Asha Kalindi Aur Rambha
Author:
Bhairavprasad GuptPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 236
₹
295
Available
‘आशा कालिन्दी और रम्भा’ नामक उपन्यासों की त्रयी क्रमशः सामन्तवादी, पूँजीवादी और गांधीवादी व्यवस्था में स्त्री की स्थिति पर एक टिप्पणी है।</p>
<p>‘आशा’ उपन्यास की नायिका स्वयं अपनी कहानी सुनाती है। सेठ कालिन्दी प्रसाद आशा अर्थात् जानकी बाई को अपनी रखैल बनाना चाहता है। निर्धन दुकानदार बाप की बेटी होने के कारण ही नवाब के हरम में पहुँचा दी जाती है और बाद में वहाँ से मुक्त होने पर जानकी बाई के रूप में नाचने-गाने का धन्धा करने लगती है। आशा नवाब और सेठ कालिन्दी प्रसाद दोनों के लिए ही स्त्री भोग की सामग्री है।</p>
<p>अगली कड़ी में सेठ कालिन्दी अपनी कहानी कहता है। उसका सबसे बड़ा कष्ट यह है कि रुपए के लालच में उसका पिता उसका विवाह बड़े घर की फूहड़ लड़की से कर देता है। पैसा उसके पास कितना ही हो, श्वसुर की सहायता से दूसरे विश्वयुद्ध में वह और भी कमाई करता है। लेकिन उसका पारिवारिक जीवन नरक बना हुआ है। अंग्रेज़ों और कांग्रेस दोनों के बीच सन्तुलन साधकर वह व्यापार में ख़ूब उन्नति करता है। असफल दाम्पत्य जीवन के कारण वह एक वेश्या से सम्बन्ध बनाता है और उसी से उत्पन्न बेटी का नाम वह रम्भा रखता है।</p>
<p>रम्भा, इसकी नियति भी बहुत भिन्न नहीं है। अलग कोठी में पाली-पोसी जाने के बावजूद उसे सोलह साल की उम्र में चालीस साल के सेठ सोनेलाल की रखैल बनने को बाध्य होना पड़ता है, क्योंकि उसके पिता सेठ कालिंदी चरण में यह साहस नहीं है कि समाज में यह कह सके कि वह उसकी बेटी है। सेठ सोनेलाल की रखैल बन जाने के बाद भी रम्भा अपने विकास के लिए संघर्ष करती है। पढ़कर एम.ए. करने के दौरान आनन्द के सम्पर्क में आती है। सोनेलाल का गर्भ धारण करके भी वह उससे घृणा करती है। आनन्द के सम्पर्क में आकर वह जनसेवा की ओर प्रवृत्त होती है और एक स्कूल चलाने लगती है।
ISBN: 9788180318665
Pages: 48
Avg Reading Time: 2 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: आदि शंकराचार्य अपने युग की महानतम विभूति थे। यह उपन्यास 'महापथ' उन्हीं के असाधारण, अद्वितीय चरित्र और कृतित्व पर आधारित है। शंकराचार्य के बारे में यह प्रसिद्ध है कि मात्र आठ वर्ष की आयु में उन्होंने चारों वेदों का अध्ययन कर लिया। बारह वर्ष तक सर्व शास्त्रवेत्ता बन गए। सोलह वर्ष में उन्होंने भाष्य रचना कर डाली और बत्तीस वर्ष की आयु में उनका महाप्रयाण हुआ। उनके अनेक अनुयायी उन्हें शिव का अवतार भी मानते हैं। यह उपन्यास तथ्यों के साथ रेखांकित करता है कि शंकराचार्य के सबसे प्रबल विरोधी प्रायः बौद्ध थे जो वैदिक धर्म के समस्त रूपों का विरोध करते थे। जबकि बौद्धधर्म का सार तत्त्वतः वेदान्त दर्शन से भिन्न नहीं है। ऐसे में आचार्य शंकर ने अपनी दिव्य वाग्मिता से बौद्धों और अन्य वेद-विरोधी सम्प्रदायों के लोगों को जिस तरह पराभूत किया, वह एक मिसाल है। अद्वैत वेदान्त की महिमा और श्रेष्ठता प्रतिष्ठापित कर देने के बाद आचार्य शंकर ने भारत की चारों दिशाओं में चार मठ स्थापित किए। उत्तर में हिमालय बदरिकाश्रम में ज्योतिर्मठ, दक्षिण में कर्नाटक राज्य के अन्तर्गत शृंगेरी मठ, पश्चिम में द्वारका में शारदा मठ और पूर्व में जगन्नाथपुरी में गोवर्धन मठ। आज भी उनके स्थापित ये मठ वैदिक विद्या के केन्द्र हैं जिनका मनोरम वर्णन इस उपन्यास में किया गया है। आचार्य शंकर के काल-निर्धारण में काफ़ी मतभेद है। अधिकांश इतिहासकार उन्हें सातवीं या आठवीं शताब्दी का व्यक्तित्व मानते हैं लेकिन लेखक ने अपने अन्वेषण के आधार पर प्रस्तावित किया है कि आद्य शंकराचार्य का जन्म आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व हुआ था। यह उपन्यास जगद्गुरु आदि शंकराचार्य के जीवन के तमाम आयामों से गुज़रते उनकी धर्म-दिग्विजय यात्रा को जिस तरह विस्तार एवं रोचकता के साथ प्रस्तुत करता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।
Terodaiktil
- Author Name:
Mahashweta Devi
- Book Type:

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Description:
भारत की आदिवासी जनजाति की चेतना, संस्कृति, उत्पीड़न, संघर्ष और मानवीय गरिमा का एक और ज्वलन्त प्रमाण प्रस्तुत करनेवाली अप्रतिम कथाकार महाश्वेता देवी की नवीनतम कथाकृति है— ‘टेरोडैक्टिल’ जिसमें यथार्थ और फ़ैंटेसी के अद्भुत समन्वय से ऐसे वातावरण का सृजन किया गया है जो न केवल जनजातियों की भौतिक पीड़ाओं को स्वर देता है। अपितु उनकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को भी नए आयाम देता है और उनके प्रति मुख्य धारा के विकसित भारतीय जनमानस के दायित्वों के प्रति उसे सतर्क करता है।
टेरोडैक्टिल एक अर्धमानव, अर्धपक्षी जीव है जो नागेसिया आदिवासी जाति के पूर्वपुरुषों की आत्मा के रूप में अवतरित होता है और शोषण और उत्पीड़न के विरुद्ध उस पूरी जाति के संघर्ष को एक नए मिथ से जोड़ता है।
मध्य प्रदेश के एक काल्पनिक पहाड़ी स्थल—पिरथा—की पृष्ठभूमि में रचित यह उपन्यास पाठक को सर्वग्रासी पूँजीवादी प्रगति और आदिम समाजवादी सांस्कृतिक, सामाजिक परम्परा के बीच दो जीवन-पद्धतियों और दो प्रकार के जीवन-मूल्यों के संघात को दर्शाता है। पूरे कथानक में अद्भुत और सामान्य, चिरन्तन और आधुनिक का ऐसा सन्तुलन पैदा किया गया है कि पाठक साँस रोके आधिभौतिक से भौतिक जगत् तक की यात्रा करता हुआ उस मानवीय त्रासदी का साक्षात्कार करता है, जो उसके वर्तमान ही नहीं उसके भविष्य को भी उघाड़कर उसके सामने रख देता है।
Sailabi Tatbandh
- Author Name:
Ajit Gupta
- Book Type:

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Description:
यह उपन्यास ढाई सदी बाद की जीवन-स्थितियों का काल्पनिक संसार रचता है; लेकिन नित्य परिवर्तित होती मौजूदा सामाजिक संरचना के परिप्रेक्ष्य में सन् 2151 का समय यथार्थ के बिलकुल पास-पास की ध्वनि देता है।
स्त्री-विमर्श के दौर में अपने ढंग से अलग और महत्त्वपूर्ण दख़ल देनेवाली अजित गुप्ता के इस अनूठे उपन्यास के केन्द्र में है सन् 2151 का समय और तब का यौन-जीवन। यहाँ परिवार नहीं है, पति-पत्नी नहीं हैं और न ही हैं घरों में बच्चे। हैं भी तो स्कूल में। धर्म पूर्णतः प्रतिबन्धित है। लेकिन प्रकृति है और वह पात्रों के जीवन में अपनी स्वाभाविक भूमिका निभाती है। मर्यादा और उच्छृंखलता का भेद इतना साफ़ नहीं है कि आतंकित करे। भोग और मनोरंजन ही जीवन के लक्ष्य हैं। लेकिन शरीर की तृष्णा कभी समाप्त नहीं होती। अन्ततः ‘मातृत्व-सुख’ जवाब बनकर सामने खड़ा हो जाता है।
उपन्यास की कथा क़िस्सागोई शैली में आगे बढ़ती है। शायद यही वजह है कि पठनीयता कहीं भी बाधित नहीं होती। रोमांस, सेक्स, प्रकृति और मातृत्व के इर्द-गिर्द बुनी इसकी कथा भविष्य की एक फैंटेसी के द्वारा हमारे मौजूदा जीवन-यथार्थ के कई कोने-अँतरे खोलती है।
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