Shigaf
Author:
Manisha KulshreshthaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
विस्थापन का दर्द महज़ एक सांस्कृतिक, सामाजिक विरासत से कट जाने का दर्द नहीं है, बल्कि अपनी खुली जड़ें लिए भटकने और कहीं जम न पाने की भीषण विवशता है, जिसे अपने निर्वासन के दौरान सैनसबेस्टियन (स्पेन) में रह रही अमिता, लगातार अपने ब्लॉग में लिखती रही है। डॉन किहोते की ‘रोड टू ला मांचा’ से कश्मीर वादी में लौटने की, अमिता की भटकावों तथा असमंजस-भरी इस यात्रा को अद्भुत तरीक़े से समेटता हुआ यह उपन्यास विस्थापन और आतंकवाद की कोई व्याख्या या समाधान नहीं प्रस्तुत करता, वरन् आस्था-अनास्था की बर्बर लड़ाइयों के बीच, कुचले जाने से रह गए कुछ जीवट पलों को जिलाता है और ज़मीन पर गिर पड़े उस दिशा संकेतक बोर्ड को उठाकर फिर-फिर गाड़ता है जिस पर लिखा है—भाई मेरे, अमन का एक रास्ता इधर से भी होकर गुज़रता है।
शिगाफ़ यानी एक दरार जो कश्मीरियत की रूह में स्थायी तौर पर पड़ गई है, जिसमें से धर्मनिरपेक्षता एक हद तक रिस चुकी है, इस शिगाफ़ को भरने के लिए प्रयासरत है उपन्यास का पत्रकार नायक ज़मान। अमिता और ज़मान जिनका लक्ष्य तो एक है मगर फिर भी दो विपरीत व विषम अतीत से उपजे जीवन-मूल्यों को सहेजते हुए वे कई बार प्रक्रिया तथा प्रतिक्रिया से उलझते हुए आपस में टकराते रहते हैं। अमिता के ब्लॉग, यास्मीन की डायरी, मानव बम जुलेखा का मिथकीय कोलाज, अलगाववादी नेता वसीम के एकालाप के ज़रिए कश्मीर और कश्मीरियत की विदीर्ण व्यथा-कथा को अलग कोण, नए शैलीगत प्रयोगों तथा ताज़गी-भरी भाषा के साथ अपने उपन्यास ‘शिगाफ़’ में अनूठे ढंग से प्रस्तुत कर रही हैं—मनीषा कुलश्रेष्ठ।
ISBN: 9788126722440
Pages: 256
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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रवीन्द्र भारती का उपन्यास ‘जगदम्बा’ हिन्दी कथा-साहित्य के मौजूदा ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ ‘हृदय की बात’ की मानिन्द है। ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तर भारत का आँचलिक जनजीवन जिस गहरी आत्मीयता, सूक्ष्मता तथा संगीतमय भाषा के साथ इस उपन्यास में अभिव्यक्त हुआ है, वह इधर के दिनों में दुर्लभ से दुर्लभतर होता गया है। लेकिन जो बात इस उपन्यास को खास बनाती है वह है उन दारुण स्थितियों का विश्वसनीय उद्घाटन जिनकी टीस स्थानीय बोली-बानी, आस्था-अन्धविश्वास और तमाम चीज-बतुस के संक्रामक आकर्षण के बावजूद, पाठक गहरे महसूस करता है।
इस उपन्यास में ऐसी स्त्रियाँ आती हैं जो अपने बनाए आकाश में उड़ना चाहती हैं। लेकिन उन्हें उड़ना पड़ता है मर्द के बनाए आकाश में। उन्हें अपने आकाश में उड़ने की आज़ादी नहीं। उड़ेंगी तो पतुरिया कहलाएँगी। इससे बात न बने तो देवी कहकर, जगदम्बा करार देकर उनके पंख तोड़ दिए जाएँगे। उपन्यास सवाल उठाता है— इनसान कोई बाँधने की चीज है? और, जवाब भी देता है—दरअसल जानवर भी बाँधने की चीज नहीं है मगर, आदमी अपने स्वार्थ में क्या नहीं करता! न हाथ बाँधने की चीज है, न मन। जहाँ कहीं बन्धन की गाँठ पड़ेगी, वह दिखे न दिखे, इनसान कुम्हला जाता है।
यहाँ हम मर्द के साथ सोने से इनकार करने पर जगदम्बा बना दी जाने वाली एक स्त्री को, समाज और परिवार ने मुक्ति की जो स्थापना दी है, उससे अलग, नई राह पर कदम बढ़ाते देखते हैं जो उसने खुद चुनी है। वह किसी मिथ जैसी मालूम पड़ती है; लेकिन वह यथार्थ है, वर्तमान में भविष्य की दिशासूचक! उपन्यास में हमें ऐसे अनेक किरदार मिलते हैं। मसलन चटपट और खटपट जो भले ही अनगढ़, गंवार लगते हैं लेकिन अन्याय को समझने और उसका प्रतिकार करने की अपनी सहज वृत्ति के कारण अलग से ध्यान आकर्षित करते हैं। बागुन बाबा, नकछेदी, सिस्टर क्रेजी भी ऐसे ही अनूठे किरदार हैं।
वस्तुतः आँचलिक उपन्यास का यह नया आख्यान है जो न केवल बेहद पठनीय है बल्कि संग्रहणीय भी है।
Saavan Ki Ek Saanjh
- Author Name:
Harsh Ranjan
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- Description: दोस्तों ! ‘एक आग का दरिया’ के बाद मेरी ये दूसरी कृति, एक कहानी संग्रह, ‘सावन की एक साँझ’ आपके सामने प्रस्तुत है। दस कहानियाँ हैं इसमे जिनमे ज़्यादातर नई हैं मतलब पिछले तीन-चार सालों मे लिखी गईं...ये उस दौर की कहानियाँ हैं जब जीवन के ज़ीरो माईल पर खड़े होकर मैंने सावन की मूसलाधार बारिश में भींगना स्वीकार किया था। कभी खुद से सीखा, कभी दूसरों ने सिखाया और मैं पहले की तरह लिखता गया। भगवान ने ऐसी ज़िंदगी दी है कि कहानियों की कभी कोई कमी नहीं हुई...कभी-कभी लगता है ज़िंदगी कम पड़ जाएगी, मेरी लिखने के लिए और आपकी पढ़ने के लिए। सावन की वो साँझ ऐसी साँझ थी जो जीवन के एक दौर और एक कहानी संग्रह की पहचान बन गयी...उस साँझ ने मुझे सुबह का मतलब समझाया और समय ने स्वर्ग की उस सीढ़ी का पता मुझे बताया जिसने मुझे अपनी पहचान बदलने मे सहायता की।
Ek Karore Ki Botal
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Description:
ज़िन्दगी एक फूल होती है जो मुरझा जाती है; ज़िन्दगी एक पत्थर होती है और घिस जाती है; ज़िन्दगी लोहा होती है और जंग खा जाती है; ज़िन्दगी आँसू होती है और गिर जाती है; ज़िन्दगी महक होती है और बिखर जाती है; ज़िन्दगी समन्दर होती है और...“यही है कृश्न चंदर की जादुई क़लम, जिसने जीवन की भयावह सचाइयों को अत्यन्त रोमैंटिक लहज़े में पेश किया है।
'एक करोड़ की बोतल' उनका एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास है, जिसमें उन्होंने नारी के समस्त कोमल मनोभावों एवं उसकी आन्तरिक पीड़ा को मार्मिक अभिव्यक्ति दी है। एक कुशल कथाकार के नाते उनकी लेखनी ने बहुत सफलता के साथ सेक्स, रोमांस, धनाभाव और माया-लोक की सम-विषम परिस्थितियों में फँसे अपने मुख्य पात्रों को इस बात की पूरी स्वतंत्रता दी है कि वे अपने-आपको पाठक के सामने स्वयं उपस्थित करें।
वास्तव में कृश्न चंदर का यह उपन्यास मानव-मन की दुर्बलताओं का दर्पण तो है ही, इसमें सामाजिक विघटन एवं कुंठा से उत्पन्न वे घिनौने प्रसंग भी हैं, जो हमें चिन्तन के नए छोरों तक ले जाकर रचनात्मक पुनर्रचना के लिए प्रेरित भी करते हैं।
Tat-Sam
- Author Name:
Rajee Seth
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Description:
राजी सेठ का उपन्यास ‘तत-सम’ जिजीविषा के मर्म-भेदन का आलोकपर्व है। इस उपन्यास में नियतिबद्ध मनुष्यों को अपने चैतन्य की तलाश है क्योंकि यहाँ शत्रु समाज नहीं, अपनी जड़ता है। ‘तत-सम’ का उद्घोष है—जिजीविषा के उत्सव का दस्तावेज़ सदा अर्थ-जीवी रहेगा। यह उपन्यास और भी कई अर्थों में अपूर्व है। इसकी संरचना में घटनाएँ नहीं, अपितु मनःस्थितियाँ महत्त्वपूर्ण हैं।
यहाँ दु:ख दु:ख नहीं, दृष्टि है—कुछ ऐसी प्राणवत्ता का उपार्जन, जो गिर जाने पर कपड़े झाड़कर खड़े हो जाने का संकल्प और आत्मबल भी देता है अपने को अपनी समग्रता में पाने के लिए।
भाषा, इस उपन्यास में अभिव्यक्ति का उपकरण मात्र नहीं है बल्कि शुद्ध संवेदन है। स्थिति की अनुकूलता में पूरी तरह विगलित और स्पन्दित। पाठ की सघन बुनावट—हर बार नए से नया अर्थ देने में सक्षम। शैली-शिल्प की ऐसी प्रस्तुति और ऐसी जीवन-दृष्टि हिन्दी उपन्यासों में अन्यत्र विरल है। अपनी इस विशेषता के कारण ‘तत-सम’ एक ऐसी अनूठी कृति है जो अपने पात्रों की नियति को तत्-समता के अभिशाप से उबार लाती है।
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