्छा से जो दूसरे पुरुषों को चाहते हैं। पीटर हत्यारे तक पहुँचने की कोशिश करता है, रंगीनमिज़ाज लेस्ली सिकेरा के साथ, जो इस वैकल्पिक संसार में उसके लिए गाइड का काम करता है।
Anveshan
- Author Name:
Akhilesh
- Book Type:

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संवेदनशील कथाकार अखिलेश का पहला उपन्यास ‘अन्वेषण’ जीवन-संग्राम की एक विराट् प्रयोगशाला है जहाँ उच्छल प्रेम, श्रमाकांक्षी भुजाओं और जन-विह्वल आवेगों को हर पल एक अम्ल परीक्षण से गुज़रना पड़ता है। सहज मानवीय ऊर्जा से भरा इसका नायक एक चरित्र नहीं, हमारे समय की आत्मा की मुक्ति की छटपटाहट का प्रतीक है। उसमें ख़ून की वही सुर्ख़ी है, जो रोज़-रोज़ अपमान, निराशा और असफलता के थपेड़ों से काली होने के बावजूद सतत संघर्षों के महासमर में मुँह चुराकर जड़ता की चुप्पी में प्रवेश नहीं करती, बल्कि अँधेरी दुनिया की भयावह छायाओं में रहते हुए भी उस उजाले का ‘अन्वेषण’ करती रहती है जो वर्तमान बर्बर और आत्माहीन समाज में लगातार ग़ायब होती जा रही है। ‘अर्थ’ के इस्पाती इरादों के आगे वह बौना बनकर अपनी पहचान नहीं खोता, बल्कि ठोस धरातल पर खड़ा रहकर चुनौतियों को स्वीकार करता है। यही कारण है कि द्वन्द्व में फँसा नायक बदल रहे समय और समाज के संकट की पहचान बन गया है।
‘अन्वेषण’ की भाषा पारदर्शी है। कहीं-कहीं वह स्फटिक-सी दृढ़ और सख़्त भी हो गई है। इसमें एक ऐसा औपन्यासिक रूप पाने का प्रयत्न है, जिसमें काव्य जैसी एकनिष्ठ एकाग्रता सन्तुलित रूप में विकसित हुई है।
सही मायने में ‘अन्वेषण’ आज के आदमी के भीतर प्रश्नों की जमी बर्फ़ के नीचे दबी चेतना को मुखर करने की सफल चेष्टा है।
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