Bhookh
Author:
Mahashweta DeviPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
विकास और समानता के दावों के घटाटोप के नीचे असन्तोष सुलगता रहता है। राजसत्ता आँख मूँदे रहती है और स्थिरता एवं शान्ति का दावा करती रहती है। जब तक असन्तोष को क्रोध का रास्ता नहीं मिलता, तब तक ‘सब कुछ ठीकठाक है’ का भ्रम बना रहता है। छोटे-छोटे संघर्ष चलते रहते हैं और अभिजन यथास्थिति के मुग़ालते में डूबे रहते हैं। इस कथ्य को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास।</p>
<p>भूख स्थानीय स्तर की एक बड़ी लड़ाई की दास्तान है। बिहार का पठारी ज़िला पलामू का गाँव खेड़ा। काग़ज़ पर शासन बिहार की सरकार का और वास्तविक क़ब्ज़ा लरातू के आदमख़ोर कुँवर का। बचे-खुचे सामन्ती दलदल की उपज कुँवर की जो जंगल का राजा, जंगल के उत्पाद का लुटेरा और आदिवासियों की अस्मत को खिलौने की तरह उछालने वाला है। तेतरी के साथ बलात्कार, बेगार-बँधुआ बनाए गए आदिवासी, सुलगता असन्तोष और दिशा देती परिवर्तनकामी शक्तियाँ कुँवर को चुनौती देती हैं। नौकरशाही कुँवर के सामने लाचार है। लेकिन दलितों के असन्तोष का क्रान्तिकारी दावानल जब भड़कता है तो कुँवर मारा जाता है।</p>
<p>प्रख्यात बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी ने अन्याय के घृणित रूपों और उसके विरुद्ध चल रहे जन-संघर्ष की दहकती कथा पाठकों के समक्ष रखी है।
ISBN: 9788183611817
Pages: 174
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘लंकेश्वर’ उपन्यास में लेखक ने राम-रावण की कथा को पौराणिक कथाओं, पुराख्यानों तथा विभिन्न रामकथाओं का अध्ययन कर उन्हें मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक विश्लेषणों के माध्यम से उकेरा है। रावण इस बृहद् कथा का केन्द्रीय पात्र है। उपन्यास में रावण को बहुमुखी प्रतिभा का धनी के रूप में नहीं, बल्कि एक सामाजिक और व्यावहारिक व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया है।
तीन खंडों में विभाजित—‘दिग्विजय’ खंड में राक्षसराज रावण के आदर्शों, मानवीय मूल्यों, उसकी विराट सत्ता व धार्मिक सहिष्णुता की, तो ‘वाग्धारा’ खंड में राम के विराट, सहृदय, मर्यादा और त्याग-भरे आदर्श जीवन की व्याख्या है। 'मुक्ति’ खंड में राम-रावण युद्ध है जिसका आधार वैमनस्य नहीं, बल्कि वैचारिक अन्तर्विरोध तथा दो भिन्न संस्कृतियों का आमना-सामना है।
लेखक ने उपन्यास में इस बृहद् कथा के परिवेश को जीवन्त रखने के लिए पौराणिक शब्द-सम्पदा का भरपूर उपयोग किया है तथा एक सुपरिचित कथा को रोचक व पठनीय बनाए रखने में सफलता हासिल की है।
Qaid Bahar
- Author Name:
Geeta Shri
- Book Type:

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प्रेमी जहाँ पति मैटेरियल में बदलने लगता है और प्यार विवाह नाम के नरक में, क़ैद की दीवारें वहीं उठना शुरू होती हैं, जिनसे निकलने का संघर्ष इस उपन्यास की स्त्रियाँ कर रही हैं। लेकिन इस मुक्ति का निर्वाह क्या इतना आसान है? प्रेम से रहित हो जाना और अपने एकान्त के वैभव को चारों तरफ जगमगाती-दहाड़ती पारिवारिकताओं के ठीक सामने खड़ा कर देना; क्या यह उतना ही सरल है जितना विचार के रूप में सोच लेना!
यह एक मुश्किल फ़ैसला है, एक कठिन इरादा जिसके लिए अपने आप से भी लड़ना होता है, और अपने आसपास की दुनिया से भी, उन मूल्यों-मान्यताओं से भी जिन्हें जीवन की एकमात्र और स्वीकृत पद्धति के रूप में स्थापित कर दिया गया है। लेकिन आज की स्त्री को यह संघर्ष, यह ख़तरा, यह बहुआयामी युद्ध फिर भी वरेण्य लगता है, बनिस्बत उस ‘सुख’, ‘संतोष’ और ‘पूरेपन’ के जिसकी गारंटी विवाह नाम की संस्था देती रही है, और बदले में स्त्री से ही नहीं, कई बार पुरुष से भी उसकी आज़ादी को छीनती रही है।
स्त्री-स्वातंत्र्य की अवधारणाओं को अपने लेखन से नई धार देनेवाली गीताश्री का यह उपन्यास कथाओं और उपकथाओं में चलती एक बहस ही है। यह उन स्त्रियों के अन्तर्बाह्य संघर्षों का कोलाज है जो समाज को पारम्परिक परिवार के स्थान पर एक नया केन्द्र देना चाहती हैं जहाँ किसी की संवेदना को रौंदा न जाए, न स्त्री की, न पुरुष की; जहाँ इन दोनों का सम्बन्ध आरम्भ से अन्त तक एक-दूसरे को अपने-अपने ‘व्यक्ति’ में खिलने-खुलने-पूरा होने में मदद देता हो।
इस उपन्यास से गुज़रना स्त्री-विमर्श के एक जटिल, लेकिन ज़रूरी पड़ाव से साक्षात्कार करना है।
Wahi Baat
- Author Name:
Kamleshwar
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इस उपन्यास में एक नए दृष्टिकोण से कहानी को उठाया गया है। उपन्यास के केन्द्र में महत्त्वाकांक्षी पति और उसकी पत्नी का द्वन्द्व है। वह पत्नी लगातार दमित महसूस करती है। पति के तबादले के बाद पत्नी का एकान्त निरन्तर गहरा होता जाता है। ऐसी अवस्था में भावनावश वह पत्नी अपने उस एकान्त को ख़त्म कर लेती है। वह एक साहसिक फ़ैसला लेती है, और फिर तलाक़ हो जाता है। उसके बाद वह दोबारा विवाह करती है और पहला पति अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की दुनिया में लौट जाता है। इस कथा-सूत्र को लेकर चलनेवाले इस उपन्यास में स्त्री की इच्छा-शक्ति और पुरुष की महत्त्वाकांक्षा के द्वन्द्व को बड़ी गहराई से पहचाना गया है।
कथा की परिणति में जो दूसरा रास्ता पत्नी ने निकाला है, उसे एक नवीन नारी-क्रान्ति की संज्ञा दी जा सकती है। यहाँ स्त्री की भावना को दमित न रखने का एक कोण भी सामने आता है। यदि वह उपेक्षित और अकेलापन महसूस करती है तो इसकी दोषी निश्चित तौर पर पुरुष की महत्त्वाकांक्षा ही है, ऐसी हालत में स्त्री को क्या अपना ख़ालीपन भर लेने की आज़ादी नहीं होनी चाहिए?
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