Jaya Ganga : Prem Ki Khoj Mein Ek Yatra
Author:
Vijay SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 236
₹
295
Available
फ्रांस में जब यह औपन्यासिक यात्रा-वृत्तांत प्रकाशित हुआ तो इसकी बहुत सराहना हुई। यह कृति लेखक की आन्तरिक और बाहरी दुनिया के विलय का अभूतपूर्व चित्र प्रस्तुत करती है।</p>
<p>बाद में लेखक ने स्वयं ही इस पुस्तक को एक फ़िल्म में रूपान्तरित किया जो कि 40 देशों में दिखाई गई तथा फ्रांस और इंग्लैंड के सिनेमाघरों में 49 सप्ताह तक चली।</p>
<p>पेरिस में रहनेवाले एक युवा लेखक निशान्त की हिमालय में गंगा के उत्स से शुरू की गई इस गंगा-यात्रा में जया की स्मृतिकथा साथ-साथ चलती है। यात्रा के दौरान गंगा के किनारे उसकी भेंट ज़ेहरा से होती है जो एक तवायफ़ है।</p>
<p>मन के भीतर जया और ज़ेहरा की छवियाँ लिये लेखक अपने मार्ग में साधुओं, नाविकों, इंजीनियरों, स्थानीय पत्रकारों, तवायफ़ों और दलालों से रू-ब-रू होता चलता है। काव्यात्मक गद्य और श्रेष्ठ पत्रकारिता के सहज संयोग का प्रतिफल यह पाठ उपन्यास भी है, आत्मकथात्मक यात्रावृत्त भी और रिपोर्ताज भी।
ISBN: 9788195099559
Pages: 231
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Katlgaah
- Author Name:
Robert Payne
- Book Type:

- Description: रॉबर्ट पेन का उपन्यास ‘क़त्लगाह’ बांग्लादेश के मुक्ति-संघर्ष की पृष्ठभूमि पर रचा गया सम्भवत: एकमात्र उपन्यास है। बांग्लादेश का मुक्ति-संघर्ष दुनिया के इतिहास का वह स्वर्णिम अध्याय है जो बताता है कि तानाशाही और फ़ौजी दमन का बडे से बड़ा उपक्रम किसी देश की मुक्तिकामी जनता के संघर्ष के आगे किस तरह पराजित हो जाता है। ‘क़त्लगाह’ इस संघर्ष को दुबारा अपने पृष्ठों पर साकार करता है। इसे पढ़ते हुए हम महसूस करते हैं कि संघर्ष सिर्फ़ एक शब्द नहीं होता। वह व्यापक धैर्य और त्याग की माँग करता है। संघर्ष कर रही जनता को अकल्पनीय दमन और अत्याचार से गुज़रना पड़ता है। उसके छात्रों और बुद्धिजीवियों को गोली मार दी जाती है। उसके घर-गाँव जलाकर राख कर दिए जाते हैं। उसकी औरतों को सामूहिक बलात्कार की यातना से गुज़रना पडता है। अंग-भंग, अत्याचार और तबाही का एक पूरा चक्र उसे अपने सीने पर झेलना पड़ता है। ‘क़त्लगाह' यह भी बताता है कि इतने सारे अत्याचारों की चट्टान के नीचे भी, मुक्ति के संघर्ष का एक पौधा लहलहाता रहता है। वह भिंची हुईं मुट्ठियों, तने हुए माथों, उठे हुए हाथों की शक्ल में धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। एक दिन सारी चट्टानें दरक जाती हैं और सिर्फ़ पौधा बचा रहता है। ‘क़त्लगाह’ जितना उपन्यास है, उतना ही इतिहास भी। रॉबर्ट पेन ने ब्यौरे में जाकर, सारे तथ्य इकट्ठा करते हुए जितनी प्रामाणिकता के साथ इस इतिहास को सामने रखा है, वह चमत्कृत करता है। यह लेखकीय कौशल का ही प्रमाण है कि न उपन्यास इतिहास के साथ छेड़छाड़ करता है, और न ही इतिहास उपन्यास के प्रवाह को बाधित करता है। तथ्य और कल्पना इस तरह घुले-मिले हैं कि वे एक-दूसरे को सहारा देते हैं। लेखकीय तटस्थता तथ्य के साथ पूरा न्याय करते हुए भी उस मानवीय संवेदना का स्पर्श करती है जो इस संघर्ष को एक उदात्त स्वरूप देती है। इस उपन्यास के ब्यौरों से गुज़रते हुए एक थरथराहट बहुत भीतर तक महसूस की जा सकती है, जो धीरे-धीरे तल्लीनता में बदलती है और आख़िर में इस विश्वास में कि मुक्ति की कामना अगर सच्ची हो तो वह कभी पराजित नहीं होती।
Sidhyon Par Cheetah
- Author Name:
Tejinder
- Book Type:

-
Description:
उत्तराखंड के देहरादून से चेन्नई जा पहुँचा भारत सरकार का एक क्लास वन सिख ऑफ़िसर रंधावा। समुद्र के और वहाँ के दरिद्रनारायण बाशिन्दों के क़रीब पहुँच जाने पर उसे अनुभव होने लगा है कि ‘ग़रीब आदमी की हथेलियों में लिखी हुई रेखाएँ, पेंसिल से खींची हुई होती हैं और उन्हें मिटानेवाले सारे रबर पैसेवालों के हाथों में होते हैं।’ “अंकल, आप नहीं समझते, इस डायरी के शब्दों में कितनी एनर्जी और कितना पैशन है।”
“लेकिन ये सड़ी और तर्कहीन नफ़रत से भरे हुए हैं...”
“पर अंकल, जागीरसिंह ठीक कहता था, मैं भी अपने रास्ते में जो आएगा, उसे छोड़ूँगा नहीं, आई विल किल हिम।”
“तुम्हारे रास्ते का मतलब?”
“समुद्र की पीठ पर अपना घर बनाने का रास्ता।” समुद्र की पीठ पर अपना घर बनाने का रास्ता महज़ शिवा के दिमाग़ में नहीं, अनेक विद्वानों के मस्तिष्कों से उपजा है। प्रोफ़ेसर लक्ष्मीनारायण श्रीनिवास राघवन ने एक दिन शिवा को कान्नेमारा लाइब्रेरी की सीढ़ियों पर बैठकर समझाया था—‘अंग्रेज़ कलकत्ते से ज़्यादा मद्रास को प्यार करते थे, इसीलिए उन्होंने यहाँ कान्नेमारा लाइब्रेरी बनवाई। यहाँ पर जो किताबें हैं और उनमें द्रविड़ियन ज्ञान की जो फ़ायर है, वह सोने की तरह है, जिसके सामने काशी के वेद फीके हैं। नो आर्यन फ़िलासफ़र कैन ईवन स्टैंड नीयरबाय।’
“आप यह समुद्र के उस पार के द्वीप में जो लड़ाई चल रही है, उसके बारे में क्या सोचती हैं?” रंधावा ने नीला नारायणन से पूछा था।
“दे डोन्ट नो देम सेल्व्स, उन्हें क्या चाहिए। वे अपने घर के लिए लड़ रहे हैं इसीलिए हमारे घर बन रहे हैं।” टी.वी. पर ब्रेकिंग न्यूज़ के तहत बताया जा रहा था कि बारिश से हुई बर्बादी के बाद रात के टोकन बटोरने की कोशिश में एक तमिल क़स्बे में अपने ही लोगों की भीड़ से कुचलकर बयालीस लोग मर गए थे।
जागीरसिंह और शिवा दोनों दिग्भ्रमित नौजवानों ने अन्ततः अपने विचारों को सच मानते हुए, उनकी रक्षा में मौत का चोग़ा ओढ़ लिया था। उपन्यास में धड़ल्ले से किए गए तमिल वाक्यों के उपयोग से यह विश्वास नहीं हो सकता कि लेखक एक हिन्दीभाषी क्षेत्र का निवासी है।
सिर्फ़ हिन्दी ही नहीं, एक ज्वलन्त, अछूते विषय पर अब तक किसी भी भारतीय भाषा में लिखी गई एक अनोखी, कालजयी रचना।
—विद्यासागर नौटियाल
Gita
- Author Name:
Yashpal
- Book Type:

-
Description:
‘गीता’ शीर्षक यह उपन्यास पहले ‘पार्टी कामरेड’ नाम से प्रकाशित हुआ था। इसके केन्द्र में गीता नामक एक कम्युनिस्ट युवती है जो पार्टी के प्रचार के लिए उसका अख़बार बम्बई की सड़कों पर बेचती है और पार्टी के लिए फंड इकट्ठा करती है। पार्टी के प्रति समर्पित निष्ठावान गीता पार्टी के काम के सिलसिले में अनेक लोगों के सम्पर्क में आती है। इन्हीं में से एक पदमलाल भावरिया भी है जो पैसे के बल पर युवतियों को फँसाता है। उसके साथी एक दिन उसे अख़बार बेचती गीता को दिखाकर फँसाने की चुनौती देते हैं। गीता और भावरिया का लम्बा सम्पर्क अन्ततः भावरिया को ही बदल देता है।
अपने अन्य उपन्यासों की तरह इस उपन्यास में भी यशपाल देश की राजनीति और उसके नेताओं के चारित्रिक अन्तर्विरोधों को व्यंग्यात्मक शैली में उद्घाटित करते हैं। उपन्यास में कम्यून जीवन का बड़ा विश्वसनीय अंकन हुआ है जिसके कारण इस उपन्यास का ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके लिए काफ़ी समय तक यशपाल मुम्बई में स्वयं कम्यून में रहे थे। अपने ऊपर लगाए गए प्रचार के आरोप का उत्तर देते हुए यशपाल उपन्यास की भूमिका में संकेत करते हैं कि वास्तविकता को दर्पण दिखाना भी प्रचार के अन्तर्गत आ सकता है या नहीं, यह विचारणीय है।
Dhara Ankurai
- Author Name:
Asghar Wajahat
- Book Type:

- Description: प्रतिष्ठित कथाकार असगर वजाहत की उपन्यास-त्रयी का अन्तिम भाग 'धरा अँकुराई' एक बहुआयामी कथानक को जीवन की सच्चाइयों तक पहुँचाता है। ‘कैसी आगी लगाई’ और ‘बरखा रचाई’ शीर्षक से त्रयी के दो भाग पूर्व में प्रकाशित होकर पर्याप्त प्रशंसा प्राप्त कर चुके हैं। अनेक विवरणों, वृत्तान्तों, परिस्थितियों और अन्त:संघर्षों से गुज़रती यह कथा-यात्रा ‘जीवन के अर्थ’ का आईना बन जाती है। एक दीगर प्रसंग में आया वाक्य है, ‘...यह यात्रा संसार के हर आदमी को जीवन में एक बार तो करनी ही चाहिए।’ यह अन्त:यात्रा है। इससे व्यक्ति जहाँ पहुँचता है, वहाँ एक प्रश्न गूँज रहा है कि आख़िर इस जीवन की सार्थकता व प्रासंगिकता क्या है? उपन्यास-त्रयी के तीन प्रमुख पात्रों में से एक सैयद साजिद अली, जिन्होंने पत्रकारिता की कामयाब ज़िन्दगी जी है, महसूस करते हैं कि उनके भीतर एक ख़ालीपन फैलता जा रहा है। लगता है कि अब तक जिया सब बेमक़सद रहा। सैयद साजिद अली ‘ज़िन्दगी का अर्थ’ समझने के लिए उसी छोटी-सी जगह लौटते हैं, जहाँ से निकलकर वे जाने कहाँ-कहाँ गए थे। उपन्यासकार ने छोटी-छोटी घटनाओं के ज़रिए व्यक्ति और समाज की कशमकश को शब्द दिए हैं। प्रवाहपूर्ण भाषा ने पठनीयता में इज़ाफ़ा किया है। मौक़े-ब-मौक़े उपन्यास में वर्तमान की समीक्षा भी है, ‘‘जनता का पैसा किसी का पैसा नहीं है। यह माले-मुफ़्त है जो हमारे देश में बेदर्दी से बहाया जाता है और इसकी बारिश में अफ़सर, नेता और ठेकेदार नहाते हैं। हमने लोकतंत्र के साथ-साथ ‘विकास’ का भी एक विरला स्वरूप विकसित किया है जो कम ही देशों में देखने को मिलेगा। एक पठनीय व संग्रहणीय उपन्यास।
Kerala Ki Lokkathayen
- Author Name:
Dr. S. Thankamoni Amma
- Book Type:

- Description: लोककथाएँ, लोकसंस्कृति की संवाहिका होती हैं, जो विरासत में नई पीढ़ी को प्राप्त होती हैं। अतीतकालीन लोकजीवन की जीवंत और मनोमुग्धकारी झाँकियाँ इनमें अंकित रहती हैं। भारतीय लोककथाओं की सुसमृद्ध परंपरा की विशिष्ट कड़ी के रूप में केरल की लोककथाओं का अहम स्थान है। ‘देवता का अपना देश’ पुकारे जानेवाला रमणीय प्रांत केरल विविध प्रकार की लोककथाओं की क्रीड़ाभूमि रही है। एक ओर वे कथाएँ केरल के ऐतिहासिक-प्रागैतिहासिक एवं सांस्कृतिक बहुविध पहलुओं को चिह्नित करती हैं तो दूसरी ओर केरलीय लोक-जीवन के मनोरम चित्र भी उकेरती हैं। इन लोककथाओं में केरल की उत्पत्ति संबंधी कथा आती है, केरल के ओणम जैसे त्योहारों, प्रसिद्ध मंदिरों, नागतीर्थों से जुड़ी हुई कथाएँ भी सम्मिलित हैं। केरल के विशिष्ट व्यक्तियों, वीरों और वीरांगनाओं के अद्भुत, रोमांचकारी एवं साहसिक कार्यकलापों ने भी इनमें स्थान पाया है। ये लोककथाएँ नई पीढ़ी को अपने प्रांत के पुराने व्यक्ति-विशेषों, आचार-विचारों, पर्व-त्योहारों, लोककलाओं एवं जीवन-शैलियों को अवगत कराने में सक्षम हैं।
Baadshahi Angoothi
- Author Name:
Satyajit Ray
- Book Type:

-
Description:
औरंगज़ेब तब बादशाह नहीं बना था, शहज़ादा ही था; जब उसे समरकन्द की एक लड़ाई पर भेजा गया। लड़ते हुए जब उसकी जान पर बन आई तो उसके सिपहसालार ने उसकी रक्षा की। इससे खुश होकर औरंगज़ेब ने उसे अपनी एक अँगूठी बख्श दी। सैकड़ों बरस बाद वही अँगूठी आगरा में उस सिपहसालार के खानदानवालों से प्यारेलाल नामक एक रईस ने ख़रीदी; और फिर वह उसे एक डॉक्टर को भेंट कर गया...
स्वाभाविक है कि ऐसी बेशकीमती अँगूठी को हड़पने के लिए चोर-डाकू भी उसके पीछे लगे। लेकिन उससे पहले ही वह कुछ इस प्रकार गायब हुई, मानो जादू हो गया हो!
और इसके बाद शुरू होती है उसे, बल्कि कहना चाहिए, उसे चुरानेवाले व्यक्ति को खोजने की रहस्यपूर्ण यात्रा।
एक प्रकार से देखा जाए तो यह जासूसी उपन्यास है, लेकिन सत्यजित राय सरीखे लेखक और फिल्मकार की रचना-दृष्टि इतने से ही सन्तोष नहीं कर सकती। यही कारण है कि बादशाही अँगूठी के गायब होने और उसे गायब करनेवाले को खोजते हुए वे लखनऊ, हरिद्वार और ऋषिकेश की ऐतिहासिक यात्रा भी कराते हैं।
कहना न होगा कि किशोर पाठकों को ध्यान में रखकर लिखा गया यह उपन्यास दिलचस्प भी है और ज्ञानवर्धक भी।
Jhansi Ki Rani
- Author Name:
Vrindavan Lal Verma
- Book Type:

- Description: "रानी ने घोड़े की लगाम अपने दाँतों में थामी और दोनों हाथों से तलवार चलाकर अपना मार्ग बनाना आरंभ कर दिया। रानी की दुहत्थु तलवारें आगे का मार्ग साफ करती चली जा रही थीं। रानी के साथ केवल चार सरदार और उनकी तलवारें रह गईं। रानी ने देशमुख की सहायता के लिए सुंदर को इशारा किया और स्वयं संगीनबरदारों को दोनों हाथों की तलवारों से खटाखट साफ करके आगे बढ़ने लगीं। एक संगीनबरदार की हूल रानी के सीने के नीचे पड़ी। उन्होंने उसी समय तलवार से उस संगीनबनदार को खतम किया। हूल करारी थी, परंतु आँतें बच गईं। रानी ने सोचा, स्वराज्य की नींव बनने जा रही हूँ। रानी के खून बह निकला। —इसी उपन्यास से अदम्य साहस, शौर्य और देशभक्ति की प्रतिमूर्ति झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर केंद्रित इस उपन्यास में बाबू वृंदावनलाल वर्मा ने तत्कालीन राजनीतिक-सामाजिक परिवेश का ऐसा सजीव चित्रण किया है मानो पूरा घटनाक्रम हमारी आँखों के सामने हो रहा हो। झाँसी की रानी का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। रानी स्वराज्य के लिए लड़ीं, स्वराज्य के लिए मरीं और स्वराज्य की नींव का पत्थर बनीं। अद्भुत, प्रेरणाप्रद, पठनीय ऐतिहासिक औपन्यासिक कृति!
Nirvasit
- Author Name:
Ilachandra Joshi
- Book Type:

-
Description:
प्रस्तुत उपन्यास की कथा का आरम्भ उस समय से होता है जब द्वितीय महायुद्ध अपनी प्रारम्भिक अवस्था में था और उसकी छाया भारत में पूरी तरह से नहीं पड़ी थी। तब मध्यवर्गीय समाज के जीवन से रोमान्स की रंगीनी एकदम उठ नहीं गई थी। इसमें सन्देह नहीं कि उस रंगीनी को युद्धजनित प्रतिक्रिया की विभीषिका का अस्पष्ट आभास किंचित् म्लान करने लगा था, पर अभी उस म्लान छायाभास ने सघन रूप धारण नहीं किया था।
एक ओर मध्यवर्गीय समाज अभी तक उसी युग की भावनाओं, संस्कारों और मान्यताओं से बँधा हुआ था जब प्रथम महायुद्धजनित प्रतिक्रियाओं की पूर्ण समाप्ति के बाद प्रतिदिन के जीवन की साधारण सुख-सुविधाओं में एक प्रकार की ऊपरी स्थिरता-सी मालूम होने लगी थी, और यद्यपि समाज के भीतर-ही-भीतर स्वयं उसके अज्ञात में—आग निरन्तर धधकती चली जा रही थी।
कहानी जब द्वितीय स्थिति पर पहुँचती है, तब एक ओर सन् बयालीस के अगस्त आन्दोलन का दमनचक्रपूर्ण सघन वातावरण भारतीय आकाश को भाराक्रान्त किए हुए था। दूसरी ओर महायुद्ध की प्रतिक्रिया का परिपूर्ण प्रकोप पूरे प्रवेग से देश की जनता के ऊपर टूट पड़ा था। केवल पूँजीपति और ज़मींदा़र वर्ग को छोड़कर और सभी वर्ग इन दो पाटों के बीच में बुरी तरह पिसने लगे थे।
उपन्यास की तीसरी और अन्तिम स्थिति तब आती है जब द्वितीय महायुद्ध तो समाप्त हो जाता है, किन्तु समाप्ति के साथ ही अणु-बम के आविष्कार द्वारा तृतीय महायुद्ध के छायापात की सूचना भी दे जाता है।
उपन्यास के नायक का जीवन उन तीनों परिस्थितियों से होकर गुज़रता है। उन तीनों परिस्थितियों में, अपने संघर्षमय जीवन के बीच में, वह किन-किन और किस प्रकार के पात्रों तथा यात्रियों के सम्पर्क में आता है, जीवन के किन जटिल-जाल-संकुल पथों से होकर विचरण करता है, किन-किन घटना-चक्रों का सामना उसे करना पड़ता है और उनकी क्या-क्या और कैसी प्रतिक्रियाएँ उसके भीतर होती हैं, इन्हीं सब बातों का चित्रण करने का प्रयत्न इस उपन्यास में किया गया है।
Nirmohi Bhanvara
- Author Name:
Prabodh Kumar Sanyal
- Book Type:

-
Description:
सुबह के पक्षी का प्रभात-वन्दना सुनकर तो हम उसकी प्रशंसा करते हैं, किन्तु पक्षी का धर्म स्वीकार करने में क्यों हिचकिचाते हैं? पक्षी का धर्म यानी स्वतंत्रता का उछाह-भरा आवेग और अपने जमाए-जुटाए से निर्मोह!
बांग्ला के प्रख्यात कथाकार प्रबोध कुमार सान्याल के चर्चित उपन्यास ‘बिबागी भ्रमर’ का यह अनुवाद बांग्ला के माधुर्य को बरकरार रखते हुए संलग्नता और विराग की इस कथा को हम तक पहुँचाता है।
पार्थ, नवेन्दु और हिना की यह कहानी रिश्तों के त्रिकोण की उतनी नहीं है जितनी पक्षी-धर्म यानी स्वातंत्र्य की चाहना की है। हिना अपनी व्यक्ति-चेतना को पत्नी की उस सीमित परिभाषा में नहीं ढल पाती जिसकी उम्मीद अन्तत: हर पुरुष करने लगता है, वह चाहे अपनी मान्यताओं में कितना भी प्रगतिशील क्यों न हो। पार्थ एक ठिकाना है जहाँ वे दोनों न सिर्फ़ अपना मन खोल पाते हैं, बल्कि स्वयं को भी नए सिरे से देखने की कोशिश करते हैं।
बांग्ला उपन्यासों-कहानियों की पठनीयता का प्रवाह और पात्रों का अपने जीवन-जगत में गहरे तक पैठे होना उन्हें लेखक से मुक्त करके हर पाठक की अपनी रचना बना देता है। यह कौशल इस उपन्यास में भी है। साथ ही है मानव-प्रकृति की अज्ञात तहों में उतरने का साहस जो समाजशास्त्रीय-वैचारिक आग्रहों से नहीं, जीवन को जस का तस देखने, उसे समझने की कोशिश करने और वास्तविकता को यथारूप ग्रहण करने की तैयारी से आता है।
Tapaswini
- Author Name:
K. M. Munshi
- Book Type:

-
Description:
भारतीय साहित्य में कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का अप्रतिम महत्त्व है। वे केवल गुजराती भाषा के नहीं, अपितु समस्त भारतीय भाषाओं के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक हैं। हिन्दीभाषी समाज के लिए तो वे जैसे अपने ही रचनाकार हैं। भारतीय पौराणिक आख्यान और इतिहास उनकी रचना-भूमि है। एक ओर उन्होंने ‘भगवान परशुराम’ और ‘कृष्णावतार’ जैसे पौराणिक आख्यानों का सृजन किया, वहीं ‘जय सोमनाथ’ जैसे वृहत् ऐतिहासिक उपन्यास की रचना की।
‘तपस्विनी’ मुंशी जी की एक ऐसी अमर रचना है जिसमें 1857 से लेकर 1947 तक का कालखंड समाहित है। भारतीय स्वतंत्रता के स्वर्ण जयंती वर्ष में इस कृति का इसलिए भी अधिक महत्त्व है कि इसमें स्वतंत्रतापूर्व की राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियाँ समाहित हैं। इतिहासबद्ध न होने पर भी इस कृति के ऐतिहासिक महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता। स्वतंत्रतापूर्व और स्वतंत्रता-पश्चात् की स्थितियों के तुलनात्मक अध्ययन में यह कृति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। मानवीय संवेदनाओं का सूक्ष्म चित्रण और भाषिक तरलता मुंशी जी के लेखन की विशिष्टता है।
इतिहास को विषयवस्तु बनाते हुए भी मुंशी जी मानवीय व्यवहार को घटनाओं से अधिक महत्त्व देकर एक तरह से समाजशास्त्रीय इतिहास की रचना करते हैं। प्रस्तुत उपन्यास भी इसी तरह का सामाजिक इतिहास रचता है। निस्सन्देह, यह कथाकृति लेखकीय दायित्व-बोध, विलक्षण प्रतिभा और कमनीय कल्पना का अपूर्व सामंजस्य प्रस्तुत करती है।
Unity And Strenght
- Author Name:
Amarendra Narayan
- Book Type:

-
Description:
Unity and Strength is a novel inspired by the life of Sardar Vallabhbhai Patel, the Architect of Independent India. His qualities of ardent patriotism, unflinching courage and determination, sharp foresight and honest hard work have influenced millions of people during and after the freedom struggle. The present generation of Indians looks at his contribution with much awe and respect.
Sardar Patel is a great source of strength and an idol of national unity. The novel describes how inspired by his sacrifice and dedication, common families came forward to follow him in the freedom struggle. It also narrates how in the independent India, the great leader unified the princely states in an astonishingly efficient manner within an unbelievable short time.Drawing inspiration from his life and thoughts, the novel indicates what we can do to fully realise his unfulfilled dreams of making a prosperous and strong India.
God
- Author Name:
Siyaramsharan Gupt
- Book Type:

-
Description:
किसी निकटस्थ की गोद ऐसी भावनात्मक, मन को रोमांचित और अन्तस के तारों को छू लेने और कुरेर देनेवाली गोद होती है, जिसकी तुलना नहीं हो सकती। गोद ममतामयी माँ की हो, स्नेहसिक्त पिता की हो, हर संकट के समय प्रश्रय देनेवाले बड़े भाई की हो या स्नेहमयी भाभी की गोद में ममता और सान्त्वना की अद्वितीय क्षमता होती है।
गोद का यह महत्त्व अद्वितीय है, अतुलनीय है। व्यक्ति कितना भी भटकाव में हो, अपराध कर बैठा हो, किन्तु पश्चात्ताप की भावना से जब अपने वरिष्ठ निकटस्थ की गोद में सर रख देता है और उसके सर पर स्नेहपूर्ण हाथ की सहलावत की अनुभूति होती है तो दोनों की आँखों के भावना-मिश्रित आँसुओं की धाराएँ पवित्र संगम की धारा की तरह प्रवाहित हो जाती हैं। सियारामशरण गुप्त जी के इस उपन्यास का कथानक अनेक उतार-चढ़ाव तथा पात्रों के तरह-तरह के कृत्यों के साथ आगे बढ़ता हुआ अन्त में कुछ ऐसे मुक़ाम पर पहुँच जाता है कि वातावरण मन को अन्दर तक छू लेनेवाला बन जाता है। यह अत्यन्त रोचक उपन्यास जीवन की उच्च भावनात्मक मनःस्थिति को ऐसे प्रभावी रूप में उद्वेलित कर देता है कि पाठक का मन भी अन्दर तक उद्वेलित हो उठे।
Manipur Ki Lokkathayen
- Author Name:
Prof. Yashwant Singh
- Book Type:

- Description: मणिपुर’ पूर्वोत्तर भारत का मैदानी-पहाड़ी भूभागों से मिश्रित एक छोटा सा राज्य है। यहाँ पर मुख्यतः मीतै समाज और नागा-कुकी जनजातीय समाज के लोग निवास करते हैं। इनके बीच मौखिक परंपरा में प्रचलित लोककथाओं को कहने-सुनने की परंपरा आदिकाल से ही विद्यमान है। इस लोककथा-संकलन में मीतै तथा नागा-कुकी समाज की पचपन लोककथाओं को स्थान मिला है, जिनसे पाठकों को मणिपुर की समृद्ध लोक-संस्कृति, लोक-जीवन, और लोक-परंपराओं की जानकारी मिलेगी, जिनसे मणिपुरी समाज को जाने-समझेंगे।
Punarnava
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Book Type:

-
Description:
जिसे प्रायः सत्य कहा जाता है, वह वस्तुस्थिति का प्रत्यक्षीकरण मात्र है। लोग सत्य को जानते हैं, समझते नहीं। और इसीलिए सत्य कई बार बहुत कड़ुवा तो लगता ही है, वह भ्रामक भी होता है। फलतः जनसाधारण ही नहीं, समाज के शीर्ष व्यक्ति भी कई बार लोकापवाद और लोकस्तुति के झूठे प्रपंचों में फँसकर पथभ्रष्ट हो जाते हैं।
‘पुनर्नवा’ ऐसे ही लोकापवादों से दिग्भ्रान्त चरित्रों की कहानी है। वस्तुस्थिति की कारण-परम्परा को न समझकर वे समाज से ही नहीं, अपने-आपसे भी पलायन करते हैं और कर्तव्याकर्तव्य का बोध उन्हें नहीं रहता। सत्य की तह में जाकर जब वे उन अपवादों और स्तुतियों के भ्रमजाल से मुक्त होते हैं, तभी अपने वास्तविक स्वरूप का परिचय उन्हें मिलता है और नवीन शक्ति प्राप्त कर वे नए सिरे से जीवन-संग्राम में प्रवृत्त होते हैं।
‘पुनर्नवा’ ऐसे हीन चरित्र व्यक्तियों की कहानी भी है जो युग-युग से समाज की लांछना सहते आए हैं, किन्तु शोभा और शालीनता की कोई किरण जिनके अन्तर में छिपी रहती है और एक दिन यही किरण ज्योतिपुंज बनकर न केवल उनके अपने, बल्कि दूसरों के जीवन को भी आलोकित कर देती है।
‘पुनर्नवा’ चौथी शताब्दी की घटनाओं पर आधारित ऐतिहासिक उपन्यास है, लेकिन जिन प्रश्नों को यहाँ उठाया गया है, वे चिरन्तन हैं और उनके प्रस्तुतीकरण तथा निर्वाह में आचार्य द्विवेदी ने अत्यन्त वैज्ञानिक एवं प्रगतिशील दृष्टिकोण का परिचय दिया है।
Dudiya : Tere Jalte Hue Mulk Mein
- Author Name:
Vishwash Patil
- Book Type:

-
Description:
शाश्वत सत्य यह था कि आदिवासी जंगल की सन्तान हैं। मगर वस्तुस्थिति यह थी कि उनमें से किसी के पास भी जंगल की जमीन का कोई पट्टा नहीं लिखा था। न ही उनमें इतनी समझ थी कि उस जमीन को अपने नाम लिखाकर रखें। अपने पूर्वजों की तरह वह उस जमीन पर खेती करते थे। जंगल से जीवन यापन करते थे। लेकिन साठ के दशक में अचानक वन अधिकारी नए नियम-कायदों की लाठी से लैस होकर वहाँ घुस गए। आदिवासियों को चूल्हे में जलाने के लिए, जंगलों की सूखी लकड़ियाँ बीनने तक से रोका जाने लगा। उनके भेड़-बकरियों को जंगल में चराने पर रोक लगा दी गई। आदिवासी स्तब्ध रह गए कि यह क्या! जहाँ वे अपना हक समझते थे, पीढ़ी-दर-पीढ़ी जिन जंगलों में रहते थे, वहाँ किसका राज आ गया।
–इसी पुस्तक से
Gahri Nadiya Naav Purani
- Author Name:
Ushakiran Khan
- Book Type:

-
Description:
पुनकला को नहीं मालूम कि उसने अपने बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित कर, और लीला को अपने यहाँ शरण देकर कितना बड़ा काम किया। उसका सारा जीवन एक मैनेजर की तरह बीत गया। उसने कर्त्तव्य को टाला नहीं, और प्रेम को भी मन भरकर जिया, लेकिन बस मन में ही भरकर, जो उसे मिला वह ऐसा नहीं था जो सिर्फ उसका हो।
वह दरअसल समय था, अपनी गति से खिलता-बढ़ता समय जिसमें सब शामिल थे : समाज बदलने के अपने बड़े सपने को पूरा करने के लिए उसे छोड़कर गया उसका पति सुधीर हजारी; छीतन हजारी जिसने उसके बाद उसे अपने घर की मालकिन बनाया और अपने बच्चों की माँ; उसके बच्चे जिन्होंने उसे अपनी माँ ही माना; लीला, जिसने उसके आँचल तले ठौर पाया; और वह काल जिस की विराट गोद में बच्चे पल रहे थे, बड़े हो रहे थे, फिर उनके बच्चे; धरती जो धीरे-धीरे थिर हो रही थी, बंजर से उपजाऊ; शिक्षा जो सदियों से पीड़ित-प्रताड़ित जनगण को आगे बढ़ने का रास्ता दे रही थी। यह सब दादी पुनकला का था।
बिहार के देश-काल में अवस्थित इस उपन्यास का जेपी आन्दोलन और आपातकाल का दौर है; लेकिन कथा यह बिहार के पिछड़े दलित समाज की और उसके तेजी से बदलते सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक ढांचे की है। वहाँ बाढ़ है, गरीबी है, गुंडई है, लेकिन सपने भी हैं, बदलाव की आकांक्षा भी है, वे युवा भी हैं जिनमें शिक्षा की, आगे बढ़ने की, और बदलाव की गहरी तलब है, जो अपने सपनों को अपनी ही धरती में बोना चाहते हैं।
दादी पुनकला ने बहुत धीमे समय को भी देखा है, और अब इस वक्त को भी देख रही है। उनके पास सब कुछ है, लेकिन सुधीर हजारी नहीं। और सुधीर हजारी जो पहले नक्सल होते हैं, फिर जेपी के साथ जुड़ते हैं, और आपातकाल के बाद अपने गाँव आकर अपने लोगों को दिशा देते हैं; उनके पास भी सभी कुछ है, लेकिन पुनकला नहीं, जो आठ-नौ साल की उम्र में उनकी पत्नी बनी थी, और जवानी में कदम रखते ही जिसे उन्होंने मुक्त कर दिया था। दोनों के बीच बदलाव का एक बड़ा हलचल-भरा फलक है लेकिन वे दोनों आज भी वहीं खड़े हैं जहाँ अलग हुए थे।
Sanskar
- Author Name:
U.R. Ananthamurthy +1
- Book Type:

- Description: यू.आर. अनन्तमूर्ति के इस कन्नड़ उपन्यास को युगान्तरकारी उपन्यास माना गया है। ब्राह्मणवाद, अन्धविश्वासों और रूढ़िगत संस्कारों पर अप्रत्यक्ष लेकिन इतनी पैनी चोट की गई है कि उसे सहना सनातन मान्यताओं के समर्थकों के लिए कहीं–कहीं दूभर होने लगता है। ‘संस्कार’ शब्द से अभिप्राय केवल ब्राह्मणवाद की रूढ़ियों से विद्रोह करनेवाले नारणप्पा के दाह–संस्कार से ही नहीं है। अपने लिए सुरक्षित निवास–स्थान, अग्रहार आदि के ब्राह्मणों के विभिन्न संस्कारों पर भी रोशनी डाली गई है—स्वर्णाभूषणों और सम्पत्ति–लोलुपता जैसे संस्कारों पर भी! ब्राह्मण–श्रेष्ठ और गुरु प्राणेशाचार्य तथा चन्द्री, बेल्ली और पद्मावती जैसे अलग और विपरीत दिखाई देनेवाले पात्रों की आभ्यन्तरिक उथल–पुथल के सारे संस्कार अपने असली और खरे–खोटेपन समेत हमारे सामने उघड़ आते हैं। धर्म क्या है? धर्मशास्त्र क्या है? क्या इनमें निहित आदेशों में मनुष्य की स्वतंत्र सत्ता के हरण की सामर्थ्य है, या होनी चाहिए? ऐसे अनेक सवालों पर यू.आर. अनन्तमूर्ति जैसे सामर्थ्यशील लेखक ने अत्यन्त साहसिकता से विचार किया है, और यही वैचारिक निष्ठा इस उपन्यास को विशिष्ट बनाती है।
Aastha Ke Swar
- Author Name:
Dhirendra Verma
- Book Type:

-
Description:
आस्था के स्वर में लेखक धीरेन्द्र वर्मा ने निराशा और हताशा के दौर से गुजर रही आज की पीढ़ी के समक्ष एक ऐसे पात्र को पेश किया है जो हाल की चुनौतियों को बिना किसी प्रकार का समझौता किए निर्विकार भाव से झेल जाता है। संघर्षों की राह में उसके साथ होता है एक पुरुष—एक सुदर्शन पुरुष जो उसे भटकने से रोकता है। वह जो अदृश्य होते हुए भी सच्चा पथ-प्रदर्शक है, सृष्टि के उस काल का प्रतिनिधित्व करता है जो हमारे जीवन से बहुत पहले था और उसके बहुत बाद तक रहेगा।
धीरेन्द्र वर्मा ने आस्था के स्वर के माध्यम से उन बिन्दुओं को रेखांकित किया है जहाँ से भटकाव शुरू होता है और उससे बचने के लिए उस प्रकाश का परिचय दिया है जो हर समय हमारे साथ रहता है, परन्तु हम उसकी सहायता नहीं ले पाते। केवल हमारी आत्मा, हमारा विवेक ही उस अदृश्य शक्ति से ऊर्जस्वित होकर प्रकाश बिन्दुओं से जुड़ पाता है। यह पुस्तक उन परिभाषाओं को तोड़ने का प्रयास भी करती है जिन्हें आज के समाज में धन-बल और बाहुबल ने नए सिरे से गढ़ने का काम किया है। भटकाव के इस दौर में धीरेन्द्र वर्मा की यह पुस्तक सचमुच पथ-प्रदर्शक की भूमिका अदा करेगी।
Parchaiyoon Ke Pichee Prarambh
- Author Name:
Harsh Ranjan
- Book Type:

- Description: सामने का मंदिर बिल्कुल निष्पंद है। इधर सौ मीटर का मैदान है और दूसरी तरफ मंदिर की सीढि़यां। इधर हनुमान जी, दूसरे किनारे पर काली माँ, बीच में दुर्गा, बगल में राम और उनके बगल में सपरिवार भोलेनाथ। पुजारी पूजा करा कर जा चुके हैं। रवि और गुंजन समय टिकाकर आये हैं और इस मंदिर में इसलिए उनका आना हुआ है कि ये मंदिर ज्यादातर लोगों से खाली और श्रद्धा से भरा रहता है । श्रद्धा रवि की । बचपन से उसका इस मंदिर में आना-जाना रहा है। उसने गुंजन से पहले ही कह रखा था कि शादी करेंगे तो इसी मंदिर में सुबह के साढ़े सात बज रहे हैं। गुंजन और रवि सादे कपड़ों में यहाँ पहुँचे थे। शादी के नाम पर उन्हें बस दो औपचारिकताएं पूरी करनी थी। जिसमें एक थी सिन्दुर से और दूसरी मंगलसूत्र से क्योंकि शादी का मतलब है इस से ज्यादा कुछ जानते भी नहीं थे। लेकिन क्या शादी का मतलब बस इतना है। हाँ बस इतना है। इससे ज्यादा जो है वह केवल प्रदर्शन है। कभी लोगों को दिखाने के लिए कभी खुद को। जीवन बहुत लंबी यात्रा है और इस लंबे जीवन में दोनों का साथ बना रहे इसी प्रार्थना के साथ दोनों ने पैर रखे। रवि बिल्कुल शांत है और उसी तरह शांत गुंजन। दोनों के मन मे लेकिन दो अलग-अलग बातें चल रही है। रवि का मानना है कि यहा पहुँचकर वो सफर खत्म हुआ जो बरसों पहले शुरू हुआ था, और दूसरी तरफ गुंजन सोच रही थी कि यहाँ एक ऐसा सफर शुरू होने को है जो वर्षों चलेगा। कहें तो जीवन भर .....
Bevatan
- Author Name:
Asharf Shaad
- Book Type:

-
Description:
अशरफ़ शाद पेशे से पत्रकार हैं और दिल से शायर। इस उपन्यास में उन्होंने अपनी इन दोनों ख़ूबियों का भरपूर इस्तेमाल किया है। अपनी ज़मीनों से उखड़े, पराए मुल्कों में भटकते बेवतनों के आर्थिक-सामाजिक हालात का जायज़ा अगर उनका पत्रकार, बिलकुल एक शोधार्थी की तरह लेता है, तो उन लोगों के भीतर घुमड़ते दुःख को ज़बान उनका शायर देता है। तथ्यात्मक विवरणों की निर्वैयक्तिकता और इन विवरणों में गुँथे पात्रों के साथ लेखक की गहन संलग्नता के चलते ही वह तनाव जन्म लेता है जो दर्जनों कथाओं-उपकथाओं में फैली इस गाथा को अद्भुत ढंग से पठनीय बनाता है।
निस्सन्देह इसमें अशरफ़ शाद के ‘कहानीपन’ की भी भूमिका है जिसके लिए आधुनिक उर्दू कथा-साहित्य में उन्हें एक ख़ास जगह हासिल है। अपने तमाम सरोकारों, चिन्ताओं और विस्तृत कथा-फलक के बावजूद ‘बेवतन’ का कहानीपन कहीं किसी झोल का शिकार नहीं होता।
‘बेवतन’ की चिन्ता के दायरे में वे लोग हैं जो बेहतर ज़िन्दगी की तलाश में अपने घरों और मुल्कों को छोड़कर परदेसी हो जाते हैं और पूरी ज़िन्दगी अपनी ‘सम्पूर्ण’ पहचान के लिए अपने आपसे और हालात से जद्दोजहद करते रहते हैं।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Hurry! Limited-Time Coupon Code
Logout to Rachnaye
Offers
Best Deal
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.
Enter OTP
OTP sent on
OTP expires in 02:00 Resend OTP
Awesome.
You are ready to proceed
Hello,
Complete Your Profile on The App For a Seamless Journey.