201 Prerak Neeti Kathayen
Author:
Shiv Kumar GoyalPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Available
201 प्रेरक नीति कथाएँ—शिवकुमार गोयल धर्मशास्त्रों, नीतिशास्त्रों की कथाएँ तथा ऋषि-मुनियों, वीर-वीरांगनाओं, विभिन्न क्षेत्रों के आदर्श पुरुषों के जीवन प्रसंग आदर्श जीवन जीने, अपना कर्तव्यपालन करने की प्रेरणा देने में हमेशा से सहायक रहे हैं। बच्ïचे दादा-दादी, नाना-नानी व माता-पिता के मुख से प्रेरक कथाएँ सुनने के लिए लालायित रहा करते हैं। इन आदर्श कथाओं, पावन प्रसंगों से बालकों को सत्य बोलने, माता-पिता, वृद्धजनों व गुरुजनों की सेवा व सम्मान करने, धर्मानुसार आदर्श जीवन जीने की स्वत: प्रेरणा मिलती है। 201 प्रेरक नीति कथाएँ की सरल-सुबोध कहानियाँ हमारे जीवन की दिशा बदलने की क्षमता रखती हैं। सद्ïगुण, सदï्विचार, सदाचार—यानी मानव जीवन के लिए आवश्यक सभी गुणों की खान हैं ये नीति कथाएँ। इन्हें पढ़कर हम सन्मार्ग पर चलें और धर्ममय नीति-रीति से जीवन जिएँ तो इस संग्रह का प्रकाशन सार्थक होगा।
ISBN: 9788192850801
Pages: 168
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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उपन्यास का यथार्थ प्रायः रचनाकार की कल्पना, और कई बार अतिकल्पना, से उभरता है, किन्तु ‘इन्फोकॉर्प का करिश्मा’ महज़ कल्पना अथवा अतिकल्पना नहीं है। इस कृति में कल्पना और अतिकल्पना केवल उसी सीमा तक है, जिस सीमा तक यथार्थ को अधिकाधिक धारदार और विश्वसनीय बनाने की ज़रूरत है।
प्रदीप पंत के भाषिक विन्यास में एक अद्भुत खिलंदड़ापन है। यह खिलंदड़ापन उपन्यास की संरचना को एक निश्चित तेवर देते हुए पात्रों के चरित्र को पर्त-दर-पर्त उघाड़ता चलता है।
सम्पूर्ण उपन्यास में अनेक पात्र अपने-अपने रहस्यलोक में बैठे हुए अपने-अपने ढंग से षड्यंत्र रचते नज़र आते हैं और ये षड्यंत्र ऊपरी तौर पर भले ही एक-दूसरे के विरुद्ध हों, किन्तु अपनी सम्पूर्णता में जन-सामान्य के ख़िलाफ़ हैं। इसीलिए अन्त तक पहुँचते-पहुँचते नज़र आने लगता है कि उपन्यास का कथ्य अपनी समग्रता में कॉमिक से कहीं अधिक ट्रैजिक है। कहना न होगा कि एक सफल कामदी का अन्त त्रासदी से ही होता है। यही उसका निर्णायक मोड़ होती है और कथावस्तु की जीवन्तता, शिल्पगत और भाषायी वैभव तथा निरन्तर चलती क़िस्सागोई के उपकरणों से प्रदीप पंत ने यही किया है—एक करिश्मे के आख्यान की रचना। ऐसा आख्यान जो केवल सत्ता-विमर्श ही नहीं, वरन् सत्ता का मर्सिया भी है।
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Giriraj Kishore
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‘लोग’ सुप्रसिद्ध कथाकार गिरिराज किशोर का चर्चित उपन्यास है। इसमें एक संक्रमणशील समय का अत्यन्त प्रभावी व रोचक चित्रण है। लेखक के शब्दों में, “देश का स्वतंत्र होना लगभग निश्चित हो गया था। नई सामाजिक प्रवृत्तियाँ और शक्तियाँ अपना स्थान बना रही थीं। उस समय का अभिजात वर्ग अपने-आपको डूबता हुआ महसूस करने लगा, आर्थिक स्तर पर ही नहीं, सामाजिक एवं मान्यताओं के स्तर पर भी। उस वर्ग से सम्बद्ध हर एक वर्ग के ‘लोग’ अपने-आपको ‘छूट-गया’ हुआ-सा महसूस कर रहे थे। उन लोगों के मन में इस नए परिवर्तन के प्रति अरक्षा, मूल्यहीनता, संस्कार-हीनता, उच्छृंखलता, विघटन आदि सब प्रकार की आशंकाएँ थीं। अंग्रेज़ों का जाना उस ‘पूरे' वर्ग के व्यक्तिहीन हो जाने की सूचना थी। उनमें से कुछ बदलते हुए सन्दर्भों के अनुरूप अपने को ढाल पाने में असमर्थ रहे। वे ही ‘लोग’ यहाँ
हैं।”यह उपन्यास वस्तुत: आत्ममूल्यांकन और सामाजिक विश्लेषण की समेकित प्रक्रिया को रेखांकित करता है। कथारस और पठनीयता के गुणों से ओत-प्रोत एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास।
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Laute Huye Musafir
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Kamleshwar
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कहानी-लेखन में अपनी विशिष्ट पहचान के साथ कमलेश्वर ने अपने छोटे कलेवर के उपन्यासों में मध्यवर्गीय जीवन के चित्रण को लेकर छठे-सातवें दशक के हिन्दी परिदृश्य में अपना अलग स्थान बनाया। देश-दुनिया, समाज-संस्कृति और राजनीति से जुड़े विषय भी अक्सर उनकी कथा-रचनाओं के विषय बने हैं। ‘काली आँधी’ और ‘कितने पाकिस्तान’ जैसी रचनाओं के लिए विशेष रूप से ख्यात कमलेश्वर की लेखनी मध्यवर्गीय जीवन की विडम्बनाओं पर ही ठहरती है।
वर्ष 1961 में प्रकाशित इस उपन्यास ‘लौटे हुए मुसाफिर’ में स्वतंत्रता के आगमन के साथ गम्भीर रूप धारण करती साम्प्रदायिकता की समस्या और भारत विभाजन के नाम पर बेघर-बार हुए मुस्लिम समाज के मोहभंग और उनकी वापसी की विवशता को दर्शाया गया है। यह इस उपन्यास की प्रभावशाली रचनात्मकता और इतिहास-बोध के कारण ही सम्भव हुआ कि इस छोटे से उपन्यास का उल्लेख भारत-विभाजन पर केन्द्रित गिने-चुने हिन्दी उपन्यासों में प्रमुखता के साथ किया जाता है।
अपनी आवेशयुक्त शैली में कमलेश्वर ने इस कृति में आज़ादी और विभाजन के ऊहापोह में फँसे हिन्दुओं और मुसलमानों की मनःस्थिति के साथ भारत के सामाजिक ताने-बाने में आए निर्णायक बदलाव को भी रेखांकित किया है।
Baa
- Author Name:
Giriraj Kishore
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गांधी को लेकर एक बड़ा और चर्चित उपन्यास लिख चुके गिरिराज जी इस उपन्यास में कस्तूरबा गांधी को लेकर आए हैं। गांधी जैसे व्यक्तित्व की पत्नी के रूप में एक स्त्री का स्वयं अपने और साथ ही देश की आज़ादी के आन्दोलन से जुदा दोहरा संघर्ष। ऐसे दस्तावेज़ बहुत कम हैं जिनमें कस्तूरबा के निजी जीवन या उनकी व्यक्ति-रूप में पहचान को रेखांकित किया जा सका हो, नहीं के बराबर। इसीलिए उपन्यासकार को भी इस रचना के लिए कई स्तरों पर शोध करना पड़ा। जो किताबें उपलब्ध थीं, उनको पढ़ा, जिन जगहों से बा का सम्बन्ध था, उनकी भीतरी और बाहरी यात्रा की और उन लोगों से भी मिले जिनके पास बा से सम्बन्धित कोई भी सूचना मिल सकती थी।
इतनी मशक्कत के बाद आकार पा सका यह उपन्यास अपने उद्देश्य में इतनी सम्पूर्णता के साथ सफल हुआ है, यह सुखद है। इस उपन्यास से गुज़रने के बाद हम उस स्त्री को एक व्यक्ति के रूप में चीन्ह सकेंगे जो बापू के बापू बनने की ऐतिहासिक प्रक्रिया में हमेशा एक ख़ामोश ईंट की तरह नींव में बनी रही। और उस व्यक्तित्व को भी जिसने घर और देश की ज़िम्मेदारियों को एक धुरी पर साधा। उन्नीसवीं सदी के भारत में एक कम उम्र लड़की का पत्नी रूप में होना और फिर धीरे-धीरे पत्नी होना सीखना, उस पद के साथ जुड़ी उसकी इच्छाएँ, कामनाएँ और फिर इतिहास के एक बड़े चक्र के फलस्वरूप एक ऐसे व्यक्ति की पत्नी के रूप में ख़ुद को पाना जिसकी ऊँचाई उनके समकालीनों के लिए भी एक पहेली थी। यह यात्रा लगता है कई लोगों के हिस्से की थी जिसने बा ने अकेले पूरा किया। यह उपन्यास इस यात्रा के हर पड़ाव को इतिहास की तरह रेखांकित भी करता है और कथा की तरह हमारी स्मृति का हिस्सा भी बनाता है।
इस उपन्यास में हम ख़ुद बापू के भी एक भिन्न रूप से परिचित होते हैं। उनका पति और पिता का रूप। घर के भीतर वह व्यक्ति कैसा रहा होगा, जिसे इतिहास ने पहले देश और फिर पूरे विश्व का मार्गदर्शक बनते देखा, उपन्यास के कथा-फ़ेम में यह महसूस करना भी एक अनुभव है।
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