
Pootonwali
Author:
ShivaniPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘पूतोंवाली’ एक ऐसी स्त्री की विडम्बना-भरी जीवन-गाथा है, जो पाँच-पाँच सुयोग्य-मेधावी बेटों की माँ होकर भी अन्त तक निपूती रही। शहरी चकाचौंध और सम्पन्नता की ठसक-भरे जीवन के मद में अपने सरल लेकिन उत्कट स्वाभिमानी पिता और स्निग्ध, वात्सल्यमयी माँ के दधीचि जैसे उत्सर्ग-भरे जीवन की अवहेलना करनेवाले बेटों का ठंडा व्यवहार आज के जीवन में घर-घर की कहानी बन चला है। ‘पूतोंवाली क्षय होते पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों के पक्ष में एक मार्मिक गुहार है।</p>
<p>‘कैंजा’ यानी सौतेली माँ। एक ऐसा ओहदा जिसकी मर्यादा प्राणपण से निभाने के बाद भी निष्कलुष-मना नन्दी उसका पारम्परिक कलुष नहीं उतार पाती। बेटा रोहित समाज की कानाफूसी से विह्वल हो विद्रोही बनता जाता है। उसके फेंके पत्थरों से सिर्फ़ शीशा ही नहीं टूटता, नन्दी का हृदय भी विदीर्ण हो जाता है। एक ऐसी युवती की मार्मिक कथा, जो जन्मदायिनी माँ न होते हुए भी अपने सौतेले बेटे से सच्चा प्रेम करने की भूल कर बैठी है।</p>
<p>...“आँधी की ही भाँति वह मुझे अपने साथ उड़ा ले गई थी, और जब लौटी तो उसका घातक विष मेरे सर्वांग में व्याप चुका था।...”</p>
<p>कौन थी यह रहस्यमयी प्रतिवेशिनी जो नियति के लिखे को झुठलाने अकेली उस भुतही कोठी में आन बसी थी?</p>
<p>‘विषकन्या’ में शिवानी की जादुई क़लम ने उकेरी है दो यकसाँ जुड़वाँ बहनों की मार्मिक कहानी और उनमें से एक के ईर्ष्या से सुलगते जीवन की केन्द्रीय विडम्बना, जो स्पर्शमात्र से किसी के जीवन में हलाहल घोल देती है।</p>
<p>...सावित्री के दोनों बेटे विदेश चले जाते हैं। एक यात्रा के दौरान ट्रेन में मिला लावारिस बच्चा ही अन्तिम दिनों में उसके साथ रहता है। सावित्री अपनी सारी सम्पत्ति इसी तीसरे बेटे के नाम कर जाती है, परन्तु भाभियों का यह ताना सुनकर कि उसने धन पाने के लिए माँ की सेवा की, तीसरा बेटा गंगा वसीयतनामे को फाड़कर भाइयों के मुँह पर फेंक देता है। लोकप्रिय लेखिका की क़लम से निकली एक और मार्मिक कथा।
ISBN: 9788183610704
Pages: 156
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘वर्द्धमान' शीर्षक यह उपन्यास लिच्छवियों के विशाल समृद्ध गणराज्य की राजधानी वैशाली में महाराजा चेटक के राजमहल के इन्द्रभवन जैसे मणिकांचन जड़ित स्फटिक भवन में वैशाली की महारानी सुभद्रा और सुभद्रा की ननद राजकुमारी त्रिशला के मनोविनोदपूर्ण परिहास से शुरू होकर पावापुरी में महाप्रभु के निर्वाण पर पूर्ण विराम लेता है। यही राजकुँवरी त्रिशला कुंडपुर में ब्याही गई और वर्द्धमान महावीर की माँ बनी।
महावीर के आयुकाल में विभाजन रेखाएँ स्पष्ट हैं। अपनी आयु के 28 वर्ष उन्होंने कुंडपुर में बिताए। बाल्यकाल से ही वे वीतराग होते चले गए। फिर 2 वर्ष वह अग्रज नन्दीवर्द्धन के आग्रह पर स्वयं को वहीं रोके रहे। 30 वर्ष की आयु में राजमहल से चल पड़े। ज्ञात खंड उद्यान के अशोक वृक्ष की छाया में उन्होंने सारे वस्त्र और आभूषण उतार दिए। तपस्या काल यहीं से शुरू हुआ। पूरे साढ़े बारह वर्ष परीषह और उपसर्ग सहते हुए सस्मित मौन तपस्वी रहे। पावापुरी से जंभियग्राम और वहीं ऋजुबालुका नदी के पास शालवृक्ष के नीचे उन्हें कैवल्य प्राप्त हुआ। वे केवली बने।
बाद के तीस वर्ष उन्होंने धर्मलाभ और पुण्यलाभ के निमित्त सारे संसार पर न्योछावर कर दिए।
उपन्यास के कथानक, उपन्यासों के पात्रों, राजनगरों, राजधानियों, राज्यशैलियों, प्रचलित परम्पराओं, पात्रों के नामों, सामाजिक स्थितियों, परिस्थितियों, सामान्य नागरिकों की मन:स्थितियों, यात्राओं, धर्मसभाओं, न्यायालयों, नारी जगत की संवेदनाओं, ईर्ष्याओं, वैर-बदलों, उपसर्गों, परीषहों, मन्दिरों, मदिरालयों आदि का अध्ययन करने पर लगता है कि मनस्वी डॉ. रत्नेश ने पचासों उपन्यासों को इस एक उपन्यास में महावीर को अपना कथानायक बनाकर लिखने की कोशिश की है। श्री रत्नेश अपनी प्रवाहमयी भाषा के लिए जाने जाते हैं। उस काल के अनुरूप संवादों और व्यवहारगत भाषा का ध्यान उन्होंने बराबर रखा है।
डॉ. राजेन्द्र रत्नेश की पुस्तक ‘वर्द्धमान’ का समग्र लेखन जैन आगम, जैन इतिहास, जैन पुराण और जैन मान्यताओं के अध्ययन तथा आधारभूमि पर है। डॉ. रत्नेश ने अपनी आयु का स्वर्णकाल एक जैन श्रमण या जैन मुनि के रूप में जिया है। उन्होंने साधु जीवन और मुनि जन्म का शैलीगत पालन किया है। आज वे एक सद्गृहस्थ और मेधावी पत्रकार तथा लेखक हैं। अपने दीर्घ अनुभव और अध्ययन से वे यदि 'वर्द्धमान' जैसा मात्र पठनीय ही नहीं, अपितु मननीय ग्रन्थ अपने समाज को सौंपते हैं तो यह बहुत सुखद फलित है।
Ration Card Ka Dukh
- Author Name:
Jugnu Shardey
- Book Type:
- Description: "एक युग से आँसुओं, नारों, माँगों और फोटू कमेटी की बरसात हो रही थी। कल गरमी के बावजूद संसद् के एयरकंडीशन से कलेजे में ठंडक लिये वैसे ही मुसकराई देश की संसदीय महिलाएँ, जैसे कभी मुसकराती थीं टूथपेस्ट बेचनेवाली महिलाएँ। आखिर पेश हो गया राज्यसभा में संविधान संशोधन 108वाँ विधेयक। इसमें संसद् और विधानसभा में आबादी के 50 प्रतिशत को 33 प्रतिशत रिजर्वेशन मिल सकेगा। चाणक्य कहते हैं, कहते हैं या नहीं पता नहीं, क्योंकि स्तंभकार ने चाणक्य का अर्थशास्त्र नहीं पढ़ा है, लेकिन छोटी बात को बड़ी बनाने के लिए बड़े लोगों का नाम लेना चाहिए। इसीलिए चाणक्य कहते हैं कि कुछ भी लिखने के पहले सोचसमझ लेना चाहिए। सोचसमझ के लेखन का मतलब होता है कि लिखने के पहले सोचा ही न जाए। जन्म बीत जाए सोचतेसोचते। लेखन तो बस साप्ताहिक मुद्रास्फीति लेखन है कि बस प्रतिशत बढ़ाते या घटाते जाना लिखना भर होता है। फिर भी इस स्तंभकार ने बाकायदा खोजबीन की। ब्रेकिंगन्यूज के बकवासी खतरों और टीवीयाना बहसों की सिरदर्द के बावजूद खबरिया चैनलों को देख गया। रंगीन विज्ञापनों से भरे अगरमगरलेकिनपरंतु वाले प्रिंट मीडिया को पढ़कर चश्मे का नंबर बढ़ गया। इंटरनेटीय सर्च इंजनों को झाँक गया, जहाँ एक विषय पर लाखों भड़ासी जानकारियाँ होती हैं। तब जाकर समझ में आया कि शोधअनुसंधान के लिए विषय का होना जरूरी होता है। अब तक सारी खोजबीन बिना विषय के हो रही थी। विषय भी तय कर लिया गया—देश और गांधीजी के तीन बंदर का व्यावहारिक संबंध।"
Bevatan
- Author Name:
Asharf Shaad
- Book Type:
-
Description:
अशरफ़ शाद पेशे से पत्रकार हैं और दिल से शायर। इस उपन्यास में उन्होंने अपनी इन दोनों ख़ूबियों का भरपूर इस्तेमाल किया है। अपनी ज़मीनों से उखड़े, पराए मुल्कों में भटकते बेवतनों के आर्थिक-सामाजिक हालात का जायज़ा अगर उनका पत्रकार, बिलकुल एक शोधार्थी की तरह लेता है, तो उन लोगों के भीतर घुमड़ते दुःख को ज़बान उनका शायर देता है। तथ्यात्मक विवरणों की निर्वैयक्तिकता और इन विवरणों में गुँथे पात्रों के साथ लेखक की गहन संलग्नता के चलते ही वह तनाव जन्म लेता है जो दर्जनों कथाओं-उपकथाओं में फैली इस गाथा को अद्भुत ढंग से पठनीय बनाता है।
निस्सन्देह इसमें अशरफ़ शाद के ‘कहानीपन’ की भी भूमिका है जिसके लिए आधुनिक उर्दू कथा-साहित्य में उन्हें एक ख़ास जगह हासिल है। अपने तमाम सरोकारों, चिन्ताओं और विस्तृत कथा-फलक के बावजूद ‘बेवतन’ का कहानीपन कहीं किसी झोल का शिकार नहीं होता।
‘बेवतन’ की चिन्ता के दायरे में वे लोग हैं जो बेहतर ज़िन्दगी की तलाश में अपने घरों और मुल्कों को छोड़कर परदेसी हो जाते हैं और पूरी ज़िन्दगी अपनी ‘सम्पूर्ण’ पहचान के लिए अपने आपसे और हालात से जद्दोजहद करते रहते हैं।
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