Pashupati
Author:
RajshreePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 636
₹
795
Unavailable
पशुपति उपन्यास का आधार संस्कृति की स्थापना और विध्वंस है। इस उपन्यास के दो प्रमुख नायक हैं—वैदिककालीन महाअसुर वरुण व महारुद्र शिव। इस उपन्यास के ये दो महानायक भारतीय संस्कृति के इतिहास से सम्बन्ध रखते हैं। इनके आचरण से मिलनेवाली शिक्षा हर युग में युगपरक है।</p>
<p>जम्बूद्वीप के सर्वश्रेष्ठ देश भारत की पृष्ठभूमि पर लिखी गई कथा विश्व के किसी भी देश के लिए सत्य है। इस कथा से ज्ञात होता है कि विचारों की सरलता में, विषमता व जटिलता का समावेश सभ्यता के साथ होता जाता है। सीधी रेखाओं से किस प्रकार न सुलझने वाली गाँठ बन जाती है— ऐसी गाँठ, जो मानव को पग-पग पर अपने में बाँधती है? शिव, जिन्हें पुराणों में सृष्टि संहारक कहा गया है, उन्होंने विश्व की रक्षा के लिए हलाहल का पान किया। संहार व रक्षा एक-दूसरे के विपरीत हैं। जो संहार करता है, उसने विषपान क्यों किया? क्या था वह विषपान? आज विश्व पुनः उसी अवस्था में है जहाँ महारुद्र शिव का हलाहल-पान भी विध्वंस को नहीं रोक सका था।</p>
<p>यदि मानव मौलिक सरलता खोता है तो परिणाम विध्वंस है। जिस संस्कृति के विस्तार का स्वप्न इन युगपुरुषों ने देखा, वह आज हमारा दायित्व है। हम संस्कृति के मानवीय भाव व प्रकृति को समझें। इस कथा का प्रारम्भ प्रकृति करती है। वह मानव को यह समझाना चाहती है कि विध्वंस व विसर्जन में भेद है। समय मानव-मस्तिष्क की विभिन्न अवस्थाओं—कद्रू के स्वप्न, वराह की रेखाएँ और बाबा देवल की लोककथा—के माध्यम से कहता है। कद्रू अचेतन, वराह चेतन, बाबा देवल लोकमानस में चेतन-अचेतन से बननेवाली कहानी का प्रतीक हैं। इनके माध्यम से युग-विशेष के विचारों की दिशा व विषमता ज्ञात होती है।
ISBN: 9788126723546
Pages: 531
Avg Reading Time: 18 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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हिन्दी उपन्यास-जगत् में राही मासूम रज़ा का प्रवेश एक सांस्कृतिक घटना-जैसा ही था। ‘आधा गाँव’ अपने-आप में मात्र एक उपन्यास ही नहीं, सौन्दर्य का पूरा प्रतिमान था। राही ने इस प्रतिमान को उस मेहनतकश अवाम की इच्छाओं और आकांक्षाओं को मथकर निकाला था, जिसे इस महादेश की जन-विरोधी व्यवस्था ने कितने ही आधारों पर विभाजित कर रखा है।
राही का कवि-हृदय व्यवस्था द्वारा लादे गए झूठे जनतंत्र की विभीषिकाओं को उजागर करने में अत्यन्त तत्पर, विकल, संवेदनशील और आक्रोश से भरा हुआ रहा है। यही हृदय और अधिक व्यंजनाक्षम होकर ‘असन्तोष के दिन’ में व्याप रहा है। आक्रोश और संवेदना की यह तरलता यहाँ धुर गम्भीर राजनीतिक सवालों को पेश करती है, जिनकी आँच में सारा हिन्दुस्तान पिघल रहा है।
राष्ट्र की अखंडता और एकता, जातिवाद की भयानक दमघोंटू परम्पराएँ, साम्प्रदायिकता का हलाहल, एक-से-एक भीषण सत्य, चुस्त शैली और धारदार भाषा में लिपटा चला आता है और हमें घेर लेता है। इस कृति की माँग है कि इन सवालों से जूझा और टकराया जाए। इसी समय, इनके उत्तर तलाश किए जाएँ अन्यथा मनुष्य के अस्तित्व की कोई गारंटी नहीं रहेगी।
Jali Thee Agnishikha
- Author Name:
Mahashweta Devi
- Book Type:

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ऐतिहासिक उपन्यास लेखन पर कोई स्पष्ट राय अब तक नहीं बन सकी है। रोमांस और त्रासदी का अंकन कर उपन्यासकार अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है। लेकिन प्रख्यात लेखिका महाश्वेता देवी ‘इतिहास-सृजन’ को अतिरिक्त ज़िम्मेदारी से निभाती हैं। ऐसे लेखन के लिए एक ख़ास प्रवणता, कथा के बजाय देश, काल, पात्र और आचार-व्यवहार की प्रामाणिक जानकारी का होना बेहद ज़रूरी है। इसके अलावा मौजूदा समय की पकड़ भी। महाश्वेता जी में ये सभी विशेषताएँ मौजूद हैं।
पहले उपन्यास ‘झाँसी की रानी’ के बाद ‘जली थी अग्निशिखा’ में पुनः रानी लक्ष्मीबाई केन्द्र में है। महाश्वेता जी का लेखन अपने मिज़ाज और तेवर में नितान्त भिन्न है। बिलकुल नई सूचनाएँ, नया अनुभव और नई भाषा। लोक मुहावरे और ठेठ देशज शब्दों के इस्तेमाल से उन्हें परहेज़ नहीं है, दरअसल उनका आग्रह सामाजिकता के प्रति अधिक रहता है। प्रस्तुत उपन्यास में अंग्रेज़ों और उनके सेनापति ह्यूरोज़ के लिए झाँसी और रानी दोनों पहेली हैं। रानी की ताक़त के सम्मुख अंग्रेज़ सैनिक हताश हैं। ह्यूरोज़ जानना चाहता है कि झाँसी की रानी आख़िर क्या बला है? ग्वालियर शहर (जहाँ उनका डेरा है) से पूरब की तरफ़ धू-धू जल रही अग्नि किन लोगों ने जलाई होगी? सारे द्वन्द्व उसके अन्दर चलते रहते हैं। जब उसे पता चलता है कि रानी अदम्य इच्छाशक्ति, साहस और संघर्ष से लैस शान्त, सभ्य और बुद्धिमान महिला है तो वह अवाक् रह जाता है। उसकी यह धारणा ख़त्म हो जाती है कि भारतीय महिलाएँ अनपढ़, गँवार और फूहड़ होती हैं।
रानी के संघर्ष के बहाने उपन्यास उस समय की जीवन स्थितियों, विडम्बनाओं, विद्रूपताओं तथा अंग्रेज़ों की क्रूरताओं को भी सामने लाता है। इतिहास में रुचि रखनेवालों के लिए एक ज़रूरी किताब।
Penalty Corner Evam Anya Kahaniyan
- Author Name:
Ashwani Kumar 'Pankaj'
- Book Type:

- Description: "‘पेनाल्टी कॉर्नर’ की कहानियाँ झारखंड के औपनिवेशिक शोषण-दमन और उससे उपजी सामाजिक-सांस्कृतिक विसंगतियों-विकृतियों को बेहद बारीकी से रेखांकित करती हैं। झारखंड के जनजीवन को संदर्भित करनेवाली ऐसी रचनाएँ और रचनाकार बहुत विरले हैं—हिंदी में तो और भी कम। दरअसल बहुत से रचनाकार यहाँ की जमीनी हकीकत से जुड़ ही नहीं पाते। संभवतः औपनिवेशिक मानसिकता के अवशेष उन्हें ऐसा करने नहीं देते। ‘पेनाल्टी कॉर्नर’ की कहानियाँ अश्विनी कुमार पंकज को उन रचनाकारों से भिन्न पाँत में खड़ा करती हैं—एक शिखर की तरह, नैदिन गार्डीमर की तरह। ‘पेनाल्टी कॉर्नर’ की कहानियों का फलक बहुत विस्तृत है। इसमें एक ओर गिरिडीह-धनबाद की परित्यक्त कोयला-खदान हैं तो दूसरी ओर जादूगोड़ा का विकलांग-बाँझ कर देनेवाला प्रदूषित परिवेश। एक तरफ सिमडेगा, जलडेगा, बानो, मनोहरपुर के घाट-पहाड़, बाजार-हाट हैं तो दूसरी तरफ राँची-टाटा के चमचमाते फाइव-स्टार होटल। गरीबी और अमीरी का असह्य कंट्रास्ट। भाषा का रेंज भी उतना ही विस्तृत है, जितना इसका फलक। ठेठ गाँव-घर की हिंदी-नागपुरी से लेकर लेटेस्ट अंग्रेजी तक—‘चेंज योर माइंड इन राइट डायरेक्शन।’ अतिरिक्त प्रयास के बिना कथ्य के साथ सादा-सा शिल्प सहज रूप से कहानियों में आया है। एक नैसर्गिक आदिवासी परिवेश का प्रस्तुतिकरण सादगी-मौलिकता- सहजता के साथ। —विसेश्वर प्रसाद केशरी "
Hamka Diyo Pardes
- Author Name:
Mrinal Pande
- Book Type:

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घर की बेटी, और फिर उसकी भी बेटी—करेला और नीमचढ़ा की इस स्थिति से गुज़रती अकाल–प्रौढ़ लेकिन संवेदनशील बच्ची की आँखों से देखे संसार के इस चित्रण में हम सभी ख़ुद को कहीं न कहीं पा लेंगे।
ख़ास बतरसिया अन्दाज़ में कहे गए इन क़िस्सों में कहीं कड़वाहट या विद्वेष नहीं है। बेवजह की चाशनी और वर्क़ भी नहीं चढ़ाए गए हैं। चीज़ें जैसी हैं वैसी हाज़िर हैं।
इनकी शैली ऐसी ही है जैसे घर के काम निपटाकर आँगन की धूप में कमर सीधी करती माँ शैतान धूल–भरी बेटी को चपतियाती, धमोके देती, उसकी जूएँ बीनती है। मृणाल पाण्डे की क़लम की संधानी नज़र से कुछ नहीं बच पाता—न कोई प्रसंग, न सम्बन्धों के छद्म। घर के आँगन से क़स्बे के जीवन पर रनिंग कमेंटरी करती बच्ची के साथ–साथ उसके देखने का क्षेत्र भी बढ़ता रहता है और उसके साथ ही सम्बन्धों की परतें भी। अन्त तक मृत्यु की आहट भी सुनाई देती है।
बच्चों की दुनिया में ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन होता है—इसीलिए यह किताब...
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