
Dahan
Author:
Suchitra BhattacharyaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Unavailable
पुरुष-शासित समाज में मर्द को क्या कभी अहसास होगा कि औरत युग-युगान्तरों से अपने अन्तस में कितना अभिमान, अपमान, पीड़ा और ग्लानि छिपाए, उसे प्यार करती है? हज़ार असहमति, आपत्ति, विक्षोभ और असहनीय विसंगतियों के बावजूद, उसके साथ हमक़दम होकर सफ़र जारी रखती है? महानगर में हुई एक परिचित-सी घटना के सहारे लेखिका सुचित्रा भट्टाचार्य ने इस उपन्यास में वर्तमान समय और समाज की अँधेरी सच्चाइयों और मर्द की तानाशाहियों को क़लमबन्द किया है।</p>
<p>‘दहन’ महानगर के टालीगंज इलाक़े में चार समाज-दुश्मन नौजवानों के अश्लील शिकंजे से किसी गृहवधू को बचाने के लिए अपूर्व साहस से कूद पड़नेवाली एक औरत के तजुर्बे की हक़ीक़त है; उसने पुरुषत्व के अहंकार में औरत को अपने जु़ल्म और अत्याचार का शिकार बनानेवाले मर्दों के ख़िलाफ़ सामाजिक इंसाफ़ की वकालत की; उन्हें उचित सज़ा दिलाने के लिए थाना-पुलिस, कोर्ट-कचहरी तक भी दौड़ लगाने में हिचक नहीं की। अपनी साहसिकता के क्षणिक अभिनन्दन के बाद, उसने भयंकर अचरज के साथ आविष्कार किया कि नाइंसाफ़ियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानेवाली और उनसे जूझने को तैयार औरत पर कितने-कितने माध्यमों से, कितनी-कितनी तरह के दबाव उसे निष्क्रिय और तुच्छ बना देते हैं। उसका प्रतिवाद, यहाँ तक कि उस पर लगाए गए अनगिनत लांछन भी उस बर्बर दबाव में पिसकर रह जाते हैं।</p>
<p>‘दहन’ उपन्यास, वर्तमान नारी-स्वातंत्र्य का असली चेहरा दिखाता है और पुरुष-शक्ति के नपुंसक और खोखले मूल्यबोध की हक़ीक़त बयान करता है, और वर्तमान समाज और पुरुषों द्वारा औरत की हिम्मत और मुक़ाबले की ताक़त को तोड़ने की साज़िश का पर्दाफ़ाश करता है।
ISBN: 9788171195909
Pages: 167
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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जीवन के अन्तिम पड़ाव पर पहुँचे ऐसे कुछ पात्र हैं इस उपन्यास में जो बेटों के मारे हैं, लेकिन दयनीय नहीं हैं। टूटते मान-मूल्यों वाले गाँव के इन बूढ़ों में निरीहता और अकेलापन नहीं है। इनमें एक-दूसरे के दुख में शामिल होने, सहायता करने और सामूहिकता में सोल्लास जीने की मानवीय आकांक्षा और आश्वस्ति है। अमेरिका में रह रहे दो बेटों और और लन्दन में डॉक्टर-पुत्री द्वारा माँ को रिश्ते के मोहक मायाजाल में बन्दिनी बनाकर रखने और पीछे छूट गए पिता की विक्षिप्त होकर पागलखाने में मृत्यु दिल दहलानेवाली है।
ग्रामीण जीवन के कथाशिल्पी रामधारी सिह दिवाकर ने बड़े मनोयोग से आज के यथार्थ की यह मार्मिक कथा शिल्पित की है।
Shri Shriganesh Mahima
- Author Name:
Mahashweta Devi
- Book Type:
-
Description:
यह बिहार के एक गाँव की कहानी है, जो बीसवीं सदी में नहीं, अभी भी मध्ययुग के बीहड़ अँधेरों में जी रहा है और जहाँ आज भी भारत सरकार का नहीं, बल्कि ऊँची जाति के राजपूत मालिकों का प्रभुत्व चलता है। वही निरंकुश यह तय करते हैं कि नीची जातियों के मर्द–औरतों की भूमिका कब ज़रख़रीद ग़ुलाम, कब बँधुआ मज़दूर, कब उजड़े किसान और कब रखैल की होगी।
भूमि–अधिपति श्री श्री गणेश है, इस बर्बर और हिंस्र व्यवस्था का निरंकुश शासक जिसकी महिमा का बखान जन्म से लेकर उसके पिताश्री की रखैल और उसकी धाय माता लछिमा के हाथों मारे जाने तक बड़ी सशक्त शैली में किया गया है। लेकिन फ़िलहाल हारी जानेवाली इस लड़ाई में शामिल लोगों की चित्र–वीथी में हैं हर जगह और हर युग में अत्याचारी के विरुद्ध चिनगारी फूँकने वालों की परम्परा में राँका दुसाध, गांधीवादी अभय महतो, नक्सली जुगलकरन और बस्तियों से जंगलों में भागकर आई अनाम भीड़।
उपन्यास में हरेक की छवि बड़ी ही सहज और सशक्त रंगों में उभारी गई है। मध्यवर्ग की नई पीढ़ी की यौवन पल्लवी शाह की बौनी सहानुभूति पर किया गया कटाक्ष इस उपन्यास के पाठक कभी भूल नहीं पाएँगे। लेकिन बीहड़ अँधेरे में किरण है सरसतिया की आवाज़, जो अपनी कोख से राँका दुसाध जैसी उद्धत सन्तान को टेर रही है, यही है इस उपन्यास में उपन्यासकार की आस्था का उद्घोष।
Umraonagar Mein Kuchh Din
- Author Name:
Shrilal Shukla
- Book Type:
- Description: ‘उमरावनगर में कुछ दिन’ श्रीलाल शुक्ल की प्रस्तुत पुस्तक में तीन व्यंग्य कथाएँ सम्मिलित हैं—‘उमरावनगर में कुछ दिन’, ‘कुन्ती देवी का झोला’ और ‘मम्मीजी का गधा’। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, संग्रह की आधार-कथा है : ‘उमराव नगर में कुछ दिन’ उमराव नगर यानी एक ऐसा गाँव, जिसे नियोजित विकास का चमत्कार दिखाने के लिए चुना गया है, लेकिन जिसके सार्वजनिक जीवन में आज़ादी के बाद पनपे सारे अवसरवाद और भ्रष्टाचार के साथ हुए तमाम समझौते मौजूद हैं। ‘कुन्तीदेवी का झोला’ में डाकुओं और पुलिस के आतंकवाद का बेजोड़ चित्रण है, जिसका शिकार अन्ततः निर्दोष जनता को बनना पड़ता है। ‘मम्मीजी का गधा’ में अफ़सरशाही के अहं को विषय बनाया गया है और प्रसंगतः इस बात की भी ख़बर ली गई है कि नेता लोग अर्थहीन-सी स्थितियों का किस प्रकार लाभ उठाते हैं। निश्चय ही यह संग्रह श्रीलाल शुक्ल की सुपरिचित व्यंग्य-प्रतिभा को नई ऊँचाई सौंपता है।
Gita
- Author Name:
Yashpal
- Book Type:
-
Description:
‘गीता’ शीर्षक यह उपन्यास पहले ‘पार्टी कामरेड’ नाम से प्रकाशित हुआ था। इसके केन्द्र में गीता नामक एक कम्युनिस्ट युवती है जो पार्टी के प्रचार के लिए उसका अख़बार बम्बई की सड़कों पर बेचती है और पार्टी के लिए फंड इकट्ठा करती है। पार्टी के प्रति समर्पित निष्ठावान गीता पार्टी के काम के सिलसिले में अनेक लोगों के सम्पर्क में आती है। इन्हीं में से एक पदमलाल भावरिया भी है जो पैसे के बल पर युवतियों को फँसाता है। उसके साथी एक दिन उसे अख़बार बेचती गीता को दिखाकर फँसाने की चुनौती देते हैं। गीता और भावरिया का लम्बा सम्पर्क अन्ततः भावरिया को ही बदल देता है।
अपने अन्य उपन्यासों की तरह इस उपन्यास में भी यशपाल देश की राजनीति और उसके नेताओं के चारित्रिक अन्तर्विरोधों को व्यंग्यात्मक शैली में उद्घाटित करते हैं। उपन्यास में कम्यून जीवन का बड़ा विश्वसनीय अंकन हुआ है जिसके कारण इस उपन्यास का ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके लिए काफ़ी समय तक यशपाल मुम्बई में स्वयं कम्यून में रहे थे। अपने ऊपर लगाए गए प्रचार के आरोप का उत्तर देते हुए यशपाल उपन्यास की भूमिका में संकेत करते हैं कि वास्तविकता को दर्पण दिखाना भी प्रचार के अन्तर्गत आ सकता है या नहीं, यह विचारणीय है।
Inhin Hathiyaron Se
- Author Name:
Amarkant
- Book Type:
-
Description:
भारत के स्वाधीनता संग्राम में सन बयालीस का ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ मुक्तिकामी भारतीय जनता का सर्वोच्च एकीकृत प्रयास माना जाता है। इस आंदोलन का हिंदी साहित्य में कई बार संदर्भ आया है लेकिन पूर्णतः उसी पर केन्द्रित सृजनात्मक प्रयत्न कम ही हुए। उस आंदोलन में ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ के नारे गूँजते थे। साठ साल बाद आज ‘अंग्रेजो, भारत आओ’ की नीति चल रही है। ऐसे समय में भारत छोड़ो आंदोलन की जातीय स्मृति की ओर कथा-गुरु अमरकान्त का ध्यान जाना खास अर्थ रखता है।
इन्हीं हथियारों से में शायद ही कोई बड़ा नेता दिखलाई देता है। अगर कहीं वे हैं तो बस सूचना-संदर्भ के रूप में। आंदोलन की प्रकृति के अनुरूप ही यह बहुनायक-संरचना वाला उपन्यास है जिसके प्रमुख चरित्रों में नीलेश छात्र है, गोबर्द्धन व्यापारी, सदाशयव्रत पूर्व पहलवान-डाकू, नम्रता जमींदार की बेटी, भगजोगनी फल-विक्रेता की पत्नी, रमाशंकर साधारण कार्यकर्ता, हरचरण मजदूर, गोपालराम दलित। गरज यह कि समाज का कोई तबका, कोई समुदाय नहीं बचा, जो इस आंदोलन में शरीक न हुआ हो। यह उपन्यास इन्हीं मामूली लोगों, गुमनाम नायकों का विरुद है–उनके चारित्रिक उत्कर्ष और पतन के साथ-साथ।
इतने नायकों वाले इस उपन्यास का महानायक है– बलिया! वर्तमान पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक पिछड़ा जिला। कुलीन लोग इस जनपद को सांस्कृतिक पिछड़ेपन का प्रतीक मानते हैं। लेकिन बलिया वैसा प्रतिवादी, प्रतिरोधी और साहसी जनपद है जो जीवन की कोमलताओं और राग-रंग से भी समृद्ध है। देश के कई जाग्रत जनपदों की तरह ही ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान बलिया में भी आज़ाद सरकार का गठन हुआ था। सिद्धान्तकार चाहें तो इस उपन्यास को स्थानीय इतिहास का निम्नवर्गीय प्रसंग कह लें पर यह है ‘फैक्ट’ से प्रेरित ‘फिक्शन’ ही और वह भी एक स्वाधीनता सेनानी की कलम से रचा हुआ।
अमरकान्त भविष्य में झाँकने की अपनी क्षमता के लिए भी प्रसिद्ध रहे हैं। इस उपन्यास में वे उस गौरवशाली अतीत के चित्रण और विश्लेषण को लेकर उपस्थित हुए हैं जो भविष्य का पाथेय हो सकता है। उन्हीं मामूली हथियारों से जनता बड़ी लड़ाई जीत लेगी, यही विश्वास इस उपन्यास का बीज-सूत्र है।
–अरुण प्रकाश
Urmila
- Author Name:
Asha Prabhat
- Book Type:
-
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रामकथा में उर्मिला लगभग उपेक्षित पात्र है। लक्ष्मण के लम्बे विरह और उस दौरान अपने कर्तव्यों का उदात्त भाव से पालन करनेवाली उर्मिला के चरित्र को पर्याप्त विस्तार न तो वाल्मीकि रामायण में मिला है, और न ही तुलसी के मानस में। यह उपन्यास इसी अदीखते-से पात्र के व्यक्तित्व को विभिन्न आयामों से प्रकाशित करने का प्रयास है।
सीता की भाँति उर्मिला को अपने प्रिय के साथ वन जाने का अवसर नहीं मिला, इसलिए स्वाभाविक ही उन्हें जनसाधारण के सम्पर्क में आने, उनके अभावों और प्रसन्नताओं को देखने का अवसर भी नहीं मिला। वे सदैव राजभवनों में रहीं। लेकिन क्या यह कहा जा सकता है कि सुख के उन तथाकथित आगारों में कष्टों और विडम्बनाओं के अनेक रूप देखने को नहीं मिलते! क्या यह सम्भव है कि राम, लक्ष्मण और सीता के प्रस्थान के बाद राजभवन और वहाँ रह गए लोगों की मन:स्थिति में आमूल परिवर्तन नहीं आया होगा? क्या उर्मिला ने सब कुछ सहते हुए, अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए गहन दुख का सामना नहीं किया होगा!
यह उपन्यास इसी दृष्टि से उर्मिला के सम्पूर्ण अनुभव-जगत को अंकित करने का प्रयास करता है। उपन्यासकार के शब्दों में, ‘उर्मिला का तप बहुत कठिन है। विरह का ताप कमोबेश हर स्त्री भोगती है परन्तु उर्मिला का विरह इस मायने में विशिष्ट है कि उसमें अश्रुओं के निकलने की वर्जना भी शामिल है। सन्ताप के घोर पलों में क्या आँसुओं की वर्जना सम्भव है? यदि इसे उर्मिला सम्भव करती हैं तो यह उनके अन्दर की दृढ़ता ही कही जाएगी।’
व्यापक अध्ययन, सम्यक कल्पना और गहरी सहानुभूति के आधार पर रचा गया यह उपन्यास उर्मिला के अन्य गुणों को भी रेखांकित करता है, साथ ही उस युग के सामाजिक-सांस्कृतिक विन्यास को भी स्पष्ट करता है जिसके परिप्रेक्ष्य में हम अपने वर्तमान की परख कर सकते हैं।
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