Andhi Chhalaang
Author:
Mandakranta SenPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
नाम तिथि। एक मध्यवित्त परिवार की लड़की। चेहरा अति साधारण। बी.ए. की छात्रा। जीवन की धुरी विद्यालय और घरेलू व्यस्तताएँ। अचानक एक दिन किसी की नज़र से नज़र मिली और तिथि के शरीर में बिजली दौड़ गई। लड़के का नाम पार्थ। तिथि की एक सहेली का चचेरा भाई। आयु में उससे बारह साल बड़ा। परिवार के विरोध के बावजूद तिथि पार्थ से विवाह करके निहायत निम्नवर्गीय परिस्थितियों में अपने दाम्पत्य जीवन का आरम्भ करती है। और, किराए के इसी अकेले कमरे में उसके सामने जीवन का वह पक्ष खुलता है जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। बांग्ला में एक कवि के रूप में प्रतिष्ठित व चर्चित मन्दाक्रान्ता सेन अपने इस पहले उपन्यास में स्त्री-अस्मिता को एक नया विस्तार और नया चेहरा देने का प्रयास करती हैं; साथ ही अपनी सम्भावनाओं की तरफ़ भी पाठकों का ध्यान आकर्षित कराती हैं।
ISBN: 9788119159413
Pages: 212
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: प्रस्तुत पुस्तक में मध्य प्रदेश की चार संस्कृतियों और बोलियों की लोककथाओं का संकलन है। ये संस्कृतियाँ और बोलियाँ अपने-अपने वाचिक परंपरागत साहित्य का अकूत भंडार हैं। निमाड़ी, मालवी, बुंदेली और बघेली बोलियाँ अपनी-अपनी संस्कृति और साहित्य का संचरण तथा संरक्षण करती आई हैं। इनमें गीत, कथा, गाथा, लोकोक्ति, नृत्य, नाट्य, शिल्प आदि सभी शामिल हैं, जो वाचिक हैं। कथाएँ ज्ञान का सागर हैं। उनमें मानव जिज्ञासा के हर प्रश्न के उत्तर मिल जाते हैं। इसलिए कथारस को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, पर इस रस को पाने के लिए अपने मस्तिष्क में वैसा ही निर्मल भाव उत्पन्न करने की जरूरत होगी। निमाड़ी लोककथाएँ विंध्य और सत्पुड़ा की मध्यभूमि की ऊष्म जलवायु की तपती कहानियाँ हैं, जो नर्मदा के दोनों तटों के पवित्र जल में बारहों महीने डुबकियाँ लगाती हैं। मालवी लोककथाएँ मालवा की शस्य-श्यामला भूमि की वार्त्ताएँ हैं। बुंदेली लोककथाएँ बुंदेलखंड के शौर्य, साहस और शृंगार की भूमि की पारदर्शी कथाएँ हैं। बघेली लोककथाएँ एक अर्थ में रिमही, यानी नर्मदा संस्कृति की ही बघेलखंडी कथाएँ हैं। रीवा का नाम भी रेवा के ‘रव’ से बना है। इन लोककथाओं में प्रदेश के जनजातीय जीवन के आदिम स्वर और छवियाँ अंकित हैं, क्योंकि लोककथाओं का मूल उत्स तो आदिम कथाएँ ही हैं।
Jeene Ke Liye
- Author Name:
Rahul Sankrityayan
- Book Type:

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Description:
‘जीने के लिए’ राहुल सांकृत्यायन का दूसरा उपन्यास है। अपने पहले उपन्यास ‘बाईसवीं सदी’ में उन्होंने दो सदी बाद आने वाले समय का चित्र खींचा था, इसलिए यथार्थ आधारित होते हुए भी उसमें कल्पना का समावेश अधिक था। लेकिन इस उपन्यास में वे अपने समसामयिक देश-काल को आधार बनाते हैं और यथार्थ की जमीन पर उतर आते हैं। वह देश-काल है पहले विश्वयुद्ध के बाद का जिसमें परिस्थितियाँ तेजी से बदल रही हैं और पूरी दुनिया के सामने चुनौतियाँ जटिल से जटिलतर होती जा रही हैं। इसी पृष्ठभूमि में ‘जीने के लिए’ की कहानी अपना स्वरूप ग्रहण करती है जिसमें भारतीय जनगण द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से अपनी आज़ादी के लिए किये जा रहे संघर्ष का मर्मस्पर्शी चित्रण है।
यह बात अलग से ध्यान खींचती है कि इस उपन्यास में तत्कालीन भारतीय जनजीवन के रोजमर्रा के चित्रों के साथ-साथ उसके वैचारिक आलोड़न का अंकन भी राहुल करते चलते हैं जिसका पता उपन्यास की ऐसी पंक्तियों से मिलता है—‘मुट्ठी भर विदेशी हिन्दुस्तान जैसे बड़े देश को गुलाम नहीं बना सकते, इसका सारा दोष हमारे समाज की बनावट के मत्थे है’; ‘राष्ट्र की एकता मंचों पर लम्बे-लम्बे भाषण से नहीं होगी। इसके लिए हमें ठोस काम करना होगा। वह ठोस काम यही है कि देश के भीतर धर्म और जाति-भेद ने जितनी दीवारें कड़ी की हैं,उन्हें गिरा देना।’
वस्तुतः ‘जीने के लिए’ उपन्यास एक तरफ हमारे गुजरे दौर की विश्वसनीय कहानी प्रस्तुत करता है तो दूसरी तरफ उन आदर्शों की याद दिलाती है जिन्हें मूर्त करना एक समर्थ समाज और राष्ट्र के रूप में हमारे आगे बढ़ने के लिए आवश्यक है।
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