Chakke Tale
Author:
Hermann HessePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 40
₹
50
Unavailable
यह ज़रूरी नहीं कि विधिवत् स्कूली शिक्षा प्राप्त करनेवाले छात्र ही महान बनते हैं। सच तो यह है कि जिनसे स्कूली अध्यापक घृणा करते हैं, सज़ा देते हैं, जो झगड़ालू कहे जाते हैं, भगाए जाते हैं, अक्सर वही लोग बाद में अपने सुकृत्यों से महान बन जाते हैं। और फिर अगली पीढ़ी के स्कूली अध्यापक छात्रों के सामने इन्हीं लोगों को अनुकरणीय उदाहरण के रूप में पेश करते हैं।</p>
<p>प्रस्तुत उपन्यास में जहाँ वर्तमान शिक्षा-पद्धति और उसके चलते विद्यार्थियों में व्याप्त तनाव को रेखांकित किया गया है, वही एक युवक की ऐसी मार्मिक कथा है जो परिवार, समाज और व्यवस्था की अपेक्षाओं के चक्के तले दबकर दम तोड़ देता है। सुविख्यात जर्मन लेखक हेरमन हेस्से का बहुचर्चित मार्मिक उपन्यास है ‘चक्के तले’।
ISBN: 9788171198931
Pages: 159
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: अगर यह कहना सच है कि भारत की आत्मा गाँवों में निवास करती तो यह कहना सच को रेखांकित करना है कि नागार्जुन के उपन्यासों में इस महादेश की आत्मा साकार हो उठी है। वे सच्चे अर्थों में जनवादी कथाकार हैं जनसाधारण की बात को जनसाधारण के लिए जनसाधारण की भाषा में कहनेवाले कथाकार। उनके भाषा-शिल्प में कहीं कोई घटाटोप नहीं बनावट नहीं अगर कुछ है तो जीवन का सहज प्रवाह और इसीलिए मन को छू लेने की जैसी शक्ति उनके उपन्यासों में है वह कम देखने को मिलती है। बाबा बटेसरनाथ रचना-शिल्प की दृष्टि से नागार्जुन का विलक्षण प्रयोग है। इसका कथानायक कोई मानव-शरीरधारी नहीं बल्कि एक बूढ़ा बरगद है जिसके प्रति गाँव के लोगों की भावना वैसी ही है जैसी अपने किसी बड़े-बूढ़े के प्रति होती है और इसीलिए वे लोग उस पेड़ को साधारण बरगद नाम से नहीं बल्कि आदरसूचक बाबा बटेसरनाथ कहकर पुकारते हैं। यही बाबा बटेसरनाथ अपनी कहानी सुनाते-सुनाते पूरे गाँव की कहानी सुना जाते हैं,जिसकी कई पीढ़ियों के इतिहास के वे साक्षी रहे हैं। ग्रामीण जीवन के सुख-दुख, ह्रास-रुदन और अभाव-अभियोगों का इसमें बड़ा ही सहज और मर्मस्पर्शी चित्रण हुआ है।
Andhra Pradesh Ki Lokkathayen
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Peeli Aandhi
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Prabha Khetan
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Description:
प्रभा खेतान ने अपने विशिष्ट लेखकीय साहस के साथ स्त्री की सिर्फ़ बाहरी नहीं, उसकी निहायत निजी, आन्तरिक और गोपनीय परतों को भी अपनी रचनाओं में खोला है। उनके यहाँ पुरानी औरत ख़ुद अपने हाथों से अपना सिर काटने वाली और फीनिक्स की तरह पुनः-पुन: अपनी ही आग से एक नए रूप में जन्म लेनेवाली औरत होती है। ‘पीली आँधी’ में तीन-तीन पीढ़ियों की औरतें हैं जो कोई सौ-डेढ़ सौ साल की यात्रा करते हुए, अपनी-अपनी बात कहते हुए हमारे आज तक पहुँचती हैं। शिक्षा, निरन्तर परिवर्तनशील परिवेश के दबाव और बंगाल की सामाजिक जागरूकता के बीच प्रभा खेतान अपने जीवन का चुनाव स्वयं, अपनी तरह से करना चाहती हैं—वह स्वयं अपने आर्थिक स्रोतों की खोज करती है और इस प्रक्रिया में भयावह मानसिक-भावनात्मक रूपान्तरणों से दो-चार होती है। नई-नई चुनौतियों की रचना करने और उन्हें साहसपूर्वक झेलनेवाली इसी औरत की अक्कासी इस उपन्यास में है।
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