Kabristan Mein Panchayat
Author:
Kedarnath SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
‘कब्रिस्तान में पंचायत’ कवि केदारनाथ सिंह की एक गद्य कृति है—एक कवि के गद्य का एक विलक्षण नमूना—जिसमें उसकी सोच, अनुभव और उसके पूरे परिवेश की कुछ मार्मिक छवियाँ मिलेंगी और बेशक वे चिन्ताएँ भी जो सिर्फ़ एक लेखक की नहीं हैं। पुस्तक के नाम में जो व्यंग्यार्थ है, वह हमारे समय के गहरे उद्वेलन की ओर संकेत करता है और शायद इस बात की ओर भी कि इस अबोलेपन की हद तक बँटे हुए समय में परस्पर बातचीत के सिवा कोई रास्ता नहीं। यह अबोलापन इतना गहरा है और इतनी दूर तक फैला हुआ कि आज एक माँ और ‘उसके द्वारा रची गई उसकी अपनी ही सृष्टि’ के बीच एक लम्बी फाँक आ गई है। इस पुस्तक के ज़्यादातर आलेख इन्हीं फाँकों या दरारों के बोध से पैदा हुए हैं—फिर वह अक्का महादेवी की पीड़ा-भरी चुनौती हो या एक रहस्यमय दर्द से एक मामूली आदमी का मर जाना।</p>
<p>इन आलेखों में एक सुखद विविधता मिलेगी, जिसका फलक एक ओर वाक्यपदीयम् से कोलकाता की सड़क पर पड़ी घायल चिड़िया तक फैला है और दूसरी ओर विस्मृत दलित कवि देवेन्द्र कुमार से दलित कविता के पितामह तेलगू के महाकवि गुर्रम जाशुआ तक। दक्षिण के कुछ कालजयी रचनाकारों पर लिखी गई तलस्पर्शी टिप्पणियाँ इस पुस्तक को एक और विस्तार देती हैं और थोड़ी-सी अखिल भारतीयता भी।</p>
<p>पारदर्शी और कसी हुई भाषा में लिखे गए ये आलेख कुछ समय पूर्व दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ में क्रमिक रूप से छपे थे और वृहत्तर पाठक-समुदाय द्वारा पढ़े-सराहे गए थे। कुछ नई सामग्री के साथ उन आलेखों को एक जगह एक साथ पढ़ना एक अलग ढंग का अनुभव होगा और शायद एक आवयिक संग्रथन का सूचक भी।
ISBN: 9788171198306
Pages: 136
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
सुधी समीक्षक नंदकिशोर नवल की मुक्तिबोध पर लिखी गई यह पुस्तक दो खंडों में विभक्त है। पहले खंड में मुख्यतः उनके ‘ज्ञान’ का विश्लेषण है और दूसरे खंड में मुख्यतः उनकी ‘संवेदना’ का। लेकिन यह विभाजन केवल सुविधा की दृष्टि से है, नवल जी ने मुक्तिबोध को यथासम्भव अविभाज्य रूप में देखने और दिखाने की कोशिश की है। अध्ययन कविता पर केन्द्रित है, लेकिन प्रसंगवश इसमें उनके आलोचना-साहित्य, कथा-साहित्य और उनकी राजनीतिक टिप्पणियों की भी छानबीन की गई है।
मुक्तिबोध की कविता पर विचार करते हुए नवल जी ने उनकी मार्क्सवादी विश्वदृष्टि एवं राजनीतिक चेतना, उनके आत्मसंघर्ष, उनकी ओजपूर्ण भावना, विराट कल्पना और विश्लेषणात्मक बुद्धि की गहरी छानबीन की है और इस सन्दर्भ में अन्य विद्वान आलोचकों के मतों को भी जाँचा-परखा है। मुक्तिबोध की प्रगीतात्मकता, फैंटेसी और भाषा पर भी विस्तार से विचार किया गया है और परिशिष्ट में मुक्तिबोध की सर्वाधिक चर्चित एवं महत्त्वपूर्ण कविता ‘अँधेरे में’ का विश्लेषण किया गया है। दूसरे शब्दों में मुक्तिबोध पर यह पहली मुकम्मल किताब है।
Chitralekha Ka Mahatva
- Author Name:
Madhuresh
- Book Type:

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अपने प्रकाशन के लगभग तत्काल बाद से ही 'चित्रलेखा' किसी-न-किसी रूप में चर्चा और विवादों में रही है। लेकिन उसका खुमार आज भी बना हुआ है। जैसा कि प्राय: कोई न ज़मीन तोड़नेवाली हर रचना के साथ होता है, वह अपने साथ अनेक प्रश्नों और विवादों को भी लेकर आती है। 'चित्रलेखा' के साथ भी यह सच है। एक ओर यदि वैचारिक धरातल पर भगवतीचरण वर्मा और उनकी रचना का विरोध हुआ, वहीं कभी उनके स्त्री पात्रों, कभी बीजगुप्त के प्रेम-दर्शन और जीवन-पद्धति को आधार बनाकर लेखक पर अनेक सवाल उठाए गए।
किसी भी रचना पर विचार और मूल्यांकन की प्रक्रिया में पहला काम उस रचना को वस्तुपरकता के साथ देखना और समझना है। ‘चित्रलेखा’ को सम्पूर्णता में समझने के लिए यहाँ बहुत से ऐसे पक्षों पर लिखवाया गया है जिनके बिना उसका कोई भी मूल्यांकन अधूरा होगा। यहाँ जो सामग्री संकलित है, उसके माध्यम से ‘चित्रलेखा’ को समूचे परिप्रेक्ष्य में अधिक पूर्णता से समझा जा सकेगा।
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