Stree Adhyayan Ki Buniyad
Author:
Pramila K.P.Publisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
इस पुस्तक में स्त्री-विमर्श के शुरुआती इतिहास, और विश्व में विभिन्न चरणों में उसका विकास कैसे हुआ, इसका तथ्यात्मक ब्योरा दर्ज किया गया है। तदुपरान्त हिन्दी साहित्य, विशेषतया कहानी में आज यह विमर्श किस तरह व्यक्त हो रहा है, उसका भी बेबाक विश्लेषण किया गया है।</p>
<p>अठारहवीं सदी में यूरोप में शुरू हुआ नारीवादी चिन्तन कई धाराओं में विकास की मौजूदा स्थिति तक पहुँचा है। उदारवादी नारीवाद समाज के व्यापक सरोकारों को समेटकर चलता है तो उग्रवादी नारीवाद सामाजिक संरचना में आमूलचूल परिवर्तन का हिमायती रहा है। इनके साथ मार्क्सवादी तथा अश्वेत नारीवाद की धाराएँ भी रहीं, और समाजवादी नारीवाद भी देखने में आया। ग़रज़ कि उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में जो चिन्ता समूचे विश्व में सबसे व्यापक रही, वह स्त्री की अस्मिता, उसके अधिकारों के इर्द-गिर्द स्थित रही और इसका परिणाम है कि आज कुछ चिन्तक 21वीं सदी को स्त्रियों की सदी कह रहे हैं और नारीवादी विमर्श अलग-अलग समाजों में यौन-राजनीति के अलग-अलग पहलुओं को समझने के लिए जूझ रहा है।</p>
<p>यह पुस्तक इस विमर्श के बनने-बढ़ने के इतिहास को जानने-समझने में बेहद सहायक होगी।
ISBN: 9788126727575
Pages: 152
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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जयशंकर प्रसाद के रचनात्मक लेखन में भारतीय वाङ्मय की सम्पूर्ण प्रतिभा बोलती है जो भारतीय जन को बड़े स्वप्न देखने और उन्हें सत्य साकार करने के लिए प्रेरित करती है। वे अपने जीवन-दर्शन और जीवन-स्वप्न का प्रमाणीकरण करने वाले कलाकार हैं। उनके विराट एवं बहुआयामी व्यक्तित्व में जो आत्मप्रसार और आत्मपरिष्कार का भाव है वह भारत तथा हिन्दी जाति का समवेत सांस्कृतिक अवचेतन है।
अपने समन्वयात्मक चिन्तन के माध्यम से प्रसाद ने कविता में आत्मज्ञान एवं आन्तरिक संगति के माध्यम से मानव-जीवन में आनन्दवाद की प्राण-प्रतिष्ठा की। उन्होंने जिस कौशल के साथ आत्म-वेदना को विश्व-वेदना में रूपान्तरित किया, वह अपनी संवेदना को सांस्कृतिक धरातल एवं इतिहास-बोध द्वारा सर्जनात्मक सार्थकता प्रदान करने का एक महत्त्वाकांक्षी प्रयास है।
प्रसाद का सम्पूर्ण लेखन साहित्य, संगीत और कला की एकता का उज्ज्वलतम विग्रह है। उनका कृतित्व मानव जाति को सत्य, शिव और सौन्दर्य के समन्वय द्वारा पूर्ण सत्य, उदात्त प्रेम, अनन्त रमणीय सौन्दर्य और अखंड आनन्द तक ले जाता है। वे बड़ी चिन्ता के रचनाकार हैं और उनके चिन्तन के केन्द्र में भारतीय अस्मिता-बोध और विश्व-मनुष्यता का मंगल है। इसके लिए वे भारत-बोध का एक अभिनव प्रतिमान निर्मित करते हैं, साथ ही विश्वजीवन तथा सभ्यता के प्रति अतिशय गहन विमर्श प्रस्तुत करते हैं। इसीलिए उनके साहित्य को सम्पूर्णता में समझना और उसकी सम्यक् व्याख्या करना अपेक्षाकृत कठिन रहा है।
इस ग्रन्थ में विद्वान लेखक ने अन्तर्दृष्टि और विश्व-संदृष्टि के बल पर भारत-बोध को आत्मसात् करके उनके कृतित्व से आन्तरिक संलग्नता स्थापित करते हुए उसके वस्तुनिष्ठ विश्लेषण का गहन प्रयास किया है। इसमें गीता के अठारह अध्यायों की तरह महाकवि जयशंकर प्रसाद की महानता के अठारह प्रतिमान निर्मित किए गए हैं जिनके आधार पर विश्व के महत्तम कलाकारों की रचनात्मकता का विश्लेषण भी सहज संभाव्य है। प्रसाद के जीवन और व्यक्तित्व के अनछुए सन्दर्भों को भी इसमें देखा जा सकता है।
Celebrating The City Kolkata in Indian Literature
- Author Name:
Sayantan Dasgupta
- Book Type:

- Description: This anthology has its roots in a Sahitya Akademi symposium in which the Centre for Translation of Indian Literatue, Jadhapur University collaborated under the aegis of its UGC RUSA 2.0 project on Redefining Indian Literature.
Nirala Aur Muktibodh : Chaar Lambi Kavitayen
- Author Name:
Nandkishore Naval
- Book Type:

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Description:
हिन्दी में लम्बी कविता का इतिहास नया नहीं है, भले उसे पारिभाषिक अभिधा मुक्तिबोध की लम्बी कविताओं से प्राप्त हुई हो। पुराने कवियों को छोड़ दें, तो लम्बी कविता द्विवेदी-युग के कवियों से लेकर समवर्ती युग के कवियों तक ने लिखी है। हिन्दी के महत्त्वपूर्ण युवा आलोचक नंदकिशोर नवल ने अध्ययन के लिए चार लम्बी कविताएँ चुनी हैं। उनमें से दो निरालाकृत हैं और दो मुक्तिबोधकृत। कहने की आवश्यकता नहीं कि ये चारों कविताएँ हिन्दी की चर्चित और विवादास्पद ही नहीं, महान कविताएँ भी हैं, जिनके सोपानों पर चरण रखते हुए हिन्दी कविता ने ऊँचाई प्राप्त की है।
लम्बी कविता का सम्बन्ध निश्चय ही केवल आकार से न होकर प्रकार से भी है। इसे संयोग ही कहेंगे कि लेखक द्वारा चुनी गई चारों कविताएँ चार तरह की हैं। ‘सरोज-स्मृति’ के चित्रों को यदि स्मृति का सूत्र गुम्फित करता है, तो 'राम की शक्ति-पूजा' कथा के सहारे आगे बढ़ती है। ‘ब्रह्मराक्षस’ और ‘अँधेरे में’ दोनों ही फ़ैंटास्टिक कविताएँ हैं, लेकिन एक की फ़ैंटेसी जहाँ एक अखंड रूपक के रूप में है, वहीं दूसरे की फ़ैंटेसी एक पूरी चित्रशाला है। नवल ने बड़ी सूक्ष्मता से चारों लम्बी कविताओं के शिल्पगत वैशिष्ट्य को उद्घाटित करते हुए उनकी उस अन्तर्वस्तु पर प्रकाश डाला है, जो कि उससे अभिन्न है।
समकालीन हिन्दी आलोचना में रचना से साक्षात्कार की बहुत बात की जाती है, लेकिन उसका सामना होने पर प्राय: आलोचक बग़ल से निकल जाते हैं। नवल ने रचना के अन्तर्लोक में प्रवेश करते हुए उसके उस बृहत्तर सन्दर्भ को हमेशा याद रखा है, जिसमें ही कोई रचना अपनी सार्थकता अथवा प्रासंगिकता प्राप्त करती है। ‘निराला और मुक्तिबोध : चार लम्बी कविताएँ’ नामक उनकी यह आलोचना-पुस्तक हिन्दी कविता के मर्मग्राहियों के लिए निश्चय ही उपयोगी बनी रहेगी।
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